जिस्मानी रिश्तों की चाह-45

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 45)

जूजाजी 2016-07-29 Comments

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सम्पादक जूजा

आपी ने कपड़े पहन लिए, फरहान और मेरे माथे को चूम मेरे बालों में हाथ फेरते हुए बोलीं- तुम दोनों के साथ तो मैं पूरी रात भी गुज़ार लूँ.. तो तुम्हारा दिल ना भरे.. अब तुम सो जाओ.. मैं भी जा रही हूँ..

अगली सुबह भी रूटीन की ही सुबह थी। मैंने सब के साथ ही नाश्ता किया.. लेकिन आपी नाश्ते के टेबल पर मौजूद नहीं थीं.. शायद उन्हें आज यूनिवर्सिटी नहीं जाना था.. इसलिए उठी भी नहीं थीं।

नाश्ता करके हनी और फरहान अब्बू के साथ ही निकले थे और उनके कुछ ही देर बाद मैं भी अपने कॉलेज चला गया।

दोपहर में जब मैं कॉलेज से घर वापस आया और अपने कमरे में दाखिल हुआ.. तो मुझे हैरत से एक झटका लगा।

फरहान और आपी कंप्यूटर टेबल के सामने बैठे थे और कंप्यूटर पर एक ट्रिपल-एक्स मूवी चल रही थी। फरहान ने टी-शर्ट और ट्राउज़र पहना हुआ था और उसका लण्ड ट्राउज़र से बाहर था।
रूही आपी.. फरहान का लण्ड अपनी मुठी में पकड़े हाथ ऊपर-नीचे कर रही थीं।

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आपी ने भी कॉटन की एक क़मीज़-सलवार का सूट पहन रखा था.. उनका दुपट्टा नीचे ज़मीन पर पड़ा था.. लेकिन काला स्कार्फ उनके सिर पर ही उनके मख़सूस अंदाज़ में बंधा हुआ था और उन दोनों की नजरें स्क्रीन पर जमी थीं।

दरवाज़े की आहट सुन कर फरहान और आपी दोनों ने उसी वक़्त मेरी तरफ़ देखा.. तो मैंने पूछा- खैर तो है ना..? आज दिन दिहाड़े वारदात हो रही है?

आपी ने फरहान के लण्ड को ज़ोर से दबा कर और अपने दाँतों को भींच कर कहा- अम्मी और हनी सलमा खाला के घर गई हैं.. शाम में ही वापस आएँगी.. और हमारे छोटे भाई साहब को जिन्न चढ़ गया है.. इनका जिन्न उतार रही हूँ..

मैंने आपी की बात सुनी और हँस कर बाथरूम की तरफ जाते हुए कहा- यार मैं ज़रा नहा लूँ.. गर्मी इतनी ज्यादा है कि पूरा जिस्म पसीने से चिप-चिप कर रहा है।

मैं नहाने के बाद तौलिए से अपना जिस्म साफ करते हुए बाथरूम से बाहर निकला।
मैंने पहली नज़र कंप्यूटर टेबल पर ही डाली.. लेकिन आपी और फरहान को वहाँ ना पा कर मैंने दूसरी तरफ देखा तो.. आपी आईने के सामने कल रात वाले सेम अंदाज़ में खड़ी थीं.. और फरहान उनकी रानों के बीच में अपना लण्ड फंसाए आगे-पीछे हो रहा था।

आपी ने भी उसी वक़्त मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दीं।
मैंने भी आपी की मुस्कुराहट का जबाव मुस्कुरा कर ही दिया।

मैंने उनके सामने आकर अपने होंठ आपी के खूबसूरत और नर्म-ओ-नाज़ुक होंठों से चिपका दिए। एक सादे चुम्बन के बाद मैंने अपना ऊपर वाला होंठ आपी के ऊपर वाले होंठ से ऊपर रखा.. और अपना नीचे वाला होंठ आपी के नीचे वाले होंठ से नीचे रख कर आपी के दोनों होंठों को अपने होंठों में पकड़ लिया और चूसने लगा।

आपी के होंठ चूसने में इतना मज़ा आता था कि मैं घन्टों तक सिर्फ़ उनके होंठ ही चूसता रहूं.. तो भी मेरे लिए यही बहुत था।

भरपूर अंदाज़ में आपी के होंठ चूसने के बाद मैंने अपने होंठ आपी के होंठों से हटाए और चेहरा उनके चेहरे के सामने रखे मुहब्बत भरी नजरों से आपी की आँखों में देखा।

मैं और आपी एक-दूसरे की आँखों में डूबने के क़रीब ही थे कि अचानक आपी का सिर मेरे नाक से टकराया.. जैसे कि उन्होंने टक्कर मारी हो।

उसी वक़्त फरहान की मज़े से भरी ‘आआहह..’ मुझे सुनाई दी और मैं तक़लीफ़ से अपनी नाक को अपने हाथ में पकड़े ‘उफ्फ़ ऑश..’ करते हुए पीछे हट गया।

आपी भी फ़ौरन मेरी तरफ बढ़ीं और कहा- ज्यादा तो नहीं लगी?
मैंने नहीं के अंदाज़ में अपना सिर हिलाया और आपी को देखते हुए झुंझलाहट में कहा- हुआ क्या था आपको?

उन्होंने हँसते हुए फरहान की तरफ इशारा कर दिया.. मैंने फरहान को देखा तो वो हाँफता हुआ ज़मीन पर बैठा था और उसने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा हुआ था।
उसका हाथ उसके अपने ही लण्ड के जूस से भरा था।

तब मुझे समझ में आई कि असल में हुआ ये था.. कि मैं और आपी तो अपने में मगन थे.. और फरहान आपी की रानों में अपना लण्ड डाल कर झटके लगा रहा था और अचानक ही वो अपना कंट्रोल खो बैठा और उसने एक जोरदार झटका मारा।
उस झटके की ही वजह से आपी का सिर मेरी नाक से टकराया था और आपी भी फ़ौरन आगे बढ़ी थीं.. जिससे फरहान का लण्ड उनकी रानों से बाहर आ गया था..

लेकिन फरहान बिल्कुल आखिरी स्टेज पर था और आपी के आगे होते ही फरहान के लण्ड ने अपना पानी छोड़ दिया और उसने अपने ही हाथ से आखिरी 2-3 झटके दिए.. जिससे फरहान का हाथ और उसकी टाँगें भी उसके पानी से तर हो गईं।

आपी ने मेरी बगलों में हाथ डाल कर सहारा देकर मुझे उठाया और कहा- चलो बेड पर बैठो।

मैं बेड की तरफ चल दिया.. आपी ने अपना दुपट्टा उठाया और उसके कोने की छोटी सी गठरी बना कर मेरे पास आ गईं।

मैं बेड पर बैठा.. तो आपी अपने दुपट्टे की गठरी पर फूँकें मार-मार कर मेरी नाक को सेंकने लगीं। मैं आपी के खूबसूरत जिस्म को देखने लगा.. आपी की हरकत के साथ ही उनके बड़े-बड़े मम्मे भी हरकत कर रहे थे।

आपी के निप्पल अभी भी मुकम्मल खड़े थे.. उनका पेट.. उनकी रानें.. हर चीज़ इतनी मुतनसीब थीं कि देख कर दिल ही नहीं भरता था।

आपी कुछ देर मेरे नाक को सहलाती रहीं.. नाक की तक़लीफ़ की वजह से ही मेरा लण्ड भी बैठ गया था।

आपी ने दुपट्टा साइड पर फेंका और मेरे साथ बैठ कर मेरे बैठे हुए लण्ड को अपने हाथ में लिया और कुछ देर तक उससे गौर से देखने के बाद बिल्कुल बच्चों के अंदाज़ में खुश होते हुए कहा- ये अभी कितना छोटा सा मासूम सा लग रहा है ना.. नरम-नरम सा.. और बाद में कितना बड़ा और सख़्त हो जाता है।

वे मेरे नर्म लण्ड को दबाने लगीं।

मैंने कहा- आपी आपने थोड़ी देर ऐसे ही पकड़े रखा.. तो यह नर्म नहीं रहेगा.. अपने जलाल में आ ही जाएगा।
यह कह कर मैंने आपी के कंधों को थामा और आपी को अपने साथ ही नीचे लिटाता हुआ पीछे की तरफ लेट गया।

आपी के लेटने से मेरी नज़र फरहान पर पड़ी.. वो अब भी बेसुध सा ज़मीन पर लेटा हुआ था और उसकी आँखें भी बंद थीं.. शायद सो ही गया था।

मैंने लेटे-लेटे ही करवट बदली और थोड़ा सा आपी के ऊपर होकर उनके एक गुलाबी खड़े निप्पल को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे उभार को अपने हाथ से मसलने लगा।

आपी के हाथ में मेरा लण्ड.. अब फिर से फूलने लगा था.. कुछ देर में ऐसे ही बारी-बारी से आपी के सीने के उभारों को चूसता रहा और मेरा लण्ड अपने जोबन पर आ गया।

मैं उठा और टेबल से तेल की बोतल उठा लाया.. मैंने अपने लण्ड पर ढेर सारा तेल लगाया और फिर अपने हाथ में तेल लेकर आपी के खूबसूरत मम्मों के दरमियान भी लगा दिया।

आपी ने हैरानी की कैफियत में मुझे देखा और पूछा- सगीर.. ये क्या कर रहे हो तुम?

मैं आपी के ऊपर ऐसे बैठ गया कि मेरे घुटने उनकी बगलों के दरमियान आ गए.. लेकिन मैंने अपना वज़न अपने घुटनों पर ही रखा और अपने खड़े लण्ड को अपनी बहन के सीने के उभारों के दरमियान रख कर उनसे कहा- आपी अब अपने हाथों से अपने दोनों उभारों को दबाओ।

आपी अब समझ गईं कि मैं क्या करना चाह रहा हूँ।
हमने साथ में और अकेले-अकेले में ही बहुत ट्रिपल-एक्स मूवीज देखी थीं.. और ये सब चीजें मेरे लिए और आपी के लिए नई नहीं थीं।

आपी ने खुश होते हो कहा- गुड शहज़ादे.. अच्छी पोजीशन है ये..
उन्होंने अपने दोनों उभारों को दबा कर मेरे लण्ड को उनके दरमियान भींच लिया।

मैंने दिखावे का गुस्सा दिखाते हुए कहा- आप सही जगह तो डालने देती नहीं हो.. अब ऐसी ही जगहें ढूँढ़नी पड़ेंगी ना आपी..!
जवाब में आपी सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गईं लेकिन बोलीं कुछ नहीं।

मैंने अपने लण्ड को आहिस्ता-आहिस्ता आपी के सीने के उभारों के दरमियान आगे-पीछे करना शुरू कर दिया..
आपी के मम्मे बहुत सख़्त थे और मेरा पूरा लण्ड चारों तरफ से रगड़ खा रहा था और हर बार रगड़ लगने से जिस्म में मज़े की नई लहर पैदा होती थी।

मैं जब अपने लण्ड को आगे की तरफ बढ़ाता था.. तो मेरे बॉल्स का ऊपरी हिस्सा भी आपी के मम्मों और पेट के दरमियानी हिस्से पर रगड़ ख़ाता हुआ आगे जा रहा था और जब मैं लण्ड को वापस लाता.. तो मेरे बॉल्स के निचले हिस्से पर रगड़ लगती.. जिससे मुझे दुहरा मज़ा आ रहा था।

आपी ने अपने दोनों मम्मों को साइड्स से पकड़ कर दबा रखा था.. मैंने अपने दोनों हाथों को आपी के मम्मों पर रखा और उनके निप्पल को अपनी चुटकियों में पकड़ कर मसलने लगा और लण्ड को आगे-पीछे करना जारी रखा।

आपी ने मज़े की वजह से अपनी आँखें बंद कर ली थीं और आपी तेज-तेज साँसों के साथ सिसकारियाँ भर रही थीं।

आपी को मज़े लेता देख कर मैं भी जोश में आ गया और तेजी से अपना लण्ड आगे-पीछे करने लगा। कमरे में आपी की सिसकारियाँ और मेरे लण्ड की रगड़ लगने से ‘पुचह.. पुचह..’ की आवाजें साफ सुनाई दे रही थीं।

हमें यह भी इत्मीनान था कि घर में हमारे अलावा और कोई नहीं है.. इसलिए ना ही आपी अपनी आवाजों को कंट्रोल कर रही थीं और मैं भी इस मामले में बेख़ौफ़ था।

वाकिया जारी है।
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