जिस्मानी रिश्तों की चाह -36
(Jismani Rishton Ki Chah- Part 36)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left जिस्मानी रिश्तों की चाह -35
-
keyboard_arrow_right जिस्मानी रिश्तों की चाह -37
-
View all stories in series
सम्पादक जूजा
मैंने आपी की चूत में उंगली करते हुए अपनी उंगलियाँ चाटी तो मेरी बहना शर्मा गई। मेरा छोटा भाई आपी की चूचियाँ चूस रहा था और आपी सिसकार रही थी।
आपी की चीख भरी ‘आहह..’ सुन कर मैंने ऊपर देखा तो फरहान ने आपी के निप्पल को दाँतों में दबाया हुआ था और काफ़ी ताक़त से अपना सिर ऊपर खींच रहा था।
आपी ने फ़ौरन अपने दोनों हाथ फरहान के सिर की पुश्त पर रखे और सिर को वापस नीचे अपने उभार पर दबा दिया।
मैंने दोबारा अपनी नज़र नीचे की और आपी की पूरी नफ़ के अन्दर अपने ज़ुबान फेरने लगा।
आपी का पूरा पेट अपनी ज़ुबान से चाटने के बाद मैं उनकी रानों पर आया और पूरी रान के अंदरूनी और बाहरी हिस्से को अपनी ज़ुबान से चाटा।
मैं अपनी ज़ुबान से चाटता हुआ रान से घुटने.. और फिर पिण्डलियों से हो कर पाँव तक पहुँचा और आपी की सलवार को उनके जिस्म से अलग करके पीछे फेंक दिया और फिर पूरे पाँव को ऊपर से चाटने के बाद तलवे को चाटा और पाँव की एक-एक ऊँगली को बारी-बारी से चूसने लगा।
इसके बाद मैंने आपी की दूसरी टांग को पकड़ा और उसी तरह 1-1 मिलीमीटर के हिस्से को चाटता हुआ वापस आपी की नफ़ तक आ गया।
मैं उठ कर आपी की टाँगों के दरमियान बैठा और आपी की नफ़ के नीचे बालों वाले हिस्से को चूमने लगा और फिर अपनी ज़ुबान निकाल कर चाटना शुरू कर दिया।
मैं अपना सिर उठा कर एक नज़र फरहान और आपी को भी देख लेता था।
फरहान अभी भी आपी के मम्मों को ऐसे झंझोड़ और चूस रहा था.. जैसे उसे आज के बाद कभी ये नसीब नहीं होंगे।
आपी अभी भी बिल्कुल सीधी ही लेटी हुई थीं और आँखें बंद किए अपनी गर्दन को लेफ्ट-राईट झटक रही थीं। उनके चेहरे पर कभी फरहान की किसी जंगली हरकत पर तक़लीफ़.. और कराह के आसार पैदा होते थे.. तो कभी मेरी ज़ुबान उनके बदन में मज़े की नई लहर पैदा कर देती थी।
मैंने आपी के बालों वाले हिस्से को अच्छी तरह चाटने के बाद अपने दोनों हाथ आपी की रानों के नीचे रखे और उनकी टाँगों को थोड़ा सा उठा कर टाँगें खोल दीं।
अब मैंने अपना मुँह आपी की चूत के बिल्कुल करीब ला कर एक इंच की दूरी पर चंद लम्हें रुका और आपी की चूत को गौर से देखने लगा।
आपी की चूत पूरी गीली हो रही थी और उनकी चूत का रस चमक रहा था। आपी की चूत के दोनों खूबसूरत गुलाबी होंठों में छुपे दो गुलाब की पंखुड़ियाँ.. जैसे पर्दे फड़कते हुए से महसूस हो रहे थे और गोश्त का वो लटका हुआ सा हिस्सा.. जिस में चूत का दाना छुपा होता है.. कांप रहा था।
आपी ने मेरी गर्म-गर्म तेज साँसों को अपनी चूत पर महसूस कर लिया था और उन्होंने फरहान के सिर से दोनों हाथ हटाए और अपने बिस्तर पर रखते हुए कोहनियों पर ज़ोर देकर अपना सिर और कंधों तक उठा लिया और नशीली आँखों से मुझे देखने लगीं।
मैंने एक नज़र आपी को देखा और फिर अपनी आँखें बंद करते हुए नाक के जरिए एक तेज सांस को अपने अन्दर खींचा।
आपी की चूत से उठती मधुर महक मेरे नाक से होते हुए मेरे दिल और दिमाग पर सीधी असर अंदाज़ हुई और मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने ड्रग्स की भारी डोज अपने अन्दर उतारी हो।
मुझ पर हक़ीक़तन नशा सा हावी हो गया था और मेरे दिलोदिमाग में सिर्फ़ लज़्ज़त ही लज़्ज़त भर गई थी।
मेरा जेहन सिर्फ़ उस महक को महसूस कर रहा था और मेरी तमाम सोचें और अहसासात सिर्फ़ अपनी बहन की चूत पर ही मरकज हो गई थीं।
मैंने सिहरजदा से अंदाज़ में अपनी आँखों खोला.. तो पहली नज़र आपी के चेहरे पर ही पड़ी.. आपी की चेहरे पर बहुत बेताबी ज़ाहिर हो रही थी।
वो समझ गई थीं कि मेरा अगला अमल क्या होगा।
आपी ने मेरी आँखों में देखते हुए ही गर्दन को थोड़ा आगे की तरफ झटका दिया.. जैसे कह रही हों कि आगे बढ़ ना.. रुक क्यों गया।
मैंने आपी के इशारे पर कोई रद-ए-अमल नहीं ज़ाहिर किया और उनकी आँखों में आँखें डाले हुए ही नाक के जरिए एक और सांस ली और अपने टूटते नशे को सहारा दिया।
आपी ने एक बार फिर मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया और कहा- सगीर प्लीज़ अब और ना तड़फाओ.. चूसो ना प्लीज़..
लेकिन मुझे गुमसुम देख कर उनकी बर्दाश्त जवाब दे गई और आपी ने अपने कूल्हों को ऊपर की तरफ झटका मारते हुए.. अपनी चूत को मेरे मुँह से लगा दिया।
आपी की चूत मेरे मुँह से लगी.. तो जो नशा मुझे चूत की महक से हुआ था अचानक ही वो खत्म हो गया।
मैं अपना मुँह जितना ज्यादा खोल सकता था.. मैंने खोला और अपनी बहन की पूरी चूत को अपने मुँह में भर कर अपनी पूरी ताक़त से जंगलियों की तरह चूसने लगा।
दो मिनट इसी अंदाज़ में चूसते रहने के बाद मैंने अपने मुँह की गिरफ्त हल्की की और आपी की चूत के ऊपरी हिस्से में छुपे क्लिट को होंठों में दबाया और चूसने लगा।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुँह में नमक घुल गया हो।
आपी की चूत से निकलते लिसलिसे पानी ने मेरा मुँह अन्दर और बाहर से लिसलिसा कर दिया था।
मेरे होंठ आपी की चूत के रस की वजह से बहुत चिकने हो रहे थे और पूरी चूत पर फिसल-फिसल जा रहे थे।
मैंने कुछ देर आपी की चूत के दाने को चूसा और फिर चूत के दोनों पर्दों को बारी-बारी चूसने लगा।
मेरे मुँह ने आपी की चूत को छुआ.. तो आपी ने ‘आअहह सगीर.. उउउफ्फ़.. मेरे.. भाईईई ईईईईई..’ कह कर अपना सिर और कंधे एक झटके से वापस बिस्तर पर गिरा दिए।
कभी आपी झटकों-झटकों से अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबाने लगतीं.. तो कभी कूल्हे बिस्तर पर सुकून से टिका कर तेज-तेज साँसों के साथ सिसकारियाँ भरने लगतीं।
आपी ने एक और झटका मारने के बाद अपने कूल्हे बिस्तर पर टिकाए.. तो मैंने अपनी ऊँगलियों की मदद से आपी की चूत के दोनों लब खोले और अपनी ज़ुबान की नोक चूत के बिल्कुल निचले हिस्से.. जो एंट्रेन्स होती है.. पर रख कर एक बार नीचे से ऊपर पूरी चूत को अन्दर से चाटा और वापस नोक एंट्रेन्स पर रख कर ज़ुबान अन्दर-बाहर करने लगा।
जैसे ही मेरी ज़ुबान आपी की चूत के अंदरूनी हिस्से पर टच हुई.. आपी ने अपने कूल्हे ऊपर उठा दिए और उनका जिस्म एकदम अकड़ गया और चंद लम्हों बाद ही उनके जिस्म ने 3-4 शदीद झटके खाए और मुझ साफ महसूस हुआ कि जैसे आपी की चूत मेरी ज़ुबान को भींच रही हो।
मैंने ज़ुबान अन्दर-बाहर करना जारी रखी.. और जब आपी की चूत ने मेरी ज़ुबान को भींचना बंद कर दिया और आपी बेसुध सी लेट गईं.. तो मैंने अपना मुँह थोड़ा सा पीछे किया और चूत को मज़ीद खोलते हुए अन्दर देखा।
आपी की चूत में गाढ़ा-गाढ़ा सफ़ेद पानी जमा हो गया था। मैं कुछ देर नज़र भर के देखता रहा और फिर दोबारा अपनी ज़ुबान की नोक को अन्दर डाला और आपी के चूतरस को अपनी ज़ुबान पर समेट कर मुँह में डालता गया।
अपनी बहन का सारा लव जूस अपने मुँह में भरने के बाद मैं उठा और बिस्तर पर निढाल और बेसुध पड़ी आपी के साथ ही लेट कर उनके चेहरे को दोनों हाथों में थाम कर अपनी तरफ घूमते हो फंसी-फंसी आवाज़ में कहा- ओह्ह नोनन्न आपीईई.. आँखें खोलो ये देखो..
आपी ने आँखें खोलीं तो मैंने अपना मुँह खोल कर आपी को दिखाया। मेरे मुँह में अपनी चूत के पानी को देख कर आपी ने बुरा सा मुँह बनाया और कहा- हट गंदे..
आपी यह कह कर मुँह दूसरी तरफ करने ही लगीं थीं कि मैंने मज़बूती से उनके गालों को दबा कर पकड़ा.. जिससे आपी का मुँह खुल गया और मैंने अपना मुँह आपी के मुँह पर रखते हुए उनकी चूत का रस उन्हीं के मुँह में उड़ेल दिया।
आपी ने अपना मुँह छुड़ाने की कोशिश की.. लेकिन मैंने उसी तरह उनके गाल दबाए-दबाए ही आपी के होंठ चूसना शुरू कर दिए।
कुछ देर तक वो मुँह हटाने की कोशिश करती रहीं और फिर अपने आपको ढीला छोड़ते हुए मेरी किस के जवाब में मेरे होंठों को चूसने लगीं।
आपी का जूस हम दोनों के होंठों और गालों पर फैल गया था और अब उन्हें भी उसकी परवाह नहीं थी.. कुछ ही देर में आपी मेरे होंठों को चूसते हुए अपनी ही चूत के जूस को भी ज़ुबान से चाटने लगीं थीं और शायद उन्हें भी उसका ज़ायक़ा अच्छा ही लग रहा था।
फरहान.. हम दोनों से लापरवाह बस आपी के जिस्म में ही खोया हुआ था। कभी आपी के उभारों से खेलता तो कभी उनके पेट और नफ़ पर ज़ुबान फेरने लगता।
जब फरहान ने आपी की चूत को खाली देखा.. तो वो अपनी जगह से उठा और आपी की टाँगों के दरमियान बैठते हुए उनकी चूत को चाटने-चूसने लगा।
यह कहानी एक पाकिस्तानी लड़के सगीर की है… इसमें भाइ बहन के सेक्स के वाकयी बहुत ही रूमानियत से भरे हुए वाकियात हैं.. आपसे गुजारिश है कि अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।
वाकिया लगातार जारी है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments