जिस्मानी रिश्तों की चाह-27
(Jismani Rishton Ki Chah- Part 27)
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आपी ने अपने हाथ से डिल्डो को मेरी गांड में घुसाने में मदद की और साथ ही हम दोनों भाइयों के टट्टे भी सहलाये।
फ़िर आपी हम दोनों की डिल्डो से गांड चुदाई का मज़ा लेने के लिए सोफे पर जाकर बैठ गईं।
हम दोनों की स्पीड अब कम हो गई थी और हम दोनों ने आपी के बैठते ही अपनी नजरें उनकी टाँगों के दरमियान जमा लीं।
उनकी चूत बहुत गीली होने की वजह से चमक रही थी।
आपी ने हमारी तरफ देखा और हमको अपनी चूत की तरफ देखता पाकर मुस्कुरा दीं और अपनी टाँगें थोड़ी और खोल लीं।
‘सगीर.. फरहान..!’
आपी की आवाज़ पर हम दोनों ने एक साथ ही नज़र उठाईं.. तो आपी ने शरीर सी मुस्कुराहट के साथ अपने सीधे हाथ की दरमियान वाली बड़ी ऊँगली को अपने होंठों में फँसा कर चूसा और हवा में लहरा कर अपनी चूत की तरफ हाथ ले जाने लगीं।
हमारी नजरें आपी की हाथ के साथ ही परवाज़ कर रही थीं।
आपी ने अपने हाथ को चूत पर रखा और इंडेक्स और तीसरी फिंगर की मदद से चूत के लिप्स को खोला.. तो उनकी चूत का दाना साफ नज़र आने लगा। आपी ने बीच वाली ऊँगली को अपनी चूत के दाने पर रखा और आहिस्ता-आहिस्ता मसलने लगीं।
इस नज़ारे ने मुझ पर और फरहान पर जादू सा किया और हम तेजी से हरकत करने लगे और 8 इंच का डिल्डो पूरा ही अन्दर जाने लगा।
जब हम पीछे को झटका मारते.. तो हम दोनों की गाण्ड आपस में टकराने से ‘थपथाप्प..’ की आवाज़ निकालती।
आपी ने हमारी हालत से अंदाज़ा लगा लिया कि उनकी इस हरकत ने हमें बहुत मज़ा दिया है।
आपी ने दोबारा अपना हाथ फिर हटाया और दरमियान वाली ऊँगली को मुँह में डाल कर चूसने लगीं।
फिर वो उसी तरह हवा में हाथ को लहराते हुए नीचे लाईं और इस बार भी अपनी चूत के पर्दों को अपनी ऊँगलियों की मदद से साइड्स पर करते हुए दरमियान वाली बड़ी ऊँगली को 2-3 बार क्लिट पर रगड़ कर नीचे की तरफ दबा दिया।
इसी हरकत के साथ उनके मुँह से ‘अहह..’ की आवाज़ निकली और उन्होंने ऊँगली का सिरा अपनी चूत के अन्दर दाखिल कर दिया।
मैं और फरहान तो यह देखते ही पागल से हो गए और ज़ोर-ज़ोर से अपनी गाण्ड को आपस में टकराने लगे। मैंने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा और उससे दबोचने लगा और हाथ तेजी से आगे-पीछे करने लगा।
हमारा पागलपन आपी के मज़े को भी बहुत बढ़ा गया था।
उन्होंने अपनी सीधे हाथ की मिडल ऊँगली का एक इंची हिस्सा बहुत तेजी से अपनी चूत में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया और बायें हाथ से कभी अपनी निप्पल्स को चुटकी में मसलने लगतीं.. तो कभी अपनी चूत के दाने को चुटकी पर पकड़ के मसलने और खींचने लगतीं।
वो बिना झिझके और पलकें झपकाए.. हमारी तरफ ही देख रही थीं।
चंद मिनट बाद ही फरहान के लण्ड ने पानी छोड़ दिया और उसने एक झटके से आगे होते हुए डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाल दिया। अब आधा डिल्डो मेरी गाण्ड के अन्दर था और आधा बाहर लटक रहा था जैसे कि वो मेरी दुम हो।
आपी ने फरहान के लण्ड से जूस निकलते देखा और मेरी गाण्ड में आधे घुसे और आधे लटके डिल्डो को देखा तो लज्जत की एक और सिहरअंगेज़ लहर की वजह से उनके मुँह से एक तेज ‘अहह..’ निकली, इसी के साथ उनका हाथ भी चूत पर तेज-तेज चलने लगा।
आपी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिका कर अपनी आँखें बंद कर लीं।
उनके दोनों पाँव ज़मीन पर टिके थे और वो अपनी ऊँगली को अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने के रिदम के साथ ही अपनी गाण्ड को आगे करते हुए सोफे से थोड़ा सा उठ जाती थीं।
मैंने आपी की आँखें बंद होती देखीं.. तो डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाले बगैर ही बिस्तर से उठ कर आपी की टाँगों के दरमियान आ बैठा।
मेरी देखा-देखी फरहान भी क़रीब आ गया।
आपी की गुलाबी चूत में उनकी खूबसूरत गुलाबी ऊँगली बहुत तेजी से अन्दर-बाहर हो रही थी।
जब आपी अपनी ऊँगली अन्दर दबाती थीं.. तो चूत के लब भी बंद हो जाते और उनकी ऊँगली को अपने अन्दर दबोच लेते।
जब ऊँगली बाहर आती तो लब खुल जाते और लबों के अन्दर से ऊँगली के दोनों साइड्स पर चूत के पर्दे नज़र आने लगते।
आपी जब अपनी उंगली को चूत में दबाती थीं.. तो चूतड़ों को सोफे से हल्का सा उठा लेतीं और उसी रिदम में आगे झटका देतीं।
आपी का पूरा हाथ उनकी चूत से निकलते जूस से गीला हो गया था जिससे चूत के आस-पास का हिस्सा और उनका हाथ दोनों ही चमक रहे थे।
आपी की चूत से बहुत माशूरकन महक निकल रही थी।
वो ऐसी महक थी.. जो लफ्जों में बयान नहीं की जा सकती.. बस महसूस की जा सकती है।
जिन्होंने उस खुश्बू को अपनी बहन की चूत से निकलते हुए महसूस किया है या आपमें से जो लोग अपनी बहनों की ब्रा या पैन्टी को सूँघते रहे हैं.. वो जान सकते हैं कि चूत से उठती महक में कैसा जादू होता है।
अचानक आपी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त पर दबाया और टाँगें खुली रखते हुए ही पैर ज़मीन पर टिका कर अपने चूतड़ों को सोफे से उठा लिया, उनका जिस्म कमान की सूरत में अकड़ गया, हाथ चूत से और उभारों से हट गए और पेट के क़रीब अकड़ गए थे.. आपी ने अपनी आँखों को बहुत ज़ोर से भींच लिया था और उनके चेहरे पर बहुत तक़लीफ़ का अहसास था।
यह पता नहीं आपी के डिसचार्ज होने का ख़याल था.. उनके हसीन.. खूबसूरत जिस्म का नज़ारा था.. सेक्सी माहौल का असर.. या फिर मेरी सग़ी बहन की चूत से उठती मदहोशकन खुश्बूओं का जादू था कि मैं बुत की सी कैफियत में आगे बढ़ा
और
अपनी बहन के सीने के दोनों उभारों को अपने दोनों हाथों में दबोचा और आपी की चूत पर अपना मुँह रखते हुए उनकी चूत के दाने को पूरी ताक़त से अपने होंठों में दबा लिया और चूस लिया।
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आपी के मुँह से एक तेज ‘अहाआआआआ..’ निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने दोनों हाथों को मेरे सिर पर रखते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबा दिया। फरहान मेरी इस हरकत पर शॉक की हालत में रह गया और ना उसने हरकत की और ना ही उसकी ज़ुबान से कोई बात निकली।
आपी के जिस्म ने एक ज़ोरदार झटका खाया और उनके मुँह से निकला- सगीर.. अहह.. रुकओ.. ऊऊ मैं गइई.. उफ फफ्फ़..
और इसी के साथ ही आपी के जिस्म को मज़ीद झटके लगने लगे और उनका जिस्म अकड़ने लगा, वो मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबाती जा रही थीं और उनके हलक़ से ‘आआखह.. अहह..’ की आवाजें निकल रही थीं।
मुझे अपने मुँह में आपी चूत फड़कती हुई सी महसूस हो रही थी।
मैंने ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत का ज़ायक़ा चखा था और मुझे उस वक़्त ही पता चला के चूत के पानी का कोई ज़ायक़ा नहीं होता.. हमें जो नमकीनपन महसूस होता है.. वो असल में जमे हुए यूरिन के क़तरे या खुश्क हुआ पसीना होता है।
कुछ लम्हों बाद ही जब आपी को अपनी हालत का इल्हाम हुआ कि उनका सगा भाई अपने हाथों से उनके सीने के उभारों को दबा रहा है और उनकी शर्मगाह को अपने मुँह में दबाए हुए है.. तो उन्होंने तकरीबन चिल्लाते हुए कहा- नहीं.. सगीर.. हटोअओ.. छोड़ो मुझे.. उफफ्फ़.. ये.. ये क्या कर रहे हो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. प्लीज़..
मैंने आपी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ कर ज़रा ज़ोर से दबा दिया।
‘अहह.. ऊऊओफ्फ़.. साअ..गर्र छोड़ो मुझे हटोऊऊ.. नाआ आआ..’
आपी ने ये कह कर एकदम अपने कूल्हों को सोफे पर गिराया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को पकड़ते हुए एक झटके से अपने उभारों से दूर कर दिया और मेरे सीने पर अपने पाँव रखते हुए मुझे धक्का दिया।
मैं आपी के धक्का देने से तकरीबन 2 फीट पीछे की तरफ गिरा और अपना सिर ज़मीन पर टकराने से बहुत मुश्किल से बचाया।
मुझे धक्का देते ही आपी ने देखा कि मेरा सिर ज़मीन पर लगने लगा है.. तो वो मुझे बचाने के लिए एकदम सोफे से उठीं और बोलीं- सगीर..
उन्होंने मुझे देखा कि मेरा सिर नहीं टकराया है.. तो फ़ौरन ही वापस सोफे पर बैठ गईं और अपने जिस्म को समेटते हुए दोनों हाथों में चेहरा छुपा लिया और रोने लगीं।
मैंने फरहान की तरफ देखा तो वो बहुत डरा हुआ और कुछ परेशान सा था।
मैंने उसको इशारे से कहा कि कुछ नहीं होगा यार.. मैं हूँ ना.. जाओ तुम बिस्तर पर जाओ।
फरहान को समझा कर मैं आपी की तरफ गया.. वो सोफे पर ऐसे बैठी थीं कि उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को आपस में मज़बूती से मिला रखा था और अपनी रानों पर कोहनियाँ रखे बाजुओं से अपने सीने के उभारों को छुपाने की कोशिश की हुई थी।
‘कोशिश..’ मैंने इसलिए कहा कि मेरी बहन के बड़े-बड़े मम्मे नर्मोनाज़ुक से बाजुओं में छुप ही नहीं सकते थे।
मैं आपी के पास जाकर खड़ा हुआ और कहा- आपी प्लीज़ रोओ तो नहीं यार..
आपी ने रोते-रोते ही जवाब दिया- नहीं सगीर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.. ये बहुत गलत है.. बहुत गलत हुआ है ये.. तुमने मेरी हालत का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है.. तुम जानते ही हो कि मैं जब डिसचार्ज होने लगती हूँ.. तो मैं होश में नहीं रहती। तुम तो होश में थे.. इतना तो सोचते कि मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ सगीर..
वाकिया जारी है।
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