जिगोलो की कामुक दुविधा-2
(Gigolo Ki Kamuk Duvidha- Part 2)
कहानी का पहला भाग: जिगोलो की कामुक दुविधा-1
मैं सोचने लगा कि ‘अरे मैं तो समझा था कि ये घर जाएगी, मगर ये तो वो सब करने को तैयार थी, जो किसी भी भाई बहन के बीच होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
कुछ कहता मैं … इससे पहले ही वो बोली- तुमने जिस काम के पैसे लिए हैं, वो काम तो पूरा करके जाओ।
मैंने कहा- गुज्जू, मैं तुम्हारा भाई हूँ, ऐसे कैसे कर सकता हूँ? मैं तुम्हारे पैसे वापिस कर दूँगा।
वो बोली- तो लाओ मेरे पैसे।
मैंने कहा- वो तो अभी नहीं हैं।
वो बोली- तो फिर अपना काम पूरा करो।
मैं समझ नहीं पाया कि औरत का किरदार क्या होता है. अभी ये मेरे सामने रो रही थी और अब मुझसे चुदवाना चाहती है। अभी मेरी बहन थी और अब मेरी कस्टमर है।
उसको कैसा महसूस हो रहा था, मुझे नहीं पता, मगर मुझे बहुत ही अजीब लग रहा था।
मैं कुछ कहता … इससे पहले ही वो मुझसे लिपट गई- अब ये भाई बहन का नाटक बंद करो; मुझे एक कस्टमर की तरह ट्रीट करो और अपनी बेस्ट सर्विस मुझे दो; बिना कोई सवाल पूछे।
मैं क्या कहूँ, जब वो मुझे लिपटी तो उसके नर्म मम्मे मेरे सीने से लगे।
हार्ड कप वाले ब्रा पहने होने की वजह से बड़े सॉलिड से मम्मे लगे।
मैं अभी सोच ही रहा था कि मेरे चेहरे पर अपनी उंगली घूमती हुई वो बोली- अब कोई लिहाज मत करो, जो औरों के साथ करते हो, मेरे साथ भी करो, मैं अब यहाँ आई हूँ, तो अपने घर परिवार, समाज के सभी बंधन तोड़ कर आई हूँ। अपनी, अपने मायके की, अपने ससुराल की इज्ज़त दांव पर लगा कर आई हूँ। अब अपनी सारी ज़िंदगी, मान मर्यादा रिस्क पर लगा कर मैं यहाँ से खाली नहीं मुड़ सकती। अगर खाली गई तो सारी उम्र मलाल रहेगा कि जब सब कुछ कर सकती थी, तो कुछ भी न कर सकी। और अब तो बात भी हम दोनों के बीच है, कभी भी किसी को भी पता नहीं चलेगा। सब कुछ पर्दे में छुपछुपा कर हो जाएगा।
जिस बहन को मैं बहुत ही भोली, मासूम समझता था, वो तो एकदम चालाक निकली।
मैंने उसे अपने से दूर किया और पूछा- क्या तुम्हें सच इस बात की कोई शर्म नहीं की तुम अपने भाई से ये बातें कर रही हो और अपने भाई से ही सेक्स भी करना चाहती हो?
वो बोली- किस बात की शर्म, अगर तुम्हारी जगह कोई और होता तो शायद अब तक हम वो सब कुछ कर भी चुके होते, और तुम में क्या कमी है। मेरे भाई हो तो क्या हुआ, बल्कि अच्छा है, मैं तुम्हें जानती हूँ, तुम्हें प्यार करती हूँ। और ये भी पता है कि अगर तुमसे मैं प्रेग्नेंट हो भी गई तो अच्छा है न, मेरा भाई ही मेरे बच्चे का बाप होगा, हमारे ही खानदान का चिराग बनेगा वो।
मैं तो अपनी बहन की बातें सुन सुन कर हैरान हो रहा था। मैंने सोचा अब और कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं है।
मैंने कहा- तो क्या खिदमत करूँ आपकी मैडम?
वो बोली- मुझे मैडम नहीं, गुज्जु पुकारो मुझे, मैं बिल्कुल पारिवारिक माहौल में ये सब एंजॉय करना चाहती हूँ।
मैंने कहा- ठीक है गुज्जु, अब बताओ, क्या चाहती हो?
वो बोली- मैंने आज तक किसी मर्द को अपने ऊपर महसूस नहीं किया है, मुझे खुद नहीं पता एक मर्द से मिलने का अहसास क्या होता है, तुम जो चाहते हो वो मेरे साथ कर लो, मगर मुझे एक मुकम्मल मर्द की तरह चोदो।
मैंने कहा- ठीक है गुज्जु, मैं भी आज तक तुम्हारी उम्र की किसी लड़की के इंतज़ार में था, चलो शुरू करते हैं, मैं भी तुम्हें अपनी गर्लफ्रेंड की तरह ही प्यार करूंगा।
कह कर मैंने अपनी प्यारी बहन को अपनी बांहों में भर लिया।
मेरी आगोश में आते ही वो मेरे साथ लिपट गई, मेरे जिस्म में भी एक जवान जिस्म से मिल कर जैसे चिंगारियाँ फूट पड़ी। मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में पकड़ा और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
नर्म, रसीले लब जब मैंने अपने लबों से चूसे तो उसकी लिपस्टिक का मीठा स्वाद मेरे मुँह में घुल गया। मैंने अपनी जीभ से उसके नीचे वाले होंठ को चाटा और अपने दोनों हाथों से उसकी चिकनी पीठ को सहलाया। बैकलेस ब्लाउज में उसकी मांसल पीठ को अपने हाथों से नोच कर मज़ा आ गया।
गुज्जु ने भी अपनी जीभ से मेरे ऊपर वाले होंठ को चाटा, तो मैंने अपनी जीभ उसकी जीभ से भिड़ा दी। दोनों अपने मुँह के अंदर एक दूसरे की जीभ को अपनी अपनी जीभ से सहला रहे थे।
अपने हाथ नीचे लेजा कर मैंने उसके दोनों चूतड़ दबा कर देखे, नर्म, मुलायम मगर बिल्कुल गोल चूतड़।
मैंने कहा- ओह गुज्जु, तुम कितनी सेक्सी हो, मैं तो जानता ही नहीं था।
वो बोली- आपने कभी मुझे उस नज़र से देखा ही नहीं था, तो जानते कैसे?
मैंने उसके सीने से उसकी साड़ी का आँचल हटाया, नीचे लो कट वाले ब्लाउज़ में से उयका छोटा सा क्लीवेज दिख रहा था। कोई भी भाई इस नज़ारे को देख कर अपनी नज़रें फिरा लेता, मगर मेरे तो हालात ही कुछ और थे, मैंने अपने दोनों हाथों में अपनी प्यारी बहन के दोनों मम्मे पकड़ कर दबा कर देखे।
उसने आँखें बंद कर ली- दबाओ भाई, ज़ोर से मसल डालो इन्हें।
मैंने उसके दोनों मम्मे दबाये और फिर उसके ब्लाउज़ के हुक खोले। काले ब्लाउज़ के नीचे काली ब्रा; और काली ब्रा में छुपे उसके दो मस्त गोरे गोरे, मम्मे।
मैंने उसका ब्लाउज़ उतार दिया।
वो मेरे सामने सिर्फ ब्रा में थी, मैंने उसकी साड़ी भी खोल दी और अपना पेटीकोट उसने खुद ही खोल दिया।
“वाह, क्या गजब का हुस्न है गुज्जु तेरा!” मैंने कहा.
वो बोली- मेरा तो देख लिया अपना भी तो दिखाओ भाईजान।
मैंने भी अपनी टी शर्ट और जीन्स उतार दी। नीचे फ्रेंची में मेरे तना हुआ मेरा लंड अपना आकार ले चुका था।
वो एकदम मेरे सामने बैठ गई और मेरी फ्रेंची नीचे खिसका कर मेरा लंड बाहर निकाल कर देखा।
बहुत ही आश्चर्य से बोली- अरे बाप रे, इतना बड़ा होता है!
और उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा।
मैंने अपनी चड्डी खुद ही उतार दी। मैंने पूछा- चूसेगी गुज्जु?
वो बोली- क्यों नहीं, अपने पति की छोटी सी लूल्ली मैंने बहुत चूसी है कि शायद बड़ी हो जाए, पर ये तो पहले से ही काफी बड़ा है। मेरी चीख न निकल जाए कहीं।
और कहते कहते उसने मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया, आँखें बंद करके वो चूसने लगी, जैसे उसे पता नहीं किसी दूसरे जहां का जायका आ रहा हो, मेरा लंड चूस कर।
मैंने भी उसकी ब्रा खोली और उसके मम्मे दबाने लगा, उसके निप्पल मसले ज़ोर ज़ोर से।
उसे दर्द तो हुआ मगर वो तो मेरा लंड चूसने में ही बहुत मशगूल थी।
मैंने थोड़ी देर बाद उसे रोका और कहा- अब मुझे भी कुछ मज़ा ले लेने दे!
मैंने उसे उठा कर बेड पर लेटाया और उसके चड्डी खींच कर उतार दी.
और फिर उसके पाँव के अंगूठे से अपनी जीभ से चाटना शुरू किया, और उसकी टांग, घुटने, जांघ से होता हुआ उसकी कमर तक पहुंचा।
मगर कमर पर पहुँचते ही गुज्जु ने मेरे सर के बाल पकड़ लिए- ओह, भाईजान, क्यों तड़पा रहे हो?
मैंने कहा- ये तो मेरे काम का हिस्सा है गुज्जु! मैं पहले इसी तरह औरतों को तड़पाता हूँ, इतना तड़पाता हूँ कि वो लबालब पानी छोड़ती हैं। उसके बाद जब उनके जिस्म की तड़प उनके बस से बाहर हो जाती है, तब मैं उनकी चुदाई शुरू करता हूँ।
तो गुज्जु बोली- तो तड़पाओ भाईजान, इतना तड़पाओ के मैं बिना चुदे ही झड़ जाऊँ, खा जाओ मेरे बदन को।
मैंने कहा- तुम्हारे बदन पर निशान पड़ते हैं क्या? कहीं मेरे चूसने या चाटने से कोई निशान बन जाए और कल को तुम्हारा शौहर तुम्हें सवाल करे कि ये निशान कहाँ से आया?
वो बोली- अरे नहीं यार … तुम चिंता मत करो, अगर निशान पड़ भी गया तो भी कोई बात नहीं। छोटी लुल्ली वाला वैसे भी हफ्ता दिन निकाल देता है।
मैंने गुज्जु के निपल चूसते हुये पूछा- हफ्ता दस दिन, पर अभी तो तुम्हारी शादी को वक्त ही कितना हुआ है।
गुज्जु बोली- अरे भाईजान, वो साला एक नंबर का चूतिया है, अपनी कमजोरी छुपाने के लिए अक्सर कई कई दिन बाद सेक्स करता है। कभी कभी कुछ खाकर भी आता है ताकि उसकी लुल्ली एक दम टाइट रहे, मगर टाइट को मैं क्या करूँ, जब उसकी लुल्ली मेरी इस उंगली के जितनी है.
और गुज्जु ने मुझे अपनी बड़ी उंगली दिखाई।
मतलब मेरी बहन की आज तक सील भी नहीं टूटी होगी।
मैंने गुज्जु को घोड़ी बनाया और पहले उसकी फुद्दी चाटी और फिर उसकी गांड को चाटते हुये पूछा- तो क्या सुहागरात को तुम्हारे खून निकला था?
अब जब मेरी बहन मेरे सामने बिल्कुल नंगी थी और मुझसे थोड़ी देर बाद चुदवाने वाली थी तो मैंने मज़े लेने की सोची।
वो बोली- अरे इतनी सी लुल्ली से क्या खून निकलेगा, मुझे तो लगता आज मेरा भाई मेरे साथ सुहागदिन मनाएगा, आज मैं अपना कुँवारापन अपनी वर्जिनिटी गवाऊँगी।
खुश हो गया मैं भी कि चलो बेशक मेरी बहन ही सही, पर अगर आज मुझे एक जवान लड़की मिली और वो भी बिल्कुल कुँवारी।
मैं गुज्जु की फुद्दी के अंदर तक जीभ डाल कर चाट रहा था और उसकी फुद्दी भी खूब पानी छोड़ रही थी। गोरा जिस्म, गुलाबी कसी हुई फुद्दी, कुछ वो पानी छोड़ रही थी, कुछ मेरे थूक से गीली हो रही थी। अच्छी तरह से वीट लगा कर चिकनी करी हुई फुद्दी … मैं तो दीवानों की तरह चाट रहा था.
और वो भी मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़े पूरे मज़े ले लेकर चूस रही थी, बल्कि बिना मेरे कहे वो मेरे आँड भी चाट गई, और आँड से लेकर गांड तक सब चाट गई.
पता नहीं उसमें इतना जोश कहाँ से आ रहा था, कभी मेरे लंड की मुट्ठ मारती, कभी मेरे लंड का टोपा चूसती, कभी आँड चाटती, और साथ की साथ वो अपनी फुद्दी को भी मेरे मुँह पर रगड़ रही थी।
फिर वो उठ कर बैठ गई और बोली- भाईजान, अब बहुत हो गई गांड चटाई, चलो अब मुझे सेक्स का भरपूर आनंद दो। वो मज़ा दो जिससे मैं आज तक महरूम रही हूँ। जो मेरा शौहर नहीं कर सका, तुम वो करो।
मैंने उसको सीधा करके लेटाया और खुद उसके ऊपर लेट गया- लो गुज्जु, मेरे लंड को अपनी फुद्दी में लो.
मैंने कहा तो गुज्जु ने मेरे लंड पकड़ा और अपनी फुद्दी पर रखा और बोली- भाईजान, आराम से, आज तक फटी नहीं है, आराम से फाड़ना, अपनी छोटी बहन समझ कर फाड़ना.
और वो शरारती अंदाज़ में हंस दी।
मैंने हल्का सा ज़ोर लगाया और मेरे लंड का टॉप उसकी भीगी फुद्दी में घुस गया।
उसे दर्द तो हुआ … पर हल्का … एक हल्की सी ‘ऊई … माँ …’ और दर्द का भाव ही उसके चेहरे पर दिखा.
मगर जब मैंने और ज़ोर लगाकर बाकी का लंड उसकी फुद्दी में ठेला, तो हल्के हल्के दर्द को बर्दाश्त करती गई, और ऐसे ही छोटे छोटे धक्के लगा कर मैंने अपना सारा लंड गुज्जु की फुद्दी में उतार दिया।
फिर मैंने पूछा- कैसा लगा गुज्जु?
वो मेरे कंधो को सहलाती हुई बोली- बहुत मज़ेदार भाईजान, आज लगा के जैसे सच में किसी मर्द के नीचे लेटी हूँ। कासिम के बस की ये बात नहीं है। तुमने ही मुझे सही मर्द की पहचान करवाई है।
बेशक मैं अपनी ही छोटी बहन को एक कस्टमर समझ कर चोद रहा था, मगर मेरे सामने उसके साथ गुज़रा हर लम्हा मेरे ज़हन में घूम रहा था। मुझे एक दो वाकयात ऐसे याद आए जब जाने अंजाने मेरा हाथ उसके छोटे छोटे मम्मों पर लग गया था. या जब वो बेख्याली में मेरे सामने झुकी तो मुझे उसका क्लीवेज दिखा। उस वक्त मैंने इन बातों को इगनोर कर दिया था, मगर आज वही छोटी सी बहना मेरे सामने नंगी पड़ी मुझसे चुदवा रही थी।
मैंने अभी 4-5 मिनट ही गुज्जु को चोदा था कि उसकी सांस तेज़ हो गई, वो नीचे से अपनी कमर उठा उठा कर मारने लगी, और वो तड़पती लरजती हुई बार बार बोल रही थी- पेलो भाईजान, फाड़ दो मेरी चूत को, आज मैं अपने भाई का दम देखना चाहती हूँ। आह … मज़ा आ गया भाई! आज से मैं तेरी रंडी बन के रहूँगी, तेरी कुतिया बनूँगी, बस ऐसे ही पेल, और ज़ोर से मार, और अंदर तक मार, चोद मुझे, चोद भाई, आ…ह, मर गई, मैं मर गई, हाय ऊई, अम्मी अम्मी!
करती वो मुझसे चिपक गई।
मतलब उसका पानी गिर चुका था। मेरा तो क्या होना था। मगर अपनी सीधी सादी बहन को इस तरह से रंडियों वाली भाषा बोलते सुन कर मुझे बड़ी हैरानी हुई।
मैंने पूछा- गुज्जु, ये सब बोलना कहाँ से सीखा?
वो बोली- अरे शादी के बाद सब पता चल जाता है।
वह बिस्तर पर लेटी सब कुछ अस्त व्यस्त, बाल बिखरे, लिपस्टिक, काजल सब फैल चुका था। उसे देख कर ही लगता था, जैसे उसकी अस्मत लूट चुकी हो।
वो वैसे ही बड़ी बेतकल्लुफ़ी से मेरे सामने नंगी लेटी रही। मैंने उठ कर एक सिगरेट सुलगाई और पूछा- बस क्या? या और चाहिए?
गुज्जु उठ कर मेरे पास आई और मेरे हाथ से सिगरेट ले कर एक बड़ा सा कश लगा कर बोली- अभी बस कहाँ … अभी तो ज़िंदगी का मज़ा पहली बार देखा है। अभी तो दिल कर रहा है कि दो तीन राउंड और खेले जाएँ।
उसके बाद मैंने दो बार गुज्जु को और चोदा और फिर उसके मम्मों पर अपना माल गिराया।
उसके बाद हम दोनों वापिस तैयार होकर अपने अपने घर को चले गए।
घर वापिस आ कर मैंने बहुत सोचा कि जो मैंने किया, क्या वो सही था, अपनी ही बहन को चोद कर।
मगर साथ में ये बात भी थी कि अगर मैं न होता तो कोई और होता।
इस हिसाब से ये बात अच्छी भी थी कि घर के बात घर में ही रह गई।
उसके दो दिन बाद गुज्जु मेरे घर आई। अम्मी अब्बू सब से मिली, और मुझे भी बहुत कस के गले मिली। मगर आज मुझे उसमें से वो बहन वाली फीलिंग नहीं आई। मुझे उसके नर्म मम्मे अपनी सीने पर लगते बड़े अच्छे लगे।
उस रात गुज्जु ने मुझे कहा- भाईजान, मैं आज तुमसे अपने मन की बात कहने आई, हूँ, अब मैं तुमसे दूर नहीं रह सकती, मुझे तो हर वक्त तुम्हारे ही ख्वाब आते हैं। अब मुझे लगता है कि अगर तुमने मुझे नहीं संभाला तो मैं कहीं बहक न जाऊँ। अगर चाहते हो कि तुम्हारी बहन हर ऐरे गैरे के नीचे न लेटे, तो इसे अपने नीचे से लेटने से मत रोकना।
मैंने कहा- गुज्जु, वो जो हुआ, पता नहीं किस्मत से कैसे हो गया, मगर अब बार बार ये कैसे हो सकता है।
गुज्जु बोली- मुझे चचाजान के लड़के वाहिद ने भी शादी से पहले प्रोपोज किया था, मगर मैंने मना कर दिया था, शायद इस बार मना न कर पाऊँ। तुम मेरे सगे भाई हो, मुझे गलत रास्ते से रोकना तुम्हारा फर्ज़ है.
मैंने कहा- और जिस रास्ते तुम जाना चाहती हो, वो कौन सा सही है?
वो बोली- मगर इसमे कोई खतरा तो नहीं। भाई बहन अगर मिल रहे हैं तो किसी को क्या दिक्कत है?
मैं चुपचाप खड़ा रहा तो वो फिर से बोली- अबे बुत बन के खड़े रहोगे, या अपना लोलीपोप दोगे चूसने के लिए?
हल्का सा मुस्कुरा दिया मैं … और वो मेरे सामने ही बैठ कर मेरी पैंट की ज़िप खोलने लगी।
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