मेरी बहन की प्रवेश परीक्षा-2

(Meri Bahen Ki Pravesh Pariksha- Part2)

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वो बोली- नहीं भैय्या, ऐसा करते हैं, हम दोनों बेड पर सो जाते हैं।

मेरी योजना सफल हो गई थी। मैंने उसे दिखाने के लिए बेमन से हामी भर दी।

वो दूसरी तरफ मुँह करके सो रही थी और मैं धड़कते दिल से उसके सो जाने का इंतजार कर रहा था। मेरा पजामा और उसका स्कर्ट एक दूसरे को चूम रहे थे।

जब मुझे लगा कि वो सो गई है तो मैंने अपना लिंग उसके खरबूजों के बीच बनी खाई से सटा दिया।
थोड़ी देर तक मैं उसी पोजीशन में रहा।
जब उसकी तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो मैंने लिंग का दबाव बढ़ाया।
फिर भी कोई हरकत नहीं हुई।

तब मैंने धीरे से अपना हाथ उसके नितम्ब पर रख दिया। मेरे हाथ में हल्का हल्का कंपन हो रहा था। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद मैंने उसके नितम्ब पर अपने हाथों का दबाव और बढ़ा दिया।

अचानक उसके नितम्ब थोड़ा पीछे हुए और उनमें संकुचन हुआ, उसके खरबूजों ने मेरे लिंग को जकड़ लिया।

पहले तो मैं यह सोचकर डर गया कि वो जगने वाली है पर उसकी तरफ से और कोई हरकत नहीं हुई तो मैं समझ गया कि इसे भी मजा आ रहा है।

कल यह मेरा लिंग देख रही थी और आज बिना ज्यादा ना नुकुर किए मेरे साथ इस सिंगल बेड पर सोने को तैयार हो गई।
यह सोचकर मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने अपना हाथ उसके नितम्ब से सरकाकर उसकी जाँघ पर ले गया फिर थोड़ा इंतजार करने के बाद मैंने अपनी हथेली उसकी डबल रोटी पर रख दी।

उसका पूरा बदन जोर से काँपा वो थोड़ा और पीछे होकर एकदम मुझसे सट गई और मेरा लिंग उसके खरबूजों की दरार में और गहरे सरक गया।

अब मैं पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है।

फिर मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी डबल रोटियों को सहलाने लगा। उसका बदन धीरे धीरे काँप रहा था और गरम होता जा रहा था।

मैंने अपना हाथ ऊपर की तरफ ले जाना शुरू किया। सुगन्धा ने अभी ब्रा पहनना शुरू नहीं किया था। कारण शायद यह था कि उसका शरीर अभी इतना विकसित नहीं हुआ था कि ब्रा पहनने की जरूरत पड़े। उसने टीशर्ट के अंदर बनियान पहन रखी थी।

मेरा हाथ किसी साँप की तरह सरकता हुआ उसके पेट पर से होता हुआ जब उसके नग्न उभारों पर आया तो उसके मुँह से सिसकारी निकल गई।

मैंने धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाना और दबाना शुरू किया तो उसके खरबूजों ने मेरे लिंग पर क्रमाकुंचन प्रारंभ किया।
मेरी जो हालत थी उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
कामदेव जरूर अपनी सफलता पर मुस्कुरा रहा होगा। दुनिया की सारी बुराइयों की जड़ यह कामदेव ही है।

थोड़ी देर बाद जब मैं उसके उभारों से उब हो गया तो मैंने अपना हाथ नीचे की तरफ बढ़ाया। उसके स्कर्ट की इलास्टिक फिर पैंटी की इलास्टिक को ऊपर उठाते हुए जब मेरे हाथ ने उसके दहकते हुए रेत के टीले को स्पर्श किया तो उसने कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया।
यह मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैंने समझा कि सुगन्धा मुझे और आगे बढ़ने से रोक रही है। उस वक्त मेरी समझ में कहाँ आना था कि यह प्रथम स्पर्श की प्रतिक्रिया है।

वो मेरी चचेरी बहन थी और मैं उससे बहुत प्यार करता था। अपनी उस खराब हालत में भी मैं उसके साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता था।
मैंने अपना हाथ बाहर निकाल लिया और उसके पेट की त्वचा को सहलाने लगा।

थोड़ी देर बाद उसने मेरा खुद ही मेरा हाथ पकड़ कर स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मेरी खोई हुई हिम्मत वापस लौट आई और मैंने उसके टीले को आहिस्ता आहिस्ता सहलाना शुरू किया और उसको झटके लगने शुरू हो गए।

इन झटकों से उसके खरबूजे मेरे लिंग से रगड़ खाने लगे। उफ़ क्या आनन्द था! जो आनन्द किसी वर्जित फल के अचानक झोली में गिरने से प्राप्त होता है वो दुनिया की और किसी चीज में नहीं होता।

जब मेरे हाथों ने उसके टीले को दो भागों में बाँटने वाली दरार को स्पर्श किया तो उसे फिर से एक जोर का झटका लगा। अगर मेरा पजामा और उसकी स्कर्ट पैंटी बीच में न होते तो मेरा लिंग पिछवाड़े के रास्ते से उसके शरीर में प्रवेश कर जाता।

उसकी दरार से गुनगुने पानी का रिसाव हो रहा था जिसके स्पर्श से मेरी उँगलियाँ गीली हो गईं।
गीलापन मेरी उँगलियों के लिए चिकनाई का कार्य कर रहा था और अब मेरी उँगलियाँ उसकी दरारों में गुप्त गुफ़ा ढूँढ रही थीं।

न जाने क्यों सारे खजाने गुप्त गुफ़ाओं में ही होते हैं। जल्द ही मेरी तर्जनी ने गुफा का मुहाना खोज लिया और उसमें प्रवेश करने की चेष्टा करने लगी। गुफ़ा के रास्ते पर बड़ी फिसलन थी और जैसे ही मेरी तर्जनी सरकते हुए मुहाने के पार गई सुगन्धा के मुँह से हल्की सी चीख निकल पड़ी, वो करवट बदलकर मुझसे लिपट गई।

इस प्रक्रिया में मेरी तर्जनी और लिंग दोनों उस असीम सुख से वंचित हो गए जो उन्हें मिल रहा था।

थोड़ी देर मैंने उसे खुद से लिपटे रहने दिया फिर मैंने धीरे से उसे खुद से अलग किया और चित लिटा दिया।
फिर मैंने नीचे से उसका स्कर्ट उठाना शुरू किया और उसकी टाँगों को चूमना शुरू किया।

मेरे हर चुम्बन पर वो सिहर जाती थी।

जब मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से उसके गर्म रेतीले टीले को चूमा तो वो जोर से काँपी। अब मैं उसके टीलों को देखने का आनंद लेना चाहता था। बाथरूम में इतनी दूर से देखने में वो मजा कहाँ था जो इतने करीब से देखने पर मिलता।

मैंने सुगन्धा से पूछा- बत्ती जला दूँ?
इतनी देर में वो पहली बार बोली- नहीं मुझे शर्म आएगी।

उफ़! ये लड़कियाँ भी ज्यादा बेशर्म हो जाएँ तो बेमजा, ज्यादा शर्मीली हो जाएँ तो बेमजा।

बहरहाल मैंने उसकी पैंटी की इलास्टिक में अपनी ऊँगली फँसाई और उसे नीचे खींचने लगा। उसने अपने नितंब ऊपर उठा दिए और मेरा काम आसान हो गया।

पैंटी उतारने के बाद मैं अपना मुँह उसकी योनि के पास ले गया। एक अजीब सी गंध मेरे नथुनों से टकराई। मैंने साँस रोककर उसकी योनि को चूम लिया।

वो उछल पड़ी।

अब स्वयं पर नियंत्रण रख पाना मेरे लिए मुश्किल था, मैंने तुरंत पजामा उतार दिया।
शायद ‘आदमी हो या पजामा’ वाली कहावत यहीं से बनी है, ऐसी स्थिति में भी जो पजामा पहने रहे वो वाकई आदमी नहीं पजामा है।
मैंने बनियान भी उतारी और उसके बाद अपने अंतिम अंतर्वस्त्र को भी बेड के नीचे फेंक दिया। सुगन्धा की टाँगें चौड़ी की और महान लेखक मस्तराम की कहानियों की तरह लिंग उसकी योनि पर रखकर एक जोरदार झटका मारा।

लिंग तो घुसा नहीं सुगन्धा चीख पड़ी सो अलग।

यह क्या हो गया मैंने सोचा। मस्तराम की कहानियों में तो दो तीन झटकों और थोड़े से दर्द के बाद आनन्द ही आनन्द होता है। यहाँ सुगन्धा कराह रही है।

मैं तुरंत सुगन्धा के बगल लेट गया और उसे कसकर खुद से चिपटा लिया, मैंने पूछा- क्या हुआ बेबी?

वो बोली- भैय्या, बहुत दर्द हुआ, इतने जोर से मत कीजिए। धीरे धीरे कीजिए न।

बार बार मेरी हिम्मत टूट रही थी और सुगन्धा बार बार मेरी हिम्मत बढ़ा रही थी। शायद कामदेव ने उसके ऊपर भी अपने सारे अमोघ अस्त्रों का प्रयोग कर दिया था।

मैं दुबारा उसकी जाँघों के बीच बैठा और इस बार महान लेखक मस्तराम के लिखे को न मानते हुए मैंने अपना लिंग उसकी योनि पर रगड़ना शुरू किया। वो भी अपनी कमर उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी।

फिर मैंने उसकी गुफा के मुहाने पर लिंगमुंड का दबाव बढ़ाया। इस बार उसने कुछ नहीं कहा।

मैंने थोड़ा और दबाव बढ़ाया तो वो बोली- भैय्या।
मैंने कहा- हाँ।
वो बोली- आपकी भी प्रवेश परीक्षा चल रही है।

उसकी बात सुनकर मेरे मुँह से बेसाख्ता हँसी निकल गई। मैं समझ गया कि लिंग रगड़ने के दौरान ही सुगन्धा आनंद के चरम पर पहुँच गई थी और अब वो केवल मेरा साथ देने के लिए लेटी हुई है। ऐसी स्थिति में अंदर घुसाने की कोशिश करना बेकार भी था और खतरनाक भी।

मैं उसकी योनि पर ही अपना लिंग रगड़ने लगा और रगड़ते रगड़ते एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरे भीतर सारा लावा फूट कर उसकी योनि पर बिखरने लगा।

फिर मैंने उसकी पैंटी उठाई और उसकी योनि पर गिरे अपने वीर्य को साफ करने के पश्चात अपने हाथों से उसे पहना दी। फिर मैंने उठकर अपने कपड़े पहने और सुगन्धा को बाहों में भरकर सो गया।

सुबह ग्यारह बजे मेरी नींद खुली, सुगन्धा तब भी घोड़े बेचकर सो रही थी, मैंने उसे जगाया।

उसकी प्रवेश परीक्षा दस बजे से थी। अब कुछ नहीं हो सकता था।

मैंने कहा- ट्रेन तो शाम को है, चलो इस बहाने आज बनारस घूमते हैं।

हम दोनों तैयार होकर निकल पड़े। रास्ते में मैं सोच रहा था कि हम दोनों की प्रवेश परीक्षा अधूरी रह गई लेकिन हम दोनों ही बहुत खुश थे। यह कालेज नहीं तो कोई और कालेज सही। कहीं न कहीं तो दाखिला मिलेगा ही।

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