एक भाई की वासना -9

(Ek Bhai Ki Vasna-9)

जूजाजी 2015-08-16 Comments

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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..

मेरा दूसरा हाथ अभी भी फैजान की पैन्ट के ऊपर उसके लण्ड पर ही था। मैं महसूस कर रही थी कि जैसे-जैसे मैं और जाहिरा धीरे-धीरे बातें कर रही थीं.. तो ज़रूर उसे भी हमारी आवाजें जाती होंगी.. जिसकी वजह से उसके लण्ड में हरकत सी हो रही थी। मैं इस बात को बिना किसी रुकावट के महसूस कर रही थी।

जैसे ही एक पार्क के पास फैजान ने बाइक रोकी.. तो मैंने हाथ हटाने से पहले उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में लेकर जोर से एक बार दबा दिया.. ताकि वो बैठने ना पाए।
क्योंकि आपको तो पता ही है.. कि लंड है ही ऐसी चीज़ कि इसे जितना भी दबाओ.. यह उतना ही उछल कर खड़ा होता है.. और अकड़ता जाता है।
पार्क के गेट पर हम दोनों बाइक पर से उतर आईं और फैजान बाइक पार्किंग स्टैंड पर पार्क करने चला गया।

अब आगे लुत्फ़ लें..

जाहिरा बोली- भाभी मुझे तो बहुत ही अजीब लग रहा है.. इस ड्रेस में बड़ी ही शर्म सी महसूस हो रही है।

मैं- अरे पगली बिल्कुल ईज़ी होकर रहना और किसी किस्म की भी कोई बेवक़ूफों वाली हरकत ना करना और ना ही ऐसी शक़ल बनाना.. कुछ भी नहीं होगा.. बस तू देखती रहना कि दूसरी लड़कियों ने भी कैसे-कैसे कपड़े पहने हुए हैं.. फिर तुझे कोई भी शर्म महसूस नहीं होगी और ना ही अजीब लगेगा।
इससे पहले कि जाहिरा कुछ और कहती फैजान भी हमारे पास आ गया और हम तीनों ही पार्क में चले गए।

अभी हम लोग थोड़ी ही दूर गए थे कि मैंने जानबूझ कर जाहिरा का हाथ पकड़ा और फैजान से आगे-आगे चलने लगे उसे लेकर.. मक़सद मेरा इसमें यही था कि फैजान की नज़र अपनी बहन की ठुमकती गाण्ड पर पड़ती रहे और वो सिर्फ़ और सिर्फ़ यही देखता रहे और उसके दिमाग पर अपनी बहन के जिस्म के छूने से जो नशा सा हुआ है.. वो नशा ना उतर सके।

मैंने महसूस किया कि हो भी ऐसा ही रहा था कि फैजान की नजरें अपनी बहन की टाइट जीन्स में फंसी हुई गाण्ड पर ही घूम रही थीं।
मैं और जाहिरा इधर-उधर की बातें करते हुए चलते जा रहे थे। इधर-उधर जो भी लड़की किसी सेक्सी ड्रेस में नज़र आती.. तो मैं उसकी तरफ भी इशारा करके जाहिरा को बताती जाती थी।

इस तरह इशारा करने से फैजान की नज़र भी उस लड़की की तरफ ज़रूर जाती थी और उसे भी कुछ ना कुछ अंदाज़ा हो जाता था कि हम क्या बातें कर रहे हैं और किस लड़की के लिबास की बात हो रही हैं।
जाहिरा मुझसे बोली- भाभी ड्रेस तो आपने भी बहुत ओपन पहना हुआ है.. देखिए जरा इस कुरती का गला कितना खुला और डीप है.. जो आपने पहना हुआ है।

मैं उसकी तरफ देख कर हँसी और बोली- अरे यार.. फिर क्या हुआ.. इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है.. कोई देखता है तो देखे.. जब मेरे शौहर को किसी के देखने से तो ऐतराज़ नहीं है.. फिर मुझे क्या?
मेरी बात सुन कर जाहिरा हँसने लगी और मैं भी हँसने लगी।

फिर हम लोग तीनों जा कर एक बैंच पर बैठ गए और इधर-उधर की बातें करने लगे। वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक कैन्टीन थी। कुछ देर के बाद फैजान ने अपना पर्स निकाला और उसमें से कुछ पैसे निकाल कर जाहिरा को दिए और बोला- जाओ जाहिरा.. वहाँ कैन्टीन से कुछ खाने-पीने की चीजें ले आओ।

जाहिरा अकेले कैन्टीन की तरफ जाते हुए झिझक रही थी.. मैंने उसे उत्साहित किया- हाँ हाँ.. जाओ.. कुछ नहीं होता.. हम लोग यहीं तो तुम्हारे सामने बैठे हैं।
जाहिरा उठी और कैन्टीन की तरफ बढ़ गई। फैजान जाते हुए उसकी गाण्ड को ही देख रहा था.. जो कि पूरी तरह इधर-उधर मटक रही थी।

कुछ देर फैजान उसी को देखता रहा फिर मुझसे बोला- यह तुम बाइक पर बैठे क्या शरारतें कर रही थीं।
मैं मुस्कुराई और अंजान बनते हुए बोली- कौन सी शरारत?
फैजान- वो जो मेरे लण्ड को दबा रही थी।
मैं हंस कर बोली- मैंने सोचा कि आज मैं अपनी चूचियों को तुम्हारी पीठ पर रगड़ नहीं सकती.. तो ऐसी ही थोड़ा सा तुम को मज़ा दे दूँ।

मैंने जानबूझ कर जाहिरा की चूचियों के उसकी पीठ पर लगने का जिक्र नहीं किया.. क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वो शर्मिंदा हो। लेकिन एक बात हुई कि जैसे ही मैंने अपनी चूचियों की उसकी पीठ पर लगाने का जिक्र किया.. तो फ़ौरन ही उसकी नज़र जाहिरा की तरफ उठ गई.. जैसे उसे एक बार फिर से याद आ गया हो कि कैसे जाहिरा अपनी चूचियों को उसकी पीठ के साथ लगा कर बैठी हुई थी।

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उसी वक़्त जाहिरा कैन्टीन से स्नैक्स और कोल्ड-ड्रिंक्स लेकर मुड़ी.. तो फैजान की नजरें जाहिरा की टाइट टी-शर्ट में उभरी हुई नज़र आ रही चूचियों पर घूम गईं।

मैंने भी कोई बात करके उसको डिस्टर्ब करना मुनासिब ना समझा और इधर-उधर देखने लगी।

हम तीनों ने बैठ कर स्नैक्स और ड्रिंक्स से एंजाय किया और फिर जब थोड़ा अँधेरा होने लगा.. तो हम लोग घर की तरफ वापिस लौटे। मैंने दोबारा जाहिरा को फैजान के पीछे बैठाया।
पूरे रास्ते फिर मेरी वो ही हरकतें चलती रहीं और जाहिरा अपनी चूचियों को अपने भाई की पीठ पर दबा कर बैठे रही। मैं भी फैजान का लंड आहिस्ता-आहिस्ता दबाती और सहलाती रही।

घर आकर मैंने अपने कपड़े बदल लिए। आज रात मैंने फैजान का एक बरमूडा पहन लिया था.. जो कि मेरे घुटनों तक का था और ऊपर से मैंने एक टी-शर्ट पहन ली।
कभी-कभी मैं घर में यह ड्रेस भी पहन लेती थी। अब मेरी गोरी-गोरी टाँगें घुटनों तक बिल्कुल नंगी हो रही थीं।

फैजान ने चाय के लिए कहा तो जाहिरा चाय बनाने चली गई और मैं फैजान के बिल्कुल साथ लग कर बैठ गई और टीवी देखने लगी।
फैजान भी जब से आया था.. तो वो गरम हो रहा था, उसने मौका मिलते ही मुझे अपने पास खींच लिया और मेरे गालों को चूमने लगा।
मैंने अपना हाथ उसकी पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर रखा और बोली- क्या बात है.. आज बड़े गरम हो रहे हो?

फैजान ने भी मेरा बरमूडा थोड़ा सा घुटनों से ऊपर को खिसकाया और मेरी जाँघों को नंगी करके उस पर हाथ फेरने लगा।

थोड़ी देर मैं जैसे ही जाहिरा चाय बना कर वापिस आई तो फैजान ने अपना हाथ मेरी नंगी जाँघों से हटा लिया। लेकिन मैं अभी भी उसके साथ चिपक कर बैठे रही।

जाहिरा ने हम पर एक नज़र डाली और जब मेरी नज़र से उसकी नज़र मिली.. तो वो धीरे से मुस्करा दी और मैंने भी उसे एक स्माइल दी।
फिर हम सब चाय पीने लगे और मैं उसी हालत मैं अपने शौहर के साथ चिपक कर बैठे रही। मेरी जाँघें अभी भी नंगी थीं लेकिन मुझे कोई फिकर नहीं थी कि मैं अपनी नंगी जाँघों को कवर कर लूँ।
जाहिरा भी मेरी नंगी जांघ और मेरे हाथों को अपने भाई की जाँघों पर सरकते हुए देखती रही।

आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]

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