एक भाई की वासना -8
(Ek Bhai Ki Vasna-8)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left एक भाई की वासना -7
-
keyboard_arrow_right एक भाई की वासना -9
-
View all stories in series
सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
मेरा तो बस नहीं चल रहा था कि मैं कब जाहिरा को उसके भाई के सामने बिल्कुल नंगी कर दूँ।
कुछ ही देर मैं हम सब लोग बैठे खाना खा रहे थे। जाहिरा के कपड़े सूख चुके थे.. लेकिन उसकी काली ब्रेजियर अभी भी गीली थी.. जिसकी वजह से वो अब भी साफ़ नज़र आ रही थी। अब जाहिरा को कोई फिकर नहीं थी.. उसे महसूस ही नहीं हो रहा था कि उसका अपना सगा भाई.. अपनी बीवी की मौजूदगी में भी.. उसकी नज़र बचा कर.. उसके जिस्म और उसकी ब्रेजियर और उसकी चूचियों को देख रहा है।
मेरी नज़रें तो फैजान की हर हरकत पर थीं कि कैसे खाना खाते हुए.. वो अपनी बहन की चूचियों को देख रहा है।
खाना खाने के बाद मुझे गरम लोहे पर एक और वार करने का ख्याल आया और मैंने अपने इस नए आइडिया पर फ़ौरन अमल करने का इरादा कर लिया।
अब आगे लुत्फ़ लें..
बारिश रुक चुकी हुई थी और बाहर हल्की-हल्की हवा चल रही थी.. जिसके वजह से मौसम बहुत ही प्यारा हो रहा था, मैंने फैजान से कहा- आज मौसम बहुत अच्छा हो रहा है.. चलो मुझे और जाहिरा को बाहर घुमाने लेकर चलो।
मेरी बात सुन कर जाहिरा भी खुशी से उछल पड़ी और बोली- हाँ भैया.. भाभी ठीक कह रही हैं.. बाहर चलते हैं।
फैजान ने एक नज़र अपनी बहन की चूचियों पर डाली और फिर प्रोग्राम ओके कर दिया और बोला- बस तैयार हो जाओ.. फिर चलते हैं।
फैजान अपने कमरे में चला गया.. मैं और जाहिरा ने बर्तन समेट कर रसोई में रख कर काम ओके किया और बाहर आ गए।
मैं जाहिरा के साथ उसके कमरे में गई और उसे एक उसकी टाइट सी जीन्स और एक नई टी-शर्ट निकाल कर दी।
मैं बोली- आज तुम यह पहन कर चलोगी बाहर.. नहीं तो मैं तुमको लेकर भी ना जाऊँगी।
जाहिरा मेरी बात सुन कर मुस्कुराई और बोली- ठीक है भाभी.. जैसा आप कहो।
मैंने उसके गाल पर एक हल्का सा किस किया और बोली- शाबाश मेरी प्यारी ननद रानी..
फिर मैं अपने कमरे में आ गई।
मैंने भी जीन्स और कुरती पहन ली.. कुरती तो हाफ जाँघों तक ही थी और जीन्स भी टाइट थी।
फैजान भी तैयार हो चुका हुआ था।
हम दोनों तैयार होकर टीवी लाउंज में आ गए और मैं चाय बनाने लगी।
जैसे ही मैं चाय लेकर आई तो जाहिरा भी आ गई।
उसे देख कर तो मेरा और फैजान दोनों का मुँह खुला का खुला रह गया।
उसकी टाइट टी-शर्ट में उसकी खूबसूरत चूचियों बहुत ज्यादा गजब ढा रही थीं उसकी चूचियाँ बहुत ही सख़्त और अकड़ी हुई और जानदार शानदार लग रही थीं।
टी-शर्ट उसकी जीन्स की शुरुआत तक ही थी और नीचे टाइट जीन्स में जाहिरा की गाण्ड बहुत ज्यादा उभर रही थी।
उसकी जीन्स और टी-शर्ट उसके जिस्म पर बिल्कुल फंसे हुए थे.. लेकिन वो बहुत ही प्यारी लग रही थी।
हमने चाय पी और मैं बोली- फैजान आज तुम्हारी बहन को कोई नहीं कह सकता की यह पेण्डू है.. यह तो आज पूरी की पूरी शहरी लड़की लग रही है।
मेरी बात सुन कर जाहिरा शर्मा गई। फिर हम तीनों सैर के लिए घर से बाहर निकले और फैजान ने अपनी बाइक निकाल ली।
घर को लॉक करके जब फैजान ने बाइक स्टार्ट की.. तो मैंने उसके पीछे बैठने की बजाए अपने प्रोग्राम के मुताबिक़ जाहिरा को कहा कि वो अपने भाई के पीछे बैठे।
जाहिरा को अंदाज़ा नहीं था कि मैं क्या सोच रही हूँ.. इसलिए वो चुप करके फैजान के पीछे बाइक पर बैठ गई।
यह तो मुझे ही पता था ना कि अब जाहिरा का पूरा जिस्म अपने भाई के जिस्म से चिपक जाएगा और उसकी चूचियाँ पूरी तरह से फैजान की कमर से प्रेस हो जाना थीं और यही चीज़ मैं चाहती थी।
आज मैं पहली बार फैजान को उसकी बहन के बदन का और उसकी चूचियों का स्पर्श महसूस करवाना चाहती थी।
जाहिरा के बैठने के बाद मैं भी उछल कर बाइक पर पीछे बैठ गई और बैठते ही मैंने जाहिरा को थोड़ा सा और आगे की तरफ दबा दिया।
अब मैं और जाहिरा दोनों ही एक ही तरफ टाँगें करके बैठे हुई थीं और जाहिरा का पूरे का पूरा जिस्म का अगला हिस्सा यानि उसकी चूचियाँ अपने भाई की पीठ के साथ चिपकी हुई थीं।
जाहिरा ने अपना एक हाथ अपने भाई के कंधे पर रखा हुआ था और दूसरा एक साइड पर था। मैंने एक हाथ जाहिरा की तरफ से डाल कर अपने शौहर फैजान की जाँघ पर रख दिया हुआ था।
जैसे ही बाइक चली तो मैंने आहिस्ता-आहिस्ता फैजान की जाँघ को अपने हाथ से सहलाना शुरू कर दिया।
एक-दो बार फैजान ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख कर मुझे रोकने की कोशिश की.. लेकिन मेरा हाथ नहीं रुका और मैंने आहिस्ता-आहिस्ता अपना हाथ फैजान की पैन्ट के ऊपर से उसके लण्ड पर रख दिया। मुझे फील हुआ कि उसका लंड थोड़ा-थोड़ा अकड़ा हुआ है।
ज़ाहिर है कि अपनी बहन की सॉलिड चूचियों का टच अपनी पीठ पर फील करके वो कैसे बेखबर रह सकता था।
मैंने भी अब आहिस्ता-आहिस्ता उसके लण्ड पर उसकी पैन्ट के ऊपर से हाथ फेरना शुरू कर दिया.. जिससे उसका लंड और भी सख़्त होने लगा।
एक बार तो उसने मेरा हाथ अपने लंड पर अपनी हाथ के साथ भींच ही दिया। मेरी इन तमाम हरकतों से जाहिरा बिल्कुल बेख़बर थी और पूरी तरह से बाइक की सैर और मौसम को एंजाय कर रही थी।
अब मैंने अपनी तवज्जो जाहिरा की तरफ की और अपना चेहरा आहिस्ता से उसकी कंधे पर रख दिया.. जैसे सिर्फ़ रुटीन में ही रखा हो। धीरे-धीरे मैं उसकी गर्दन को अपने होंठों से सहलाने लगी।
जाहिरा को भी जैसे थोड़ी गुदगुदी सी फील हुई.. तो वो कसमसाने लगी।
मैंने थोड़ा सा और आगे को खिसकते हुए उसे और भी अपने भाई की कमर के साथ चिपका दिया, फिर मैंने धीरे से उसके कान में कहा-
जाहिरा देख लड़कियाँ तुझे कैसे देख रही हैं..
जाहिरा ने मुस्करा कर थोड़ी सी गर्दन मोड़ कर मेरी तरफ देखा और बहुत धीरे से बोली- भाभी आपको भी तो देख रही हैं।
वो इतनी आहिस्ता से बोली थी.. ताकि उसका भाई उसकी आवाज़ ना सुन सके।
मैंने दोबारा से उसकी गर्दन पर अपनी गरम-गरम साँसें छोड़ते हुए कहा- आज तो तू क़यामत लग रही है।
जाहिरा बोली- और भाभी आप तो हर रोज़ और हर वक़्त ही क़यामत लगती हो..
मैंने धीरे से अपना दूसरा हाथ थोड़ा ऊपर को किया.. जाहिरा की कमर पर रख दिया.. उसकी चूची के पास.. जस्ट उसकी ब्रा के लेवेल पर.. इस तरह हाथ रखने से मेरा हाथ उसकी चूची को छू रहा था और फैजान की कमर पर भी चल रहा था।
मेरा दूसरा हाथ अभी भी फैजान की पैन्ट के ऊपर उसके लण्ड पर ही था। मैं महसूस कर रही थी कि जैसे-जैसे मैं और जाहिरा धीरे-धीरे बातें कर रही थीं.. तो ज़रूर उसे भी हमारी आवाजें जाती होंगी.. जिसकी वजह से उसके लण्ड में हरकत सी हो रही थी। मैं इस बात को बिना किसी रुकावट के महसूस कर रही थी।
जैसे ही एक पार्क के पास फैजान ने बाइक रोकी.. तो मैंने हाथ हटाने से पहले उसके लण्ड को अपनी मुठ्ठी में लेकर जोर से एक बार दबा दिया.. ताकि वो बैठने ना पाए।
क्योंकि आपको तो पता ही है.. कि लंड है ही ऐसी चीज़ कि इसे जितना भी दबाओ.. यह उतना ही उछल कर खड़ा होता है.. और अकड़ता जाता है।
पार्क के गेट पर हम दोनों बाइक पर से उतर आईं और फैजान बाइक पार्किंग स्टैंड पर पार्क करने चला गया।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments