एक भाई की वासना -5
(Ek Bhai Ki Vasna-5)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
मैं- फैजान.. देखो आज जाहिरा ने बहुत मुश्किल से हिम्मत करके लेग्गी पहनी है.. तुम से बहुत डर रही थी.. बस तुम को उसकी तरफ कोई तवज्जो नहीं देनी और ना ही उससे कुछ कहना.. ना कोई कमेंट देना है.. और उसकी तरफ ऐसे ही नॉर्मल रहना है.. जैसे कि रोज़ उससे व्यवहार करते हो.. ताकि वो थोड़ी सामान्य हो जाए और आहिस्ता-आहिस्ता इस नई ड्रेसिंग की आदी हो सके। अगर तुमने कोई ऐसी-वैसी बात की.. तो फिर वो दोबारा से अपनी पहली वाली लाइफ में चली जाएगी।
मुझे पता था कि फैजान के लिए अपनी बहन की टाँगों को टाइट लेगिंग में देखने से खुद को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा.. लेकिन मैं तो खुद ही उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी और दूसरी बात यह भी है कि सच में मैं जाहिरा को थोड़ा कंफर्टबल भी करना चाहती थी ताकि आइन्दा भी उसे ऐसे और इससे भी थोड़ा ज्यादा ओपन कपड़े पहनने में आसानी हो सके।
बहरहाल फैजान ने मेरी बात मान ली और बोला- अच्छा ठीक है।
अन्दर आ कर फैजान ने अपने कमरे में जाकर चेंज किया। फिर वो फ्रेश होकर वापिस आया और लंच करने कि लिए बैठ गया।
मैं रसोई में गई और कुछ बर्तन ले आई और फिर जाहिरा को भी खाना लेकर आने का कहा। मैं फैजान के पास बैठ गई और जाहिरा का वेट करने लगी।
अब आगे लुत्फ़ लें..
थोड़ी देर के बाद जाहिरा खाने की ट्रे लेकर आई.. तो उसका चेहरा शर्म से सुर्ख हो रहा था.. लेकिन जैसे ही वो बाहर आई तो फैजान ने उसकी तरफ से अपनी नज़र हटा लीं और अख़बार देखने लगा।
फिर जाहिरा ने खाना टेबल पर रखा और मेरे साथ ही बैठ गई। हम तीनों ने हमेशा की तरह खाना खाना शुरू कर दिया और इधर-उधर की बातें करने लगे।
फैजान जाहिरा से उसकी पढ़ाई और कॉलेज की बातें करने लगा।
आहिस्ता-आहिस्ता जाहिरा भी नॉर्मल होने लगी। उसके चेहरे पर जो परेशानी थी.. वो खत्म होने लगी और वो काफ़ी रिलेक्स हो गई.. क्योंकि उसे अहसास हो गया था कि उसका भाई उससे कुछ नहीं कह रहा है।
सब कुछ वैसा ही हो रहा था.. जैसे कि यह सब एक रुटीन में ही हो।
खाने के दौरान मैंने एक-दो बार जाहिरा को पानी और कुछ और लाने के लिए रसोई में भी भेजा.. ताकि फैजान का रिस्पॉन्स देख सकूँ और वो भी अपनी बहन को पहली बार चुस्त लेग्गी में देख सके।
हुआ भी ऐसा ही कि जैसे ही जाहिरा उठ कर गई.. तो फ़ौरन ही फैजान की नजरें उसकी तरफ चली गईं और वो अपनी बहन की लेग्गी में नज़र आती हुई टाँगों को देखने लगा।
मैं दिल ही दिल में मुस्कुराई और बोली- अच्छी लग रही है ना.. इस पर लेग्गी.. यह तो मैंने उसे अभी अपनी पहनाई है.. अब एक-आध दिन में मैं उसे उसकी साइज़ की ही ला दूँगी।
फैजान थोड़ा सा चौंका और बोला- हाँ ला देना उसे भी..
वो ज़ाहिर यह कर रहा था कि उसे इसमें कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है कि उसकी बहन ने क्या पहना हुआ है.. लेकिन मैं जानती थी कि उसे भी अपनी बहन को ऐसी ड्रेस में देखने का कितना शौक़ है।
मैंने सारी बातें अपनी और फैजान की कल्पनाओं में ही रहने दीं और खाना खाने लगी.. तभी जाहिरा भी वापिस आ गई।
खाना खाकर मैं और फैजान अपने कमरे में आ गए और जाहिरा अपने कमरे में चली गई।
शाम को हम कमरे से बाहर आए तो जाहिरा चाय बना चुकी हुई थी। वो चाय ले आई और हम लोग टीवी देखते हुए चाय पीने लगे। एक चीज़ देख कर मुझे खुशी हुई कि जाहिरा ने लेग्गी चेंज नहीं की थी और अभी भी उसी लेग्गी में थी। शायद अब वो कंफर्टबल हो गई थी कि इस ड्रेस को पहनने में भी कोई मसला नहीं है।
जब वो टीवी देख रही थी तो उसकी शर्ट भी बेख़याली में उसकी जाँघों तक आ गई थी और मैं नोट कर रही थी कि फैजान की नज़र भी बार-बार उसकी लेग्गी की तरफ ही जा रही थी.. और वो उसकी टाँगों और जाँघों को देखता जाता था।
मैं दिल ही दिल में मुस्करा रही थी कि कैसे एक भाई अपनी बहन के जिस्म को ताक रहा है और इस चीज़ को देख कर मेरे अन्दर एक अजीब सी लज़्ज़त की लहरें दौड़ रही थीं।
मैं इस चीज़ को इसी तरह आहिस्ता-आहिस्ता और भी आगे बढ़ाना चाहती थी। मैं देखना चाहती थी कि एक मर्द की लस्ट और हवस दूसरी औरतों की लिए तो होती ही है.. तो अपनी सग़ी बहन के लिए किस हद तक जा सकती है।
कुछ दिन में जाहिरा अब घर में लेग्गी और जीन्स पहनने की आदी हो गई और बहुत रिलेक्स होकर घर में डोलती फिरती थी। उसके भाई फैजान की तो मजे हो गए थे.. वो अपनी बहन और मुझसे नज़र बचा कर वो जाहिरा की स्मार्ट टाँगों को देखता रहता था।
मैंने जाहिरा को 3-4 लैगीज उसकी साइज़ की ला दी थीं.. जिनमें से एक स्किन कलर की थी.. एक ब्लैक एक रेड और एक वाइट थी।
जब जाहिरा ने अपनी साइज़ की लेग्गी पहनी.. तो वो उस कि जिस्म पर और भी फिट आई और उसमें वो और भी सेक्सी लग रही थी। लेकिन मैंने उसे कुछ भी अहसास नहीं होने दिया। पहले दिन के बाद से अब तक कभी भी मैंने फैजान से दोबारा इस टॉपिक पर बात नहीं की थी और ना ही उसने कोई बात की.. बस वो छुप कर सब कुछ देखता रहता और अपनी बहन के जिस्म के नज़ारे एंजाय करता था।
एक रोज़ मैंने जाहिरा को अपनी एक टी-शर्ट निकाल कर दी कि इसे पहन लो। बहुत इसरार करने की बाद जब उसने वो शर्ट पहनी.. तो वो उसको जरा ढीली थी और उसके चूतड़ों को भी कवर कर रही थी। लेकिन उससे नीचे उसकी जाँघों को बिल्कुल भी नहीं ढक रही थी।
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उसने मेरे कहने पर नीचे लेग्गी पहन ली, उसकी चुस्त लैगी में फंसे हुए उसके चूतड़ों को तो मेरी शर्ट ने कवर कर लिया थी.. लेकिन उससे नीचे उसकी जाँघों और टाँगें और भी सेक्सी और अट्रॅक्टिव लग रही थीं।
उसे देख कर मैंने उसकी तारीफ की और कहा- जाहिरा अब तुमको मैं तुम्हारी साइज़ की फिटिंग वाली टी-शर्ट लाकर दूँगी.. फिर मेरी ननद रानी और भी प्यारी लगेगी।
मैंने जानबूझ कर सेक्सी की बजाय प्यारी का लफ्ज़ इस्तेमाल किया था.. ताकि उसे बुरा ना लगे और मेरी बुलबुल मेरे हाथों से ना निकल जाए।
आज मेरी टी-शर्ट पहन कर उसने अपने भाई का भी जिक्र नहीं किया था.. क्योंकि उसे भी अब पता चल गया था कि उसके भैया भी उसकी ड्रेसिंग पर कोई ऐतराज़ नहीं करते हैं। इसी सोच कि चलते आज उसने लेग्गी के साथ टी-शर्ट पहन कर एक काफ़ी बोल्ड क़दम उठा लिया था।
जब फैजान घर आया.. तो आज जब उसने अपनी बहन को देखा.. तो उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया।
जब वो रसोई में काम करती हुई अपनी बहन को देख रहा था.. मैं बेडरूम से छुप कर देखते हुए उसके चेहरे के भावों को देख रही थी।
कुछ देर तक तो वो ऐसे ही चुपचाप देखता रहा.. फिर अचानक ही इधर-उधर मुझे देखने लगा.. जैसे कि उसे पकड़े जाने का डर हो।
मैंने खुद को पीछे हटा लिया ताकि उसे अपने गलती का अहसास या शर्मिंदगी ना हो।
खाने के दौरान भी जाहिरा थोड़ी सी अनकंफर्टबल थी.. लेकिन फैजान भी चुप-चुप सा था और चोरी-चोरी जाहिरा की टाँगों की तरफ ही देख रहा था।
शाम को जब हम लोग टीवी देख रहे थे.. तो भी फैजान की नजरें अपनी बहन के जिस्म के निचले हिस्से पर ही भटक रही थीं.. क्योंकि आज उसके जिस्म का पहले से ज्यादा हिस्सा नज़र आ रहा था और उसी से अंदाज़ा हो रहा था कि उसकी बहन की जाँघों की शेप कितनी प्यारी है।
फैजान अपनी बहन के जिस्म को देख कर मजे ले रहा था और मैं फैजान की हालत को देख कर एंजाय कर रही थी।
मैं इस अलग किस्म की हवस का नज़ारा कर रही थी।
अब तो जब भी फैजान इस तरह अपनी बहन के जिस्म को देख रहा होता था.. तो मेरे अन्दर भी तड़फ और गर्मी सी पैदा होने लगती थी।
फैजान की नज़र अपनी बहन के जिस्म पर होती थीं.. लेकिन गीलापन मेरी चूत कि अन्दर होने लगता था।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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