एक भाई की वासना -48
(Ek Bhai Ki Vasna-48)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
वो थोड़ा सा मेरी तरफ दोबारा झुका और अपने होंठों को मेरे नंगे कन्धों पर रख कर बोला- प्लीज़ भाभी नाराज़ ना हों.. मैं आपको सेल फोन दिखा दूँगा.. अभी तो फिल्म खत्म होने वाली है.. लेकिन कल मैं आपके घर आकर आपको दिखाऊँगा.. फिर इसमें से जो दिल चाहे.. देख लीजिएगा।
मैंने अपना चेहरा मोड़ कर उसकी तरफ देखा.. तो उसके होंठ मेरे होंठों के बहुत क़रीब थे और उसकी साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। उसकी गरम साँसों की वजह से मेरी चूत में कुछ होने लगा था और मुझे थोड़ा गीलापन महसूस होने लगा था। उसकी पतले गुलाबी होंठों को अपने इतना क़रीब देख कर मेरे होंठों पर भी हल्की सी मुस्कान फैल गई।
अब आगे लुत्फ़ लें..
नावेद ने मुझे मुस्कुराते देखा तो एकदम से जैसे उसे पता नहीं.. कितनी खुशी हुई कि उसने आगे बढ़ कर अचानक से मेरे गालों को किस कर लिया और बोला- यह हुई ना बात भाभी.. यू आर माय सो स्वीट भाभी..
यह कहते हुए उसने अपना बाज़ू मेरी दूसरे कंधे की तरफ डाला और मुझे अपनी सीने की तरफ खींच लिया। मैं उस लड़के की हरकत देख-देख कर हैरान हो रही थी।
फिर मैं बोली- अरे.. यह क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे.. और तुमने मुझे यह किस क्यों किया?
नावेद थोड़ा पीछे हटा.. लेकिन मेरे कन्धों पर से अपना हाथ नहीं हटाया और बोला- आप भी तो मेरी भाभी की तरह ही हो ना.. तो जब मैं उनसे खुश होता हूँ.. तो उनको भी ऐसे ही किस और हग करता हूँ।
मैं उस पर मुस्कुरा दी।
बाक़ी फिल्म के दौरान भी नावेद मेरा एक हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर बैठा रहा और उसे ना महसूस अंदाज़ में आहिस्ता आहिस्ता सहलाता रहा।
मुझे भी उसकी इस तरह से सहलाने से मज़ा आ रहा था। मुझे हैरत हो रही थी कि इतना मासूम और भोला भाला नज़र आने वाला लड़का किस क़दर तेज है और उसको जवान और खूबसूरत लड़कियों और औरतों को छूने का कितना शौक़ है।
कुछ ही देर में फिल्म खत्म हो गई और फिर हॉल की बत्तियाँ जल पड़ीं.. जो चंद लोग हॉल में थे.. वो एक-एक करके बाहर निकलने लगे। सामने ही बैठे हुए फैजान और जाहिरा पर मेरी नज़र पड़ी तो वो भी खुद को जैसे ठीक कर रहे थे। फिर फैजान ने उठ कर पीछे मुझे तलाश करने की कोशिश की.. तो मैंने फ़ौरन ही हाथ हिलाकर उसे अपनी पोजीशन का अहसास दिलाया और नावेद ने भी हाथ हिला दिया।
फैजान और जाहिरा उठे और हमारी तरफ बढ़े। जब वो क़रीब आए तो मैंने मुस्कुरा कर जाहिरा की तरफ देखा तो वो शरम से लाल हो गई और उसके चेहरे पर एक शर्मीली सी मुस्कुराहट फैल गई। फैजान और नावेद दोनों मिलने के बाद आगे-आगे चलने लगे और मैं और जाहिरा उनकी पीछे हो लिए थे।
मैंने जाहिरा से पूछा- तुमने तो आज खूब मज़ा किया होगा अपने भाई के साथ?
जाहिरा- नहीं भाभी.. हमने तो कुछ भी नहीं किया..
मैं- अच्छा.. कुछ नहीं किया? तो फिर यह अपने ऊपर वाले होंठ के ऊपर से अपने भाई का रस तो साफ़ कर लो.. सबको दिख रहा है कि तुम क्या-क्या करके आ रही हो..
जैसे ही मैंने यह कहा.. तो फ़ौरन ही जाहिरा का हाथ अपने होंठों की तरफ बढ़ा और वो अपने होंठों को साफ करने लगी।
उसकी इस हरकत पर मैं हँसने लगी और बोली- अरी पगली.. कुछ नहीं लगा हुआ हुआ.. सब तो तू चाट गई है.. मैं तो सिर्फ़ यह देखने के लिए ऐसा बोली थी कि मुझे पता चल सके कि वहाँ पर क्या-क्या हुआ है..
जाहिरा ने शरमाते हुए कहा- भाभी आप भी ना बस..
फिर हम दोनों भी हँसते हुए चलते हुए उन दोनों की पीछे स्टैंड पर आ गए।
वे दोनों अपनी बाइक्स ले आए.. मैं और जाहिरा दोनों ही फैजान की बाइक पर बैठने लगीं.. तो नावेद बोला- भाभी आप मेरे साथ आ जाओ.. क्या जरूरी है कि आप सबको एक बाइक पर ही बैठना है? मैं भी तो घर ही जा रहा हूँ ना..
फैजान ने मेरी तरफ देखा और बोला- हाँ ठीक है.. तुम नावेद के साथ बैठ जाओ.. मैं जाहिरा को बैठा लेता हूँ।
मैंने एक नज़र मुस्कुरा कर जाहिरा की तरफ देखा और फिर नावेद की तरफ बढ़ी मुझे अपनी तरफ आता हुआ देख कर उसकी भी आँखें चमक उठी थीं।
मैं आगे बढ़ी और फिर नावेद के कंधे पर हाथ रख कर उसकी बाइक पर उसके पीछे बैठ गई और हम सब घर की तरफ चल पड़े।
नावेद के पीछे मैं जानबूझ कर उससे चिपक कर बैठी थी.. मैंने अपनी चूचियों को भी नावेद की बैक के साथ लगा दिया था और जैसे ही मोटर बाइक थोड़ा सा उछलती.. तो मैं अपनी चूचियों को उसकी पीठ के साथ रगड़ देती। इस तरह मुझे इस खूबसूरत और मासूम लड़के को टीज़ करने में बहुत मज़ा आ रहा था।
घर पहुँच कर नावेद ने अपने घर का दरवाज़ा नॉक किया.. तो उसके पापा ने दरवाजा खोला.. तो हमें अपनी बेटे के साथ देख कर खुश हुए और बोले- चलो अच्छा हुआ कि यह अकेला नहीं था।
फिर मैंने उनको सलाम बोला और अपने घर के अन्दर आ गए।
घर में आकर जाहिरा अपने कमरे में कपड़े चेंज करने के लिए चली गई और मैं और फैजान अपने बेडरूम में आ गए। अपने कपड़े चेंज करते हुए फैजान मुझे मज़ाक़ करते हुए बोला।
फैजान- उस लड़के के साथ बहुत चिपक-चिपक कर बैठ रही थी।
मैं- नहीं तो.. ऐसी तो कोई बात नहीं है.. तुमको तो पता ही है ना.. कि बाइक पर ऐसे ही बैठा जाता है।
फैजान हँसते हुए- हाहहहहा.. बस करो.. अब मुझे सब कुछ दिख रहा था कि कैसे तुम अपनी यह खूबसूरत चूचियों को उसकी पीठ पर रगड़ रही थी।
मैं- अच्छा जी.. मेरा सब कुछ पता है तुमको.. लेकिन अपना नहीं पता.. जो अपनी ही सग़ी बहन को पटा रहे हो..
फैजान एकदम से घबरा गया और बोला- कक्ककया..क्या मतलब है तुम्हारा?
मैं- हाहहहाहा.. देखा ना.. चोरी पकड़ी गई तुम्हारे. मैं सब देख रही हूँ कि कुछ दिनों से कैसे तुम्हारा अपनी ही सग़ी छोटी बहन पर दिल आ रहा है और कैसे तुम उसके लिए बेचैन हो रहे हो। अगर कोई ऐसी बात है ना.. तो मुझे बता दो.. मैं तुम्हारी हेल्प कर दूँगी.. मेरी जान.. मैं आख़िर तुम्हारी दोस्त भी तो हूँ ना..
फैजान घबरा कर इधर-उधर देख रहा था.. मैं और आगे बढ़ी और उसके क़रीब जाकर उसके होंठों को चूम कर बोली- डोंट वरी डियर.. होता है.. ऐसा भी होता है.. वैसे तुम्हारी बहन है बहुत सेक्सी और खूबसूरत.. मैं अगर लड़का होती ना.. तो कब से उसे चोद चुकी होती।
मेरे होंठ अभी भी उसके होंठों को चूम रहे थे और मेरा एक हाथ नीचे जाकर उसके लण्ड को सहला रहा था.. जो कि उसकी पैन्ट में अकड़ रहा था।
मैंने उसे किस करते हुए उसकी पैन्ट खोल कर नीचे गिरा दी और उसके लण्ड को उसकी अंडरवियर के ऊपर से ही पकड़ लिया।
फैजान का लंड अकड़ा हुआ था और अंडरवियर में कड़क हो रहा था।
मैं उसके लण्ड को सहलाते हुए आहिस्ता आहिस्ता सरगोशियाँ करने लगी- फैजान.. मेरी जान.. जाहिरा बहुत हॉट लड़की है.. उफ्फ़.. उसकी जवान और चिकनी चमड़ी.. किस क़दर मुलायम और मदहोश कर देने वाली जिल्द पाई है.. इस्स्स.. उसके रसीले होंठ.. उफफ्फ़.. कितने सेक्सी और कितनी रस से भरे हुए हैं.. जैसे सुर्ख गुलाब हों.. मेरा तो दिल करता है.. एक ही बार में उसके होंठों का रस पी लूँ.. आह्ह..
यह कहते हुए मैं फैजान के होंठों को चूस रही थी।
फैजान मेरी कमर में अपनी बाज़ू डाल कर मुझे अपने साथ दबाते हुए बोला- क्या कह रही हो मेरी जान.. उम्माह.. ऐसा मत बोलो.. वो मेरी बहन है..
लेकिन उसका लंड उसके अल्फ़ाजों का साथ नहीं दे रहा था और अकड़ता ही जा रहा था.. जिसे मैंने अब उसकी अंडरवियर से बाहर निकाल लिया था और अपनी मुठ्ठी में लेकर सहला रही थी।
मैं- उफ्फ्फ.. फैजान अगर तुम एक बार अपना यह लंड उसकी कुँवारी चूत में डाल लो ना.. तो ज़िंदगी भर उसके गुलाम बन जाओगे.. काश.. मेरे पास लंड होता.. तो सबसे पहले मैं तुम्हारी बहन की कुँवारी चूत को चोदती..
मैं अपनी ज़ुबान फैजान के मुँह में डालते हुए बोली- बोलो भरना चाहते हो ना अपनी बहन को.. अपनी बाँहों में.. चूमना चाहते हो ना उसके खूबसूरत गालों को… चूसना चाहते हो ना उसके रसीले होंठों को… चोदना चाहोगे ना.. उसकी कुँवारी चूत को.. अपनी इस मोटे लंड से..
फैजान ने जोर से मुझे अपनी सीने से चिपका लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों से मसलता हुआ बोला- बस करो.. डार्लिंग.. बस करो..ऊऊऊओहह.. मेरी जान.. कहीं ऐसा ना हो कि मैं अभी उसे चोदने चला जाऊँ.. आह्ह..
इतने में दरवाजे पर नॉक हुई.. तो हम दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए।
जाहिरा अन्दर आई तो बोली- हैलो गाइस.. कोई मिल्क शेक लेना चाहेगा कि नहीं.. मैं बनाने जा रही हूँ..
मैंने कहा- हाँ.. बना लो सबके लिए लेकिन तुम्हारे भैया तो शायद आज की रात ‘दूध’ ही पीना पसंद करेंगे..
मेरी बात सुन कर फैजान घबरा गया और बोला- नहीं नहीं.. मेरे लिए भी मिल्क शेक ही बना लाओ।
जाहिरा ने मेरी बात समझ ली थी.. वो हँसती हुई वहाँ से चली गई और फिर मैं भी कपड़े चेंज करने लगी।
मैं जानती थी कि फैजान परेशान है कि वो अब मुझे क्या बताए कि वो तो अपनी बहन को पहली ही चोद चुका हुआ है। लेकिन मैं भी अब तीनों के दरम्यान का यह परदा खत्म कर देना चाहती थी।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]
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