एक भाई की वासना -39
(Ek Bhai Ki Vasna-39)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left एक भाई की वासना -38
-
keyboard_arrow_right एक भाई की वासना -40
-
View all stories in series
सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
उसकी चूत के दोनों फलकों के निचले हिस्से में जहाँ पर चूत की लकीर खत्म होती है.. वहाँ पर पानी का एक क़तरा चमक रहा था।
जाहिरा की कुँवारी चूत से निकल रही चूत का रस का क़तरा.. जो कि अपनी गाढ़ेपन की वजह से उस जगह पर जमा हुआ था और आगे नहीं बह रहा था।
जाहिरा की कुँवारी चूत के क़तरे की चमक से मेरी आँखें भी चमक उठीं और मैं वो करने पर मजबूर हो गई.. जो कि मैंने आज तक कभी नहीं किया था.. सिर्फ़ मूवी में देखा भर था।
अब आगे लुत्फ़ लें..
मैंने जाहिरा की दोनों जाँघों को खोल कर दरम्यान में जगह बनाई और वहाँ पर बैठ कर नीचे को झुकी.. और अपनी ज़ुबान की नोक को निकाल कर जाहिरा की चूत की लकीर के बिल्कुल निचले हिस्से में चमक रही उसकी चूत के रस के क़तरे को अपनी ज़ुबान पर ले लिया।
मैं ज़िंदगी में पहली बार किसी औरत की चूत के पानी को टेस्ट कर रही थी। जाहिरा की चूत के पानी के इस रस में हल्का मीठा मीठा सा.. अजीब सा ज़ायक़ा था।
जैसे ही मेरी ज़ुबान ने जाहिरा की चूत को छुआ.. तो जाहिरा का जिस्म काँप उठा। उसने आँखें खोल कर मेरी तरफ देखना शुरू कर दिया। मैंने दोबारा से झुक कर जाहिरा की चूत के बाहर के मोटे होंठों पर अपनी गुलाबी होंठ रखे और उसे एक चुम्मा दिया।
जाहिरा के जिस्म को जैसे झटके से लग रहे थे।
आहिस्ता आहिस्ता मैंने जाहिरा की चूत के ऊपर चुम्बन करने शुरू कर दिए।
फिर मैंने अपनी ज़ुबान की नोक बाहर निकाली और आहिस्ता आहिस्ता ऊपर से नीचे को अपनी ज़ुबान को उसकी चूत की लकीर पर फेरने लगी।
अब जाहिरा की चूत ने और भी पानी छोड़ना शुरू कर दिया था।
अपनी दोनों हाथों की एक-एक उंगली जाहिरा की चूत के बाहर के फलकों पर रख कर आहिस्ता से उसकी चूत को खोला.. तो आगे उसकी चूत की गुलाबी फलकों की अंदरूनी रंगत नज़र आने लगी।
बिल्कुल पतले-पतले और छोटे फलकें थीं.. जो कि साफ़ दिखा रही थीं कि यह चूत अभी तक बिल्कुल कुँवारी है और इसके अन्दर अभी तक किसी भी लंड को जाना नसीब नहीं हुआ है।
मैं दिल ही दिल में मुस्कराई कि खुशक़िस्मत है फैजान.. जो उसे अपनी बहन की कुँवारी चूत को खोलने का मौक़ा मिलेगा।
फिर मैंने नीचे झुक कर जाहिरा की चूत के एक गुलाबी फोल्ड को अपने दोनों होंठों के दरम्यान ले लिया और उसे आहिस्ता से चूसने लगी।
दोनों गुलाबी फलकों के बिल्कुल ऊपर.. जहाँ पर वो मिल रहे थे.. एक छोटा सा.. बिल्कुल छोटा सा.. जाहिरा की चूत का दाना नज़र आ रहा था।
मैंने जैसे ही उसे देखा तो अपनी उंगली से उसे मसलने लगी। आहिस्ता आहिस्ता उस पर अपनी उँगलियाँ फेरने के साथ ही जाहिरा की चूत से जैसे पानी निकलने की रफ़्तार और भी बढ़ गई।
धीरे-धीरे मैंने उसकी चूत के दाने को अपनी ज़ुबान से चाटना शुरू कर दिया और फिर जैसे ही अपने दोनों होंठों को उसके ऊपर रख कर जोर से चूसा.. तो जाहिरा तो तड़फ ही उठी।
‘भाभीईई… ईईईईई.. ओाआहह.. आआहह.. आहह.. क्य्आआ कर दियाआ.. ऊऊहह..’
मैं मुस्करा दी और फिर अपनी ज़ुबान को नीचे को लाते हुए जाहिरा की कुँवारी चूत के बिल्कुल तंग और टाइट सुराख के अन्दर डालने लगी।
बड़ी मुश्किल से मेरी ज़ुबान जाहिरा की चूत के अन्दर दाखिल हो रही थी। मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपनी ज़ुबान को जाहिरा की चूत के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया।
जाहिरा से भी अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था.. उसने अपना हाथ मेरे सर पर रखा और मेरे सर को अपनी चूत पर दबाते हुए अपनी चूत को ऊपर उठा कर मेरे मुँह में घुसेड़ने की कोशिश करते हुए एकदम से झड़ने लगी।
जाहिरा का निचला जिस्म बुरी तरह से झटके खा रहा था और पानी उसकी चूत से निकल रहा था।
मेरी ज़ुबान जाहिरा की चूत के अन्दर अब भी थी.. और मुझे उसकी टाइट चूत की नसें सुकड़ती और फैलती हुई बिल्कुल वाजेह तौर पर महसूस हो रही थीं।
जाहिरा की जाँघों को सहलाते हुए मैं आहिस्ता आहिस्ता उसे रिलेक्स करने लगी। उसकी आँखें बंद थीं और साँस तेज चल रही थीं।
गोरे-गोरे चूचे.. बड़ी तेज़ी के साथ ऊपर-नीचे को हो रहे थे। मैंने उसके साथ लेटते हुए उसे अपनी बाँहों में समेट लिया।
साथ ही जाहिरा ने भी अपना मुँह मेरे सीने में छुपाते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं।
अब मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी कमर पर हाथ फेरते हुए उसे शांत कर रही थी।
पहली बार इतना ज्यादा मज़ा लेने के बाद जाहिरा एकदम से नींद की आगोश में चली गई। मैंने उस ‘स्लीपिंग ब्यूटी’ की पेशानी को एक बार चूमा और उठ कर रसोई में आ गई।
दोपहर को जाहिरा ने नहा कर एक टी-शर्ट और लाल रंग की चुस्त लैगी पहन ली थी.. जिसमें उसका जिस्म बहुत ही सेक्सी नज़र आ रहा था।
जब फैजान घर आया.. गेट मैंने ही खोला। फैजान ने अन्दर आकर जब कपड़े आदि बदल लिए.. तो मैं रसोई में आ गई ताकि खाना गरम करके निकाल सकूँ।
जैसे ही फैजान ने मुझे रसोई में जाते देखा.. तो वो टीवी लाउंज से उठ कर जाहिरा के कमरे की तरफ चला गया।
मुझे पता था कि वो यही करेगा।
रसोई से निकल कर मैंने छुप कर जाहिरा के कमरे में झाँका.. तो देखा कि जाहिरा कमरे में फैजान के आगे-आगे भाग रही है और फैजान उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है।
कमरा कौन सा बहुत बड़ा था.. जो वो उसके हाथ ना आती… जल्द ही फैजान ने उसको हाथ से पकड़ा और खींच कर अपने सीने से लगा लिया।
जाहिरा मचलते हुई बोली- छोड़ दो भैया.. मुझे वरना मैं जोर से चीखूँगी और फिर भाभी आ जाएंगी।
फैजान- क्या है यार.. तू दो मिनट के लिए चुप नहीं रह सकती.. मैं तुझे खा तो नहीं जाऊँगा ना..
जाहिरा हँसते हुए बोली- आप कोशिश तो खाने की ही कर रहे हो ना..!
फैजान अपने होंठों को जाहिरा के गालों की तरफ ले जाते हुए उसको सहलाने लगा।
फैजान ने अपनी बहन जाहिरा को अपनी बाँहों में समेटा हुआ था और अब अपने होंठों को उसके होंठों पर रखने में कामयाब हो चुका था।
जैसे-जैसे फैजान जाहिरा के होंठों को किस कर रहा था.. वैसे-वैसे ही जाहिरा की दिखावटी मज़ाहमत भी ख़त्म होती जा रही थी। वो भी आहिस्ता आहिस्ता खुद के जिस्म को ढीला छोड़ते हुए खुद को अपने भाई के हवाले कर चुकी थी।
फैजान अब आहिस्ता आहिस्ता जाहिरा के होंठों को चूम रहा था और फिर उसके निचले होंठ को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा।
जाहिरा की बाज़ू भी अपने भाई की कमर की गिर्द लिपट चुकी थी और वो भी आहिस्ता-आहिस्ता उसके जिस्म को सहला रही थी।
मैंने देखा कि फैजान ने अपनी ज़ुबान को जाहिरा के मुँह के अन्दर दाखिल करने की कोशिश करते हुए उसकी टी-शर्ट को ऊपर उठाना शुरू कर दिया था।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
जाहिरा फैजान के हाथ पर अपना हाथ रखते हुई बोली- भैया.. भाभी आ जाएंगी.. कुछ भी ना करो न.. प्लीज़।
फैजान- नहीं.. वो नहीं आएगी..
जाहिरा- भाभी हैं कहाँ पर?
फैजान- वो रसोई में है.. तुम उसकी फिकर मत करो.. बस मैं जल्दी से चला जाऊँगा..
यह कहते हुए फैजान ने जाहिरा की टी-शर्ट को ऊपर किया और नीचे उसकी गुलाबी रंग की ब्रेजियर में छुपी हुई चूचियाँ उसके भाई की नज़रों के सामने आ गईं।
फैजान ने अपनी बहन की ब्रेजियर के ऊपर से ही उसकी एक चूची को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और उसे आहिस्ता आहिस्ता दबाने लगा।
ऊपर वो अपनी ज़ुबान को जाहिरा के मुँह में डाल चुका था और वो आहिस्ता आहिस्ता उसे चूस रही थी।
फैजान का एक हाथ जाहिरा की लेग्गी के ऊपर से ही उसके चूतड़ों को सहला रहा था। एक भाई के हाथ अपनी ही सग़ी बहन की गाण्ड पर रेंगते हुए देख कर मेरी तो अपनी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था।
अब फैजान ने जाहिरा का हाथ पकड़ा और अपने लंड के ऊपर रखने लगा।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments