एक भाई की वासना -33

(Ek Bhai Ki Vasna-33)

जूजाजी 2015-09-09 Comments

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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..

मैंने कहा- फैजान की आँखों पर पट्टी बाँधते हैं.. और वो फिर हम दोनों को पकड़ेगा और फिर पहचानने की भी कोशिश करेगा कि दोनों में से जिसे पकड़ा है.. वो कौन है और हम लोग बिना कुछ बोले उससे खुद को छुड़ाने को कोशिश करेंगे.. अगर ना छुड़ा सके या कोई बोल पड़ा.. तो फिर पकड़ने की उसकी बारी होगी।

ज़ाहिर है कि यह एक बिल्कुल ही चुतियापे सा गेम था.. क्योंकि चाहे आँखें बंद हों.. फिर भी फैजान आसानी के साथ हम दोनों के जिस्मों में फरक़ कर सकता था। लेकिन फैजान फ़ौरन से मान गया.. क्योंकि उसे भी शायद इसमें मिलने वाले मजे का अंदाज़ा हो गया था।
अब आगे लुत्फ़ लें..

वो मेरी बेवक़ूफी पर हंस रहा था कि मैं कैसा बच्चों वाला खेल खेलने को कह रही हूँ। जबकि वो उस बच्चों वाले गेम में भी अडल्ट्स वाला मज़ा लूटने के चक्कर में था।
लेकिन जाहिरा थोड़ा झिझक रही थी। मैंने अन्दर से एक दुपट्टा लाकर फैजान की आँखों पर बाँध दिया और बोली- जाहिरा, अब हम में से कोई भी कुछ नहीं बोलेगा।

जैसे ही खेल शुरू हुआ.. तो मैं और जाहिरा उस छोटी सी सहन में इधर-उधर भागने लगे और फैजान अपने हाथ फैलाकर हमें पकड़ने की कोशिश कर रहा था।

मैंने जानबूझ कर खुद को फैजान की गिरफ्त में दे दिया और फिर खुद को उसकी गिरफ्त से निकालने लगी।
फैजान ने बड़े ही एतिहात से मुझे मेरी बाज़ू से पकड़ा हुआ था लेकिन मैं खुद को बचाने के चक्कर में अपनी चूचियों को उसकी सीने से रगड़ रही थी।
फिर मैंने अपनी साइड चेंज करते हुए अपनी कमर उसकी सीने से लगाई और अपने चूतड़ों को उसके लण्ड पर अपने गाण्ड को रगड़ने लगी।

फैजान चिल्ला रहा था- जाहिरा.. जाहिरा.. है यह.. जाहिरा तुम अब पकड़ी गई हो!

लेकिन मैंने उससे खुद को छुड़ाने की कोशिश की.. तो मेरे पेट पर पड़ा हुआ उसका हाथ मेरी चूचियों पर आ गया।
मैंने हाथ पीछे ले जाकर उसके लण्ड को उसके शॉर्ट्स के ऊपर से पकड़ लिया और उसका लंड एकदम से खड़ा हो गया।

वो समझ गया कि यह जाहिरा नहीं मैं हूँ, उसने भी मेरी चूचियों को दबोच लिया और फिर मसलने लगा।

मैंने जाहिरा की तरफ देखा तो वो पास ही खड़ी हुई हंस रही थी।
मैंने अब अचानक से हमला करते हुए खुद को छुड़ा लिया और फैजान की गिरफ्त से एकदम निकल गई।

अब फैजान आगे को झपटा और बजाए इस कोशिश के कि मैं उसकी पकड़ में आती.. उसकी अपनी बहन जाहिरा उसकी पकड़ में आ गई।
फैजान फ़ौरन ही यह समझा कि यह मैं ही हूँ.. जो कि उसकी गिरफ्त से निकलने लगी थी.. तो उसने दोबारा से जोर से पकड़ लिया।

जब कि जाहिरा इस अचानक के हमले से घबरा गई.. लेकिन वो बोल भी नहीं सकती थी। बस खुद को अपने भाई की गिरफ्त से छुड़ाने लगी।

फैजान अपने एक हाथ की गिरफ्त से उसके पेट और दूसरे हाथ को उसकी चूची पर जमाते हुए बोला- अब नहीं निकलने दूँगा तुझे.. बड़ी मछली की तरह फिसल कर निकलने लगी थी ना.. मेरी गिरफ्त से.. अब निकल कर दिखा..

उसने अपने हाथ से अपनी बहन की चूचियों को दबाना शुरू कर दिया।
जाहिरा के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं.. लेकिन वो अपनी आवाज़ को दबा रही थी।
जाहिरा फैजान की बाँहों में मचल रही थी, फैजान ने अपना हाथ जाहिरा के पेट पर रखा हुआ हाथ.. उसकी बनियान के नीचे डाला और उसके नंगे पेट पर अपना हाथ ऊपर को फिराता हुआ सीधे उसकी नंगी चूची पर ले गया और अपनी बहन की नंगी चूची को पकड़ लिया।

जाहिरा ने घबरा कर मेरी तरफ देखा तो मैंने उसे उंगली अपने होंठों पर रख कर चुप रहने का इशारा किया।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
फैजान.. उसका अपना सगा बड़ा भाई अपनी बीवी के सामने उसकी गीली बनियान के नीचे हाथ डाल कर.. उसकी नंगी चूचियों को दबा रहा था।

फैजान ने उसे और भी मजबूती से जकड़ते हुए.. उसकी कमर को अपने लौड़े के साथ चिपकाया और उसकी चूचियों को मसलते हुए उसकी गर्दन पर अपने होंठों रख कर चूमते हुए बोला- डार्लिंग पकड़ी गई हो ना.. अब निकल कर दिखाओ। बस अब जाहिरा रह गई है अभी.. इसके बाद उसे पकड़ लूँगा तो मैं जीत जाऊँगा।

फैजान ने आहिस्ता आहिस्ता उसकी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया और शायद वो अपनी उंगलियों से जाहिरा के निप्पलों को भी मसल रहा था।

मैं फैजान के पीछे से उसके थोड़ा क़रीब गई.. और बिना उसके जिस्म को छुए हुए.. उसका एक हाथ पकड़ कर नीचे को खींचा.. ऐसा कि जाहिरा को अँधेरे में पता ही नहीं चल पाया और फैजान समझा कि यह मैं हूँ.. जो उसकी गिरफ्त में हूँ और हाथ नीचे लौड़े की तरफ लिए जा रही हूँ।

मैंने फैजान का हाथ जाहिरा के बरमूडा के ऊपर से उसकी चूत पर रख दिया।
फैजान बोला- इस बारिश में बड़ी मस्ती सूझ रही है तुझे डार्लिंग..
यह कह कर उसने जाहिरा की चूत को उसकी पैन्टी की ऊपर से रगड़ना शुरू कर दिया।

एक बात थी कि यह तो मुमकिन नहीं था कि फैजान को मेरे और जाहिरा की जिस्म के फ़र्क़ का अहसास ना हुआ हो। लेकिन अगर उसे पता चल भी गया था तो अब वो इस अँधेरे में और गेम का फ़ायदा उठाते हुए अपनी बहन के जिस्म के मजे लेना चाह रहा था।
मैं भी उसे रोकना नहीं चाह रही थी।

अब फैजान ने अपना हाथ जाहिरा की पैन्टी की इलास्टिक से अन्दर डाला और अपना हाथ उसकी नंगी चूत पर रख दिया और उसे आहिस्ता आहिस्ता दबाने लगा।

फैजान की इस हरकत की वजह से जाहिरा और भी परेशान हो गई.. उसे नहीं पता था कि मैं यह सब देख रही हूँ लेकिन फिर भी उसे डर था कि कहीं मैं ना देख लूँ।

फैजान ने अपनी कुँवारी बहन की चूत को अच्छी तरह से रगड़ा और इसी वजह से उसकी गिरफ्त जरा ढीली हुई.. तो जाहिरा फ़ौरन ही उसकी बाँहों से फिसल गई और दूर होकर बोली- बस भाभी अब गेम खत्म।

मैं मुस्कराई और उसकी तरफ बढ़ी.. इतने में लाइट भी आ गई। मैंने देखा कि जाहिरा की हालत खराब हो रही थी। उसकी साँस फूल रही थी और उसकी चूचियाँ भी तेज़ी के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीं।

फैजान ने भी अपनी आँखों पर बँधा दुपट्टा खोल दिया और फिर हम दोनों की तरफ हैरत से देखने लगा।

मैंने कहा- फैजान.. अब तो बारिश भी खत्म हो गई है.. चलो अन्दर ही चलते हैं।
जाहिरा भी अपने जिस्म को छुपाते हुए अन्दर आ गई।

मैं और फैजान दोनों एक साथ ही बाथरूम में नहाने के लिए घुस गए और ऊँची आवाज़ में मस्तियाँ करते हुए नहाने लगे। सारी आवाजें बाहर जाहिरा के कानों तक जा रही थीं।

थोड़ी देर में जाहिरा ने नॉक किया और बोली- भाभी आप लोग निकल भी आओ.. मुझे भी नहाना है।
मैंने थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और बोली- डार्लिंग आ जाओ तुम भी.. हमारे साथ ही नहा लो।
जाहिरा बोली- जी नहीं.. शुक्रिया.. आप लोगों का।

हम दोनों ही अन्दर हँसने लगे।

कुछ देर में जाहिरा भी नहा ली और हम दोनों ने फिर से वो ही नेट शर्ट बिना ब्रेजियर के पहन ली और इस बार बिना मेरी कहे ही जाहिरा ने वो शर्ट बिना ब्रा के पहनी और बड़े आराम से अपने भाई के सामने आ गई।

अब वो फैजान के सामने और भी ज्यादा घबरा रही थी.. क्योंकि आज उसका भाई उसकी नंगी चूचियों को और चूत को भी मसल चुका था।

रात का खाने खाते हुए भी फैजान अपनी बहन की चूचियों को भी देखना चाह रहा था। वो उनको अपने भाई की नजरों से छुपा रही थी.. शरम से नहीं.. बल्कि अपने भैया को टीज़ करने के लिए।

अब मुझे रात का इन्तजार था कि रात को क्या होगा।

आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]

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