एक भाई की वासना -32
(Ek Bhai Ki Vasna-32)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
मैं- अरे पहली बात तो यह है कि वो हैं नहीं यहाँ.. और अगर होते भी.. तो इस अँधेरे में कौन सा कुछ नज़र आ रहा है.. जो तेरे भैया को तेरा जिस्म नज़र आता। वैसे भी वो तेरे भैया ही हैं.. कौन सा कोई गैर मर्द हैं.. जो कि तुझे ऐसी हालत में देखेगा.. और तुझे कुछ नुक़सान पहुँचाने की सोचेगा।
मैं यह बात कहते हुए जाहिरा के और क़रीब आ गई और उसकी आँखों में देखते हुए.. मैंने अपनी बनियान को अपने कन्धों से नीचे को सरकाना शुरू कर दिया।
यूँ मैंने अपनी दोनों चूचियों को नंगा कर दिया.. जाहिरा फ़ौरन ही आ गए बढ़ी और मेरी चूचियों पर अपने हाथ रख कर इधर-उधर ऊपर की तरफ मसलती हुई बोली- क्या कर रही हो भाभीजान.. किसी ने देख लिया तो??
अब आगे लुत्फ़ लें..
मैंने उसे खींच कर अपनी बाँहों में भरा और बोली- अरे इतने अँधेरे में कौन देखेगा हमें.. लेट्स एंजाय यार..
यह कहते हुए मैंने उसकी बनियान को भी नीचे को खींचा और उसकी चूचियों भी नंगी कर लीं।
अब जैसे ही मैंने उसके साथ अपने आप को चिपकाया.. तो जाहिरा की चूचियों ने मेरी चूचियों के साथ रगड़ना शुरू कर दिया।
अब हम दोनों खूबसूरत लड़कियों के जिस्म के ऊपरी हिस्से बिल्कुल नंगे हो रहे थे। जाहिरा को भी जब मज़ा आने लगा.. तो उसने भी अपनी बाज़ू मेरी कमर के गिर्द कस ली और मुझे अपने सीने से दबा लिया।
धीरे-धीरे मैं उसकी नंगी कमर पर हाथ फेर रही थी और उसके होंठों को चूम रही थी।
इस बार जाहिरा ने पहल की और अपनी ज़ुबान मेरे होंठों के दरम्यान घुसेड़ दी और मुझे अपनी ज़ुबान चूसने का मौका दिया।
मैं भी अपनी कुँवारी ननद की ज़ुबान को अपने होंठों में लेकर चूसने लगी।
उसकी ज़ुबान को चूसते और उसे किस करते हुए.. मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर से हटा कर दोनों के जिस्मों के बीच में लाई और उसकी पैन्टी के अन्दर हाथ डाल दिया।
फ़ौरन ही मेरे हाथ को जाहिरा की चूत के ऊपर के जिस्म के बाल महसूस हुए थे, ये बहुत ही हल्के-हल्के रेशमी से बाल थे, मैं वहाँ से उसे सहलाते हुई आहिस्ता-आहिस्ता अपना हाथ उसकी चूत पर ले आई।
मेरी हाथों की उंगलियाँ मेरी ननद की कुँवारी अनछुई चूत को टकराईं.. तो मुझे बेहद लुत्फ़ आ गया।
मैंने आहिस्ता आहिस्ता उसकी चूत के लबों और चूत की दाने को सहलाना शुरू कर दिया।
जाहिरा की चूत के दाने को सहलाते हुए मैं अपनी उंगली की नोक को उसकी चूत के सुराख पर रगड़ रही थी और कभी-कभी उंगली की नोक को थोड़ा सा उसकी चूत के अन्दर भी दाखिल कर देती थी।
‘ईसस्स.. स्स्स्मम्म्ह.. भाभिईईई… ईईईईई.. ईईईई.. उफफ.. उफफ्फ़..’ जाहिरा की सिसकारियाँ निकल रही थीं।
मैं उसकी चूत के सुराख के अन्दर अपनी उंगली की नोक को आगे-पीछे करते हुए बोली- ऊऊऊ.. ऊऊऊफ.. उफफ्फ़.. डार्लिंग.. असल मज़ा तो तुम्हें उस वक़्त आएगा.. जब तेरी चूत में लंड जाएगा..
जाहिरा- ऊऊऊ.. ऊऊऊहह… ऊऊ.. भाभिईईई.. ऐसी बातें ना करें.. प्लीज़्ज़्ज़्ज़..
मैं- क्यों.. तेरी चूत में कुछ होने लगता है क्या..?
मुझे महसूस हो रहा था कि मेरी उंगली की हरकत की वजह से जाहिरा की चूत चिकनी होती जा रही थी और मुझे भी उसकी चूत को सहलाने और उसे किस करने और उसकी ज़ुबान को चूसने में बहुत मज़ा आ रहा था।
अभी हम यह बातें कर ही रहे थे कि दरवाजे पर घंटी बजी।
मैंने जाहिरा की तरफ देखा.. तो वो फ़ौरन ही बोली- ना ना भाभी.. मैं नहीं जाऊँगी दरवाज़ा खोलने.. खुद ही जाओ और मैं अपने कमरे में जा रही हूँ।
मैं हँसी और बोली- अच्छा बाबा मैं ही खोल आती हूँ..
मैं सहन से अन्दर गई और अन्दर जाकर सहन के दरवाजे को अन्दर से बंद कर दिया.. ताकि जाहिरा अन्दर आ कर अपने कमरे में ना जा सके।
फिर मैं मुस्कराते हुए गेट खोलने चली गई।
दरवाज़ा खोला तो फैजान था.. जो कि बिल्कुल भीग कर आया हुआ था.. बाइक अन्दर खड़ी करके.. मुझे इस हालत में देखा.. तो फ़ौरन से मुझे अपनी बाँहों में दबोच लिया और मुझे चूमना शुरू कर दिया।
वो मेरी चूचियों को दबाने और मसलने लगा.. मैंने भी कोई मज़ाहमत नहीं की और उसके लण्ड पर हाथ रख कर उसे दबाने लगी।
मैंने फैजान की शर्ट पकड़ कर ऊपर उठाई और उसकी गले से निकाल दी। फिर उसकी पैन्ट की बेल्ट खोली और उसकी पैन्ट भी उतार दी।
अब फैजान एक लूज से कॉटन शॉर्ट्स में था.. जो उसने नीचे पहना हुआ था।
मैंने फैजान के शॉर्ट्स के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया.. जो कि पूरा अकड़ चुका हुआ था।
मैंने नीचे बैठ कर फैजान के शॉर्ट्स को नीचे खींचा और उसका लंड उछाल कर बाहर निकल आया। वो फ़ौरन ही मुझे पीछे करते हुए बोला- अरे क्या कर रही हो.. जाहिरा आ जाएगी।
मैंने उसके लण्ड के अगली हिस्से को चूमा और बोली- वो इधर नहीं आ सकती।
यह कहते हुए मैंने फैजान के लंड को अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया।
मैं फैजान को उसकी बहन के पास ले जाने से पहले अच्छी तरह से गरम कर देना चाहती थी।
कुछ देर तक फैजान के लंड को चूसने के बाद मैंने कहा- आओ फैजान बाहर सहन में चलकर बारिश में नहाते हैं।
फैजान अपने लंड को वापिस अपने शॉर्ट्स में अन्दर करते हुए मेरे साथ चल पड़ा और बोला- जाहिरा कहाँ है?
मैंने कहा- वो भी बाहर सहन में ही है।
फैजान एक लम्हे के लिए झिझका और फिर मेरे साथ चल पड़ा। मैंने सहन के दरवाजे की कुण्डी खोली और फिर हम दोनों पीछे सहन में आ गए।
जाहिरा ने हमें देखा.. तो अपनी बाज़ू अपने सीने की उभारों पर लपेट लिए। बाहर बहुत ही कम रोशनी थी.. फैजान भी हमारी साथ ही नहाने लगा। लेकिन अभी तक कोई भी कुछ भी शरारत नहीं कर रहा था।
फैजान का पूरा जिस्म बिल्कुल ही नंगा था और नीचे जो कॉटन शॉर्ट्स पहने हुए था.. उसमें से उसके लण्ड का शेप भी साफ़ दिख रहा था।
जाहिरा का जिस्म भी फैजान की सफ़ेद पतली कॉटन बनियान में से बिल्कुल साफ़ दिख रहा था।
जैसे ही वो दूसरी तरफ मुँह करती और उसकी कमर नज़र आती.. तो उसकी कमर बिल्कुल ही नंगी लगती थी। नीचे उसकी जाँघें भी और मेरी जाँघें भी पूरी नंगी हो रही थीं। लेकिन सामने से वो अपनी चूचियों को नहीं देखा रही थी।
लेकिन ज़ाहिर है कि मैं ऐसा नहीं कर रही थी और अपना पूरा जोबन उन दोनों बहन-भाई के सामने गीली बनियान में एक्सपोज़ कर रही थी.. जिसकी वजह से भी फैजान को मस्ती आती जा रही थी।
अचानक से ही बारिश की तेज होने की वजह से इलाके की लाइट चली गई.. और बिल्कुल ही घुप्प अँधेरा हो गया।
बस हल्की सी रोशनी हो रही थी।
फैजान की नजरें अपनी बहन की नंगे हो रहे जिस्म पर से नहीं हट पा रही थीं।
अपनी सग़ी बहन की चूचियाँ.. उसके निप्पलों को.. उसका दूधिया क्लीवेज और उसकी नंगी जाँघों का हसीन नजारा उसके सामने था।
सब कुछ जानते हुए भी वो खुद की नज़रों को रोक नहीं पा रहा था। दूसरी तरफ मैं देख रही थी कि जाहिरा की नजरें भी बार-बार फैजान के जिस्म के निचले हिस्से की तरफ उसके शॉर्ट्स पर जा रही थीं। जिसमें उसे अपने भाई का अकड़ा हुआ लंड बिल्कुल साफ़-साफ़ दिख रहा था।
दोनों बहन-भाई के जिस्मों में एक-दूसरे के लिए बढ़ती हुई प्यास को मैं बहुत वाजिब तौर पर देख रही थी। इस सबसे मुझे एक अजीब सी लज़्ज़त और उत्तेजना मिल रही थी।
कुछ देर ऐसे ही एंजाय करने के बाद मैंने कहा- फैजान.. आओ कुछ गेम खेलते हैं।
जाहिरा बोली- कौन सा गेम भाभी?
मैंने कहा- फैजान की आँखों पर पट्टी बाँधते हैं.. और वो फिर हम दोनों को पकड़ेगा और फिर पहचानने की भी कोशिश करेगा कि दोनों में से जिसे पकड़ा है.. वो कौन है और हम लोग बिना कुछ बोले उससे खुद को छुडाने को कोशिश करेंगे.. अगर ना छुड़ा सके या कोई बोल पड़ा.. तो फिर पकड़ने की उसकी बारी होगी।
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ज़ाहिर है कि यह एक बिल्कुल ही चुतियापे सा गेम था.. क्योंकि चाहे आँखें बंद हों.. फिर भी फैजान आसानी के साथ हम दोनों के जिस्मों में फरक़ कर सकता था। लेकिन फैजान फ़ौरन से मान गया.. क्योंकि उसे भी शायद इसमें मिलने वाले मजे का अंदाज़ा हो गया था।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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