एक भाई की वासना -29
(Ek Bhai Ki Vasna-29)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
हम दोनों ननद-भाभी ने इसे ड्रेस में पूरा दिन घर में अपने जिस्म के नंगेपन की बिजलियाँ गिराते हुए गुजारा। पूरे दिन हम दोनों के नंगे जिस्मों को देख कर फैजान पागल होता रहा। कई बार जब भी उसने मुझे अकेले पाया.. तो अपनी बाँहों में मुझे दबोच लिया और चूमते हुए अपनी प्यास बुझाने लगा।
मैंने भी उसके लण्ड को सहलाते हुए उसे खड़ा किया.. लेकिन हर बार उसकी बाँहों से फिसल कर उसे केएलपीडी का अहसास कराते हुए भाग आई.. ताकि उसकी प्यास और उसकी अन्दर जलती हुई आग इसी तरह ही भड़कती रहे और ठंडी ना होने पाए।
अब आगे लुत्फ़ लें..
मैंने महसूस किया कि अब जाहिरा भी घर में उस बिल्कुल ही नंगी ड्रेस में फिरने में कोई भी शरम महसूस नहीं कर रही थी और बड़े आराम से उस हाफ शॉर्ट बरमूडा और उस स्लीव लैस नेट शर्ट में बिंदास घूम रही थी.. जिसमें उसका खूबसूरत सीना और चूचियों का ऊपरी हिस्सा तो बिल्कुल ही खुला नज़र आ रहा था।
अब वो भी अपने भाई की नजरों से बचने की कोशिश नहीं कर रही थी.. बल्कि उसके आस-पास ही डोल रही थी
मैं और जाहिरा रसोई में थे.. तो फैजान भी अन्दर ही आ गया।
बोला- हाँ.. भाई क्या पक रहा है?
मैंने बताया- चिकन बना रही हूँ।
फैजान जाहिरा के नंगे जिस्म की तरफ देखते हुए बोला- यार आज मौसम इतना प्यारा हो रहा है.. आज तो साथ में कुछ मीठा भी होना चाहिए..
मैंने मुस्करा कर फैजान की तरफ देखा और बोली- बेफिकर रहिए आप.. आज आपका मुँह भी मीठा करवा ही देंगे.. क्यों जाहिरा..
जैसे ही आखिरी बात मैंने जाहिरा से पूछी.. तो वो मेरे सवाल पर झेंप सी गई और बोली- हाँ हाँ.. भैया बताएं.. क्या बनाना है?
फैजान ने मुस्करा कर अपनी बहन की चूचियों की तरफ एक नज़र डाली और फिर बाहर निकलते हुए बोला- कुछ भी मस्त सा आइटम बना लो यार..
क़रीब 5 बजे फैजान के एक दोस्त का फोन आ गया.. उसने उसे अपने घर बुलाया था।
मुझे साफ़ लग रहा था कि घर में घूम रही दो-दो खूबसूरत अधनंगी लड़कियों को छोड़ कर जाने को उसका दिल बिल्कुल भी नहीं कर रहा था.. लेकिन उसे जाना ही पड़ा।
उसका यह दोस्त दो-तीन गली छोड़ कर ही रहता था। फैजान के जाने के बाद मैंने और जाहिरा ने जल्दी से रात का खाना तैयार कर लिया और फैजान की फरमाइश के मुताबिक़ मीठा भी बना लिया।
रसोई से निकलते हुए मैंने जाहिरा को मासूमियत से छेड़ा- यार पता नहीं तुम्हारे भैया को यह मीठा पसंद आता भी है कि नहीं.. या कुछ और चीज़ से मुँह मीठा करना चाहिए।
मेरी बात सुन कर जाहिरा शरमा कर मुस्कराई और अपने कमरे में चली गई।
फैजान के जाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गई और अपना लैपटॉप खोल कर बैठ गई।
मैं अक्सर अकेले में नेट पर ट्रिपल एक्स मूवीज देखती थी। ट्रिपल एक्स मूवीज देखने का मुझे और फैजान दोनों को ही बड़ा शौक़ था.. बल्कि सच कहूँ.. तो फैजान ने ही मुझे इसका आदी बनाया था।
मेरा दिल आज चाहा कि मैं आज लेज़्बीयन मूवी देखूं।
मैंने एक पॉर्न साइट पर जाकर लेज़्बीयन मूवी खोज निकाली और उसको देखने लगी।
मुझे आज पहली बार इन मूवीज में मज़ा आ रहा था.. वरना कभी भी मैंने इस क़दर शौक़ से इस किस्म की मूवीज नहीं देखीं थीं।
मुझे हमेशा से ही स्ट्रेट सेक्स ही पसंद रहा था। एक मर्द के साथ एक औरत के जिस्म का मिलाप होना ही मुझमें चुदास जगा देता था। लेकिन आज जब से मैंने जाहिरा के जिस्म को छुआ और उसे चूमा था.. तो मुझे इसमें भी बहुत मज़ा आ रहा था।
अपने बिस्तर पर बैठ कर अपनी जाँघों पर लैपटॉप रख कर मैं पॉर्न एंजाय कर रही थी।
कुछ देर गुज़रे.. तो अचानक से जाहिरा मेरे कमरे में आ गई, वो अभी भी उसी सुबह वाले ड्रेस में थी।
उसे देखते साथ ही एक बार फिर से मेरी आँखें चमक उठीं।
मैंने जल्दी से उस फिल्म को बन्द कर दिया। जाहिरा मेरे पास बिस्तर पर आ गई और मेरे पास बैठती हुई बोली।
जाहिरा- भाभी क्या देख रही थी लैपटॉप पर?
मैं- कुछ नहीं यार.. तेरे देखने की चीज़ नहीं है..
जाहिरा- क्यों भाभी ऐसी कौन सी चीज़ है.. जो मेरे देखने की नहीं है और क्यूँ नहीं है.. मेरे देखने की?
मैं- वो इसलिए नहीं है.. क्योंकि तू अभी बच्ची है.. हाहह… हहहा..
जाहिरा मेरी बाज़ू पर मुक्का मारते हुए बोली- वाह जी वाह.. भाभी जी.. मैं अब बड़ी हो गई हुई हूँ.. कोई बच्ची-वच्ची नहीं हूँ।
मैं हँसते हुए- अच्छा जी.. तो कहाँ से बड़ी हो गई हो.. बताओ मुझे भी जाहिरा?
जाहिरा अपना सीना तान कर अपनी चूचियों को बाहर को निकालते हुए बोली- देख लो.. कितनी बड़ी हो गई हूँ मैं और सुबह भी तो आपने देखा ही था ना.. कौन सा मैं कोई बच्ची जैसी हूँ?
मैं हँसने लगी- अच्छा बाबा अच्छा, ठीक है.. आओ तुमको भी देखा देती हूँ.. लेकिन फिर ना कहना कि कैसे चीजें दिखा दी हैं भाभी ने मुझे..
मैं अब जाहिरा को थोड़ा और भी ओपन करने का सोच चुकी थी इसलिए मैंने वो ही लेज़्बीयन फिल्म निकाली और चला दी।
जाहिरा ने जैसे ही वो फिल्म देखी तो फ़ौरन ही अपने मुँह पर हाथ रख लिया।
जाहिरा- ओह नो भाभी.. मैंने ऐसी मूवीज का सुना था कॉलेज की लड़कियों से.. और देखी भी थी उनके मोबाइल में.. लेकिन भाभी क्या आप भी इस तरह की मूवीज देखती हो?
मैंने मुस्करा कर उसकी तरफ देखा और बोली- हाँ.. क्यों नहीं.. अच्छा लगता है ना..
जाहिरा- लेकिन अगर भैया को पता चल जाए आपका.. तो??
मैं हँसते हुए- अरे पगली.. तेरे भैया ने ही तो मुझे इनको देखना सिखाया है..
जाहिरा- क्या सच भाभी..??
मैंने ‘हाँ’ में सिर हिलाया और फिर उसे अपने पास खींचते हुए अपना बाज़ू उसके कंधे पर दूसरी तरफ से रखते हुए बोली- चलो अब देखो फिल्म..
जाहिरा मेरे साथ वो लेज़्बीयन फिल्म देखने लगी और थोड़ी ही देर मैं पूरी तरह से फिल्म में मस्त हो गई..
मैं भी आहिस्ता आहिस्ता उसके नंगे कन्धों को सहला रही थी और आहिस्ता आहिस्ता मेरा हाथ नीचे को उसके कन्धों के आगे की ओर उसकी चूची की ऊपरी हिस्से तक आता जा रहा था।
आहिस्ता आहिस्ता मैंने जाहिरा की चूची को उसकी शर्ट की ऊपर से सहलाना शुरू कर दिया।
मेरा चेहरा भी उसके कन्धों पर आ गया और मैं अपने होंठों को उसकी गर्दन और उसके कन्धों पर आहिस्ता आहिस्ता फेरने लगी।
जाहिरा मेरे होंठों से अपनी गर्दन और कन्धों और जिस्म को बचाने की लिए हौले-हौले कसमसा रही थी.. लेकिन ज्यादा मजाहमत भी नहीं कर रही थी.. शायद उसे भी अच्छा लग रहा था।
लैपटॉप अब बिस्तर पर रखा हुआ था। मैंने अपनी टाँगें फैलाईं और आहिस्ता से जाहिरा को अपनी गोद में खींच लिया। जाहिरा भी चुप करके मेरी गोद में लेट गई और मेरे एक साइड पर रखे हुए लैपटॉप पर वही लेज़्बीयन फिल्म देखने लगी।
इस फिल्म में एक लड़की दूसरी खूबसूरत लड़की की चूचियों को चूस रही थी और उसके निपल्स पर अपनी ज़ुबान फेर रही थी।
मैंने अपना हाथ जाहिरा की चूचियों पर रखा और उनको आहिस्ता आहिस्ता सहलाते हुए जाहिरा के कान में धीरे से बोली- जाहिरा.. देखो बिल्कुल तुम्हारे जैसे सुडौल और खूबसूरत हैं.. इसकी चूचियों.. कितनी सेक्सी लग रही है।
इसके साथ ही मैंने अपनी ज़ुबान की नोक जाहिरा के कान के अन्दर आहिस्ता से घुमाई.. तो वो चुदास से तड़फ ही उठी..
कजाहिरा ने मुस्करा कर मेरी तरफ देखा.. तो मुझे उसकी आँखें सुर्ख होती हुई नज़र आईं। मैंने नीचे को झुक कर हिम्मत करते हुए अपने होंठ उसके होंठों पर रखे और एक किस कर लिया।
जाहिरा मुस्कराई और बोली- भाभी क्या है.. आपको लगता है कि आपको भी इनकी तरह ही मज़ा करने का शौक चढ़ रहा है?
मैं आहिस्ता आहिस्ता जाहिरा की नंगी जाँघों पर हाथ फेरते हुए उसके गालों को चूमते हुए बोली- हाँ.. तो क्या हर्ज है इसमें.. यह सब तो लड़कियां करती ही हैं ना?
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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