एक भाई की वासना -25
(Ek Bhai Ki Vasna-25)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
अचानक फैजान ने अपने हाथ को पूरा जाहिरा की शर्ट के अन्दर डाला और उसकी ब्रेजियर के ऊपर से उसकी चूची को पकड़ लिया।
मुझे ऐसा अहसास हुआ.. क्योंकि जैसे ही उसका हाथ उसकी ब्रा के ऊपर से उसकी चूची पर आया.. तो जाहिरा के जिस्म ने एक झुरझुरी सी ली.. लेकिन फिर जाहिरा तुरंत ही शांत भी हो गई।
मैं दिल ही दिल में जाहिरा के कंट्रोल की दाद दे रही थी कि किस क़दर की हिम्मत वाली लड़की है कि एक मर्द के हाथ के स्पर्श पर भी खुद को इतना कंट्रोल कर रही है।
जबकि मेरी चूत तो यह देख-देख कर ही पानी छोड़े जा रही थी कि एक भाई अपनी बहन की चूचों को सहला रहा है।
अब आगे लुत्फ़ लें..
अब शायद कुछ ज्यादा हो गया था.. जो कि जाहिरा बर्दाश्त ना कर सकी या फिर फैजान के लंड ने जाहिरा की गाण्ड के दरम्यान घुसने की कोशिश की.. जिसकी वजह से एकदम जाहिरा सीधी हो गई और फैजान ने भी खुद को सम्भालते हुए अपना हाथ फ़ौरन ही पीछे खींच लिया।
अब जाहिरा अपनी पीठ के बल बिल्कुल सीधी होकर लेट गई.. पर फैजान उसी की तरफ मुँह करके लेटा हुआ था।
एक बार उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और फिर चंद लम्हे इन्तजार करने के बाद मैंने देखा कि उसका चेहरा आहिस्ता आहिस्ता जाहिरा के क़रीब जाने लगा।
जाहिरा की नेट ड्रेस की तनियाँ अभी भी उसके कन्धों से नीचे ही थीं और उसका सीना मानो जैसे कि पूरा नंगा ही हो रहा था।
फैजान ने आहिस्ता से अपने होंठ जाहिरा के कन्धों पर रख दिए और उसके कंधे को चूम लिया।
जब जाहिरा के जिस्म में कोई भी हरकत नहीं हुई.. तो फैजान की हिम्मत बढ़ने लगी और उसने जाहिरा के कन्धों को किस करते हुए थोड़ा और आगे को आते हुए उसके सीने के ऊपरी हिस्से को और फिर अपनी बहन के गाल को भी चूम लिया।
एक बार तो उसने हिम्मत करते हुए जाहिरा के पतले-पतले गुलाबी होंठों को भी किस कर लिया।
फैजान की हवस में और उसके लौड़े की चुदास में इज़ाफ़ा ही होता जा रहा था और उसकी हिम्मत भी बढ़ती ही जा रही थी।
अब उसने आहिस्ता से जाहिरा की दूसरे कन्धे से भी उसकी ड्रेस की डोरी को नीचे की तरफ सरकाना शुरू कर दिया और चंद ही लम्हों के बाद दूसरी तरफ की डोरी भी उसके बाज़ू पर झूल रही थी।
अब जाहिरा के सीने पर उस शर्ट के ऊपर सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी काले रंग की ब्रेजियर की तनियाँ ही नज़र आ रही थीं।
फैजान कुछ देर तक इसी हालत में अपनी सोई हुई बहन को देखता रहा और फिर उसने अपनी उंगलियों में पकड़ कर जाहिरा की नेट ड्रेस को उसकी चूचियों से नीचे को करना शुरू कर दिया।
उस ढीली सी नेट ड्रेस को जब फैजान ने आहिस्ता आहिस्ता नीचे को उतारा.. तो थोड़ी सी कोशिश के बाद जाहिरा की चूचियाँ उसकी काली ब्रेजियर समेत खुल सी गईं।
फैजान की तो आँखें ही खुल गईं और अपनी सग़ी बहन की चूचियों को इस तरह सिर्फ़ ब्रेजियर में देख कर उसका चेहरा भी खिल उठा।
जाहिरा की गोरे-गोरे मम्मे उस काली ब्रेजियर में बहुत ही प्यारे लग रहे थे.. और उसकी आधी चूचियों उसकी ब्रा में से बाहर थीं।
उसकी चूचियों के दरम्यान बहुत ही खूबसूरत सा क्लीवेज बन रहा था। उसकी लेटे हुए होने की वजह से उसकी चूचियों ऊपर की तरफ को जैसे उबली पड़ रही थीं और बहुत ही सेक्सी और खूबसूरत मंज़र पेश कर रही थीं।
मैंने भी आज पहली बार अपनी ननद को इस हालत में देखा था तो उसके खूबसूरत जिस्म को देख कर मेरे मुँह और चूत में भी पानी आ रहा था।
फैजान ने अपना हाथ जाहिरा के सीने पर दोबारा रखा और फिर आहिस्ता-आहिस्ता से उसके सीने पर हाथ फेरने लगा।
उसके हाथ अब अपनी बहन की चूचियों के ऊपरी हिस्से पर भी जा रहे थे और फैजान अपनी बहन की चूचियों के नंगे हिस्सों को मस्ती से सहलाने लगा था।
कुछ पलों बाद फैजान ने अपनी एक उंगली को जाहिरा की क्लीवेज में दाखिल किया और उसे आहिस्ता-आहिस्ता अन्दर-बाहर करने लगा।
उसने अचानक पीछे मुड़ कर मेरी तरफ दोबारा देखा और मेरे सोए होने की तसल्ली करके फैजान थोड़ा सा ऊपर को उठा और झुक कर उसने अपने होंठ अपनी बहन की चूचियों के ऊपरी नंगे हिस्से पर रख दिए और अपनी बहन की चूचियों का अपनी ज़िंदगी का पहला किस ले लिया।
उन दोनों की लाइफ में इस सेक्स को लेकर जाने आगे कितने और किस.. और क्या-क्या आने वाला था।
मैं अब इस खेल को आज की रात के लिए यहीं पर रोक देना चाहती थी.. ताकि दोनों के अन्दर ही तड़फ और प्यास बाक़ी रहे और एक ही रात में सारी हदें पार ना कर लें। यही सोच कर मैं एकदम नींद की हालत का नाटक करती हुई फैजान के साथ चिपक गई और उसे मजबूर कर दिया कि वो अब कुछ और ना कर सके।
मैंने उसे इतना मौका भी नहीं दिया कि वो अपनी बहन का ड्रेस ही दुरूस्त कर सके।
उसकी बहन उसके बिल्कुल क़रीब उस अधनंगी हालत में पड़ी रही कि उसकी चूचियाँ उसकी ब्रा में उसके भाई के सामने खुली पड़ी थीं और वो बार-बार उनको देख रहा था.. लेकिन छू नहीं पा रहा था।
कुछ देर के बाद मैंने फैजान को करवट दिलाते हुए अपनी तरफ खींच लिया और उसे अपने मम्मों से चिपका लिया।
आख़िर कुछ देर बाद ही उसकी भी मेरे साथ ही आँख लग गई।
अगले दिन रविवार था.. तो सब ही देर तक सोते रहे। सबसे पहली मेरी आँख खुली.. कमरे में बिल्कुल हल्की हल्की दिन की रोशनी हो रही थी.. क्योंकि सारे परदे बंद थे।
मैंने अपने मोबाइल में वक्त देखा तो 9 बज रहे थे।
मैं अपनी जगह से उठी और उठ कर वॉशरूम गई और फिर सबके लिए चाय बनाने रसोई में चली गई।
मैंने रसोई में चाय बनाई और फिर जब मैं चाय की तीन कप लेकर बेडरूम में वापिस आई तो अन्दर का मंज़र देख कर मैं मुस्करा उठी।
बेड पर फैजान अपनी बहन से लिपट कर सो रहा था और नींद में होने की वजह से जाहिरा भी उससे लिपटी हुई थी। वो अपना बाज़ू फैजान के गले में डाल कर उससे चिपकी हुई थी। उसका बरमूडा भी उसकी जाँघों पर ऊपर तक चढ़ा हुआ था और उसकी गोरी-गोरी जाँघों नंगी हो रही थीं।
वो दोबारा अपनी ड्रेस को तो अपनी ब्रा पर करके ही सोई थी.. लेकिन अब फिर उसकी ड्रेस का एक स्ट्रेप कन्धों से नीचे बाजुओं पर आया हुआ था।
फैजान की टाँगें उसकी चिकनी मुलायम नंगी रानों पर थीं और उसका हाथ जाहिरा की कमर पर था।
चाय को बगल में टेबल पर रखने के बाद मैं जाहिरा की तरफ ही बैठ गई और अपना हाथ बहुत ही आहिस्ते से उसकी नंगी जांघ पर रख दिया।
लिल्लाह.. सच में जाहिरा की बहुत ही चिकनी और मुलायम जिल्द थी.. मेरा दिल चाह रहा था कि धीरे-धीरे उसकी जाँघों को सहलाती रहूँ..!
मैं कभी भी लेज़्बीयन नहीं रही थी.. लेकिन आज जाहिरा की खूबसूरती को देख कर मुझ पर भी नशा सा छा रहा था।
मैं सोच रही थी कि अगर मेरा यह हाल हो रहा है.. तो फैजान बेचारा अपनी बहन की जवानी को इस हालत में देख कर कैसे खुद को रोक सकता है।
मेरा हाथ धीरे-धीरे जाहिरा की नंगी जाँघों को सहला रहा था और थोड़ा उसके ऊपर तक चढ़े हुए बरमूडा के अन्दर तक भी फिसल रहा था।
जाहिरा का नंगा कन्धों भी मेरी आँखों के सामने था। मैं आहिस्ता से झुकी और अपने होंठ जाहिरा के नंगी कन्धों पर रख कर उसे चूम लिया।
जाहिरा बड़ी मदहोशी में अपने भाई के साथ चिपकी हुई सो रही थी।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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