एक भाई की वासना -18
(Ek Bhai Ki Vasna-18)
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सम्पादक – जूजा जी
हज़रात आपने अभी तक पढ़ा..
जाहिरा ने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर मुझे पीछे से हग कर लिया और अपनी बाँहें मेरे गले में डाल कर पीछे से अपना मुँह आगे लाते हुए मेरे गाल को चूम लिया और बोली- मैं अपनी प्यारी सी भाभी को कैसे नाराज़ कर सकती हूँ.. अरे भाभी तू कहे तो मैं कुछ भी नहीं पहनूंगी.. लेकिन तू मुझसे नाराज़ ना होना।
मैंने मुस्करा कर जाहिरा की बालों में हाथ फेरा और बोली- यह हुई ना मेरी प्यारी सी ननद वाली बात.. सच में जाहिरा तू तो बहुत ही प्यारी और मासूम है.. हाँ.. तू मेरी मासूम सी ननद है मेरी जान..
मैं दिल ही दिल में अपने शैतानी खेल पर मुस्कराती हुई रसोई में आ गई और जाहिरा चेंज करने के लिए अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
अब आगे लुत्फ़ लें..
कुछ देर के बाद जाहिरा अपने कमरे से मेरा दिया हुआ लिबास पहन कर मेरे पास रसोई में आई तो बहुत ही शर्मा रही थी। मैंने उसे देखा तो हमेशा की तरह उससे मज़ाक़ करने की बजाए उसको उत्साहित करने लगी कि तुम सच में बहुत ही प्यारी लग रही हो।
जाहिरा ने अपने भाई वाला जो बरमूडा पहना था.. वो उसके घुटनों तक आ रहा था.. उससे नीचे उसकी गोरी-गोरी टाँगें बिल्कुल नंगी थीं.. बिल्कुल ही साफ़ गोरी-गोरी चिकनी टाँगें जिन पर एक भी बाल नहीं था.. मतलब किसी को भी उसकी चिकनी टाँगें देखते साथ ही मज़ा आ जाए।
ऊपर से उसने मेरी स्लीवलैस शर्ट पहन ली थी, यह शर्ट उसको काफ़ी ढीली थी, उसकी दोनों बाँहें बिल्कुल नंगी थीं, बिल्कुल गोरे और चिकने कन्धों पर उसकी ब्रेजियर की तनियाँ एकदम साफ़ नज़र आ रही थीं।
स्लीवलैस शर्ट होने की वजह से जाहिरा ने प्लास्टिक की पारदर्शी स्ट्रेप्स वाली ब्रेजियर पहन ली थी। ताकि कम से कम नज़र आ सकें… लेकिन कन्धों पर सब मर्दों की नजरें तो ब्रा की स्ट्रेप्स पर ही होती है ना..
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शर्ट की स्ट्रेप्स तो चौड़ी थीं.. लेकिन फिर भी थोड़ी सी भी चलने-फिरने के साथ ही वो पीछे को हट जाती थीं और ब्रेजियर की स्ट्रेप्स नजर आने लगती थीं।
मैंने बिना कुछ ज्यादा बात किए जाहिरा को काम पर लगा दिया.. ताकि उसे भी कोई अहसास ना हो।
काम करते हुए जाहिरा आहिस्ता से बोली- भाभी वो भैया.. मेरा मतलब है कि वो भैया नाराज़ हो गए तो.. मुझे ऐसी ड्रेस में देख कर.. मेरा मतलब था!
मैं- अरे पगली तू तो इतनी प्यारी लग रही है.. तो तेरा भाई तुझे देख कर क्यों नाराज़ होगा.. कोई भी भाई अपनी बहन पर नाराज़ नहीं होता।
शाम में जब फैजान घर आया तो खाने की टेबल पर पहुँचने तक उसकी मुलाक़ात जाहिरा से नहीं हो सकी। फैजान टेबल पर बैठा था और जैसे ही जाहिरा खाने की ट्रे लेकर आई तो फैजान की आँखें फटी की फटी रह गईं।
उसकी नजरें अपनी बहन की नंगी टाँगों पर जमी हुई थीं। जो कि उसके बरमूडा के नीचे बिल्कुल नंगी थीं।
मैं फैजान की नज़रों को ही देख रही थी लेकिन शो ऐसा ही कर रही थी। जैसे कि मैं उन लोगों को नहीं देख रही होऊँ।
जाहिरा बुरी तरह से शर्मा रही थी और फैजान की नजरें न चाहते हुए भी अपनी बहन के जिस्म पर से नहीं हट पा रही थीं। कभी वो उसकी नंगी बाँहों को देखता और कभी चिकनी टाँगों को देखने लगता।
मैंने देखा कि जाहिरा के कन्धों पर उसकी ब्रेजियर के स्ट्रेप्स भी साफ़ नज़र आ रहे हैं।
जाहिरा ने बड़ी ही मुश्किल से खाना खाया.. मैं इधर-उधर की बातों से उसकी तवज्जो हटाने की कोशिश करती रही लेकिन वो अपनी ड्रेस में बहुत ही परेशानी महसूस कर रही थी।
खाने के बाद फैजान ने कुछ देर बैठ कर टीवी देखा.. रात हो रही थी तो वो अपने बेडरूम में सोने चला गया।
मैंने रसोई से सामान समेटा और फिर चाय बना कर मैंने और जाहिरा ने पी। चाय पीने के बाद मैं उससे बोली- आओ एसी में सोने चलते हैं..
जाहिरा ड्रेस चेंज करने की कहना चाहती थी लेकिन कह ना पाई और खामोशी से मेरे साथ हमारे बेडरूम में आ गई।
हम दोनों कमरे में आए तो फैजान सो रहा था.. उसकी हल्के-हल्के खर्राटे कमरे में गूँज रहे थे।
लेकिन मुझे शक़ था कि वो सो नहीं रहा होगा.. लाजिमी है कि वो अपनी बहन के आने का इन्तजार कर रहा होगा।
कमरे में आकर मैंने दरवाजा बन्द किया और बिस्तर पर जाने की बजाए टॉयलेट में चली गई.. ताकि जाहिरा बिस्तर पर आराम से लेट सके और कुछ दिमाग की उलझन से मुक्त हो सके।
थोड़ी देर बाद मैं बाथरूम से बाहर निकली तो जाहिरा अपनी ही वाली तरफ को लेटी हुई थी। मैंने बिस्तर के क़रीब आकर उसे आगे को होने को कहा.. पहले तो वो चुप रही.. फिर आहिस्ता से अपने भैया की तरफ सरक़ गई।
मुझे खुशी इस बात की थी कि अगर वो कल रात जाग रही थी और उसे अपने भाई के हाथों से खुद के जिस्म को छूने का पता चला था.. तो उसके बावजूद भी उसने अपने भाई के साथ लेटना क़बूल कर लिया था। शायद उसे भी इस खेल में कुछ मज़ा आने लगा था।
ज़ाहिर है कि वो एक नौजवान झूबसूरत लड़की थी.. जिसे आज तक कभी भी किसी मर्द ने नहीं छुआ था और जब कोई उसे छू रहा था.. तो उसे उसका छूना अच्छा लग रहा था।
अब उसका बदन इस चीज़ को मानने के लिए तैयार नहीं था कि वो उसका भाई है.. तो यह गलत है।
लेकिन उसका दिमाग उसे अभी भी समझाता था.. जिसकी वजह से उसके अन्दर अभी भी थोड़ी झिझक बाकी थी।
दूसरी वजह उसकी उस झिझक का कारण मैं थी। उसके ख्याल में मुझे इन सब बातों कुछ भी इल्म नहीं था.. और अगर इल्म हो जाएगा.. तो ऐसा लगता था कि इस बात का मैं बहुत बुरा मान जाऊँगी.. कि वो मेरे शौहर के साथ जिस्मानी मजा लेना चाह रही है।
हालांकि उसे इस बात का इल्म नहीं था कि यह सारा गेम मेरा ही था.. जिस पर वो दोनों बहन-भाई ना चाहते हुए भी आगे बढ़ रहे थे और एक-दूसरे के क़रीब आते जा रहे थे.. बिना यह सोचे समझे कि यह एक गुनाह है.. और गलत बात है।
फैजान दूसरी तरफ मुँह करके लेटा हुआ था और जाहिरा बिल्कुल सीधी.. अपनी पीठ के बल लेटी हुई थी।
मैंने जाहिरा की तरफ करवट ली और उससे बातें करने लगी। हम दोनों ने बरमूडा ही पहना हुआ था और दूसरी तरफ फैजान ने भी अपना शॉर्ट्स पहन रखा था, हम दोनों की नंगी टाँगें एक-दूसरे से टच हो रही थीं।
मैंने अपनी टाँग ऊपर करके जाहिरा की टाँग पर रखी और उसकी टाँग को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाते हुए बोली- जाहिरा तुम्हारा जिस्म बहुत ही मुलायम है।
जाहिरा शरमाई और बोली- भाभी आप का भी तो ऐसा ही है..
मैं- जाहिरा जो भी लड़का तुम्हें हासिल करेगा ना.. वो बहुत ही लकी होगा..!
जाहिरा शर्मा कर बोली- क्या मतलब भाभी?
मैं- अरे तेरे जैसे खूबसूरत लड़की जिसको अपने नीचे लिटाने को मिलेगी.. उसकी तो समझो कि लॉटरी ही निकल पड़ेगी।
जाहिरा मेरी बात सुन कर शर्मा गई। मैं ऐसी बातें इसलिए कर रही थी ताकि अगर फैजान सो नहीं रहा है.. तो वो भी मेरी बातें सुन सके और मैं उसको उत्तेजित करने की लिए ऐसी बातें कर रही थी।
ऐसी उत्तेजित बातें करते समय मेरी खुद की चूत में रस निकलने लगा था।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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