एक भाई की वासना -17
(Ek Bhai Ki Vasna-17)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
जाहिर के जिस्म से चिपकी हुई उसकी चमड़ी के रंग की लेग्गी ऐसी ही लग रही थी.. जैसे कि उसकी चमड़ी ही हो। फैजान ने अपना हाथ आहिस्ता-आहिस्ता जाहिरा की जाँघों पर फिराना शुरू कर दिया और उसकी जाँघों को सहलाने लगा।
फैजान का हाथ नीचे उसके घुटनों तक जाता और फिर ऊपर को आ जाता। उसे अपनी बहन की जाँघों पर हाथ फेरने में शायद बहुत ही अच्छा लग रहा था।
मैंने भी महसूस किया कि वो थोड़ा सा ऊपर को उठा और उसने बहुत ही आहिस्ता से जाहिरा के गाल की तरफ अपनी मुँह कर बढ़ाया और उसके गोरे-गोरे गाल को चूम लिया।
अब आगे लुत्फ़ लें..
मैं यह सब कुछ अपनी अधखुली आँखों से देख रही थी। एक भाई को इस तरह से अपनी बहन के जिस्म से मजे लेते हुए और उसे किस करते हुए देख कर मेरी अपनी चूत भी गीली हो रही थी।
अब मेरा ख्वाहिश हो रही थी कि जल्दी से फैजान अपनी बहन की चूत को छुए लेकिन मुझे लग रहा था कि वो इस हद तक जाने से डर रहा है।
फैजान ने थोड़ा सा ऊपर होकर अब मेरी तरफ देखा और फिर उसका हाथ अपने पजामे की ऊपर से ही अपने खड़े हुए लंड पर चला गया। उसने अपने लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और आहिस्ता आहिस्ता अपने लंड को जाहिरा की रानों के साथ रगड़ने लगा।
मेरा दिल कर रहा था कि जल्दी से अपनी चूत को अपने हाथ से सहलाते हुए उसे ठंडा करना शुरू करूँ.. लेकिन मैं फैजान के सामने खुद को एक्सपोज़ करके उसे शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी कि उसे पता चले कि उसकी बीवी को पता चल गया है कि वो अपनी ही सग़ी बहन को इस तरह से छू रहा है।
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एक बात का मुझे थोड़ा-थोड़ा यक़ीन होता चला जा रहा था कि हो ना हो.. जाहिरा भी जाग रही है और अपने भाई के अपने जिस्म पर टच करने का मज़ा ले रही है।
वो भी शायद अपनी झिझक और शर्म की वजह से ही उसे रोक नहीं पा रही थी।
जब जाहिरा को अहसास हुआ कि उसका भाई हद से गुज़रता जा रहा है.. तो उसने इससे बचने के लिए एकदम अपना रुख़ बदला.. और मेरी तरफ करवट ले ली। अब उसने मेरे ऊपर अपनी बाँहें डाल लीं।
इस अचानक हुई हरकत से फैजान भी थोड़ा बौखला गया और फ़ौरन ही पीछे हट कर लेट गया।
लेकिन मुझे पता था कि इस वक़्त चुस्त लैगी में जाहिरा के खूबसूरत चूतड़ फैजान के बिल्कुल सामने होंगे और उसके लिए खुद को रोकना मुश्किल होगा।
उसे छूने से जैसे ही जाहिरा ने मुझे हग किया.. तो मुझे उसका नर्म ओ मुलायम जिस्म इस क़दर प्यारा लगा कि मैंने भी फ़ौरन ही उसे हग कर लिया और खुद भी उससे चिपक गई।
अब फैजान के लिए कुछ और कर पाना मुश्किल था.. शायद इसलिए उसने भी जल्दी से दूसरी तरफ करवट ले ली और जल्द ही सो गया।
अगले दिन जब मैं सुबह नाश्ता बना रही थी तो जाहिरा रसोई में आई।
मैंने ऐसे ही उसे तंग करने के लिए कहा- रात को कब सोई थी तुम?
मेरी बात सुन कर जाहिरा घबरा गई और थोड़ा हकलाकर बोली- भाभी… आपके साथ ही तो आँख लग गई थी मेरी.. कककक.. क्यों पूछ रही हो आप यह?
मैंने उसे आँख मारी और बोली- इसलिए पूछ रही हूँ कि तेरे भैया ने तुझे तो तंग नहीं किया रात को?
मेरी बात सुनते ही जाहिरा के चेहरे का रंग ही उड़ गया और उसकी आँखें फैल गईं।
फिर वो बोली- भाभी भला मुझे भैया क्यों तंग करेंगे?
मैं मुस्कराई और उसके गोरे-गोरे चिकने लाल होते हुए गाल पर एक चुटकी लेते हुए बोली- इसलिए तो मैंने तुझे दरम्यान में अपनी जगह पर सुलाया था.. मैं होती तेरी जगह.. तो सारी रात ही मुझे तंग करते रहते तेरे भैया..
जाहिरा कुछ सोच मैं डूबी हुई थी जैसे याद कर रही हो कि कैसे उसके भाई ने रात को उसके जिस्म को टच किया था।
मैंने उससे कहा- अरे किस सोच में डूब गई हो.. तैयारी करो.. कॉलेज नहीं जाना क्या?
मेरी बात सुन कर उसे तो जैसे मौका मिल गया तो वो फ़ौरन ही रसोई से भाग गई। नाश्ते की टेबल पर दोनों आए तो जाहिरा की नजरें आज भी नीचे को झुकी हुई थीं और हमेशा की तरह फैजान की नज़र उसके जिस्म पर ही बहक रही थी।
जाहिरा ने अपना कॉलेज का सफ़ेद यूनिफॉर्म पहना हुआ था और शर्ट के नीचे उसने ब्लैक ब्रेजियर पहन रखी थी। अभी उसने दुपट्टा नहीं लिया हुआ था।
जब वो उठ कर रसोई की तरफ गई तो फैजान की नज़र फ़ौरन ही उसकी पीछे गई उसकी बैक पर उसकी ब्लैक ब्रा की स्ट्रेप्स और हुक्स पर गई.. जो बिल्कुल साफ़ नज़र आ रही थी।
फैजान की प्यासी नजरें देख कर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। जब वो दोनों बाइक पर जाने लगे.. तो मैं हमेशा की तरह उन दोनों को सी-ऑफ करने की लिए गेट पर ही थी।
मैंने महसूस किया कि जाहिरा आज अपने भाई के पीछे बैठती हुई थोड़ा झिझक रही थी। ज़ाहिर है कि उसे याद आ गया था कि रात को उसका भाई उसके जिस्म को कैसे-कैसे छू रहा था।
मैं उन दोनों की हालत पर मुस्करा रही थी। फिर आख़िर जाहिरा फैजान के पीछे बैठे और दोनों निकल गए।
दोपहर को फैजान से पहले ही जाहिरा जल्दी कॉलेज से वापिस आ गई। आज मैंने सोच रखा था कि इसे इसके भाई की सामने कुछ और एक्सपोज़ करना है। इसलिए जैसे ही वो अपने कमरे में अपना यूनिफॉर्म चेंज करने की लिए जाने लगी.. तो मैंने उसको कहा- ठहरो.. मैं अभी आती हूँ।
मैं अपने कमरे में गई और उसके भाई का एक बरमूडा और अपनी एक स्लीबलैस टी-शर्ट उठा लाई और बोली- जाहिरा.. आज से तुम घर में यह भी पहना करोगी.. देखो ना कितनी गर्मी है..
जाहिरा ने हैरत से उस बरमूडा की तरफ देखा और बोली- भाभी मैं यह कैसे पहन सकती हूँ.. वो भी भैया की सामने।
मैं बोली- अरे इसमें शरमाने वाली कौन सी बात है.. देखो तो मैंने भी तो रात से यही पहना हुआ है और वैसे भी हमारे घर पर कौन से कोई मेहमान आते हैं जो हमें फिकर होगी।
जाहिरा- लेकिन.. भाभीईई..
मैं- लेकिन वेकिन कुछ नहीं.. बस मुझे नहीं पता.. अगर नहीं पहना ना मेरी मर्ज़ी के मुताबिक़.. तो इसे फेंक दो सोफे पर.. और अपनी मर्ज़ी का पहन लो जो पहनना है.. लेकिन फिर मुझसे बात ना करना तुम..
यह कह कर मैं मुड़ी और रसोई की तरफ बढ़ी।
मैंने भावुक होते हुए अपना तीर चलाया और मेरी उम्मीद के मुताबिक़ मेरा तीर लगा भी ठीक निशाने पर..
जाहिरा ने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर मुझे पीछे से हग कर लिया और अपनी बाँहें मेरे गले में डाल कर पीछे से अपना मुँह आगे लाते हुए मेरे गाल को किस किया और बोली- मैं अपनी प्यारी सी भाभी को कैसे नाराज़ कर सकती हूँ.. अरे भाभी तू कहे तो मैं कुछ भी नहीं पहनूंगी.. लेकिन तू मुझसे नाराज़ ना होना।
मैंने मुस्करा कर जाहिरा की बालों में हाथ फेरा और बोली- यह हुई ना मेरी प्यारी सी ननद वाली बात.. सच में जाहिरा तू तो बहुत ही प्यारी और मासूम है.. हाँ.. तू मेरी मासूम सी ननद है मेरी जान..
मैं दिल ही दिल में अपने शैतानी खेल पर मुस्कराती हुई रसोई में आ गई और जाहिरा चेंज करने के लिए अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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