एक भाई की वासना -15
(Ek Bhai Ki Vasna-15)
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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
जाहिरा बेबस होकर वहीं लेटी रह गई। लेकिन अब वह मेरे साथ और भी चिपक गई ताकि उसके भाई से उसका फासला हो जाए।
फिर मैंने जाहिरा को सीधी होते हुए महसूस किया। लेकिन अगले ही लम्हे मुझे अपनी कमर के पास फैजान का हाथ महसूस हुआ। मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई.. क्योंकि एक बार फिर से उसका हाथ अपनी बहन की चूचियों पर आ चुका हुआ था।
थोड़ी ही देर में मुझे जाहिरा की आवाज़ सुनाई दी- भाईजान… उठो जरा.. यह मैं हूँ.. भाभी नहीं हैं..
फिर मुझे फैजान की बौखलाई सी आवाज़ सुनाई दी- अरे तू यहाँ कैसे आ गई.. और तेरी भाभी कहाँ है?
जाहिरा आहिस्ता से बोली- भैया वो उधर चली गई हुई हैं।
फिर फैजान की आवाज़ आई- सॉरी जाहिरा.. मैं समझा था कि ताबिदा है।
इसके साथ ही फैजान ने दूसरी तरफ करवट ली और दोबारा से सोने लगा। लेकिन मैं जानती थी कि दोनों बहन-भाई को काफ़ी देर तक नींद आने वाली नहीं थी।
मुझे यह भी पता था कि अब कुछ और नहीं होगा.. इसलिए मैंने भी अपनी आँखें मूँदीं और सो गई।
अब आगे लुत्फ़ लें..
सुबह जब मेरी आँख खुलीं तो दोनों बहन-भाई पहले ही उठ चुके हुए थे। मैं भी उठ कर बाहर आई और नाश्ता तैयार करने लगी।
जब मैंने नाश्ता टेबल पर लगाया और दोनों बहन-भाई को बुलाया तो मैंने महसूस किया कि वो दोनों एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे।
जाहिरा के चेहरे पर शर्म की लाली थी.. उसकी नजरें शरम से नीचे झुकी हुई थीं और फैजान भी अपनी नजरें चुरा रहा था और शर्मिंदा सा लग रहा था।
थोड़ी ही देर में वो दोनों घर से चले गए।
फैजान दोपहर में ही घर आ गए, उनके दफ्तर में किसी कारण से छुट्टी हो गई थी..
कुछ देर बातचीत होने के बाद फैजान कमरे में आराम करने चले गए।
मैंने और जाहिरा ने भी इस गरम दोपहर में एसी में सोने का सोचा और मैं और जाहिरा बिस्तर पर आकर लेट गई पर मुझे नींद नहीं आने वाली थी तो मैंने फैजान की तरफ देखा, वो आँखें मूंदे लेटे हुए थे।
फिर मैंने जाहिरा की ओर देखा, उसकी आँखें भी बंद हो गई थीं। मुझे नहीं पता था कि वो सो रही है या जाग रही है लेकिन एक बात पक्का थी कि फैजान अभी तक जाग रहा था।
मैं भी आँख बन्द करके सोने का ड्रामा करने लगी..
तभी मैंने देखा कि फैजान ने अपना हाथ मेरे ऊपर से होता हुआ जाहिरा की नंगी बाज़ू के ऊपर रख दिया और आहिस्ता-आहिस्ता उसकी बाज़ू को सहलाने लगा।
मेरी पीठ फैजान की तरफ ही थी.. इसलिए मुझे उसका लंड अकड़ता हुआ महसूस हो रहा था.. जो कि मेरी गाण्ड में चुभ रहा था।
अचानक ही जाहिरा ने करवट बदली और दूसरी तरफ मुँह करके लेट गई। फैजान ने फ़ौरन ही अपना हाथ पीछे खींच लिया.. लेकिन ज्यादा देर तक फैजान खुद को ना रोक सका।
अब जाहिरा की कमर हमारी तरफ थी, उसकी शर्ट के नीचे पहनी हुई उसकी काली ब्रेजियर साफ़ नज़र आ रही थी।
थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद फैजान ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपनी एक उंगली जाहिरा की ब्रेजियर के हुक पर फेरने लगा।
यह सब देख कर मेरी चूत गीली होती जा रही थी।
फैजान जाहिरा की ब्रेजियर के हुक्स और स्ट्रेप्स पर अपनी ऊँगली फेरने लगा और धीरे-धीरे उनको महसूस कर रहा था।
फैजान का खड़ा हुआ लंड पीछे से मेरी गाण्ड में घुस रहा था। अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं फैजान को थोड़ा और तड़फाना चाहती थी और उसे यहीं तक ही रोक लेना चाहती थी इसलिए मैंने नींद का नाटक ही करते हुए करवट ली और फैजान से लिपट गई।
अब मैं फैजान को आवाज करते हुए चूमने लगी.. फैजान भी अब जल्दी से सीधा होकर सम्भल कर लेट गया।
तभी जाहिरा उठी और कमरे से बाहर निकल गई जिससे मुझे समझ आ गया कि ये भी जागते हुए ही फैजान का हाथ महसूस कर रही थी।
कुछ देर बाद में उठने के बाद मैं जब रसोई में गई तो जाहिरा भी वहीं थी।
मुझे देख कर बोली- भाभी यह आप कमरे में क्या हरकतें कर रही थीं?
मतलब अब वो ये जाहिर कर रही थी या शायद उसे नहीं मालूम था कि उसकी ब्रेजियर में कौन ऊँगली कर रहा था।
मैंने भी हँसते हुए उसकी बात को घुमा दिया और बोली- मैं कर रही थी या तुम्हारे भैया.. वो ही तो मुझे तंग कर रहे थे।
मैंने जानबूझ कर ऐसी बात बोली ताकि यह साफ़ हो सके कि वो किसके बारे में ये सब कह रही थी।
जाहिरा भी समझ गई और उसने भी बात को घुमाते हुए थोड़ा शरमाती हुए बोली- लेकिन आपको इतना शोर तो नहीं मचाना चाहिए था ना..
मैं हँसने लगी और अब मैंने भी बात को अपने ऊपर ही लेने के इरादे से कहा- यार तुझे क्या पता.. मियाँ-बीवी में इस तरह के खेल चलते ही रहते हैं.. ऐसे ना करो तो ज़िंदगी में मज़ा ही कहाँ आता है।
जाहिरा- लेकिन भाभी.. आपको कुछ तो ख्याल करना चाहिए ना..
मैं हंस कर बोली- यार तेरे भैया ने ख्याल करने का मौका ही नहीं दिया.. इसलिए तो मैं चिल्ला रही थी और तुझे अपनी मदद के लिए बुला रही थी.. लेकिन तूने भी आकर मेरी कोई मदद नहीं की और वैसे ही भाग गई।
जाहिरा शर्मा कर बोली- मैं भला क्या मदद कर सकती थी आपके.? आप दोनों मियां-बीवी का मामला है.. मैं क्यों बीच में रुकावट बनती।
हम दोनों हँसने लगे और फिर चाय बना कर रसोई से बाहर आ गए और हम तीनों चाय उसी बेडरूम में बैठ कर पीने लगे।
उस रात जब हम लोग सोने के लिए लेटे.. तो जल्दी ही फैजान ने दूसरी तरफ करवट ले ली और बोला- अब मैं सो रहा हूँ..
मैं भी खामोशी से जाहिरा की तरफ करवट लेकर लेट गई।
थोड़ी देर हम दोनों ने बातचीत की और फिर हमारी भी आँख लग गई। अभी मेरी आँख लग ही रही थी कि कुछ पलों के बाद.. मुझे थोड़ी सी हलचल अपने पीछे महसूस हुई।
उसी के साथ.. फैजान का बाज़ू मेरे ऊपर आ गया। मैंने अपनी आँखें थोड़ी सी खोलीं तो देखा कि फैजान आहिस्ता-आहिस्ता जाहिरा के कन्धों पर हाथ फेर रहा था।
मैं मन्द मन्द मुस्करा दी और उसकी हरकतों को देखने लगी, नींद तो मेरी फ़ौरन ही गायब हो गई।
फैजान का हाथ आहिस्ता आहिस्ता फिसलता हुआ जाहिरा के कंधे से नीचे को आने लगा। जैसे ही फैजान ने जाहिरा की चूची को छुआ.. मेरी चूत में एक करेंट सा दौड़ गया।
बहुत ही आहिस्ता से फैजान ने अपना हाथ जाहिरा की चूची पर रखा और कुछ देर तक अपना हाथ वैसे ही पड़ा रहने दिया। जब उसने देखा कि जाहिरा के जिस्म में कोई हरकत नहीं हुई.. तो उसे यक़ीन हो गया कि वो सो रही है।
फैजान ने आहिस्ता आहिस्ता अपने हाथ को हरकत देते हुए अपनी बहन जाहिरा की चूची को सहलाना शुरू कर दिया।
मेरी चूत यह मंज़र देख कर गीली होती जा रही थी कि एक भाई अपनी सोई हुई बहन की चूचियों को सहला रहा है।
मैं देख रही थी कि फैजान अपने पूरे हाथ में उसका पूरे का पूरा चीकू ले लिया और अब वो आहिस्ता-आहिस्ता उसे दबा रहा था।
जाहिरा की छोटी सी चूची उसकी मुठ्ठी में आराम से पूरी आ रही थी.. लेकिन जाहिरा को शायद कोई होश नहीं था.. क्योंकि वो सोई हुई थी।
थोड़ी देर में फैजान का हाथ थोड़ा सा ऊपर को गया और उसने अपना हाथ जाहिरा के सीने के नंगे हिस्से पर रख दिया और अपनी उंगली आहिस्ता आहिस्ता उसकी नंगी छाती पर गले के नीचे फेरने लगा।
मेरे पीछे फैजान अपनी कोहनी के बल उठ चुका हुआ था और बड़े आराम से अपनी बहन की चूचियों और जिस्म पर हाथ फेर रहा था।
कभी उसके हाथ अपनी बहन की चूचियों को सहलाने लगते और कभी उसके पेट के ऊपर हाथ फेरने लगता। फिर फैजान ने थोड़ा सा और ऊपर होकर मेरे ऊपर से झुकते हुए अपनी बहन के गाल पर एक किस कर ली, हाथ तो फैजान अपनी बहन की चूचियों और जिस्म पर घूम रहा था लेकिन वो अपना लंड मेरे अन्दर ठोकता जा रहा था।
मुझे भी इससे मज़ा ही आ रहा था।
वैसे भी पिछले कुछ रोज़ से मैं फैजान के साथ छेड़-छाड़ करके उसे उत्तेजित तो कर ही देती थी.. लेकिन उसे अपनी चूत दिए हुए मुझे 15 दिन से ऊपर हो चुके थे, इसलिए भी वो इतना बेक़ाबू हो रहा था।
जाहिरा की चूची दबाते दबाते शायद फैजान ने जज़्बाती होकर कुछ ज्यादा ही मसक दिया था.. जिसकी वजह से जाहिरा थोड़ा सा कसमासाई और फिर उसने मेरी तरफ करवट ले ली।
जैसे ही जाहिरा हिली तो फैजान ने फ़ौरन ही अपना हाथ पीछे खींच लिया और दूसरी तरफ मुँह कर करते हुए लेट गया।
तभी मैंने अपनी आँखें हल्की सी खोल कर देखा तो देखा कि जाहिरा ने आहिस्ता आहिस्ता अपनी आँखें पूरी खोल ली हैं और मेरी तरफ देख रही है।
फिर उसने थोड़ा सा ऊपर होकर अपने भाई की तरफ देखा और धीरे से मुस्करा कर फिर लेट गई, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी और आँखें खुली हुई थीं।
मैं दिल ही दिल मैं सोच रही थी कि क्या जाहिरा को भी पता था कि उसका भाई उसकी चूचियों को दबा रहा है।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
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