एक भाई की वासना -12
(Ek Bhai Ki Vasna-12)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left एक भाई की वासना -11
-
keyboard_arrow_right एक भाई की वासना -13
-
View all stories in series
सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
अन्दर से मैं बहुत उत्सुक थी कि देखूँ कि फैजान अपनी बहन के लिए किस किस्म की ब्रा सिलेक्ट करके लाया है।
अगले दिन जाहिरा घर पर ही थी तो फैजान के जाने के बाद मैंने वो शॉपिंग बैग उठाया और बाहर आ गई। जहाँ पर जाहिरा बैठी टीवी देख रही थी।
मेरे हाथ मैं नया शॉपिंग बैग देख कर खुश होती हुए बोली- वाउ भाभी.. शॉपिंग करके आई हो.. कब गई थीं आप.. और क्या लाई हो.. दिखाओ मुझे भी?
मैं मुस्करा कर बोली- नहीं यार मैं तो नहीं गई थी.. कुछ चीजें तुम्हारे भैया से ही मँगवाई हैं और वो भी तुम्हारे लिए..
मैं अब जाहिरा के पास ही बैठ चुकी थी और उसका भी पूरा ध्यान अब मेरी तरफ ही था।
जाहिरा- अरे भाभी मेरे लिए क्या मंगवा लिया है.. दिखाओ ना मुझे भी?
मैंने बैग मैं से चारों बॉक्स निकाल कर बाहर टेबल पर हम दोनों की सामने रख दिए। बॉक्स पर ब्रा पहने हुई मॉडल्स की फोटो थीं.. जिनको देखते ही जाहिरा चौंक उठी।
अब आगे लुत्फ़ लें..
जाहिरा- भाभी यह क्या है?
मैं- अरे यार तुम्हारे लिए कुछ नई ब्रा मँगवाई हैं मेरा तो मार्केट में चक्कर लग ही नहीं पा रहा था.. इसलिए तुम्हारे भैया से ही कहा था कि ला दो.. आओ खोल कर देखते हैं कि तुम्हारे भैया कैसी डिज़ाइन्स लाए हैं अपनी बहना के लिए।
मेरी बात सुन कर जाहिरा का चेहरा शरम से सुर्ख हो गया.. वो झेंपती हुई बोली- भाभी.. आपको भैया से मंगवाने की क्या ज़रूरत थी.. पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचते होंगे..
मैं मुस्कराई और बोली- अरे इसमें ऐसी कौन सी बात है.. मेरे लिए भी तो खरीद कर ले ही आते हैं ना वो.. तो तुम्हारे लिए ले आए.. तो कौन सी गलत बात हो गई है यार..
मैंने सब लिफ़ाफ़े खोले और उनमें से ब्रा निकाल कर देखने लगी।
उनमें से 2 तो कढ़ाई वाली थीं.. बहुत ही खूबसूरत डिज़ाइन की महंगी वाली ब्रा.. जिनमें से एक ब्लैक और दूसरी स्किन कलर की थी। तीसरी ब्रेजियर नेट वाली थी.. जिसको पहनने पर सब कुछ नज़र आता था। चौथी वाली ब्रा हाफ कप वाली थी.. जिसकी स्ट्रेप पारदर्शी प्लास्टिक की थीं।
मैंने एक-एक ब्रा खोल कर जाहिरा के हाथ में दीं और बोली- यार तेरे भैया बहुत ही सेक्सी ब्रा लाए हैं तुम्हारे लिए।
जाहिरा उन सभी ब्रा को हाथों में लेकर देख भी रही थी और शरम से लाल भी हो रही थी।
मैं- अरे यार इस नेट वाली में तो तुम्हारी चूचियाँ बिल्कुल ही नंगी ही रह जाएंगी।
मैंने हँसते हुए कहा।
जाहिरा शर्मा कर मुझे जवाब देते हुए बोली- भाभी आपके पास भी तो हैं ना.. नेट वाली ब्रा.. आप भी तो पहनती हो ना..
मैं फ़ौरन बोली- मेरी पहनी हुई नेट वाली ब्रा तो तुम्हारे भैया को दिखाने के लिए होती है.. तुमको भी क्या यह पहन कर अपने भैया को दिखाना है।
मेरी इस बात पर तो जाहिरा उछल ही पड़ी और बोली- भाभी कैसी बातें करती हो आप.. मैं क्यों पहन कर दिखाऊँगी भैया को?
उसका चेहरा शरम से सुर्ख हो गया।
मैं मुस्करा कर बोली- वैसे उसने लाकर तो तुमको इसलिए दी है ना.. शायद तुम्हारे भैया तुमको इसमें देखना चाहते ही हों..
जाहिरा बोली- भाभी क़सम से.. आप बहुत खराब बातें करती हो।
मैं भी उसके साथ मिल कर हँसने लगी।
फिर जाहिरा वो बैग लेकर अपने कमरे में चली गई.. मैंने भी उसे कोई इसरार नहीं किया कि वो मुझे नई ब्रा पहन कर दिखाए।
शाम को फैजान घर आया तो आज भी हमेशा की तरह उसकी नज़रें अपनी बहन की चूचियों पर ही थीं.. जैसे अब वो यह जानना चाहता हो कि उसने नई ब्रा पहनी है कि नहीं।
मैंने महसूस किया कि अपने भाई की नज़रों को फील करके जाहिरा भी थोड़ा शर्मा रही थी और मैं उन दोनों भाई-बहन की दशा का मजा ले रही थी।
फैजान की अपनी बहन पर तांक-झाँक ऐसे ही चलती रहती थी। गर्मी का मौसम चल रहा था और हमने काफ़ी महीनों से ही एसी लगवाने के लिए पैसे इकठ्ठे करने शुरू किए हुए थे।
अब जाकर हमारे पास इतने पैसे हुए थे कि हम एक एसी लगवा सकें.. तो फिर आख़िरकार हमने अपने बेडरूम में एसी लगवा ही लिया। उस रोज़ हम लोग बहुत खुश थे.. आख़िर हम जैसे मिडिल क्लास के लिए एसी का लग जाना भी एक बहुत बड़ी बात थी।
रात को मैं और फैजान अब एसी में सोने लगे।
लेकिन जल्दी ही मुझे और फैजान को जाहिरा का ख्याल आया।
मैं- फैजान.. यार यह बात तो ठीक नहीं है कि हम लोग तो एसी चलाकर सो जाते हैं और उधर जाहिरा गर्मी में ही सोती है।
फैजान- हाँ.. कहती तो तुम ठीक हो लेकिन अब कैसे करूँ..? हमारा कमरा भी इतना बड़ा नहीं था कि उसमें कोई और बिस्तर लगाया जा सके और ना ही उसमें कोई भी और सोफा वगैरह ही पड़ा हुआ था।
काफ़ी सोच विचार के बाद मेरे शैतानी दिमाग ने एक अनोखा आइडिया दिया जिससे मेरा काम भी आगे बढ़ने की उम्मीद थी।
मैं फैजान से बोली- फैजान एक बात हो सकती है कि हम जाहिरा को अपने साथ ही बिस्तर पर सुला लें।
फैजान चौंक कर बोला- लेकिन यह कैसे हो सकता है.. इस तरह तो हमारी प्राइवेसी खत्म हो जाएगी यार.. और कैसे हम उसे अपने बिस्तर पर सुला सकते हैं?
मैं- यार कोई परेशानी नहीं होगी.. बस मैं बीच में लेट जाया करूँगी.. इसमें कौन सी कोई दिक्कत है यार.. बस उसे आज इधर ही सोने का कह देते हैं। इस तरह गर्मी में उसको सुलाना तो ठीक नहीं है ना..
फैजान मेरा फ़ैसला सुन कर खामोश हो गया और कुछ सोचने लगा।
शाम को खाने के वक़्त हमने जाहिरा को यह बता दिया। उसने बहुत इन्कार किया.. लेकिन मैंने उसकी कोई भी बात सुनने से इन्कार कर दिया और आख़िर जाहिरा को मेरी बात माननी ही पड़ी।
रात हुई तो मैं और फैजान अपने कमरे में आकर लेट गए.. एसी चल रहा था और कमरा काफी ठंडा हो रहा था।
थोड़ी देर तक पढ़ने के बाद जाहिरा भी आ गई.. मैंने कमरे में जलता हुआ नाईट बल्व भी बंद कर दिया और अब कमरे में घुप्प अँधेरा था। कमरे में सिर्फ़ एसी की जगमगाते हुए नंबर्स की ही रोशनी हो रही थी।
जाहिरा हमारे बिस्तर के पास आई तो मैंने थोड़ा सा और फैजान की तरफ सरक़ कर जाहिरा के लिए और भी जगह बनाई और वो झिझकते हुए मेरे साथ लेट गई।
अब मेरी एक तरफ मेरा शौहर सो रहा था और दूसरी तरफ उसकी बहन.. यानि मैं दोनों बहन-भाई के दरम्यान लेटी हुई थी।
फैजान की आदत थी कि वो मेरे साथ चिपक कर मुझे अपनी बाँहों में समेट कर सोता था।
अब जब जाहिरा कमरे में आई तो फैजान सो चुका हुआ था और मेरी करवट दूसरी तरफ थी.. लेकिन वो पीछे से मुझे चिपका हुआ था।
जैसे ही जाहिरा की नज़र हम दोनों पर इस हालत में पड़ी.. तो उसके चेहरे पर एक शर्मीली सी मुस्कराहट फैल गई।
मैं भी उसकी तरफ देख कर मुस्कराई और उसे चुप करके अपने पास लेटने का इशारा किया। वो खामोशी से मेरे साथ सीधी ही लेट गई।
मैंने आहिस्ता से उसके कान में कहा- अरे यार कुछ फील ना करना.. तुम्हारे भैया की मेरे साथ ऐसे ही चिपक कर सोने की आदत है.. बहुत चिपकू हैं तेरे भैया..
मेरी बात सुन कर जाहिरा भी मुस्कराने लगी। मैंने अपनी बाज़ू उठाई और जाहिरा के पेट पर रख कर उसे एक झटके से थोड़ा और अपनी करीब खींच लिया।
इस तरह वो मेरे साथ चिपक गई थी लेकिन साथ ही फैजान का हाथ भी उसके जिस्म से टच हो रहा था।
फैजान तो सो रहा था.. लेकिन उसकी बहन को ज़रूर उसके हाथ अपनी कमर की साइड पर महसूस हो रहा था.. जिसकी वजह से वो थोड़ा सा बैचेन सी हो रही थी। लेकिन फिर भी वो आराम से लेटी रही.. क्योंकि मैंने उसके जिस्म पर से अपना हाथ नहीं हटाया था।
अब पोजीशन यह थी कि फैजान मेरे साथ चिपका हुआ था और मैं उसकी बहन के साथ चिपक कर सोने लगी थी।
मैंने आहिस्ता से दोबारा उसके कान के क़रीब अपनी होंठ लिए. जाकर कहा- शर्मा क्यों रही हो.. कल को तुम्हें भी तो ऐसी ही सोना है ना..
जाहिरा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा तो मैंने उसके गोरे-गोरे गाल की एक पप्पी ली और बोली- हाँ.. तो क्या तुम अपने शौहर के साथ चिपक कर नहीं सोया करोगी क्या?
मेरी बात सुन कर जाहिरा शर्मा गई और अपनी आँखें बंद कर लीं।
एसी की ठंडी-ठंडी हवा में कुछ ही देर में हम सबकी आँख लग गई। मैंने भी करवट ली और अपने शौहर के साथ चिपक कर एक बाज़ू उसकी ऊपर डाल कर सो गई।
आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments