चाची और चचेरी बहन के साथ अधूरा सेक्स

(Chachi Aur chacheri Bahan Ke Sath Adhura Sex)

अन्तर्वासना के पाठकों को मेरा नमस्कार।
मैं रोहित बिहार का रहने वाला हूँ। इस कहानी के माध्यम से आज पहली बार अपनी आपबीती आप सब के सामने रख रहा हूँ। प्रथम प्रयास है तो गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
ये और मेरे द्वारा आगे लिखी जाने वाली सारी कहानी बिल्कुल वास्तविक है जो मेरे साथ घटित हुई।

मैं 30 वर्ष का जोशीला और फिट युवक हूँ जिसकी दुनिया में बस चुदाई ही सर्वोपरि है। वैसे तो मुझे लड़की देखते ही कुछ होने लगता है परंतु बलखाती लड़कियों और महिलाओं की गांड का मैं दीवाना हूँ। मैं चुदाई करने का बहुत शौकीन हूँ और बिस्तर में नित्य नए प्रयोग करना, गंदी बातें करना मुझे बहुत उत्तेजित करता है।
मेरा मानना है कि लड़की या महिला की आप कितनी भी इज्जत क्यों ना करें परंतु उनकी चुदाई रंडी जैसी ही करनी चाहिए तभी आपको और आपकी बुर संगिनी को उत्तेजना की पराकाष्ठा का अनुभव होता है।

आप सब से गुजारिश है कि कहानी पढ़ने से पहले कृपया नंगे होकर अपने अपने लंड को पकड़ ले और लड़कियां अपनी बुर में उंगली डाल लें क्योंकि बस इतना लिखने में ही मेरा 7 इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लौड़ा फड़फड़ा रहा है।

मेरी चुदाई यात्रा बहुत लंबी रही है जो अब तक नित्य नए पड़ावों पर मुझे ले जाती है।
शुरुआत प्रथम चुदाई का आगाज कैसे हुआ इस आपबीती में आपके सामने रख रहा हूँ।
मैं रोहित बिहार के एक मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखता हूँ। परिवार में माँ, पापा और एक बड़ी बहन हैं।

बात उस समय की है जब मैं 12वीं की परीक्षा के बाद परिणाम का इंतजार कर रहा था। इसी बीच मेरे दादा जी हमें छोड़ के चले गये। जिस वजह से मुझे अपने परिवार के साथ 15 दिन के लिए अपने गांव जाना पड़ा।
चूँकि मेरा पैतृक परिवार काफी बड़ा है जिसमें 5 चाचा, 5 चाची और उनके बच्चे हैं तो गांव का घर सब के लिए पर्याप्त नहीं था। इस वजह से सबके सोने का प्रबंध जैसे तैसे कर दिया गया और मेरी किस्मत देखिये, यही सोने की व्यवस्था मुझे मेरे प्रथम चुदाई तक ले आई।
मेरे सोने का प्रबंध मेरी 5वें चाचा के कमरे में किया गया, जहाँ बिस्तर काफी बड़ा था। मैं काफी उत्तेजित था इस बात को लेकर क्योंकि मेरी इन चाची, जिनका नाम निम्मी था, शानदार जिस्म की मल्लिका थी.

उस समय तक मुझे उनके जिस्म का आकार पता नहीं था. उनकी शादी को बस 2 साल हुए थे और उनकी एक 1 साल की बेटी थी। मेरी निम्मी पे मेरी निगाह उनको पहली बार देखने के बाद से ही थी। जवानी में कदम रखा ही था मैंने तो सोचता था कि काश चाची मिल जायें और उनके मखमली चूसते हुए चाची की चुदाई करके चूत की धज्जियां उड़ा दूँ।
खैर रात हुई सब सोने को अपनी अपनी जगह पे आ गए और मैं चाची के कमरे में लेट गया।

30 मिनट बाद चाची और चाचा कमरे में आये और मेरे बगल में लेट गए एवं अपनी दिनचर्या पर बात करने लगे। ऐसा इसलिये क्योंकि मैंने उनके सामने सोने का नाटक कर रखा था और वैसे भी वो लोग मुझे अब तक बच्चा ही समझते थे, उन्हें क्या पता कि मौका मिले तो निम्मी को ऐसा चोदता कि वो अपने पति को भी भूल जाती।

खैर वो दोनों अपनी बात में लगे हुए थे और चूँकि चाची मेरे और चाचा के बीच में थी तो मैं उनकी मदमस्त गांड को देख कर अपने लंड को काबू करने की कोशिश में लगा था। इसी उहापोह में मुझे नींद आ गयी।
सुबह जब आंख खुली तो लगभग अंधेरा ही था, मैं बिस्तर छोड़ के उठने ही वाला था कि मेरे चेहरे से कुछ टकराया। मेरे पलट के देखने पर तो मेरे होश ही उड़ गए, धड़कन तेज चलने लगी और मेरा लौड़ा निक्कर फाड़ने को उतारू होने लग पड़ा।

आप सोच रहे होंगे कि ऐसा मैंने क्या देख लिया, तो मेरी बुर की मल्लिकाओं हुआ ये कि रात को सोते वक्त चाची ने अपना पैर मेरे सर तरफ कर लिया था और शायद रात की चुदाई के बाद वो मुझे नोटिस करना भूल गई और ऐसे ही सो गई। अब मैं ये आज तक नहीं समझ पाया कि निम्मी ने वैसे ही लेटने का निर्णय जानबूझ कर लिया था या ये एक गलती थी। खैर जो भी हो मुझे तो सुबह सुबह खजाना मिल गया था।
मेरी हुस्न की मल्लिका निम्मी बिल्कुल सीधी लेटी हुई थी और उसके तन पर कपड़े के नाम पर बस एक साड़ी थी जिसे उसने चादर समझ बस ओढ़ रखा था। चूंकि उनके पैर मेरी तरफ थे तो स्वतः निगाह उनकी नंगी सुडौल जाँघ उसके ऊपर हल्की झांटों से घिरी बुर जो रात की चुदाई की कहानी बयां कर रही थी, उनका सपाट पेट उस पे अति मनमोहक नाभि और ऊपर दो पहाड़ जैसे चुचों पर टिक गई।

निम्मी चाची बेसुध हो कर सो रही थी और उनकी साँसों के साथ उठता उनके चुचे मुझे मजबूर कर रहे थे कि इनको अभी मसल के बुर में अपना लौड़ा पेल दूँ। मेरे चाचा कमरे में कही दिखाई नहीं दिए, इससे मेरी थोड़ी हिम्मत बढ़ गई और मैंने हल्के हाथों से निम्मी की उस दूधिया जांघों को सहला दिया जिससे निम्मी के शरीर में थोड़ी हलचल हुई तो मैंने रिस्क लेना उचित नहीं समझा और वहां से उठ के बाहर नित्य क्रिया के लिए चला गया.

मेरे मन में जिज्ञासा और डर एक साथ घर बना बैठे थे।

किसी तरह दिन कटा, फिर उत्तेजना के साथ बिस्तर पर पंहुचा, थोड़ी देर में सो गया और सुबह उठा तो कल की तरह मेरी निम्मी बेसुध नंगी साड़ीनुमा चादर में लिपटी मेरे सामने, उसकी चूत से अजीब से खुशबू आ रही थी जो मुझे पागल बना रही थी लेकिन मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था तो उठ के बाहर आ गया।
पर इन सबसे मुझे इतना जरूर पता लग गया कि मेरी निम्मी चाची के चुचे 36, कमर 30 और गांड 36 की रही होगी लगभग।

बाकी के दिन भी इसी तरह निकल गए और हम (मैं, माँ, पापा और दीदी) वापस घर आ गए।
धीरे धीरे मैं ये सब भूल कर अपने काम में लग गया।

पर शायद मेरी किस्मत में चूत लिखी हुई थी। वैसे भी लड़की कोई भी हो, मुझे तो बस चुदाई से मतलब होता है।
थोड़े दिनों बाद मेरे घर मेरे चौथे नंबर के चाचा की बेटी आस्था जो बस 18 साल की कमसिन कली थी। उसकी खूबसूरती या यूँ कहें कि उसकी जवानी देख कर शायद वक़्त भी थम जाए, मेरे घर आई कुछ दिनों के लिए। उसे छोड़ने उसके पापा यानि मेरे चाचा आये थे जो शाम तक वापस चले गए।

मुझे बाद में माँ से पता लगा कि वो अपने पढाई से सम्बन्धित किसी काम के लिए शहर आई थी।

हम सब उससे मिल के बहुत खुश हुए, बातचीत हुई, फिर रात का खाना खाकर सोने का प्रबंध कुछ इस प्रकार हुआ कि मम्मी पापा अपने कमरे में और दूसरे कमरे में मैं, दीदी और आस्था।
आस्था की कोरी जवानी देख कर बस एक ही मन कर रहा थी कि सब भूल के उससे चोदता रहूं हमेशा!
वो थी ही इतनी कटीली।
आह क्या चुचे थे उसके टाइट टीशर्ट से बाहर आने को बेताब लगभग 33 इंच के, पतली कमर, 24 की सपाट पेट, 34-35 इंच की गांड, सुडौल जाँघें, लम्बी टांगें… कुल मिला कर चुदाई देवी कह सकते हैं उसको।

पर वो थी बहुत शांत, बिना कुछ पूछे कभी मुंह तक नहीं खोलती।

खैर, बिस्तर के एक कोने पर मैं, बीच में आस्था और दूसरे किनारे पर मेरी बहन ने जगह ले ली। चूँकि हम सब भाई बहन थे को किसी को किसी अनहोनी की गुंजाइश नहीं थी.
पर उन्हें क्या पता कि अपनी बहन का रखवाला ही अपना लौड़ा हिला रहा है बहन को देख कर।

हमारे बीच थोड़ी बहुत बात हुई और सब सोने चल दिये लेकिन मेरा दिमाग तो बस आस्था की कोरी पहाड़ जैसी गांड पर ही टिका था। मैं असमंजस में था कि क्या करूं! कुछ ना करूँ तो निम्मी की तरह आस्था भी हाथ से निकल जाती।
बस यही सोच कर मैंने एक मौका लेना ही उचित समझा। मैं आस्था की तरफ घूम गया और उसकी नंगी कमर जो सोने की वजह से उसके टॉप के ऊपर उठ जाने की वजह से दिख रही थी उस पे हल्के हाथों से स्पर्श करने लगा।

कोई हरकत ना देख मैंने हिम्मत करके अपना हाथ आस्था की चुचियों पर रख उसे सहलाने लगा।
आह… मैं बता नहीं सकता उस समय मैं क्या महसूस कर रहा था। मेरा लौड़ा फटने को तैयार था। मैं अपना लौड़ा निक्कर से बाहर निकाल कर एक हाथ से सहलाने लगा और दूसरे हाथ से आस्था की चुचियों को थोड़ा जोर से दबाने लगा, सोचा अगर पकड़ा गया तो कोई बहाना बना दूंगा।

भाई अब बुर पाने के लिए थोड़ा रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।

इन सबकी वजह से मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ गई कि मैंने जोश में अपना हाथ आस्था की टॉप में डाल दिया। वहाँ मेरे लिए एक और सरप्राइज था। आस्था ने ब्रा नहीं पहनी थी वो रात को नहीं पहनती थी ये मुझे उसने बाद में बताया।
खैर ब्रा ना होने की वजह मेरा हाथ सीधे मेरी बहन की सख्त चुचियों पर आ गया और मैं उसे जन्नत समझ के मसलने लगा। मेरा दूसरा हाथ लंड पे अपना काम कर रहा था.

और मैं झड़ने ही वाला था कि किसी ने मेरा दूसरा हाथ जो आस्था की चुचियों पर था उसे पकड़ लिया।
डर से तो मेरी गांड फट गयी और लौड़ा भी सिकुड़ गया। दिमाग में हजारों ख्याल आने लग गये की अब क्या होगा। मैंने हिम्मत करके देखा तो देखता हूँ आस्था लगभग अपनी जगह पर बैठी हुई है और मेरे तरफ आश्चर्य से देख रही है, वो कभी मेरे चेहरे को तो कभी मेरे लंड को देख रही थी।

मैंने बस चुपचाप उसके अगले कदम का इंतजार करना ही उचित समझा। तभी आस्था ने मेरा हाथ अपने टॉप से बाहर निकाला और उठ के बाथरूम की तरफ चली गईं जो कि बाहर हाल में था।
मैं बस अपनी सांस रोके ‘अब आगे क्या फजीहत होगी’ यही सोच रहा था कि तभी आस्था कमरे के गेट पर आई और मुझे बाहर आने का इशारा किया।

मरता क्या ना करता, मैं उठा और उसके पीछे चल दिया।

वो छत की तरफ जाने लगी और मेरा छिछोरापन दिखिये इस स्थिति में भी मैं आगे चलती आस्था की मोटी गांड की थिरकन देख उत्तेजित हो रहा था।
हम छत पर पहुँचे और जाते ही उसने मुझसे पहला सवाल किया- भैया ये आप क्या कर रहे थे?
जैसा मैंने पहले बताया आस्था शायद इस दुनिया से परे थी, बेहद शांत, पढ़ाकू तो शायद उसे इन सब का ज्यादा ज्ञान नहीं था।
मैं- कुछ नहीं बस…
आस्था- भैया बताओ ना, आप क्या कर रहे थे?
मैं- सॉरी आस्था मैं बहक गया था। तुझे देख के खुद को कंट्रोल नहीं कर पाया और तेरे टॉप में हाथ डाल दिया।
इसके बाद उसने जो कहा उसकी मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी।
आस्था- भैया मुझे नहीं पता ये सब क्यों करते है पर इतना पता है कि इसमें मजा बहुत आता है।

मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जो लड़की बिना टोके कुछ बोलती ना हो उसके मुँह से ऐसी बात मेरे लिए चौकाने वाली थी साथ ही एक उम्मीद की किरण भी दिख रही थी मुझे मेरे लंड केलिए।
मैं- ये तुझे कैसे पता?
आस्था- पिछले कई सालों से मैं पापा और मम्मी को ये सब करते देखती हूँ क्योंकि वो अब तक मुझे अपने साथ ही सुलाते हैं अलग बिस्तर पर। मैं रोज देखती हूँ कि पापा और मम्मी कपड़े उतार एक दूसरे के साथ ऐसा ही करते हैं और फिर बहुत खुश होते हैं।

मैं- ऐसा क्या देख लिया तूने?
आस्था- भैया, पापा और मम्मी रोज कपड़े उतार के चुम्मा लेते हैं, फिर पापा मम्मी की छाती चूसते हैं, फिर जांघों के बीच में कुछ करते हैं, फिर मम्मी पापा का नूनू मुँह में लेती है उसके बाद अलग अलग तरीके से एक दूसरे पर चढ़ के हिलते रहते है बहुत देर तक। मैं देखती हूँ कि मम्मी इस सब से बहुत खुश होती हैं।

मैं- आस्था उसे छाती नहीं चूची कहते है और पापा मम्मी की जांघ के बीच बैठ कर उनकी चूत चाटते है फिर मम्मी पापा का लौड़ा जिसे तू नूनू कह रही है उसे चूसती है, फिर पापा मम्मी की चूत में लंड डाल कर चुदाई करते हैं इसलिए दोनों खुश होते हैं।
आस्था- भैया मुझे भी ऐसे ही करना है, मुझे भी मजे लेने हैं, मैं जब भी पापा मम्मी को ऐसा करते देखती हूँ तो मेरे नीचे गीला हो जाता है और मैं बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाती हूँ।
मैं- वो इसलिए कि तू अब बड़ी हो गई है और तुझे भी चुदाई करने का मन करता है।
आस्था- भैया ये सब मुझे नहीं पता, बस मुझे भी मम्मी की तरह करना है।

मैं- लेकिन तू किसी से ये बात बताएगी तो नहीं?
मैं सोच रहा था कि आस्था के माँ बाप की अनजाने में कई गयी गलती ने उनकी बेटी यहाँ पहुँचा दिया और मुझे एक कोरी चूत मिल गयी.
आस्था- नहीं भैया कभी नहीं, ये बात बस हम दोनों के बीच रहेगी। देखो ना अभी मेरे नीचे गीला हो रहा है।
मैं- कहाँ, दिखा तो सही?
आस्था- भैया यहाँ कैसे दिखाऊँ? यहाँ तो बैठ भी नहीं पाऊँगी।
मैं- कोई बात नहीं, मैं तेरी पैंटी में हाथ डाल कर चेक कर लेता हूँ।
आस्था- ठीक है भैया, आप चेक कर लो।

मैं- तब तक तू भी मेरा लौड़ा हाथ से सहला, जैसे मम्मी पापा का लंड से खेलती है। और एक बात आज से जब हम अकेले रहेंगें तो तू मुझे जानू बुलायेगी। जैसा मैं कहूँ, वैसा करेगी।

फिर मैंने आस्था को अच्छे से तैयार किया कि किस अंग को क्या कहते है वो इसलिये क्योंकि मुझे बिस्तर में लड़की बस एक रंडी दिखती है तभी तो चुदाई का मजा आता है।
आस्था- ठीक है भैया, सॉरी जानू।
फिर मैंने अपना निक्कर उतार के लंड बाहर निकल के आस्था के हाथ में दे दिया जिसे बड़े आश्चर्य भाव से देख रही थी।
मैं- क्या हुआ? अच्छा नहीं लगा?
आस्था- नहीं जानू, बस पहली बार कोई लौड़ा इतने करीब से देखा है। पापा का तो अंधेरे में ठीक से कभी देखा नहीं।

मैं- अच्छा लगा तुझे?
आस्था- हाँ जानू।
मैं- तुझे अभी चुदाई के बारे में बहुत कुछ सीखना है।
आस्था- तो सिखाओ ना जानू, आपका लौड़ा पकड़ के खड़ी हूँ जो सिखाना है, सिखाओ।

मैं- चल अब अपनी कैपरी और पैंटी उतार।
आस्था- लेकिन यहाँ कैसे जानू, खड़े होके कैसे करूँ?
मैं- अच्छा घुटनों तक नीचे कर ले।
आस्था- आप खुद कर लो ना, मुझे अच्छा लगेगा।

फिर मैंने आस्था की कैपरी और पैंटी उसके घुटनों तक कर दी। उसकी बुर देख के तो मैं अपना आपा ही खो बैठा। क्या चूत थी! बिल्कुल गुलाबी… झांटों से घिरी।
बहुत सी चूत चोदी हैं मैंने… पर आस्था की कुंवारी बुर की बात ही कुछ और थी।

मैं झट से नीचे बैठा और उसकी बुर के पट खोल के एक चुम्मा रसीद कर दिया जिससे आस्था सनसना गयी और उसके मुँह से बस इतना निकला “आह…जानू”
मैंने सर उठा के देखा तो उसकी आँखें बंद थी और सांस धौकनी की तरह चल रही थी।

दोस्तो, मैं चुदाई से पहले जम के चूत चाटता हूँ पर यहाँ छत पर खड़े खड़े ऐसा करना संभव नहीं था तो मैंने सोचा अभी जो मिल रहा है उसी से संतुष्टि कर लूँ।
मैं खड़ा हुआ और आस्था के गले में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींचा और उसके गर्म होठों पर अपने होंठ रख के चूसने लगा और एक हाथ से उसकी बुर को सहलाने लगा। पहले उसके भग्नासे के साथ जी भर खेला फिर एक उंगली उसकी चूत में डालने की कोशिश की जो असफल रही क्योंकि आस्था दर्द से लगभग चीख पड़ी।

मेरे लंड का आलम यह था कि उसमें खड़े खड़े दर्द होने लग गया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि खुद को ठंडा करने के लिए क्या करूँ। यहाँ चुदाई संभव नहीं थी। वैसे भी कुंवारी बुर आराम से चोदनी चाहिए। तो मैंने आस्था को वहीं छत की रेलिंग पर उल्टा झुका दिया जिससे मेरी सबसे प्यारी चीज (आस्था के चूतड़) मेरे सामने आ गए।

आह… मैं उसकी खूबसूरती ब्यान नहीं कर सकता। चाँद की रोशनी में चमकती उसकी बेदाग सुडौल किसी सांचे में ढली गांड… इतनी कसी हुई कि उसका छिद्र तक नहीं दिख रहा था झुकने से भी।
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसे थोड़ा और झुकाया और कहा- जान, अब पहले मजे के लिए तैयार हो जा!

आस्था- मैं हर चीज के लिए तैयार हूँ जानू बस मुझे मम्मी जैसा मजा चाहिए।
मैंने मन ही मन अपने चाचा चाची को खूब धन्यवाद दिया जिनकी वजह से मुझे ऐसी कड़क माल मिली थी।

तो मैंने आस्था को थोड़ा आगे झुका कर पहले उसकी कमर और चूतड़ों को मन भर चाटा, दोनों फांकों को अलग करके जीभ उसकी गांड के छेद पर रख चाटने लगा जिससे वो हिल गयी।
आस्था- भैया जानू, नहीं, ये क्या कर रहे है वो गंदी जगह है। आप मेरी बुर चूसिये ना, जैसे पापा मम्मी की चूसते हैं।
मैं- वो भी करूँगा… पर अभी तू इसका मजा ले और मैं जो कर रहा हूँ, करने दे।
आस्था- ठीक है जानू, मुझे बस मम्मी जैसी खुशी चाहिए, आपको जो करना है करो!

मैं पूरी शिद्दत से आस्था की गांड और बुर चाटने लगा और धीरे से एक उंगली उसकी बुर में घुसेड़ दी।
आस्था उछल पड़ी और कहने लगी- जानू दर्द हो रहा है।
मैं- जान, पहली बार तो दर्द होगा ही… सबको होता है। उंगली से ये हाल है तो मेरा लौड़ा कैसे लेगी?
आस्था- अब मैं सब दर्द सह लूंगी, आप करो जो करना है।

फिर मैं तब तक आस्था की चुसाई और उंगली चुदाई करता रहा जब तक उसने अपना अमृत मुझे पिला न दिया। झड़ने के बाद वो लड़खड़ाने लगी क्योंकि ये सब पहली बार हुआ था उसके साथ। मैंने उसे नीचे अपनी गोद में बिठाया और गर्दन पर गालों पर किस किया, एक हाथ से बुर और दूसरे से चूची सहलाता रहा जब उसकी चेतना वापस नहीं आ गयी।

थोड़ी देर बाद वो मेरी तरफ मुड़ी और मुझे जबरदस्त चुम्मा देकर बोली- थैंक्यू जानू, आज पता चला चुदाई क्या होती है। अब आप जो कहेंगे मैं वही करूँगी।
मैं- जान ये तो बस एक झलक थी, चुदाई तो बाकी है। वो भी करूँगा पर सही समय आने पर। अभी तो तू 15 दिन है यहाँ, रोज सुहागरात मनाऊंगा तेरे साथ।
आस्था- जो मर्जी कर लेना पर अब नीचे चलो बहुत देर हो गयी, कोई उठ ना जाये।

मैं- ऐसे कैसे तेरा तो काम हो गया अब मेरा क्या होगा?
आस्था- क्या करूं जानू?
मैं- मेरे लंड की हालत देख… फटा जा रहा है। चोद तो सकता नहीं अभी फिलहाल चूस के ही माल निकाल दे।
आस्था- जैसे मम्मी करती हैं पापा के साथ?
मैं- हाँ।

मैं खड़ा हो गया और आस्था घुटनों पे बैठ के मेरा लंड चूसने लगी नौसिखिए की तरह। पर मैं खुश था ये सोच कर कि ये सब सीख जायेगी। मैंने उससे आंड भी चुसवाया और गांड भी। फिर मैंने कहा- जानू मेरा माल आ रहा है सब पी ले।
उसने बस अपना सर हिलाया क्योंकि उसे अंदाजा ही नहीं था कि क्या होने वाला है।

मैं जैसे ही झरने को हुआ, उसके सर को पकड़ के धक्के देने लगा और आखिरी बून्द तक उसके गले में उतार दिया।
वो थोड़ा खांसी फिर कहा- भैया बहुत टेस्टी है, ये तो तभी मम्मी रोज पीती हैं।
मैंने उसे उठा के गले लगाया और किस किया।

फिर हम नीचे आ गये और उसकी गांड पर लंड सटा के सो गए दोनों।

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