बहकते ज़ज्बात दहकता जिस्म-2
Bahakte Zajbaat Dahakta Jism-2
रोनी को तो जैसे तन की भाषा समझने की फुर्सत ही नहीं थी !
वो मुझे जलता छोड़कर अपनी साईट पर चला गया।
यहाँ ऑफ़िस में पर नेट पर मेरी एक सहेली से बात होती रहती है, उसको मैंने अपने दिल की बात बताई तो उसने भी कुछ टिप्स और आईडिया दिए।
शाम को घर पहुँची तो मेरे पति आ चुके थे, आज जो आग मेरे बदन को जला रही थी पति के साथ रात में चुदाई करवा कर ठंडी की !
अगले दिन दस बजे पति के जाने के बाद अगले प्लान के तहत मैं नहाई और बिना पेंटी ब्रा के ही नाइटी पहन कर रसोई में बैठ गई।
मुझे बड़ी ही धुकधुकी सी लग रही थी, हृदय के धड़कने की आवाज मुझे खुद को सुनाई दे रही थी मेरी योनि में एक गुदगुदाहट सी महसूस हो रही थी।
नाइटी को अस्तव्यस्त करके घुटनों तक कर लिया और जीतू को आवाज लगाई।
वो आ गया, बोला- क्या हुआ?
तो मैं बोली- जीतू मुझे चक्कर सा आ गया है।
और उसका हाथ पकड़कर अपने सीने पर लगा दिया तो मेरी धड़कन और भी बढ़ गई।
तेज धड़कन का अहसास पाते ही बोला- डाक्टर के पास चलो !
मैंने कहा- पहले मुझे सहारा देकर पलंग तक पहुँचा दो।
तो उसने अपने गठीले हाथों से सहारा देकर मुझे उठाया और पलंग पर लिटा दिया।
लेटते समय मैंने अपनी टांगों को ऐसा कुछ किया कि मेरी नाइटी मेरी जांघों तक आ गई और मेरी योनि उजागर हो गई और मैं तड़पने का नाटक करने लगी परन्तु उसने मेरी योनि के दर्शन नहीं किये या फिर देख कर अनदेखा कर दिया!
बल्कि एक चादर मेरे ऊपर डाल दी इस काण्ड के रोमांच और कल्पनाओं की उड़ान से बहुत आनन्दित हो रही थी।
चूत पर ठंडी हवा लगने के बाद भी वो भट्टी की तरह सुलग सी रही थी!
उस पर जीतू के बदन की खुश और उसके स्पर्श से इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि उत्तेजना से कुलबुलाती मेरी चूत से पानी बह निकला था, ऐसा लग रहा था कि कोई मेरी चूत में अपनी जीभ डालकर सहला दे और लण्ड डाल कर रगड़ डाले !
जीतू शायद एकदम से घबरा गया था मेरी हालत देख कर ऐसे में उसे मेरी योनि देखने की सुध ही कहा होगी उसे तो चिंता होगी कि मुझे कुछ हो न जाये !
मैंने कहा- रसोई में जाकर नींबू पानी बना लाओ।
वो रसोई में चला गया तो मैं अपना एक हाथ स्तनों पर रखकर उन्हें मसलने लगी और दूसरे हाथ को चादर के अन्दर ले जाकर गीली चूत को सहलाते हुए अंगुली चूत के अन्दर बाहर करने लगी।
मुश्किल से बीस सेकेण्ड ही गुजरे होंगे मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल पड़ी और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, मुझे कुछ राहत मिल गई।
तभी जीतू आ गया, मैं पसीने पसीने हो गई थी, नींबू पानी पीकर बाथरूम में जाकर फ्रेश हुई और ऑफिस आ गई !
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यहाँ भी मेरा मन नहीं लग रहा था क्योंकि कल जीतू चला जायेगा और अभी भी कुछ न कर पाई तो शायद फिर कभी कुछ नहीं कर पाऊँगी क्योंकि जीतू को शायद मुझ पर शक हो चला था।
आखिरी पेंतरा सोच कर मैंने दोपहर तीन बजे रोनी सर से बहाना बनाकर छुट्टी ली और घर पहुँच गई !
दरवाजा अन्दर से बंद था, मैंने डोर-लॉक में अपनी चाबी लगाई और धीरे से दरवाजा खोला तो वहाँ जीतू के जूते दिखाई दिए, मैं समझ गई जीतू घर में ही है।
अन्दर वाले कमरे में जीतू गहरी नींद सो रहा था क्योंकि मेरी आहट को सुनकर वो जरा भी नहीं हिला था।
मेरी सांसें तेज हो गई, इच्छा हुई कि कपड़े उतार कर इसको दबोच लूँ पर ऐसा नहीं कर सकी !
बाहर वाले कमरे से बाथरूम और रसोई लगी हुई है, इसी कमरे में मेरी कपड़ो की अलमारी है, अन्दर वाला कमरे को बेडरूम बनाया है जहाँ जीतू सो रहा था।
मैं रसोई में जाकर पानी पीने लगी और अपनी योजना में यह सुधार किया मुझे यह प्रदर्शित करना है कि मैं जीतू की घर में मौजूदगी से अंजान हूँ इसलिए उस कमरे में नहीं गई !
अपनी योजना के तहत मैं सीधा बाथरूम में चली गई और जीतू को जगाने के उद्देश्य से दरवाजे को इतना जोर से बंद किया कि उस आवाज से जीतू की नींद खुलना तो ठीक, वो उठकर बैठ ही गया होगा।
फिर मैं गाना गुनगुनाते हुए सम्पूर्ण नग्न होकर शावर में नहाने लगी।
जीतू को मेरे गाने की आवाज से मेरे आने का इत्मीनान हो गया होगा और वो शायद फिर सोने की कोशिश करेगा !
अब मुझे उसके दोबारा सो जाने से पहले जल्द नग्नावस्था में बाहर आकर उस अलमारी से कपरे निकालने थे जो जीतू को पलंग पर लेटे हुए भी पूरी तरह दिखाई देगी और साथ में यह नंगी बेहया लीना भी उसे दिखेगी !
इस कृत्य के लिए मेरी हिम्मत जबाब देने लगी थी, अजीब सा डर लग रहा था पर उत्तेजनावश मैंने अपने कदम आगे बढ़ा दिए।
बाथरूम का दरवाजा खोलते हुए डर और अजीब सिहरन सी हो रही थी, कैसे मैं किसी के सामने नंगी जा सकती हूँ, भले ही दूर का सही पर भाई तो लगता है, वो क्या सोचेगा मेरे बारे में !
फिर याद आया मुझे तो ये प्रदर्शित करना है कि घर में मैं अकेली ही हूँ !
मेरी धड़कन से मेरे स्तनों में कम्पन्न हो रह था और इस कम्पन्न से वो उत्तेजित होकर तन गए थे, मेरी चूत तो जैसे मेरे वश में नहीं थी, उसमें से लगातार निकलता चिकना तरल बहकर मेरी रानों तक आ गया था।
दिमाग में उथल पुथल मची हुई थी कहीं वो बाहर के कमरे में हुआ तो?
नारी लज्जावश मैंने तौलिया उठाकर लपेट लिया और दरवाजे को खोल कमरे में आ गई !
सब कुछ मेरे हिसाब से ही हो रहा था, कांपते कदम अलमारी तक ले आये, मैंने अलमारी के आईने से देखा, जीतू शायद उठने की चेष्टा कर रहा था।
मेरी पीठ जीतू की तरफ थी, मैंने अपना तौलिया हटा दिया और आईने में अपने आप को निहारते हुए अपने नंगे गीले बदन का पानी पोंछने लगी।
अब मुझमें कुछ हिम्मत सी आ गई थी।
फिर अलमारी खोलकर उसमें से पेंटी ब्रा और मेक्सी निकाल ली और फिर आईने में अपने को निहारते हुए अपने बदन की ज्यादा से ज्यादा झलक उसे दिखने की कोशिश करने लगी।
निश्चित ही मेरी बेदाग दूधिया जांघें और गोलमटोल उभरी हुई चिकनी गांड देखकर उसके होश उड़ गए होंगे।
फिर मैंने ब्रा पहनकर सोचा कि पेंटी पहनने के लिए घूम जाऊँ ताकि मेरी चूत की कुछ झलक तो उसे दिखाई दे ही जाएगी।
मैं घूम गई, अब मेरा चेहरा जीतू की तरफ था लेकिन मैंने उसे देखने की चेष्टा नहीं की, दोनों टांगों को फैलाकर तौलिये से एक बार फिर अपनी गीली हो रही चूत को सहलाते साफ किया जो उसने देख ली होगी।
फिर मैंने आगे झुककर अपने स्तनों की भरपूर झलक दिखाते हुए पेंटी पहन ली।
कहानी जारी रहेगी।
अब ये सब करते मुझे अच्छा लग रहा था।
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