भाबी जी घर पे हैं-3
(Bhabi Ji Ghar Par Hain- Part 3)
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दोस्तो, आपको मेरी कहानी पसंद आ रही है इसलिए आगे इस कहानी को जारी रखूँगा, लेकिन कुछ लोगों के कमेंट मैंने पढ़े जिनको यह कहानी बकवास लगी. मैंने पहले ही बताया यह एक कल्पित कहानी है. आपको कहानी अच्छी नहीं लगी तो भी सभ्य तरीके से कमेन्ट करें.
मुझे कई पाठकों ने लिखा कि मैं फ़ौरन उन्हें अगला भाग भेज दूँ. माफ़ कीजिये दोस्तो, अगर कहानी का लुत्फ़ लेना है तो थोड़ा तो सब्र करना ही पड़ेगा. आखिरकार सब ब्रा (सब्र) का फल मीठा जो होता है.
अब आगे:
रोज की तरह अंगूरी रसोई में खाना बना रही थी, लेकिन आज थोड़ी परेशान दिख रही थी, शायद अम्माजी की बात को लेकर परेशान थी. कैसे वो भरभूती जी के साथ सॉक्स (सेक्स) करेगी
इत्यादि सोचकर.
इतने में वह अनोखे लाल सक्सेना हाज़िर हो पड़ता है- क्या हाल है भाबी माँ के?
सक्सेना अपनी पागलों वाली मुस्कान देते हुए बोला.
‘आज कुछ परेशान हैं हम सक्सेना जी.’ अंगूरी अपनी कड़छी हिलाते हुए बोली.
‘क्या परेशान कर रहा है मेरी भाबी माँ को?’ सक्सेना जी थोड़ा सीरियस होते हुए पूछने लगा.
‘अब क्या बताएं सक्सेना जी, अम्माजी का फ़ोन आया था, बोल रही थी कि लड्डू के भैया के बिसनेस पर संकट मंडरा रहा है.’ थोड़ा टेंशन में अंगूरी बोली.
‘सब लोगों का पैसा हज़म कर जाते हैं तो संकट तो आयेगा ही न भाबी माँ.’ सक्सेना ठहाका लेते हुए बोला.
‘अम्मा जी ने एक ठो उपाय बताया है हमका, जिससे लड्डू के भैया पर आये हुए संकट को हल किया जा सकता है.’ अंगूरी बात आगे बढ़ाते हुए बोली.
‘तो क्या उपाय बताया अम्माजी ने भाबी माँ?’ सक्सेना ने आँखें चौड़ी करते हुए पूछा.
‘यही की हमका उस भभूति जी के साथ सॉक्स करना पड़ेगा.’
अंगूरी की बात सुन सक्सेना अपनी आंखें आदतवश टेढ़ी करते हुए अपना तकिया कलाम बोला- आई लाइक इट!
‘तो दिक्कत क्या है भाबी माँ? आप कर लीजिये विभूति भैया के साथ सेक्स, वैसे भी आपके पति तिवारी भैया भी अनीता जी पे रोज़ डोरे डालते रहते हैं.’
‘ये का बात कर रहे है आप सक्सेना जी? हमारे लड्डू के भैया ऐसे बिल्कुल नाही हैं.’ अंगूरी थोड़ा रोते हुए स्वर में बोली.
‘भाबी माँ वो सब छोड़िये, आप उपाय कैसे करेंगी यह बताइए?’ सक्सेना ने बात को बदलते हुए कहा.
‘वही तो सोच सोच के हम परेशान हो गये है सक्सेना जी, आप ही कोई रास्ता दिखा दीजिये.’ अंगूरी सहायता मांग रही थी.
‘वैसे तो भाबी माँ मैं आपकी मदद कर दूँ क्योंकि मेरे दिमाग में एक से एक खुराफाती आइडियाज आते रहते हैं क्योंकि हमारा पूरा खानदान पागलों का है, सब एक नंबर के चुदक्कड़, चूत देखी नहीं कि वहीं पेली नहीं.’ सक्सेना ने अपने परिवार की तारीफ करते हुए कहा.
‘फिर तो आप हमारी मदद जरूर करेंगे सक्सेना जी, भरभूती जी से चुदने में?’ अंगूरी के चेहरे की हंसी वापिस आ रही थी.
‘नहीं भाबी माँ, में आपकी इसमें कोई मदद नहीं कर सकता.’ यह बात सुन अंगूरी का चेहरा फिर से उतर गया, अब वो उपाय कैसे करेगी फिर वही सोचने लगी.
‘लेकिन भाबी माँ, मैं किसी एक को जानता हूँ जो आपकी इस कार्य में मदद कर सकता है.’ सक्सेना ने फिर से आशा जगाते हुए कहा.
‘कौन? कौन सक्सेनाजी?’ अंगूरी के चेहरे की चमक वापिस आ गई.
‘मेरी आपा भाबी माँ, गुलफाम कली, गुलफाम कली ही एक ऐसी है जो इस प्रॉब्लम का हल ढूँढ सकती है.’
‘हाय दैया! मुस्ताक अली?’ अंगूरी थोड़ा टेंशन में आते हुए बोली.
‘मुस्ताक अली नहीं, भाबी माँ, गुलफाम कली.’ सक्सेना ने सुधारते हुए बोला.
‘सही पकड़े हैं. लेकिन वो तो एक वेश्या है, और हम उनके जैसे नहीं बनना चाहते हैं सक्सेना जी.’
‘काश कि भाबी माँ मैं आपको अपना पकड़वा सकता, लेकिन मैं आपको माँ बोलता हूँ न! इसीलिए आपके नाम की सिर्फ मूठ मार लेता हूँ.’ अनन्य वासना के साथ मुस्कुराकर सक्सेना बड़बड़ाया.
‘का बोले?’ बोड़मपने से लेस अंगूरी ने पूछा.
‘कुछ नहीं भाबी माँ, आपको मैं लेकर जाऊंगा गुलफाम कली के पास, हम सिर्फ उनसे इस समस्या का समाधान लेंगे और फिर वापस आ जायेंगे.’
‘ठीक बा सक्सेना जी.’ अंगूरी हँसते हुए बोली.
‘तो ठीक है भाबी माँ, शाम को सात बजे मैं आपको लेने आऊंगा.’
सक्सेना ऐसा बोल चल पड़ता है. उधर अंगूरी भी खाना बनाने में मशगूल हो जाती है.
अगला दृश्य
जब शाम सात बजे सक्सेना जी भाबी अंगूरी के साथ गुलफाम कली के कोठे पे पहुंचे तो देखते हैं कि दरोगा हप्पू सिंह और विभूति जी का दोस्त प्रेम चोपड़ा गुलफाम कली के डांस पर मोहित होकर ‘छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली, अनारकली डिस्को चली.’ की धुन पर नाच रहे थे और पैसे भी उड़ा रहे थे. अपने बन्दों की नुमाइश के लिए कभी गुलफाम कली उनके पास भी जाती तब वे लोग उसकी चूचियों को ऊपर से ही दबा कर आनन्द प्राप्त कर लेते थे.
अंगूरी भी यह सब देख रही थी. शायद उसके मन में यही चल रहा होगा कि भभूति जी भी उनके सुडौल एवं मुलायम स्तनों को दबायेंगे, चूसेंगे, उसकी निप्पल को काटेंगे, जैसे हर बार लड्डू के भैया करते हैं. ठीक उसी तरह वे भी उनको मसलेंगे.
विचारो की आँधी उसके दिमाग में चलती रही लेकिन फिर भी वो शांत खड़ी रही, आखिर उसे उपाय तो करना ही था.
गुलफाम कली का मुजरा ख़त्म हुआ ही था कि दरोगा हप्पू सिंह गुलफाम कली को एक रात उसके साथ गुजारने के लिए मना रहा था, मौका मिलने पर वो उसके चूचों और चूतड़ों पे हाथ भी फेर लेता था, लेकिन गुलफाम कली को शायद इससे कोई दिक्कत नहीं थी, या फिर शायद वो अब ये सब पेंतरे उसे रास आ गए थे.
जब सब कोठे से चले गये गुलफाम कली ने अंगूरी को देखा एक कोने में खड़े दूर, ऐसे पहले कभी नहीं हुआ था कि गुलफाम कली के कोठे पे कोई औरत आई हो, वो भी अंगूरी जैसी शरीफ!
गुलफाम कली को अंगूरी को अपने कोठे पे देख थोड़ा अचरज हुआ फिर भी उसने अंगूरी और पास में खड़े सक्सेना को ‘आदाब अर्ज़ है.’ कह कर अन्दर बुलाया.
जैसे ही अंगूरी और सक्सेना दोनों अन्दर की ओर बढ़े, गुलफाम कली भी अपने रूम में जाने के लिए बढ़ी, वे दोनों उनके पीछे चले.
अपने रूम में पहुँचते ही गुलफाम कली ने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और अपनी साड़ी को खोलने लगी, अंगूरी और सक्सेना दोनों उसकी ओर देखते रहे.
अपने आप को एकटक घूरते हुए पाने के बाद गुलफाम कली ने अंगूरी से पूछा- क्या देख रही हो अंगूरी जी?
तो सक्सेना बीच में बोल पडा- वो क्या है न गुलफाम कली आपा, भाबी माँ ने कभी तुम्हें कपड़े उतारते हुए नहीं देखा न! इसलिए थोड़ी अचरज में हैं.
‘तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, अब देख लो.’ गुलफाम कली ने कहा.
बातों के दौरान गुलफाम कली ने अपनी साड़ी उतार फेंकी थी और अब सिर्फ स्लीव लेस ब्लाउज और पेटीकोट में थी, बातों ही बातों में उसने अपना पेटीकोट भी उतर दिया, उसकी काले रंग की पेंटी आगे से दिख रही थी लेकिन पीछे की तरफ पैंटी उसके मोटे चूतड़ों में बिल्कुल घुस गई थी. पीछे से देखे तो मानो ऐसा ही लगे कि कुछ पहना ही नहीं.
फिर उसने अपना ब्लाउज निकाला.
अब गुलफाम कली भाबी अंगूरी और सक्सेना के सामने केवल ब्रा और पेंटी में थी.
कहानी जारी रहेगी. दोस्तो, आज गुलफाम कली को ऐसे ही देख अपनी वासना को शांत कर लें! क्योंकि सब ब्रा का फल मीठा होता है.
जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ेगी, वैसे मज़ा भी बढ़ता जायेगा.
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