भाबी जी घर पे हैं-2
( Bhabi Ji Ghar Par Hain- Part 2)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left भाबी जी घर पे हैं-1
-
keyboard_arrow_right भाबी जी घर पे हैं-3
-
View all stories in series
दोस्तो, आपने मेरी काल्पनिक कहानी पढ़ी, आशा करता हूँ कि आपको पसंद आई होगी.
अब आगे…
अनीता की दी हुई कसम को पूरा करने के लिए शाम को तिवारीजी विभूति जी को अपने घर ले गये, बरामदे में बैठ दोनों ने शराब का सेवन किया और तिवारी ने विभूति को पूरी तरह से नशे में टुन्न कर दिया, रात जैसे तैसे यूँ ही गुज़र गई.
सुबह जब विभूति और तिवारी अपने पास वाली चाय की दुकान पे मिले तो मलखान और टीका दोनों आपस में बतिया रहे थे. तिवारी और विभूति ने अपनी जगह ली और उनसे पूछा- क्या चल रहा है बे लौंडो?
‘कुछ नहीं भैया जी, बस काम की बातें होऊ रही.’ मलखान मुस्कुराते हुए बोला.
‘तुम नल्लों को किसने काम पे रख लिया बे… ज़रा हम भी तो सुने!’ तिवारी ने कटाक्ष करते हुए पूछा.
‘वो क्या है न भइयाजी, वो ऐसे में कहने वाली बात को न है को, तनिक अपना कान इधर लाइए, हम बताते हैं.’ टीका मुस्कराहट के साथ बोल पड़ा.
टीका की बात सुन तिवारी सुन्न रह गया और अपने दांतों तले उंगलियाँ चबाने लगा. तिवारी को भौंचक्का सा देख विभूति से रहा न गया और उसने भी कारण पूछ ही लिया.
टीका और मलखान की बातें सुन विभूति को भी मानो एक झटका सा लगा, वे दोनों जिगोलो बन गये थे और कानपुर की चुदासी औरतों को यौन संतुष्टि करवाते थे, और ऊपर से इसके पैसे भी कमाते थे, उनके चेहरे पे ख़ुशी देख लग रहा था कि उनकी लाइफ सेट हो गई थी.
थोड़ी ही देर में जब टीका और मलखान उठे तो विभूति ने उन्हें पूछा- कहा जा रहे हो?
मलखान ने बताया- भैयाजी, वो क्या है न कि हमारे पास कंडोम जो हैं न! वो खत्म हो गयो हैं, और सेवा करने के लिए ना हमें इसकी जरूरत है, तो बस कंडोम लेकर घर पे अपना हथियार तेल से धारदार बनायेगे और फिर किसी महिला की प्यास को बुझायेंगे.
जाते जाते टीका ने विभूति के कान में कहा- भैयाजी कभी भाबी जी को भी ज़रूरत पड़े तो बताइयो, फ्री में सेवा देंगे.
टीका की बातो से गुस्सा हो कर विभूति ने दोनों को एक तमाचा जड़ दिया.
‘सुबह होने न दें, शाम खोने न दें, एक दूसरे को हम सोने न दें, मैं तेरा हीरो…’ यह गाना गुनगुनाते हुए वे दोनों वहाँ से चल पड़े.
अगला दृश्य
अंगूरी जी अपने हॉल में बैठी थी कि तभी उनका फोन बजा, अंगूरी ने देखा तो अम्माजी का फोन था.
‘प्रणाम करते हैं अम्माजी, कैसन बा?’ अंगूरी बोली.
‘जुग जुग जियो बहुरिया.’ अम्माजी आशीर्वाद देते हुए बोली.
‘का बात है अम्माजी? सब कुछ ठीक बा?’ अंगूरी अपना घूँघट मुंह में लेते हुए बोली.
‘अब कैसे बतायें बहुरिया, ऊ जो पंडित रामफल है न? ऊ बताई रहे थे कि बैल का बिज़नस में है न संकट मंडरा रहा है, उसके लिए उपाय करने के लिए बोले हैं.’
‘का उपाय बोले पंडितजी?’ अंगूरी ने सीरियस होते हुए पूछा.
‘उपाय थोड़ा मुश्किल है बहुरिया, उपाय जो है कि तुम्कोऊ न तीन रातें अपने उस पड़ोसी ऊ जो नल्ला है न उसके साथ गुजारनी हैं.’
‘इसमें कोनो बड़ी बात है अम्माजी? तीन रातें तो हम गुज़ार लेंगे.’ हमेशा की तरह अपने बोडमपने से अंगूरी ने अम्माजी को बताया.
‘बहुरिया, हमार कहने का मतलब है कि, तुम्कोऊ न… उस नल्ला के साथ सोना पड़ेगा और जैसे तुम और बैल रात में प्यार करते हो न, उसी तरह से तुमको उस नल्ले से प्यार करना पड़ेगा.’
‘यह आप का कह रही हो अम्माजी, आपका मतबल है कि हमको उस भरभूती जी के साथ सॉक्स करना पड़ेगा?’ अंगूरी थोड़ा घबराते हुए बोली.
‘वो सॉक्स नहीं बहुरिया, वो सेक्स होता है.’ अम्माजी सुधारते हुए बोली.
‘हाँ, सही पकड़े है… वही, हमें भरभूतीजी से चुदवाना होगा?’ अंगूरी अपना तकिया कलाम बोलते हुए पूछी.
‘हाँ बिटिया, तुमको उस नल्ला के साथ सोना पड़ेगा, तभी उस बैल के बिज़नस पे जो संकट है ऊ दूर हो सकता है.’ अम्माजी ने बताया.
‘ठीक है अम्माजी, लेकिन हम लड्डू के भैया को धोखा कैसे दे सकते हैं?’ अंगूरी ने कौतूहल से पूछा.
‘उसे धोखा नहीं कहते हैं बिटिया, उसे अपने पति की तरफ निष्ठा कहते हैं, तुमको पता है, हम भी कभी पंडित रामफल के साथ सो जाया करते थे.’ अम्माजी शरमाते हुए अपना घूंघट मुंह में दबाते हुए बोली.
‘हाय रे अम्माजी! का बात कर रही हो?’ अंगूरी ने आश्चर्य से पूछा.
‘बैल उसी पंडित रामफल का परिणाम है बहुरिया.’ अम्माजी ने और बताया.
‘ठीक है अम्माजी, जैसा आपने बताया हम ऊ उपाय करेंगे. अभी हम रखते हैं, प्रणाम करते हैं अम्माजी.’
‘जुग जुग जोयो मेरी बहुरिया.’ अम्माजी ने बोला और फोन कट कर दिया.
जैसे ही अम्माजी ने फोन कट किया की तभी ऊपर से एक कंडोम उनकी विंडो से होते हुए उनके सर पे गिरा, उन्होंने देखा तो कंडोम में अभी वीर्य बह रहा था, उन्होंने उस वीर्य को थोड़ा चखा और फिर नीचे फेंक दिया.
दो दिन बाद जब तिवारी फिर अनीता के घर पहुंचा और ‘भाबी जी घर पर हैं’ ऐसा बोल गृह प्रवेश की अनुमति मांगी, तो अनीता ने उनकी ओर देखा और उनको अन्दर बुलाया. तिवारी यह जानने के लिए उत्सुक था कि इन दो दिनों में अनीता और उनकी उस लेस्बियन सहेली ने क्या गुल खिलाये होंगे.
‘तो भाबी जी बताइए, कैसा रहा आपका लेस्बियन रोमांस?’ तिवारी ने अपने हाथ अपने घुटनों पर फेरते हुए मुस्कुरा कर पूछा.
‘बस आप पूछिए मत तिवारी जी, वो पल कितने रंगीन थे, मानो जैसे मैं मेरी पुरानी ज़िन्दगी में लौट गई थी..’ अनीता के मुंह से उन पल को याद करते हुए लार टपक रही थी.
‘और क्या क्या किया भाबी जी?’ तिवारी फुल मूड में था शायद उसकी नज़र अनीता की नाईटी पर घूम रही थी, मानो के वो आँखों से ही अनीता भाबी को चोद लेना चाहता हो.
अनीता तिवारी की नियत को साफ़ तरह से भांप चुकी थी- तिवारी जी, ऐसे आँखों से मुझे न चोदिये, आपके पास उस काम के लिए हथियार है.
अनीता मुस्कुराई और बोली फिर खड़ी होकर चल दी.
‘कहाँ जा रही है भाबी जी?’ तिवारी को लगा मानो अनीता उसे सुबह सुबह ही अपने बेडरूम में चुदने के लिए रिझा रही थी, तिवारी ने खड़े हो कर अनीता का पीछा करना शुरू किया कि तभी अनीता बोल पड़ी- ठहरिये तिवारी जी, मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूँ, आप मेरा इंतज़ार कीजिये. मैं अभी आती हूँ.
अनीता के ऐसा बोलने पर तिवारी की मुरादों पर मानो पानी सा फिर गया लेकिन फिर अनीता ने कहा- तिवारी जी, अपनी पैन्ट के उभार को ठीक कीजिये, विभु कभी भी आता ही होगा. आपको जो मैंने वादा किया है वो अवश्य पूरा करुँगी.
तभी एक गीत बज पड़ता है ‘थोड़ा सा ठहरो, थोड़ा सा ठहरो, करती हूँ तुमसे वादा… पूरा होगा तुम्हारा इरादा… करती हूँ तुमसे वादा, पूरा होगा तुम्हारा इरादा, मैं हूँ सारी की सारी तुम्हारी
फिर काहे को जल्दी करो..’
अनीता इस सोंग पे डांस करती है और तिवारी को रिझाना चालू रखती है और फिर अपने रूम में कुछ ढूँढने चली जाती है.
जब अनीता वापस आती है तो देखती है कि तिवारी अपने हाथों से अपने खड़े लंड को ठीक कर रहा होता है, वो खिलखिला उठती है और तिवारी की बगल में एकदम सट कर बैठ जाती है.
तिवारी थोड़ा असहज महसूस करता है और अनीता से पूछ पड़ता है- क्या देख रही हैं आप भाबी जी?
‘जी कुछ नहीं तिवारी जी, बस आपको अपना लंड सम्भालने में हो रही दिक्कत को देखकर थोड़ी हंसी आ गई.’ अनीता ने हँसते हुए कहा.
‘आपको तो हंसी ही आयेगी भाबी जी, खैर लंड तो हमारा है, हमें पता है उठे, फनपते लंड का दर्द क्या होता है जब उसे कोई रसीली सी चूत चोदने के लिए न मिले तो!’
‘अरे! तिवारीजी आप तो नाराज़ हो गये, अरे बाबा, मैं आपको पक्का जन्नत की सैर करवाऊँगी, लेकिन यह सही वक़्त नहीं है, आप तो जानते ही हैं कि विभु कितना नल्ला है और कभी भी घर पे दस्तक दे सकता है.’ अनीता ने मुंह बनाते हुए कहा.
‘अरे नहीं भाबी जी, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था कि आप हर्ट हो जायें, बस मैं भी आपको इस खड़े लंड का दर्द सुना रहा था.’ तिवारी ने परिस्थिति को सामान्य बनाते हुए कहा.
‘ठीक है तिवारी जी, वो सब छोड़िये, मैं आपको एक चीज़ दिखाना चाहती हूँ.’ अनीता की आँखों में चमक थी.
‘कौन सी चीज़ भाबी जी?’ तिवारी ने पूछा.
तिवारी के पूछते ही अनीता ने वही मुस्कराहट के साथ अपने गाऊन में से एक काँच का पारदर्शी डिलडो निकाला और तिवारी को दिखाया.
‘यह क्या है भाबी जी?’ अपने दांतों तले उंगलियाँ चबाते हुए तिवारी बोल पड़ा.
‘आपको नहीं पता तिवारी जी? यह डिलडो है, मतलब एक कृत्रिम लंड, जब प्रिया गई तो मुझे यह डिलडो गिफ्ट कर गई, और अब से जब मुझे कभी भी चुदवाने का मन करा करेगा न? तो मैं इस डिलडो से अपनी प्यास बुझा लूँगी.’ अनीता की आँखों की चमक बरक़रार थी.
‘अरे भाबी जी! आपको इस कृत्रिम लंड की भला क्या आवश्यकता है? विभूतिजी आपको ठीक से चोदते नहीं क्या? या फिर अब उनमें वो सख्ती नहीं रही?’ तिवारी ने ठहाका लेते हुए पूछा.
‘और ऊपर से हम भी तो हैं आपकी मदद के लिए हर वक़्त तैयार, अपना हथियार हाथ में लिए हुए… आप जब चाहें हमें अपनी खातिरदारी के लिए बुला सकती हैं, आपको पेल कर हमें कितनी ख़ुशी मिलेंगी हम आपको बता नहीं सकते.’ तिवारी उस कृत्रिम लंड के खिलाफ अपना बचाव रख रहा था.
‘वो तो है ही तिवारीजी, विभु और आप है ही मेरी खातिरदारी करने लिए, मेरी ठुकाई करने के लिए, लेकिन जब मुझे दुपहर को कभी चुदने को दिल करे तो उस वक़्त मैं विभु को या फिर आपको तो नहीं बुला सकती न! इस लिए यह डिलडो ठीक है यह मेरी प्यास बुझा दिया करेगा.’ अनीता ने चुटकी लेते हुए कहा.
‘खैर भाबी जी, यह बताइए, आपने और आपकी उस लेस्बियन फ्रेंड प्रिया ने कैसे रोमांस किया, ज़रा हम भी तो सुनें कि एक लड़की दूसरी लड़की के साथ कैसे प्यार करती है, बिना लंड के कैसे प्यार होता है ज़रा हमें भी तो पता चले.’
तिवारी जी के इस सवाल पे अनीता हंस पड़ी और तिवारी जी को एक किस कर लिया, अभी वो हटी ही थी तिवारी से पीछे कि तभी विभूति घर में हाज़िर हो गया, अनीता ने बड़ी ही मुश्किल से वो काँच से बना डिलडो अपने गाऊन में छिपाया और अपने आपको ठीक किया.
‘यह कच्छा-बनियान हमारे घर इस वक़्त क्या कर रहा है? खोखे पे नहीं जाना है तिवारी जी?’ तिवारी की चुटकी लेते हुए विभूति ने कहा.
‘नल्ले कहीं के…’ तिवारी ऐसा बोल कर वहाँ से निकल पड़ा.
दोस्तो, भाबी जी की कहानी जारी रहेगी.
अपने प्रतिसाद मुझे भेजते रहें और साथ ही मुझे आपके दिमाग में भी कुछ ऐसे नए आइडिया हो तो लिख भेजिए, मैं कोशिश करूंगा कि उनको इस कहानी का हिस्सा बनाकर प्रस्तुत किया जाये.
[email protected]
What did you think of this story??
Comments