भाभी संग मेरी अन्तर्वासना-4
(Bhabhi Sang Meri Antarvasna- Part 4)
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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम महेश कुमार है, मैं सरकारी नौकरी करता हूँ। मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि मेरी सभी कहानियाँ काल्पनिक हैं.. जिनका किसी से भी कोई सम्बन्ध नहीं है। अगर होता भी है.. तो ये मात्र एक संयोग ही होगा।
मेरी पहले की कहानियों में आपने मेरे बारे में जान ही लिया होगा। अभी तक आपने मेरे और भाभी के बीच पहली बार बने सम्बन्ध के बारे में भी पढ़ा। अब उसके आगे की कहानी लिख रहा हूँ। मुझे उम्मीद है ये भी आपको पसन्द आएगी।
मम्मी-पापा के आ जाने के बाद भाभी घर के कामों में व्यस्त हो गईं और मैं ऐसे ही घर में घूमता रहा। घूम तो क्या रहा था.. बस जल्दी से रात होने का इन्तजार कर रहा था।
यह मेरा दिल ही जानता है कि मैं कैसे समय निकाल रहा था, भाभी के साथ दोपहर में जो कुछ हुआ था, मैं बस उसे ही सोच सोच कर अपने आप उत्तेजित हो रहा था।
इस दौरान मेरी और भाभी की कोई बात नहीं हुई मगर जब भी मेरा भाभी से सामना होता.. तो भाभी मुझे देख कर मुस्कुराने लगतीं।
मैं भी भाभी की मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराकर देता।
खैर.. कैसे भी करके रात हो गई, मैंने जल्दी से खाना खाया और रोजाना की तरह ही भाभी के कमरे में जाकर पढ़ाई करने लगा।
पढ़ाई तो कहाँ हो रही थी, बस मैं तो भाभी के कमरे में आने का इन्तजार कर रहा था।
करीब दस बजे भाभी घर के काम निपटा कर कमरे में आईं। भाभी ने अभी भी दिन वाले ही कपड़े पहने हुए थे। भाभी के आते ही मेरे शरीर का तापमान अचानक से बढ़ गया और दिल जोरों से धड़कने लगा।
भाभी मुझे देखकर थोड़ा सा मुस्कुराईं और फिर कमरे का दरवाजा बन्द करके अपनी साड़ी निकालने लगीं। शर्म के कारण भाभी से बात करने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी, मैं बस चोर निगाहों से भाभी को देख रहा था।
भाभी ने साड़ी निकाल कर सोफे पर डाल दी और मात्र पेटीकोट व ब्लाउज में बिस्तर पर जाकर लेट गईं।
भाभी लेटते हुए एक बार फिर मुझे देखकर मुस्कुराईं और हँसते हुए मुझसे कहा- सोते समय लाईट बन्द कर देना।
मैं कौन सा पढ़ाई कर रहा था, भाभी के बोलते ही मैंने तुरन्त किताबें बन्द कर दीं और लाईट बन्द करके भाभी के बगल में जाकर लेट गया।
कुछ देर तक मैं और भाभी ऐसे ही लेटे रहे क्योंकि शायद भाभी सोच रही थीं कि मैं पहल करूँगा.. मगर शर्म व डर के कारण मुझसे पहल करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
फिर भी मैंने करवट बदलकर भाभी की तरफ मुँह कर लिया और इसी बहाने धीरे से एक पैर भी भाभी के पैरों पर रख दिया। पैरों पर तो क्या रखा था बस ऐसे ही छुआ दिया था।
शर्म व घबराहट के कारण मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और मेरा शरीर भी हल्का-हल्का काँप रहा था।
मेरे करवट बदलते ही भाभी ने भी करवट बदलकर मेरी तरफ मुँह कर लिया और थोड़ा सा मेरे नजदीक भी हो गईं.. जिससे हम दोनों के शरीर स्पर्श करने लगे।
मेरी कंपकंपाहट के कारण शायद भाभी को मेरी स्थिति का अहसास हो गया था, इसलिए भाभी ने पहल की। वो खिसक कर मेरे बिल्कुल पास आ गईं, भाभी का चेहरा अब मेरे बिल्कुल पास आ गया था और हम दोनों की गर्म साँसें एक-दूसरे के चेहरे पर पड़ने लगीं।
भाभी ने अपने नाजुक होंठों को मेरे होंठों से छुआ दिया। मुझसे अब रहा नहीं गया इसलिए मैंने अपने होंठों को खोलकर धीरे से भाभी का एक होंठ अपने होंठों के बीच थोड़ा सा दबा लिया और अपने होंठों से ही उसे हल्का-हल्का सहलाने लगा।
मुझे अब भी थोड़ा डर लग रहा था, मगर फिर तभी भाभी ने एक हाथ से मेरे सिर को पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों को मुँह में लेकर चूसने लगीं।
मुझमें भी अब कुछ हिम्मत आ गई थी। इसलिए मैं भी भाभी के होंठों को चूसने लगा और साथ ही अपना एक हाथ भाभी के नितम्बों पर रख कर पेटीकोट के ऊपर से ही धीरे-धीरे उनके भरे हुए माँसल नितम्बों व जाँघों को सहलाने लगा।
भाभी की मखमली जाँघों व नितम्बों पर मेरा हाथ ऐसे फिसल रहा था जैसे कि मक्खन पर मेरा हाथ घूम रहा हो।
भाभी के होंठों को चूसते हुए मुझे लगा जैसे कि भाभी की जीभ बार-बार मेरे होंठों के बीच आकर मेरे दांतों से टकरा रही हो।
पहले एक-दो बार तो मैंने ध्यान नहीं दिया.. मगर जब बार-बार ऐसा होने लगा तो इस बार मैंने अपने दांतों को थोड़ा सा खोल दिया। मेरे दाँत अलग होते ही भाभी की जीभ मेरे मुँह में अन्दर तक का सफर करने लगी। भाभी की गर्म लचीली जीभ मेरे होंठों के भीतरी भाग को तो, कभी मेरी जीभ को सहलाने लगी।
मैंने भी भाभी की नर्म जीभ को अपने होंठों के बीच दबा लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया, भाभी के मुँह का मधुर रस अब मेरे मुँह में घुलने लगा और भाभी के इस मधुर रस के स्वाद में मैं इतना खो गया कि मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरी जीभ भाभी की जीभ का पीछा करते हुए उनके मुँह में चली गई।
अब भाभी की बारी थी। भाभी ने जोरों से मेरी जीभ को दांतों तले दबा लिया और बहुत जोरों से उसे चूसने लगीं.. जिससे मुझे दर्द होने लगा।
मैंने भाभी से दूर होकर अपनी जीभ को छुड़ाने का प्रयास भी किया मगर भाभी ने अपना दूसरा हाथ भी मेरी गर्दन के नीचे से लेकर मेरे सिर को पकड़ लिया। भाभी का पहले वाला हाथ जो कि मेरे सिर पर था.. वो अब मेरी कमर पर आ गया और भाभी ने मेरे सिर व कमर को पकड़ कर मुझे जोरों से अपनी तरफ खींच लिया। साथ ही भाभी ने खुद भी मुझसे चिपक कर अपने दोनों उरोजों को मेरी छाती में धंसा दिए।
मेरी जीभ को भाभी इतने जोरों से चूस रही थी कि मुझे अपनी जीभ खींच कर भाभी के मुँह जाती सी महसूस हो रही थी। दर्द के कारण मैं छटपटाने लगा मगर भाभी छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। तभी मैंने भाभी के एक होंठ को दांतों से काट लिया.. जिससे कि भाभी ने छटपटा कर मेरी जीभ को छोड़ दिया और मुझसे अलग होकर मेरे कपड़े खींचने लगीं।
मुझसे भी अब अपने शरीर पर कपड़े बर्दाश्त नहीं हो रहे थे इसलिए मैं जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगा हो गया।
अब की बार मैंने भाभी को पकड़ कर जोरों से भींच लिया.. जिससे उनके दोनों उरोज मेरे सीने से पिस से गए और उनकी योनि मेरे उत्तेजित लिंग से चिपक गई।
तभी भाभी मेरी कमर को जोर से पकड़ कर सीधी हो गईं.. जिससे कि मैं भी उनके साथ-साथ खींचकर भाभी के ऊपर आ गया और भाभी का मखमली नर्म मुलायम शरीर मेरे भार से दब गया।
भाभी के नर्म मुलायम उरोज अब मेरी छाती से दब रहे थे और मेरा उत्तेजित लिंग ठीक भाभी की योनि पर लग गया था, जो कि मेरे लिंग को अपनी गर्मी का अहसास करवा रही थी।
भाभी अब भी मेरे होंठों को जोरों से चूम चाट रही थीं। मगर मैं भाभी के होंठों को चूसते हुए अब ब्लाउज के ऊपर से ही उनके दोनों उरोजों को भी सहलाने लगा था।
भाभी ने ब्रा नहीं पहन रखी थी इसलिए ब्लाउज के ऊपर से ही मुझे उनकी मखमली नर्मी का अहसास हो रहा था। उनके चूचुक कठोर होकर अपनी मौजूदगी का अलग ही अहसास करवा रहे थे।
भाभी के होंठों को छोड़कर मैं अब उनके गालों व गर्दन पर से होते हुए उनके उरोजों पर ऊपर आ गया और धीरे-धीरे उनके उरोजों को चूमने लगा। मगर भाभी के उरोजों व मेरे प्यासे होंठ के बीच उनका ब्लाउज आ रहा था।
और तभी..
जैसे कि भाभी ने मेरी मन की बात पढ़ ली हो.. उन्होंने एक ही झटके में ब्लाउज के सारे बटन खोलकर अपने दोनों उरोजों को आजाद कर दिया। ब्लाउज के बटन खुलते ही मैं भी उन पर ऐसे टूट पड़ा जैसे कि जन्मों के प्यासे को आज पहली बार कुंआ मिल गया हो।
मैं भाभी के दोनों उरोजों को बारी-बारी से चूमने-चाटने लगा, साथ ही हाथों से उन्हें मसल भी रहा था।
भाभी अब हल्का-हल्का कराहने लगी थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उनके दोनों चूचुक खड़े हो कर तन गए थे जो कि मेरे गालों पर चुभ से रहे थे, मैं भी भाभी एक चूचुक को मुँह ने भरकर गप्प कर गया जिससे भाभी के मुँह से सिसकी सी निकल गई और उन्होंने मेरे सिर को अपने सीने पर जोरों से दबा लिया।
मैं भी भाभी के चूचुक को अपनी जीभ व दांतों से कुरेद-कुरेद कर चूसने लगा। इससे भाभी के मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियां फूटने लगीं।
भाभी ने अपने पैरों को फैलाकर मुझे अपनी जाँघों के बीच दबा लिया और अपने नितम्बों को आगे-पीछे करके अपनी योनि को मेरे लिंग से रगड़ने लगीं।
तभी मेरे दिमाग में भाभी की योनि का ख्याल आया, मैं भाभी के ऊपर लेटा हुआ था और मैं इस स्थिति में तो भाभी की योनि को नहीं छू सकता था.. इसलिए भाभी के उरोजों को चूसते हुए ही मैं थोड़ा सा खिसक कर भाभी के शरीर पर से नीचे उतर गया, मैं अपना एक हाथ भाभी के उरोजों पर से हटाकर उनके नर्म पेट पर से होते हुए उनकी योनि पर ले आया जबकि मेरा दूसरा हाथ अभी भी भाभी के उरोजों को ही सहलाने में व्यस्त था।
पेटीकोट के ऊपर से ही मैंने भाभी की योनि का मुआयना किया, भाभी ने पेंटी पहन रखी थी, उनकी पेंटी योनि रस से भीग कर इतनी गीली हो चुकी थी कि भाभी का पेटीकोट भी योनिरस के कारण हल्का सा नम हो गया था।
भाभी की योनि संग मेरे लिंग का ये कामोत्तेजक खेल अभी अपने मुकाम से बहुत दूर है पर आपका साथ और प्रोत्साहन मिलता रहा तो आपको बहुत मजा आएगा।
आप अपने ईमेल जरूर लिखिएगा।
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भाभी की चुदाई की हिंदी सेक्स कहानी जारी है।
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