देवर भाभी की चुदाई-2
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प्रेषक : नामालूम
संपादक : जूजा जी
भीड़ के कारण सिर्फ़ भाभी को ही रिज़र्वेशन मिला, ट्रेन में हम दोनों एक ही सीट पर थे।
रात को भाभी के कहने पर मैंने अपनी टाँगें भाभी की तरफ और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनों आसानी से लेट गए।
रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट-लैंप की हल्की-हल्की रोशनी में मैंने देखा, भाभी गहरी नींद में सो रही थीं और उनकी साड़ी जांघों तक सरक गई थी। भाभी की गोरी-गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जांघें देख कर मैं अपना संयम खोने लगा। उनकी साड़ी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज में से बाहर गिरने को हो रही थीं।
मैं मन ही मन मानने लगा कि साड़ी थोड़ी और ऊपर उठ जाए ताकि भाभी की चूत के दर्शन कर सकूँ। मैंने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से साड़ी को ऊपर सरकाना शुरू किया।
साड़ी अब भाभी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी, पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नहीं समझ आ रहा था की 2 इंच ऊपर जो कालिमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की पैन्टी थी या भाभी की बुर के बाल।
मैंने साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाने की जैसे ही कोशिश की, भाभी ने करवट बदली और साड़ी को नीचे खींच लिया। मैंने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा।
मायके में भाभी ने मेरी बहुत खातिरदारी की, दस दिन के बाद हम वापस लौट आए।
वापसी में मुझे भाभी के साथ लेटने का मौका नहीं लगा। भैया भाभी को देख कर बहुत खुश हुए और मैं समझ गया कि आज रात भाभी की चुदाई निश्चित है।
उस रात को मैं पहले की तरह भाभी के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया। भैया कुछ ज़्यादा ही जोश में थे। अन्दर से आवाजें साफ़ सुनाई दे रही थीं।
‘सुम्मी मेरी जान, तुमने तो हमें बहुत सताया… देखो ना हमारा लंड तुम्हारी चूत के लिए कैसे तड़प रहा है.. अब तो इनका मिलन करवा दो..!’
‘हाय राम, आज तो यह कुछ ज़्यादा ही बड़ा दिख रहा है… ओह हो.. ठहरिए भी.. साड़ी तो उतारने दीजिए।’
‘ब्रा क्यों नहीं उतारी मेरी जान, पूरी तरह नंगी करके ही तो चोदने में मज़ा आता है। तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत को चोदना हर आदमी की किस्मत में नहीं होता।’
‘झूठ.. ऐसी बात है तो आप तो महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही!’
‘दो-तीन बार ही क्या?’
‘ओह हो.. मेरे मुँह से गंदी बात बुलवाना चाहते हैं..!’
‘बोलो ना मेरी जान, दो-तीन बार क्या?’
‘अच्छा बाबा, बोलती हूँ; महीने में दो-तीन बार ही तो चोदते हो… बस..!’
‘सुम्मी, तुम्हारे मुँह से चुदाई की बात सुन कर मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर सकता… थोड़ा अपनी टाँगें और चौड़ी करो। मुझे तुम्हारी चूत बहुत अच्छी लगती है… मेरी जान।’
‘मुझे भी आपका बहुत… उई.. मर गई… उई… आ…ऊफ़.. बहुत अच्छा लग रहा है….थोड़ा धीरे… हाँ ठीक है….थोड़ा ज़ोर से…आ..आह..आह…!’
अन्दर से भाभी के कराहने की आवाज़ के साथ साथ ‘फच..फच’ जैसी आवाज़ भी आ रही थीं जो मैं समझ नहीं सका।
बाहर खड़े हुए मैं अपने आप पर संयम नहीं कर सका और मेरा लंड झड़ गया। मैं जल्दी से वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया। अब तो मैं रात-दिन भाभी को चोदने के सपने देखने लगा। मैं पहले भी अपने आस-पास की 3-4 लड़कियों को चोद चुका था इसलिए चुदाई की कला से भली-भाँति परिचित था।
मैंने इंग्लिश की बहुत सी कामुक ब्लू-फिल्म्स देख रखी थीं और हिन्दी और इंग्लिश के कई कामुक उपन्यास भी पढ़े थे।
मैं अक्सर कल्पना करने लगा कि भाभी बिल्कुल नंगी होकर कैसी लगती होंगी।
जितने लम्बे और घने बाल उनके सिर पर थे ज़रूर उतने ही घने बाल उनकी चूत पर भी होंगे। भैया भाभी को कौन-कौन सी मुद्राओं में चोदते होंगे। एकदम नंगी भाभी टाँगें फैलाई हुए चुदवाने की मुद्रा में बहुत ही सेक्सी लगती होंगी। यह सब सोच कर मेरी भाभी के लिए काम-वासना दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।
मैं भी 5’7′ लंबा हूँ, अपने कॉलेज का बॉडी-बिल्डिंग का चैम्पियन था। रोज़ दो घंटे कसरत और मालिश करता हूँ। लेकिन सबसे खास चीज़ है मेरा लंड। ढीली अवस्था में भी 4 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा किसी हथौड़े के माफिक लटकता रहता है। यदि मैं अंडरवियर ना पहनू तो पैन्ट के ऊपर से भी उसका आकार साफ़ दिखाई देता है। खड़ा हो कर तो उसकी लम्बाई करीब 7-8 इंच और मोटाई 3.5 इंच हो जाती है।
एक डॉक्टर ने मुझे बताया था कि इतना लम्बा और मोटा लंड बहुत कम लोगों का होता है। मैं अक्सर बरामदे में तौलिया लपेट कर बैठ जाता था और अखबार पढ़ने का नाटक करता था। जब भी कोई लड़की घर के सामने से निकलती, मैं अपनी टाँगों को थोड़ा सा इस प्रकार से चौड़ा करता कि उस लड़की को तौलिए के अन्दर से झाँकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
मैंने अखबार में छोटा सा छेद कर रखा था। अखबार से अपना चेहरा छुपा कर उस छेद में से लड़की की प्रतिक्रिया देखने में बहुत मज़ा आता था। लड़कियों को लगता था कि मैं अपने लंड की नुमाइश से बेख़बर हूँ। एक भी लड़की ऐसी ना थी जिसने मेरे लंड को देख कर मुँह फेर लिया हो।
धीरे-धीरे मैं शादीशुदा औरतों को भी लंड दिखाने लगा, क्योंकि उन्हें ही लम्बे, मोटे लंड का महत्व पता था।
एक दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था कि भाभी ने आवाज़ लगाई- राजू, ज़रा बाहर जो कपड़े सूख रहे हैं, उन्हें अन्दर ले आओ… बारिश आने वाली है।’
‘अच्छा भाभी..।’ मैं कपड़े लेने बाहर चला गया। घने बदल छाए हुए थे, भाभी भी जल्दी से मेरी मदद करने आ गईं।
डोरी पर से कपड़े उतारते समय मैंने देखा की भाभी की ब्रा और पैन्टी भी टंगी हुई थी। मैंने भाभी की ब्रा को उतार कर साइज़ पढ़ लिया; साइज़ था 34बी, उसके बाद मैंने भाभी की पैन्टी को हाथ में लिया। गुलाबी रंग की वो पैन्टी करीब-करीब पारदर्शी थी और इतनी छोटी सी थी जैसे किसी दस साल की बच्ची की हो।
भाभी की पैन्टी का स्पर्श मुझे बहुत आनन्द दे रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी पैन्टी भाभी के इतने बड़े चूतड़ों और चूत को कैसे ढकती होगी। शायद यह कच्छी भाभी भैया को रिझाने के लिए पहनती होंगी। मैंने उस छोटी सी पैन्टी को सूंघना शुरू कर दिया ताकि भाभी की चूत की कुछ खुश्बू पा सकूँ।
भाभी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया और बोलीं- क्या सूंघ रहे हो राजू ? तुम्हारे हाथ में क्या है?
मेरी चोरी पकड़ी गई थी। बहाना बनाते हुए बोला- देखो ना भाभी ये छोटी सी कच्छी पता नहीं किसकी है? यहाँ कैसे आ गई।
भाभी मेरे हाथ में अपनी पैन्टी देख कर झेंप गईं और चीखती हुई बोलीं- लाओ इधर दो।
‘किसकी है भाभी ?’ मैंने अंजान बनते हुए पूछा।
‘तुमसे क्या मतलब, तुम अपना काम करो।’ भाभी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।
‘बता दो ना… अगर पड़ोस वाली बच्ची की है तो लौटा दूँ।’
‘जी नहीं, लेकिन तुम सूंघ क्या रहे थे?’
‘अरे भाभी, मैं तो इसको पहनने वाली की खुशबू सूंघ रहा था, बड़ी मादक खुश्बू थी। बता दो ना किसकी है?’
भाभी का चेहरा यह सुन कर शर्म से लाल हो गया और वो जल्दी से अन्दर भाग गईं।
उस रात जब वो मुझे पढ़ाने आईं तो मैंने देखा कि उन्होंने एक सेक्सी सी नाइटी पहन रखी थी। नाइटी थोड़ी सी पारदर्शी थी। भाभी जब कुछ उठाने के लिए नीचे झुकीं तो मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि भाभी ने नाइटी के नीचे वो ही गुलाबी रंग की पैन्टी पहन रखी थी। झुकने की वजह से पैन्टी की रूप-रेखा साफ़ नज़र आ रही थी। मेरा अंदाज़ा सही था। पैन्टी इतनी छोटी थी कि भाभी के भारी चूतड़ों के बीच की दरार में घुसी जा रही थी।
मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी, मुझसे ना रहा गया और मैं बोल ही पड़ा- भाभी अपने तो बताया नहीं, लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छोटी सी पैन्टी किसकी थी।
‘तुझे कैसे पता चल गया?’ भाभी ने शरमाते हुए पूछा।
‘क्योंकि वो पैन्टी आपने इस वक़्त नाइटी के नीचे पहन रखी है।’
‘हट बदमाश..! तू ये सब देखता रहता है?’
‘भाभी एक बात पूछूँ? इतनी छोटी सी पैन्टी में आप फिट कैसे होती हैं?’ मैंने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया।
‘क्यों मैं क्या तुझे मोटी लगती हूँ?’
‘नहीं भाभी, आप तो बहुत ही सुन्दर हैं, लेकिन आपका बदन इतना सुडौल और गठा हुआ है, आपके चूतड़ इतने भारी और फैले हुए हैं कि इस छोटी सी पैन्टी में समा ही नहीं सकते। आप इसे क्यों पहनती हैं? यह तो आपकी जायदाद को छुपा ही नहीं सकती और फिर यह तो पारदर्शी है, इसमें से तो आपका सब कुछ दिखता होगा।’
‘चुप नालायक, तू कुछ ज़्यादा ही समझदार हो गया है, जब तेरी शादी होगी ना तो सब अपने आप पता लग जाएगा। लगता है तेरी शादी जल्दी ही करनी होगी, शैतान होता जा रहा है।’
‘जिसकी इतनी सुन्दर भाभी हो वो किसी दूसरी लड़की के बारे में क्यों सोचने लगा?’
‘ओह हो..! अब तुझे कैसे समझाऊँ? देख राजू, जिन बातों के बारे में तुझे अपनी बीवी से पता लग सकता है और जो चीज़ तेरी बीवी तुझे दे सकती है, वो भाभी तो नहीं दे सकती ना? इसी लिए कह रही हूँ शादी कर ले।’
‘भाभी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती?’ मैंने बहुत अंजान बनते हुए पूछा। अब तो मेरा लंड फनफनाने लगा था।
कहानी जारी रहेगी।
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