नीम्बू का अचार

(Jungle Me Bhabhi Ki Chudai)

मेरा नाम अंकित शर्मा है, मैं 22 साल का गोरा, स्मार्ट दिखने वाला लड़का हूँ। मैं मूल रूप से इंदौर का रहने वाला हूँ लेकिन फिलहाल नोएडा में अकेला रह रहा हूँ।

लड़कियाँ कहती हैं कि मुझमें कुछ बात है जो उन्हें मेरी तरफ आकर्षित करती है। मेरे लण्ड की लम्बाई सात इंच तथा मोटाई तीन इंच है। मेरा शरीर गठीला है क्योंकि कॉलेज के शुरूआती दिनों से ही मुझे कसरत का शौक रहा है। और मुझे चुदाई करने में बड़ा मजा आता है, वैसे चोदने में तो सबको मजा आता है।

हुआ कुछ यों कि अप्रैल में मैं अपना मूड फ्रेश करने के लिए अपनी नानी के गाँव एक हफ़्ते की छुट्टी लेकर गया। मेरी नानी करीब 80 साल से ऊपर की होंगी। गाँव में नानी जी, मेरे मामा जी, मामी जी और उनका एक लड़का यानि मेरे बड़े भाई जिनकी उम्र करीब 30 साल है, उनकी पत्नी यानि मेरी भाभी जिनकी उम्र 25 के लगभग है और उसके 2 लड़के राजू और सोनू जो दूसरी और तीसरी कक्षा में हैं, रहते हैं।

भाभी का रंग गेहुंआ है या फिर कहें कि वो गाँव की साँवली सलोनी है, बदन सामान्य और उनका कद भी ज़्यादा नहीं है, लेकिन एकदम मस्त माल हैं वो! पूरा शरीर मस्त जवानी से भरा हुआ है उनका!

मैं गाँव पहुँचा तो मुझे वहाँ जाकर गाँव के माहौल में बड़ा अच्छा लगा। गाँव की हरियाली, सड़क के किनारे लगे बड़े बड़े पेड़, लंबे-चौड़े खेत और घना जंगल, दिल को खुश कर देता था।

तो मैं दोपहर में नानी जी के घर पहुँचा, मामा जी और बड़े भैया खेतों में जा चुके थे क्योंकि इन दिनों गेहूँ की फ़सल की कटाई का काम चल रहा था तो खेत में ज़्यादा काम होता था।

गर्मी धीरे धीरे अपने शवाब में चढ़ रही थी और गाँव में बिजली ना होने की वजह से मुझे बहुत गर्मी लग रही थी। मैंने मामी जी से कहा- मुझे नहाना है!
तो उन्होंने कहा- ठीक है, 5-10 मिनट रूको, फिर नदी में नहाने चले जाना!
नदी घर से पीछे ही कुछ दूरी पर है।

मैंने अपने अंडरगार्मेंट्स और तौलिया लिया और निकल पड़ा नदी की ओर नहाने के लिए। नदी के उस पार बहुत घना जंगल है जहाँ पर कभी कभी कुछ फ़ल और लकड़ी वगैरह लेने के लिए गाँव वाले जाते हैं।

तो मैं नदी के ठंडे-ठंडे पानी में जी भर के नहाया और करीब एक घंटे बाद घर लौटा।

घर लौटने पर दोपहर का खाना तैयार रखा हुआ था, मामी जी ने कहा- अंकित, खाना खा लो और उसके बाद अपने मामा और भैया को खाना देने के लिए मेरे साथ खेत चलना और घूम भी लेना!

भाभी ने मुझे खाना परोसा, और साथ में नींबू का अचार भी दिया। नींबू का अचार मुझे बड़ा स्वादिष्ट लगा, तो मैंने भाभी से कहा- भाभी जब मैं घर जाऊँगा तो ये वाला अचार मुझे घर के लिए भी देना।

तो भाभी ने कहा- भैया, यह अचार तो ख़त्म होने वाला है, मैं तुम्हारे लिए दूसरा बना दूँगी।
तब मैंने कहा- ठीक है।

और लंच ख़त्म करके मामी जी के साथ खाना लेकर खेत चला गया और फिर सबके साथ ही शाम को घर लौटा। गर्मी की दोपहर की दिन भर की तपन से घर के अंदर बहुत गर्म लग रहा था और आप लोगो को तो पता ही है कि गाँवों में बिजली तो बहुत कम ही रहती है जिससे पंखे कूलर चल नहीं सकते! लेकिन गाँव में रहने का एक फ़ायदा यह है कि घर के बाहर गर्मियों में मौसम एकदम ठंडा जाता है।

तो हम सब लोग घर के बाहर आँगन में खाट पर बैठ गये, मामी और भाभी रात के खाने की तैयारी में लग गई और मैं सोनू और राजू नानी जी मामा और भैया के साथ गाँव की गर्मियों की ठंडी शाम का मज़ा ले रहे थे।

रात को सबने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे। मैं घर के बाहर ही मामा जी के साथ खाट में सोया, बड़ा मस्त लग रहा था बाहर सोने में!

दूसरे दिन सुबह करीब 9 बजे नानी जी ने मुझे उठाया। मामा जी और भैया रोज़ की तरह सुबह जल्दी ही खेत के लिए जा चुके थे, भाभी ने चाय लाकर दी और कहा- भैया, आपको नींबू का अचार घर ले जाना है ना तो सोनू और राजू के साथ जंगल जाकर नींबू तोड़ लाओ।
मैंने कहा- ठीक है!
इस पर मामी जी ने कहा- बच्चों के साथ इसे जंगल क्यों भेज रही हो, सोनू और राजू तो वैसे भी कितने शरारती हैं, और अंकित को जंगल के बारे में कुछ पता नहीं हैं, कहीं कोई परेशानी में ना पड़ जाए ये लोग!

तो मैंने कहा- नहीं मामी जी, मैं जंगल जाऊँगा।
तो मामी जी ने कहा- ठीक है तुम भाभी के साथ जंगल जाना।
इस पर भाभी ने कहा- मैं जंगल गई तो घर के काम कौन करेगा?
तो मामी जी ने कहा- मैं कर लूँगी, तू आज नींबू ले आ अचार के लिए!

इतना सुनते ही भाभी के चेहरे पर मुझे कुछ अजीब सी मुस्कान दिखाई दी, शायद उन्हें आज घर के कामों से छुट्टी तो मिल गई थी। फिर मामी जी ने कहा- अंकित जल्दी से नहा लो और नाश्ता करके नींबू लेने जल्दी चले जाओ! ज़्यादा देर मत करना क्योकि जंगल में बहुत टाइम लगता है, तुम लोगों को लौटने में देर हो जाएगी।

मैंने वैसा ही किया और लगभग 11 बजे करीब मैं और भाभी एक बड़ा सा झोला लेकर जंगल की तरफ निकल पड़े। करीब 10 मिनट चलने के बाद हम घने जंगल में प्रवेश कर चुके थे, अब हमें नींबू के पेड़ ढूंढकर नींबू तोड़ने थे। मैं और भाभी करीब 1 किलो मीटर और आगे गये, वहाँ 3-4 नींबू के पेड़ तो मिले लेकिन उन पर एक भी नींबू नहीं लगा हुआ था।

भाभी ने कहा- भैया, ये पेड़ सबसे पास के हैं ना इसलिए इनमे नींबू बच नहीं पाते हैं, सब पहले इन पेड़ों से ही नींबू तोड़ कर ले जाते हैं, हम थोड़ा और आगे जाकर ढूंढना पड़ेगा।
मैंने कहा- ठीक है, चलते हैं।

गर्मी की दोपहर थी और बहुत दूर तक पैदल चलने की वजह से मैं बहुत थक गया था, हालांकि जंगल इतना घना था कि धूप हमें सीधे छू नहीं रही थी पर उमस की वजह से हमें बहुत गर्मी लग रही थी और पसीना भी बहुत निकल रहा था।

मैंने भाभी से कहा- भाभी, मैं बहुत थक गया हूँ, अब और आगे नहीं जा पाऊँगा, मुझे प्यास भी लगी है।
भाभी ने झोले में देखा तो हम जल्दबाज़ी के कारण पानी की बोतल घर में ही भूल आए थे, भाभी ने कहा- भैया, थक तो मैं भी गई हूँ, जंगल में इतना घूमने की मेरी भी आदत नहीं है, लेकिन इतनी दूर आए हैं तो थोड़ा और आगे चल कर देख लेते हैं, शायद कुछ नींबू मिल जाएँ!

मैंने फिर कहा- भाभी, मुझे प्यास भी ज़ोर की लगी है और गर्मी भी बहुत लग रही है, पसीने से पूरे कपड़े भीग गये हैं।
तो भाभी ने कहा- ऐसा ही मेरा भी हाल है, चलो हम झरने की तरफ जाकर देखते हैं, शायद वहा मिल जाए नींबू!
मैंने पूछा- झरना?

तो भाभी ने कहा- हाँ, जंगल में एक झरना भी है और उधर तक जाने का रास्ता थोड़ा मुश्किल है, इसलिए वहाँ कोई जाता नहीं है, वहाँ के पेड़ों में हमें ज़रूर नींबू मिल जाएँगे और झरने के पानी से प्यास भी बुझ जाएगी।
मैंने कहा- ठीक है भाभी, चलकर देखते हैं।

और हम झरने की तरफ बढ़ गये। झरने तक पहुँचने का रास्ता सच में बहुत खराब था, रास्ते मे बड़े बड़े और नुकीले पत्थर थे और काँटों वाली घनी झाड़ियाँ लगी थी।

हमें चलने में बहुत दिक्कत हो रही थी पर लगभग आधे घंटे और चलने के बाद मुझे एक छोटी सी पहाड़ी दिखाई दी तो मैंने भाभी से कहा- भाभी, हम पहाड़ पर आ गये, हमें तो झरने तक जाना था?
तो भाभी बोली- इस पहाड़ पर से ही तो झरना गिरता है!

हम पहाड़ के और पास गये तो मैंने भाभी से कहा- भाभी, कहाँ है इधर झरना?
तो भाभी ने कहा- हम झरने के पीछे हैं, हमें घूम कर जाना होगा।

हम थोड़ा और चले तो वहाँ सच में एक झरना था, ज़्यादा बड़ा नहीं था लेकिन चट्टानों पर से गिरती हुई पानी की पतली धार बहुत सुंदर लग रही थी, झरने के साफ़ पानी की धार जहाँ पर नीचे गिर रही थी, वहाँ 10-12 फीट चौड़ा एक गड्ढा बन गया था जो लगभग 5-6 फीट गहरा था और उसमे रेत और छोटे बड़े पत्थर थे, उसका पानी बिल्कुल साफ था, आस-पास की हरियाली और बीच में पहाड़ों से गिरता हुआ यह झरना ऐसा लग रहा था मानो मैं जन्नत में हूँ।

भाभी ने पहाड़ से गिरती हुई उस पानी की धार से पानी पिया और मुझसे कहा- भैया, आप भी यह पानी पी सकते हो! पानी बहुत मीठा है।
मैंने भी वो पानी पिया, पानी सच में बहुत मीठा था, मिनरल वॉटर से भी ज़्यादा शुद्ध!

मैंने भाभी से कहा- भाभी, मुझे बहुत गर्मी लग रही है, मैं तो इसी झरने में नहाऊँगा लेकिन मैं तो नहाने के लिए अंडरगार्मेंट्स लेकर आया ही नहीं।
तो भाभी ने कहा- जो पहने हो, उन्हें निकाल कर नहा लो, वैसे भी इधर कोई आता जाता तो है नहीं जो तुम्हें देखेगा नहाते हुए!
और ज़ोर से हँसने लगी।

दोस्तो, सच कह रहा हूँ, तब से पहले भाभी को लेकर मेरे दिल में कोई गंदे ख्याल नहीं थे लेकिन उनकी इस नटखट सी हँसी ने पता नहीं क्या जादू किया और मेरे दिल में भाभी को चोदने की प्रबल इच्छा जाग उठी।

मैं मन ही मन सोचने लगा कि यदि किस्मत ने साथ दिया तो आज बहुत दिनों के बाद मेरे लंड की प्यास बुझ सकती है, और वो भी भाभी जैसी गाँव की साँवली सलोनी औरत से जिसकी मस्त जवानी छलक रही हो, शायद आज मेरे लिए जंगल में कुछ मंगल हो जाए। मैंने भाभी से कहा- ठीक है, आप मुझे गमछा दो, मैं उसे लपेट कर नहा लूँगा। मैंने अपने कपड़े निकाल दिए, गमछा लपेटा और कूद पड़ा झरने के पानी में!

बहुत मज़ा आ रहा था झरने के उस ठंडे पानी में नहाने में, सारी की सारी गर्मी पल भर में छूमंतर हो गई, लेकिन भाभी की जवानी की वजह से लंड पर जो गर्मी चढ़ रही थी उसे कैसे मिटाऊँ, यही सोच रहा था।

मैंने भाभी से कहा- भाभी, पानी बहुत ठंडा है, आप भी नहा लो।
तो भाभी ने मुस्कुरा कर कहा- भैया, गर्मी तो मुझे भी बहुत लग रही है, और मेरा दिल भी नहाने को कर रहा है लेकिन कैसे नहा लूँ, कोई इधर देख लेगा तो?

मैंने कहा- भाभी, अभी आप ही तो कह रही थी कि इधर कोई आता जाता नहीं है तो देखेगा कौन, जैसे नदी में नहाती हो, वैसे ही इधर भी साड़ी उतार कर पेटीकोट में नहा लो, और रही बात मेरी तो मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगा कि आपन झरने में नहाई थी।

इस पर भाभी बिना कुछ कहे थोड़ी देर तक कुछ सोचती रही, तो मैंने कहा- भाभी, सोच क्या रही हो? नहा लो, पूरी थकान पल भर में दूर हो जाएगी।
तो भाभी ने कहा- ठीक है, मैं भी आती हूँ लेकिन तुम झरने में दूसरी तरफ मुँह करके नहाना, मेरी तरफ मत देखना!
मैंने कहा- ठीक है, नहीं देखूँगा।

फिर क्या था, भाभी वहीं पास के ही एक पेड़ के पीछे जाकर अपने कपड़े निकालने लगी, मैं नहाते हुए भाभी को देख रहा था, पेड़ इतना चौड़ा नहीं था कि भाभी को पूरी तरह से छुपा सके, मैंने देखा कि पहले भाभी ने अपना ब्लाऊज़ निकाला, भाभी ने ब्लाऊज़ के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी जैसा गाँव की ज़्यादातर औरतें करती हैं। फिर उन्होंने अपनी साड़ी खोल कर हटा दी। मुझे भाभी की नंगी पीठ दिख रही थी।

अब भाभी सिर्फ़ पेटीकोट में थी, उन्होंने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला और पेटीकोट को खींच कर अपने वक्ष के ऊपर तक ले जा कर अपनी चूचियाँ ढक कर फिर से नाड़ा बाँध लिया।

अब भाभी पेड़ के पीछे से निकल कर झरने की तरफ बढ़ने लगी, मैंने जल्दी से अपनी नज़र कहीं और घुमा ली, फिर नज़रें टेढ़ी करके भाभी को देखने लगा। उनके बड़े बड़े उरोज पेटीकोट के अंदर छिपे थे और पेटीकोट उनकी जांघों को घुटनों तक ढके हुए था। भाभी की सेक्सी बाहें और टांगें क्या जबरदस्त लग रहू थी, जिन्हें देख कर कोई 80 साल का बुढ्ढा भी गर्म हो जाए, फिर मैं तो ठहरा 20 साल का जवान लड़का!

खैर भाभी झरने के पानी वाले गड्ढे में उतरी, मैं ऊपर से गिरने वाली पानी की धार के नीचे खड़ा था और भाभी गड्ढे के पानी में मुझसे थोड़ा दूर खड़ी थी। मैं पानी की धार से अलग हुआ और भाभी से कहा- अब आप आ जाओ इसके नीचे, आप भी मज़ा लो इस प्राकृतिक शावर का!
भाभी ने कहा- ठीक है!
और पहाड़ की तरफ मुंह करके झरने के नीचे खड़ी हो गई, पानी पड़ते ही भाभी का पूरा शरीर मेरे सामने मानो नंगा हो गया था, उस गीले पेटीकोट से आर-पार दिख रहा था, भाभी मेरे सामने सिर्फ़ एक पेटीकोट में मेरी तरफ अपनी पीठ करके अपने शरीर को रग़ड़ रही थी और मैं भी उसी पानी के गड्ढे में सिर्फ़ एक पतला सा गमछा लपेटे हुए भाभी की मस्त जवानी को निहार रहा था।

मेरा लंड अब खड़ा होने लगा था जिसे छुपा पाना उस गमछे के बस में नहीं था जो मैं लपेटे था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैंने मन ही मन सोचा कि यही सही मौका है और मैंने भाभी को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया, मेरे ऐसा करते ही भाभी एकदम से चिल्लाई, पहले तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया फिर कुछ पलों बाद उन्होंने अपना चेहरा पीछे करके देखा और कहा- भैया, यह क्या कर रहे हो? यह ठीक नहीं है।
तो मैंने कहा- भाभी, नींबू का अचार खाने के लिए इतनी दूर लेकर आई हो, नींबू तो अब तक मिले नहीं हैं, कम से कम इन आमों का रस ही पिला दो!
और उनके दोनों स्तनों को अपने हाथों से पेटीकोट के ऊपर से मसलने लगा।

भाभी ने कहा- लेकिन कोई देख लेगा तो?
मैंने कहा- भाभी इधर कौन देखेगा हमें? इतनी देर से तो पूरे जंगल में मुझे कोई इंसान दिखा नहीं जो हमें देखेगा।

तो भाभी कुछ देर सोचने लगी और इस बीच मैं उनके उभार बड़ी तेज़ी से मसल रहा था जिससे भाभी भी गर्म होने लगी थी।

थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा- ठीक है भैया, सिर्फ़ आम का रस ही पीना, उससे ज़्यादा और कछ नहीं! और किसी को बताना नहीं कि मैंने तुम्हें अपने आमों का रस पिलाया था। यदि किसी को पता लग गया तो मेरी बहुत बदनामी होगी।
मैंने कहा- भाभी, उसकी चिंता आप मत करो, आपकी बदनामी होगी तो साथ में मेरी भी तो बदनामी होगी ना!
फिर मैंने भाभी को अपनी तरफ घुमा लिया और उनके पेटीकोट के नाड़े की गाँठ जो उनके वक्ष के ऊपर थी, उसको खोल दिया और पेटीकोट को नीचे गिरा दिया।

अब भाभी मेरे सामने सिर्फ़ काली पैंटी में खड़ी थी और उनका बदन झरने के पानी से भीग रहा था।

वाह, क्या मदहोश कर देने वाला फिगर था भाभी का, क्या बड़े चूचे थे, और चुचूक भी बड़े-बड़े एकदम गहरे रंग के थे। अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने हाथों में भाभी की दोनों चूचियों को भर लिया। भाभी के उभार उनकी फिगर के हिसाब से काफ़ी बड़े थे, उनका सिर्फ़ एक उभार ही मेरे दोनों हाथों में आ रहा था।
मैं उनके चूचों को बहुत जोर से मसल रहा था, उनके निप्पल रगड़ रहा था। मेरे ऐसा करने से उनके निप्पल एकदम कड़े हो गये थे।

भाभी अपने हाथों से मेरे सर को सहला रही थी और थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरा मुंह अपने बूब्स पर रख दिया। अब मैं भाभी के बड़े बड़े और नर्म बूब्स को चूस रहा था, कभी एक तो कभी दूसरा, उनके निप्पल चूस रहा था और उन्हें हल्के से काट भी कर रहा था।

जब मैं उन्हें बाइट करता तो भाभी ज़ोर से आहह की आवाज़ निकालती। करीब 10 मिनट तक भाभी के बूब्स चूसने के बाद मैं भाभी के होंठों को चूसने लगा, भाभी भी चुम्बन में मेरा साथ दे रही थी, वो भी मेरे होठों को और जीभ को चूस रही थी।
फिर मैंने भाभी से कहा- भाभी, आपके आम तो मैंने चूस लिए, अब मेरा केला भी चूसो ना!

और इतना कहकर मैंने अपना लण्ड निकाल दिया जिससे मेरा सख्त 6.5 इंच का लंड आज़ाद होकर हवा में लहराने लगा। उसे देखकर भाभी हल्के से मुस्कुरा दी। मैंने भाभी का हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया और कहा- भाभी, इसे भी चूसो ना!

तो भाभी ने हल्के से मुस्कुराते हुए ना में सर हिलाया, शायद उन्होंने कभी कोई लंड चूसा नहीं था इसलिए मेरा लंड चूसने में शरमा रही थी। वो अपने हाथों से ही मेरे लंड को सहलाने लगी और मेरे लंड को मसलने लगी। थोड़ी देर बाद मैंने भाभी से कहा- ठीक है, मेरा केला मत चूसो, लेकिन मुझे तो तुम्हारा पपीता चाटने दो।

यह सुन कर भाभी फिर से मुस्कुरा दी लेकिन इस बार मना नहीं किया और फिर मैंने नीचे झुक कर भाभी की पैंटी भी निकाल दी।

वाह! क्या चूत थी भाभी की! सांवली-सलोनी बिल्कुल भाभी जैसी, उनकी चूत के बाल ज़्यादा घने नहीं थे, बहुत हल्के थे, इतने कि उन्हें कभी शेव करने की ज़रूरत नहीं पड़ती होगी।

और फिर मैंने भाभी का एक पैर ज़मीन के लेवेल से थोड़ा ऊपर दूसरे पत्थर पर रखा जिससे उनकी चूत पूरी तरह से मेरे सामने आ गई। अब मैंने अपने होंठ भाभी की चूत के उभरे हुए होंठों पर रख दिए और उन्हें चाटने लगा। मेरे ऐसा करते ही भाभी के शरीर में मानो करेंट सा फैल गया हो, वो ज़ोर से आवाज़ निकालने लगी, मैं अपनी जीभ भाभी की चूत के दाने पर रगड़ रहा था ऐसा करने से भाभी और मस्त होकर सीत्कारने लगी- हम्म आआहह अहह!

अब मैंने अपने होंठों से भाभी की चूत के लबों को फैलाया और अपनी जीभ भाभी की चूत के अंदर डाल कर चाटने लगा।

मुझे भाभी की चूत चाटने में और भाभी को चटवाने में बहुत मज़ा आ रहा था, भाभी अपने हाथों से मेरे सर को अपनी चूत में दबा रही थी और मस्त-मस्त आवाज़ें निकाल रही थी और लगभग 10 मिनट भाभी की फ़ुद्दी चाटने के बाद उन्होंने अपना पानी छोड़ दिया।

अब मैं खड़ा हो गया।
फिर भाभी ने कहा- भैया, चलो, बहुत देर हो गई है। हमें अभी नींबू भी तोड़ने हैं।
तो मैंने भाभी को अपने से चिपका कर उनके होंठों को चूम लिया और कहा- भाभी प्लीज, चोदने भी दो ना! बहुत मन कर रहा है।
और भाभी को फिर से चूमने लगा और उनके बूब्स दबाने लगा।

फिर दो मिनट कुछ सोचने के बाद भाभी ने फिर से वही बात कही- ठीक है भैया, लेकिन यह सब किसी को पता नहीं लगना चाहिए।
मैंने कहा- हाँ, बिल्कुल पता नहीं चलेगा।
और फिर हम दोनो एक दूसरे को चूमने चाटने भींचने लगे, और एक दूसरे के बदन को सहला रहे थे।

वहाँ पास ही एक बड़ी सी चट्टान थी जो झरने के पानी में आधी डूबी हुई थी और उसकी सतह समतल थी। मैंने भाभी को उस चट्टान पर चढ़ाया और खुद भी उस पर चढ़ गया, मैंने भाभी को वहाँ लेटने को कहा, भाभी लेट गई और मैं भाभी के ऊपर आ गया।

मैंने भाभी के लब फिर से चूमने शुरू किए और फिर उनका गला चूमने लगा। उसके बाद मैंने भाभी के हाथ ऊपर कर दिए और उनकी बगलें और चूचियाँ चाटने लगा। आह! बहुत मज़ा आ रहा था भाभी की चिकनी और नर्म त्वचा को चाटने में!
अब मैं भाभी के शरीर को चूमते हुए उनकी नाभि की तरफ बढ़ रहा था।

उसके बाद मैं भाभी की चूत पर आकर रुक गया और उसे चाटने लगा। फिर मैंने भाभी के पैरों को थोड़ा फैला दिया और उनकी जांघों के बीच में बैठ कर अपने हाथों से भाभी की मोटी मोटी गदराई हुई जांघों को रगड़ने लगा।
क्या मस्त जंघाएँ थी भाभी की! ऐसी जांघें मैंने पहले कभी नहीं देखी थी।

कुछ देर भाभी की जांघों को रगड़ने और चाटने के बाद मैंने भाभी की चूत को अपने हाथों से फैलाया और अपने बेचारे लंड को जो इतनी देर से भाभी की चूत में घुसने का इंतज़ार कर रहा था, उसे भाभी की चूत के छेद पर रख दिया। भाभी की चिकनी चूत तो पहले से ही गीली थी, मैंने हल्के से एक धक्का मारा और मेरा पूरा लंड भाभी की चूत में समा गया।
लंड के चूत में घुसते ही भाभी ज़ोर से चीखी- आअहह मर गई मैं!

अब मैंने भाभी को अपनी बाहों में ले लिया और उन्हें चूमा और हम दोनों थोड़ा आरामदायक अवस्था में हुए। हम मिशनरी पोज़िशन में थे। मैंने धीरे धीरे लंड को चूत के अंदर बाहर करना शुरू किया, भाभी की चूत की रग़ड़ से जो मज़ा मिल रहा था वो सच में बहुत अदभुत था, मैं उसे इधर शब्दों में नहीं बता सकता!

मैं अपने चूतड़ आगे पीछे कर रहा था और भाभी भी अपने चूतड़ उछाल कर मेरे लंड को अपनी चूत की गहराई में पहुँचने में मेरी मदद कर रही थी। पहाड़ के ऊपर से गिरने वाले झरने की फुहारें हमारे शरीर पर पड़ रही थी, पानी की उन ठंडी फुहारों ने भाभी जैसी मस्त माल औरत की चुदाई का मज़ा दोगुना कर दिया था।

मैं भाभी को पूरी स्पीड में चोद रहा था और भाभी कभी मेरे बालों को तो कभी मेरी पीठ को सहला कर मुझे और उत्तेजित कर रही थी। कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद मैंने भाभी से कहा- भाभी, मुझे आपका पीछे वाला छेद भी चोदना है!

तो भाभी कुछ समझ नहीं पाई और बोली- पीछे वाला छेद? मतलब?
तो मैंने कहा- भाभी, मुझे आपकी गान्ड भी मारनी है।
तो भाभी हैरान रह गई और कहने लगी- वो कैसे करते हैं?
तो मैंने उनसे पूछा- कभी भैया ने आपके पीछे वाले छेद में लंड नहीं डाला?
तो उन्होंने कहा- नही!

मैंने कहा- ठीक है, मैं आपको गांड मराने का मज़ा देता हूँ।
और भाभी को कुतिया की तरह खड़े होने को कहा। भाभी भी वैसे ही खड़ी हो गई।

भाभी की मस्त मोटी गांड मेरे सामने थी, मैंने अपने हाथों से भाभी के बड़े बड़े पृष्ठ उभारों को फैलाया, जिससे उनकी गांड का छेद दिखने लगा। मैंने अपनी एक उंगली भाभी की गांड के छेद पर लगाई तो भाभी ने अपने छेद को सिकोड़ लिया।

भाभी की गांड बहुत कसी थी, मैंने अपनी उंगली छेद के अंदर डालने की कोशिश की तो छेद के अंदर नहीं जा रही थी। मैंने सोचा कि जब एक उंगली छेद में नहीं जा रही है तो मेरा इतना मोटा लंड कैसे अंदर जाएगा। फिर मैं थोड़ा सा पानी अपने हाथ में भरकर लाया और भाभी की गांड में डाला और भाभी से गांड को ढीली करने को कहा और फिर मैं धीरे-धीरे अपनी उंगली भाभी की गांड में अंदर बाहर करता रहा जिससे छेद ढीला हो जाए।

कुछ देर बाद मैंने अपना लंड गाण्ड में डालने की कोशिश शुरू की, तो भाभी ज़ोर से चीखने लगी।
वो बोली- भैया, बहुत दर्द हो रहा है, गांड मत मारो!
तो मैंने कहा- भाभी, अभी थोड़ा सा दर्द होगा, अंदर जाने के बाद मज़ा आने लगेगा।

और फिर मैंने फिर से अपना लंड भाभी की गांड में धकेलना शुरू कर दिया और कुछ देर के प्रयास के बाद मेरे लंड की टोपी भाभी की गांड में घुस गई। फिर मैंने भाभी को गांड ढीली करने को कहा और उनके चूतड़ों को सहलाया और एक ज़ोर का झटका मारा, उस झटके के साथ ही मेरा पूरा लंड भाभी की गांड फ़ाड़ता हुआ अंदर चला गया और भाभी दर्द से चिल्ला उठी- अहह मर गई! आहह भैया बाहर निकालो! बहुत दर्द हो रहा है।

लेकिन मैंने कुछ देर वैसे ही रहा और भाभी के चूतड़ों को सहलाता रहा। करीब 5 मिनट के बाद मैंने अपना लंड धीरे धीरे चलाना शुरू किया। अब भाभी का दर्द ख़त्म हो चुका था और वो मेरे लंड को मज़े से अपनी गांड में ले रही थी। भाभी के बड़े-बड़े हिप्स के बीच में उनकी गांड के छेद पर अंदर बाहर होता मेरा लंड, क्या जबरदस्त मज़ा दे रहा था।
कुछ देर बाद भाभी को भी मज़ा आने लगा और मैं उनकी गाण्ड में ही झड़ गया।

अब हमें नींबू ढूंढने थे, हमें अब ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी और वहीं झरने से थोड़ा आगे ही नींबू के 3-4 पेड़ मिल गये, हमने जल्दी से नींबू जमा किए और घर की तरफ निकल गये। मैं नानी जी के यहाँ 4-5 दिन और रुका लेकिन परिवार होने की वजह से दोबारा चुदाई का मौका नहीं मिला।

फिर मैं अपनी छुट्टियों के आख़िरी दिन अपने साथ नींबू का अचार और भाभी की चुदाई की यादें लेकर वापस अपने घर लौट आया। तो दोस्तो, यह था मेरा चुदाई का अनुभव!
आपको पढ़कर मज़ा आया या नहीं, मुझे मेल करके ज़रूर बताएँ।
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