मदनराग रंग लायो..
तन के मिलन की चाह बडी नैसर्गिक है। सुन्दर स्त्री की देह से बढ़कर भ्रमित करने वाला और कुछ पदार्थ इस संसार में नहीं है। मेरे पिता ईसाई, माता हिन्दू ! मुझ पर हिन्दू संस्कारों की छाया अधिक पड़ी। मेरा विवाह मेरी मां की पसन्द के एक हिन्दू घराने में हुआ। पत्नी यौवन में नव दाम्पत्य के दिनों में सभी को बहुत भाती है और सर्वांग सुन्दरी लगती है। कालांतर में मुझे दूसरी स्त्रियां भी आकर्षित करने लगी। विवाह के बाद दूसरी स्त्रियों से बात कर लेने में कोई शक़ भी नहीं करता है।
सुजाता, मेरी साली जी, अपनी शादी के बाद भी मुझसे मज़ाक करने में चूकती नहीं। वह मुझे बहुत भाती है। उसकी बातों की शैली कसमसाहट देती है। मुझे बहुत सतर्क रहना पड़ता है कि कहीं मेरा अपना दाम्पत्य जीवन भंग न हो जाये।
पिछले रविवार उसे किसी सिलसिले में मेरे शहर आना था। मैने सोचा कि चलो हल्की फुल्की चुहल होगी ! रस रहेगा !
मैं अपने साढू भाई से तो बातें करूंगा ही ! लेकिन असली आकर्षण सुजाता होगी !
वह शनिवार सांझ को ही सिर्फ अपने बेटे के साथ चली आई। साढू जी को अनायास कोई काम आ गया था। मुझे हर्षमिश्रित आश्चर्य हुआ।
मैं अपने आफिस के काम काज़ निपटा कर जब घर पहुंचा तो मुझे निराशा हुई कि वह मेरी पत्नी के साथ बातों में तल्लीन थी। मुझे सादर प्रणाम करने के अलावा उसने कोई खुशी नहीं दी। मैंने भी उसके और अपने बेटे को गिटार सुनाया और अकेले अपने कमरे में सो गया। नज़दीक़ी दूसरे कमरे में वे दोनों बहनें खिलखिला कर चटखारे लेकर बातें कर रही थी। मुझे नींद नहीं आई। ज़ब वे सब सो गई, मैं सुजाता के ख्यालों में खो गया और निर्वस्त्र हो कर मूड्स कंडोम की चिकनाई के बीच तीव्र हस्तमैथुन करता रहा। मैने ख्यालों में उसको भरपूर भोगा। फिर एक दो घंटे की नींद के बाद जागने पर फिर से अनुभव दोहराया। रात में दो बार विसर्जन करके निढाल हो कर गहरी नींद में सो गया। सुजाता अब सिर्फ एक सपना थी।
सुबह हल्की निराशा थी। लेकिन दरस की चाह तो पूरी होनी ही थी। आज उसे दिन भर यहीं रहना है यह सोच कर मन को सांत्वना दी। लेकिन रात में जो दो बार रस गिरा दिया तो अब और कुछ तो होगा नहीं : मौका भी तो नहीं। मैंने भी दिन में अपने मित्र के पास कुछ परामर्श के लिये समय लिया था सो जाने की योजना बना डाली और पत्नी को बता भी दी।
तभी स्थिति बदली और मेरी बड़ी बहन अचानक 8 बजे ऑटो से उतरी। वह राखी के सिलसिले में आई थी। आते ही उसने मेरी पत्नी से बात की और कुछ गिफ्ट खरीदने की चाह से योजना बनाई कि वह एक घंटे बाद घर से 12 कि.मी. दूर वाले थोक मार्केट से खरीददारी करने चली जायेगी। मेरी धड़कने बढ़ गई। और सुजाता ? उत्तर मिला वह घर पर रहेगी और दोपहर का भोजन तैयार रखेगी। मुझे तो मित्र के घर जाना ही था।
साढ़े नौ बजे मेरी पत्नी, मेरा बेटा और मेरी बहन तीनों आटो रिक्शे में चल दिये, मैं भी उन्हें जाने को तैयार दिखा। तीनों के घर से निकलते ही मैं उतावला हो गया। अन्दर किचन में जाकर पूछा- सुजाता, मैं निकल रहा हूँ चाय मिलेगी ?
वह पलट कर मोहक मुस्कान से बोली- क्यों नहीं जीजू ! जो चाहोगे वही मिलेगा .. मैं तो एक्सपर्ट हूँ … लेकिन आप भी चले जाओगे तो मैं तो यहाँ अकेली रह जाउंगी।
मैने कहा- चलो कुछ देर रूक जाता हूँ ! शीनू (बेटा) उठा नहीं ?
बोली- सोने दो न उसे जीजाजी ..वह उठ जायेगा तो आपसे बात भी नहीं कर पाउंगी। अपनी बात अभी हुई ही कहाँ है ?
मैंने उसके कन्धे पर हाथ रख दिया- हाँ.. ठीक कह रही हो।
मैं उसके और नज़दीक़ आ गया और दोनों हाथ दोनों कन्धों पर रख दिये। वह चाय बनाना छोड़ कर थोड़ा पीछे खिसक आई और मुझसे लगभग चिपक सी गई। मेरा हाथ बढ़ कर उसकी हथेलियों तक पहुंच गया, वे परस्पर मिली और एक हो गई। मुझे उत्तेजना बढ़ने लगी। मैने अपना चेहरा उसके कधे पर रख दिया वह तुरंत पलट कर मुझसे चिपक गई। मैंने उसे चूम लिया।
“कितनी प्यारी लग रही हो.. लगता है बहुत ही हल्की हो तुम.. “
“उठा कर देखो कितनी हल्की हूँ मैं !”
संकेत बहुत ही उत्तेजक था। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसे सामने से थाम लिया और थोड़ा उठा लिया। उत्तेजना बढ़ी तो चुहल का स्तर बढ़ाने का अनैतिक ख्याल आया। मैने उसे उतार दिया और कहा “फिर से ठीक से उठाता हूँ तुम बहुत ही हल्की हो ।”
उसने कहा “ठीक है ।”
मैंने अबकी बार बहुत झुक कर उसकी साड़ी के नीचे से पिन्डली पर हाथ रख उस पर हाथ फिसलाते हुए उठाया। हाथ साड़ी के अन्दर ही अन्दर उसकी चिकनी जंघा से फिसलता हुआ उसके नितम्ब तक पहुंच गया।
सिहरन हुई क्योंकि वह पेंटी वगैरह कुछ नहीं पहने थी।
वह भी चिहुंकी,”क्या करते हो जीजू .. आप बड़े वो हो !”
मैंने क्या किया?
आपने मेरी साड़ी पीछे से बिल्कुल उठा दी थी !
मैंने कहा,”चलो बदला ले लो, तुम भी मुझे इसी तरह उठा लो .. “
वह बोली,”ऐसे तो नहीं उठा पाउंगी !”
मैंने पूछा,”फिर ?”
उसने कहा,”मेरी स्टाइल से !”
मैने कहा,” ठीक है ! जैसी तुम्हारी मर्ज़ी !”
उसने मेरी दोनों टांगों के बीच अपने दोनों हाथों की पालकी बनाई और उठाने की कोशिश जैसे करने लगी। मैं पतला पायज़ामा पहने था और उसके नाज़ुक हाथ मेरे इलेक्ट्रोड को सहला से रहे थे। देर तक ऐसे ही कोशिश सी करती रही फिर बोली- आप भारी हो ! मुझसे नहीं बनता, आप ही उठाओ।
मैंने कहा- मैं भी ऐसे ही उठाता हूँ ! और अपने दोनों हाथों की पालकी बना कर उसकी दोनों टांगों के बीच में डाल दिये। आगे रतिमुख तक मेरा हाथ छू गया। वहाँ बालों का अहसास हुआ।
तेज़ सांसों के बीच मैने पूछा- क्यों सुजी ये बाल इतने क्यों बढ़ा रखे हैं?
सुजाता का चेहरा शर्म से लाल हो गया और बोली,” जीजू ! मैं आपको जान से मार दूंगी !
तेरे बाल साफ कर दूँ ? हेयर रिमूवर से ? (मैं अब तू पर आ गया था )
बोली- आप बहुत बदमाश हो जिज्जू ! ठीक है ! कहाँ करोगे ?
मैने कहा- मेरे बेडरूम में !
बोली- ठीक है, लेकिन ज़ल्दी करना।
मैंने उसे थामा और लगभग गोद में उठाते हुए अपने कमरे में ले गया।
मैं बोला- ज़ल्दी क्या है .. अभी तेरी दीदी नहीं आने वाली.. देर लगाती है वह तो.. !
उसके कपड़े ऊपर उठाने में अब दोनों में से किसी को संकोच नहीं हुआ।
मैंने कहा- तू मेरे भी साफ कर देना यार !
वह बोली- क्यों ! दीदी नहीं करती है ? कितने बढ़ चुके हैं? दिखाओ तो ज़रा !
मैंने अब तक उसे पूरा उघाड़ दिया था।
मैंने कहा- तू खुद खोल कर देख ले..हेयर रिमूवर हाथ में लिये मैं सामने खड़ा था, उसने कहा- नहीं, आप ही दिखा दो..
मैं धीरे-धीरे निर्वस्त्र हो गया, उसने कहा- ठीक तो है… हेयर रिमूवर की ज़रूरत नहीं ! रख दो.. !
मैं उसकी सहस्त्रधारा को सहलाने लगा .. उसने झटके से उठ कर मुझे चूम लिया। और पीछे से हाथ डाल खींच लिया। मै उसके ऊपर लुढ़क गया उसके हाथ मेरे लिंग को सहला रहे थे जिसे मैं अपना राजकुमार कहता हूँ।
मैंने कहा- तेरी राजकुमारी तो बडी प्यारी है !
उसने कहा- तेरा राजकुमार भी तो ! … बांका.. ! गबरू !!
अब वह भी “तू” पर आ गई थी।
मैंने कहा- दोनों की दोस्ती करवा दें ?
वह बोली- ज़ल्दी करवाओ .. राजकुमारी बैचैन है..
मैंने कहा- रुको ! राजकुमार सेहरा बांध कर आयेगा !
और सिरहाने की ड्रावर में से मूड्स कंडोम निकाला और चढ़ा लिया। सेहरे में राजकुमार को देख राजकुमारी ने अपने किले के द्वार खोल दिये। और राजकुमार ने अन्दर जा हलचल मचा दी। कुछ ही पल में हमारे सारे वस्त्र कमरे में यहाँ-वहाँ बिखर गये।
इतनी आज़ादी दोनों को शायद ही कभी मिली हो।
दोनों गुत्थमगुत्था .. पुराने प्रेमी पहलवानों की तरह… पूरी शैया पर लोटते रहे.. रात ही हस्तमैथुन किया था बल्कि दो बार किया था तो अभी की मिलन-क्रिया का कोई छोर ही नहीं आ रहा था। राजकुमार ज़बर्दस्त तना हुआ था। मुझे संतोष हुआ कि रात के कर्म से हानि के बज़ाय सुख में बढ़ोत्तरी ही हुई है। लगभग 35 मिनट की लम्बी सुखदाई मस्ती के दौरान हम चूत, लंड, भोसड़ी, चुदाई जैसे वर्जित शब्द उच्चारते रहे और जितना एक दूसरे को काट खा सकते थे, काटा खाया। जितना अन्दर उथल पुथल मचा सकते थे, मचाई।
वह मेरे ऊपर बैठी भी और अपनी चूत की भीतरी मालिश/पालिश करती रही।
मैने उसे औरत, घोड़ी, कुतिया, नागिन सभी कुछ बना डाला। लगभग 35 मिनट बाद मेरा रस निकला .. देर तक निकलता रहा .. दोनों सराबोर हो गये.. कंडोम काफी भारी हो गया। उसने चिपके हुए ही मेरी पीठ ठोंकी .. मैं भी देर तक उसे चूमता रहा। फिर हम प्रेम से एक दूसरे की ओर देखते हुए नहाने के लिये उठे।
मैंने अपनी पत्नी को फोन करके पूछा- खाना बन गया क्या ?
वह बोली- आप घर पहुंच जाना ! मै सुजाता को फोन कर देती हूँ, वह आपको खाना खिला देगी। हमें अभी देर लगेगी क्योंकि अब हम सुरुचि नगर में चाची को देख कर ही आयेंगे।
तभी सुजाता के मोबाइल पर भी फोन आया कि जीजाजी आ जायें तो खाना खिला देना ! अभी शायद आने में दो घंटे लग सकते हैं।
सुजाता फिर भी बोली- अरे दीदी, मुझे तो किचन में छिपकली का डर लग रहा है, मैं तो टीवी ही देखती रही। अब जीजाजी के आने के बाद ही खाना बनाउंगी।
पत्नी ने सहमति दे दी। इस वार्तालाप से हम दोनों गद-गद हो गये। अब इत्मीनान से नहा धो खा सकते हैं और लाड-प्यार कर सकते हैं।
हम दोनों अलफ नंगे बाथ रूम में साथ नहाए ! खुद कोई नहीं नहाया। एक दूसरे को ही नहलाते रहे। राजकुमार और राज कुमारी को भी किस कराते हुए शावर दिया। एक दूसरे के अंगों पर भरपूर लाड़ किया, अन्दर तक सफाई की गुलाब, नीबूं वगैरह निचोड़ कर खुशबू से तर-बतर हो कर एक दूसरे को नहलाया, यूं ही निर्वस्त्र बाहर आये और चिपके चिपके बेडरूम मे कपड़े पहनने पहुंचे।
मैने कहा- तुम मुझे ठीक से पौंछ दो !
वह लगी मुझे पोंछने .. मैं भी दूसरे तौलिये से उसे पोंछ्ने लगा। हमारे गुप्तांग अब एक दूसरे की सम्पत्ति हो चुके थे। हमने अपनी अपनी सम्पत्ति को भली प्रकार पोंछा।
फिर मैंने कहा- इस पर तेल भी लगा दो.. फिर परस्पर तेल लगाने में फिर से उत्तेजित होने लगे..
वह बोली- जीजू .. अबकी बार बिना कंडोम के..
मैं उसकी बात टाल नहीं सका। अबकी बार सीढ़ी पर खड़े होकर देर तक लता और पेड़ की तरह एक हो गये। फिर से हमें 20 मिनट लगे। इस बीच हमने आइने के सामने अपने आपको मस्ताते हुए प्रकृति में समाते हुए देखा।
इस बार भी लिंग भरपूर चुस्त और कड़क था। सुजाता पहले से अधिक मुलायम और रेशम रेशम थी। अबकी बार मैंने उसे अपने ऊपर लिटा लिया और उसे क्रिया करने को उकसाया। उसे बहुत मज़ा आ रहा था।
अपनी उत्तेजना की चरम अवस्था में मुझसे बोली- जीजू याद रखना ! मैने तुझे चोद दिया है।
मैंने कहा- हाँ सुजी .. हमेशा याद रखूंगा कि तू जीती ..।
बोली- जीजू ! एक बार बोल कि मैं सुजी से चुदवा रहा हूँ।
मैंने सुर में सुर मिलाया .. हाँ सुजी .. मैं चुद गया .. तू मेरा रस ले जा..
वो बोली- तू भी मेरा ले..
और हम दोनों पल भर में उत्तेजना के चरम क्षण भोगकर फिर एक बार निढाल हो गये।
मैंने उतर कर कपड़े पहने शू, टाई व पसन्दीदा सेंट से सज्जित हो ड्राइंग रूम मे आगंतुक की तरह बैठ गया। और.. वह भी परी सी सज़ गई और गुनगुनाते हुए किचन में व्यस्त हो गई।
यह घटनाक्रम अनूठा था और अविस्मरणीय भी।
हैरानी मुझे अब यह हो रही थी कि उसका नन्हा बालक इतनी देर तक सोता रहा।
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