बात बनती चली गई-2
विजय पण्डित
कहानी का पहला भाग: बात बनती चली गई-1
भैया दोपहर का भोजन करके एक बजे ड्यूटी पर चले गये। भाभी को आज मैंने दूसरी सीडी ला कर दी। हमें सीडी देखने की बहुत बेचैनी थी… शायद सीडी नहीं बल्कि आपस में कुछ करने की बेचैनी थी। आज भी ब्ल्यू फ़िल्म देखते देखते हमने फिर से एक दूसरे को रगड़ा। खूब तबियत से आपस में दाबा-दाबी की और अन्त में अपना रस निकाल दिया।
अब तो जैसे ये रोज ही होने लगा। एक दिन यूँ ही हम दोनों एक दूसरे को दबा रहे थे तो भाभी ने कह ही दिया,”एक बात कहूं, शरम तो आती है पर…”
“भाभी, अब क्या शरमाना, रोज तो मस्ती करते हैं …”
“आप समझते तो हो नहीं …, आपका लण्ड बहुत मोटा है, आप लेट जाईये सोफ़े पर, इसे चूमने की इच्छा हो रही है, फिर भैया, आप भी मेरी चूत का चुम्बन ले लेना !”
“भाभी, यह तो गन्दी बात है ना…”
“फ़िल्म में भी तो इसे चूसते हैं ना !”
“वो तो बस मजे के लिये दिखाते हैं…”
“अरे लेटो ना ! बहुत बोलते हो…” भाभी ने मुझे धक्का मार कर लेटा दिया।
मेरा खड़ा लण्ड उसके सामने खड़ा हुआ इठला रहा था।
“अपनी आंखें बन्द करो ना…”
मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। मुझे अपने लण्ड पर गीला गीला सा नरम से होंठों का अहसास हुआ। उसने मेरा लण्ड मुठ में भर कर अपने मुँह में भर लिया और हाथ चलाते हुये लण्ड चूसने लगी। मीठे मीठे वासनायुक्त अह्सास से मैं तड़प उठा।
“मजा आ रहा है भैया…”
मैंने उत्तर में अपना लण्ड और उभार दिया। लण्ड चूसने की विचित्र सी आवाजें कमरे में गूंजने लगी। मेरा हाल बुरा होने लगा था। इसमें मुझे पहले से अधिक मजा आने लगा था।
कुछ ही देर में मेरे लण्ड ने माल उगल दिया और भाभी ने बिना मुझे कुछ कहे चुपचाप से सारा वीर्य पी लिया। लण्ड चाट कर पूरा साफ़ कर लिया फिर उसने अपना पेटीकोट थोड़ा सा नीचे खिसका दिया और अपनी गोरी सी चूत मेरे सामने कर दी। मैंने अपना मुख झुकाया और चूत को ध्यान से देखा।
चूत गीली सी हो चुकी थी मैंने चूत को अपनी अंगुलियों से खोल दी। अन्दर की लालिमा नजर आने लगी, और उसमें कुछ चिकना सा बुलबुले दार झाग सा नजर आया।
मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और चूत में घुसा दी। जीभ ने अन्दर का जायका लिया और उसका वो लसलसा सा द्रव जीभ में लपेट लिया। फिर मैंने उसे चूस कर साफ़ कर किया।
भाभी की टांगें कांप सी गई। एक मीठी सी सिसकी निकल पडी। तभी मुझे वहाँ एक छोटा सा दाना नजर आया। बस उस पर जीभ लगते ही भाभी जैसे कराह उठी। उसकी चूत ऊपर नीचे हिलने लगी, मेरी जीभ चूत में रगड़ खाने लगी। मैंने हिम्मत करके अपनी एक अंगुली भाभी की चूत में घुसा डाली।
वो चिहुंक उठी और जैसे बल सी खाने लगी। मैं अब जोर जोर से उसकी चूसने लगा। भाभी की तड़प देखने लायक थी।
कुछ देर में भाभी झड़ गई और गहरी सांसें भरने लगी।
बस अब तो रगड़ा-रगड़ी छोड़ कर हम दोनो मस्ती से एक दूसरे के गुप्तांग को चूसते थे। ये सिलसिला भी काफ़ी दिनों तक चलता रहा।
भाभी को अब भी तसल्ली नहीं थी, सो एक बार भाभी ने कहा,”भैया, आओ आज कपड़े उतार कर मजे लें !”
“वो कैसे…?”
“नंगे हो कर बिस्तर पर लेट कर ऐसे ही करें !”
यह सुन कर मुझे लगा कि भाभी का मन लण्ड लेने को कर रहा होगा। पर वो चुदाने के लिये कभी नहीं कहती थी, और ना ही कभी मैंने उन्हें कहा।
मैंने कभी भी किसी को नहीं चोदा था, पर हां, रोज की इस रगड़ा-रगड़ी में मेरे लण्ड की स्किन फ़ट चुकी थी और मेरा लण्ड पूरा खुलने लगा था, चमड़ी ऊपर तक चढ़ जाया करती थी।
हम दोनों ने अपने पूरे कपड़े उतार दिये। हम नंगे हो चुके थे, पर भाभी शरमा रही थी। एक कपड़े की आड़ में वो अपने को छुपा कर बिस्तर की ओर बढ़ गई। मैं अपना सीधा तना हुआ कड़क लण्ड ले कर उनके पीछे पीछे बिस्तर पर आ गया।
“भैया, आ जाओ, मेरे ऊपर लेट जाओ और मेरा अंग प्रत्यंग दबा डालो !”
“आह भाभी, सच में ऐसे तो बहुत आनन्द आ जायेगा !” मैं धीरे से भाभी के ऊपर आ गया और उस पर लेट गया। भाभी मेरे शरीर के नीचे दब गई।
मैंने उसके नंगे शरीर को सहलाना और मलना आरम्भ कर कर दिया। भाभी की आंखें मस्ती से बंद होने लगी। उसके हाथ मेरे शरीर के इर्द गिर्द लिपट गये। मेरे हाथों में उनके स्तन मचल उठे।
वो बार बार अपनी चूत का दबाव मेरे लण्ड पर डाल रही थी कि अचानक फ़क से मेरा लण्ड चूत में घुस गया। भाभी में अपने होंठ काट लिये और पूरे लण्ड को अपनी चूत में समा लिया।
“अह्ह्ह, भैया जी… जरा जोर लगाओ, उठा कर मार दो अपना लण्ड…”
मैंने हल्के से लण्ड बाहर खींचा और अन्दर दे मारा। हम दोनों के ही मुख से मस्ती की सिसकारी फ़ूट पड़ी। मेरे लण्ड में इस यौन-क्रिया से तनाव बेहद बढ़ गया और मजा आने लगा। भाभी भी मस्ती में भाव विहल हो उठी। साथ में अधरों से अधर मिला कर चुम्बनों का सिलसिला भी तेज हो गया।
यह पहली बार था जब मैं यौन क्रिया कर रहा था। लण्ड से चुदाई करने में इतना मधुर आनन्द आता है यह पहली बार अनुभव हुआ।
भाभी तो उन्मुक्त भाव से चोदन क्रिया में लीन थी। मैं लण्ड चूत में जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगा। मेरी अधीरता बढ़ती गई।
भाभी का चुदाते समय चीखना चिल्लाना मुझे बहुत भा रहा था, लग रहा था कि भाभी को असीम सुख प्राप्त हो रहा है।
चोदते चोदते मुझे ऐसा अहसास होने लगा कि मेरा वीर्य स्खलन होने वाला है।
“भाभी, मेरा तो लण्ड तो हाय … बहुत मजा आ रहा है … मैं तो आह …”
“क्या हुआ भैया, लगा जोर लगा … हाय मेरी चूत भी जवाब देने वाली है।”
“मैं तो गया … अस्स्स्स्स ह्ह्ह्ह … मेरा तो निकला भाभी…”
“ठहर जा रे … मेरा तो होने दे ना … उईई ईईई … मै…मैं… भैया रस छूट रहा है…”
“मेरी भाभी … हाय …मुझे भींच लो !”
“आजा, निकाल दे अब अन्दर ही… जोर लगा … निकाल … हाय रे निकाल…”
और वो झड़ने लगी। उसकी चूत में लहरें चलने लगी… रति रस छूट चुका था। भाभी ने मेरे चूतड़ कस कर दबा दिये… और मेरा जोर भी चूत पर बढ़ गया।
तभी मेरा वीर्य भी स्खलित हो गया। बार बार जोर लगा कर उसकी चूत में माल भरने लगा था।
भाभी अब निश्चल सी पड़ी हुई थी और इस सम्भोग का अपने नयन बंद करके लुफ़्त उठा रही थी।
तभी लगा कि समय बहुत बीत चुका है, संध्या ढल आई थी। समय कितनी तेजी से बीत गया, मालूम ही नहीं पड़ा।
भाभी ने तुरन्त उठ कर स्नान किया और रात का भोजन पकाने में जुट गई। मैं भी उनकी मदद करने लगा। भाभी चुद कर बहुत खुश नजर आ रही थी। मुझे लगा कि अब मेरी लाईन साफ़ हो गई है … यानि रोज की चुदाई का आनन्द पक्का है।
पाठको, इस कहानी का स्वरूप मुझे अन्तर्वासना की एक नियमित पाठिका श्रीमती यशोदा पाठक ने भेजा है, इसे कहानी के रूप में मेरे द्वारा ढाला गया।
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