अव्वल दर्जे के पाजी
मेरा नाम समीर है। मैं 36 साल का जवान हूँ। सुंदर लड़की को देखकर मुझे अच्छा लगता है, चोदने की इच्छा हो जाती है। मन करता है कि उसके नर्म नर्म गालों को चूम लूँ और उसके होठों को चूस लूँ, अपनी बाहों में भरकर उसकी चूचियों को दबा दूँ और अपने लण्ड को उसकी बुर में डाल कर चोद डालूँ।
शादियों के दिन थे और शादी का माहौल था। मेरे तीसरे छोटे साले की शादी थी और हम लोग ससुराल में इकठ्ठा हुए। काफ़ी लोग होने की वजह से हर कमरे में कई लोगों का इन्तजाम था। मेरी सलहज यानी पहले साले की बीवी का नाम है सरला, हेहुँआ रंग, भरा हुआ बदन, 34-26-34 के आकार सा, गदराई जवानी और गज़ब की सुन्दर।
इच्छा करती कि दबोच कर बस चबा ही डालूँ। इठलाती हुई जब चलती अपनी साड़ी को सामने हाथ से चूत के पास संभालती हुई, तब मन करता कि बस इसकी गर्म चूत को क्यों न मैं ही पकड़ लूँ और मसलता रहूँ।
साड़ी से वो अपनी मस्त और तनी हुई चूचियों को भरसक ढकती रहती लेकिन बगल से, ब्लाऊज़ के मध्य दीखता रहता, झुकी हुई निगाहों से देखती और मुस्करा देती। हमारा लौड़ा और खड़ा हो जाता।
शाम के करीब 4 बजे थे और मैं उसकी तरफ़ देखे जा रहा था कि तभी खिलखिलाती हुई बोली- क्यों जीजाजी, क्या चाहिए?
मेरे मुँह से निकल पड़ा- तुम।
चौंक कर बोली- क्या कहा?
मैंने जवाब दिया- मेरा मतलब तुम्हारे हाथ की एक कप चाय।
चाय पीकर जैसे तैसे शाम गुजरी और रात हुई। एक कमरे में ऊपर पलंग पर मर्दों को सोने के लिए कहा गया और ठीक नीचे ज़मीन पर औरतों के लिए गद्दे लगाये गए।
किस्मत देखिये पलंग के जिस किनारे पर मैं था, ठीक उसके नीचे ज़मीन पर सबसे पहले सरला का बिस्तर था। मन में बड़ी गुदगुदी हो रही थी, लण्ड था कि उठे जा रहा था।
मैंने ठान लिया कि बच्चू आज न चूकना, बस मौका देख कर पहल कर ही देना। फिर सोचा कि एक बार टोह तो लेकर देखूं।
मैंने सरला से पूछा- सरला, यह मेरा तकिया एकदम किनारे पर क्यों रख दिया, पलंग पर बीच में रखती।
वह बोली- क्यों आप करवट बहुत ज्यादा लेते हैं?
फिर आहिस्ते से बोली- प्लीज़, आप मेरे ऊपर मत गिर जाइएगा।
दोस्तो, उसका यह बोलने का अंदाज़ ऐसा था कि कोई बेवकूफ ही ना समझ पाए।
फिर क्या था, मैंने चादर तानी, लण्ड हाथ में लिया और लेटे हुए सबके सोने का इंतज़ार करने लगा। आख़िर रात कुछ गुजरी और थके हुए सभी लोग एक एक कर गहरी नींद में सो गए सिवाय मेरे और सरला के, जो कि मैं जानता था।
हिम्मत जुटा कर मैं आहिस्ता से ऊपर पलंग के किनारे से उतर कर नीचे ज़मीन पर सरला के बगल में लेट गया। कमरे में पहले से ही अँधेरा था। मैंने पहले उसकी चादर आहिस्ता से थोड़ी सी अपने ऊपर ले ली और अपने बदन को उससे सटाया, मानो कह रहा हूँ कि मैं आ गया।
वह चुपचाप रही और मेरी हिम्मत बढ़ी। मैंने अपना हाथ अब धीरे से उसके कमर पर रखा और उसकी नरम लेकिन गर्म गर्म नाइटी पर सरकाते हुए उसकी चूची पर रख दिया।
वह कुछ नही बोली।
मैंने अब उसकी चूची को दबाया।
वह शांत रही।
और मैं मदहोश होने लगा, लण्ड खुशी के मारे फड़फ़ड़ाने लगा।
लण्ड को मैंने उसकी गांड से चिपका दिया और हाथ से दूसरी चूची को दबाने लगा।
चाहत बढ़ी और मैंने अपने हाथों से उसकी नाईटी को ऊपर उठाया। अब मेरा हाथ उसके नग्न बदन पर था। हाथ को ऊपर लेट हुए और उसके नर्म नर्म बदन का मज़ा लेते हुए मैंने उसकी नंगी चूचियों को छुआ, गोल और एकदम सख्त लेकिन गरम। निप्प्ल को दबाया और कसकस कर अब मैं चूचियों को दबा रहा था, होठों से मैं उसकी गर्दन को चूमने लगा।
अब लण्ड चोदने के लिए बेताब हुआ जा रहा था। आख़िर कब तक सहता। कोई आवाज़ भी नही कर सकते थे।
एक हाथ मैंने उसकी गर्दन के नीचे से घुसाकर उसकी तनी हुई चूची पर रखा और दूसरा हाथ मैंने सरकते हुए उसकी चूत पर रख दिया। चूत पर घने बाल थे लेकिन फिर भी एकदम गीली थी यानि चुदवाने के लिए तैयार।
लण्ड तो बुर में घुसने के लिए बेताब था ही, मैंने अपनी उंगली उसके बुर के दरार को छूते हुए अन्दर घुसा दी। उसने एक आह सी भरी, वो भी चुदवाने को एकदम तैयार थी।
उसके कान के पास मुँह ले जाकर मैंने फुसफुसाकर कहा- मैं बाथरूम जा रहा हूँ, तुम थोड़ी देर बाद धीरे से आ जाओ जानेमन।
आहिस्ता से उठकर दबदबे पाँव मैं बाथरूम के अन्दर घुस गया और दरवाज़ा हल्का सा खुला रख इंतज़ार करने लगा।
पाँच मिनट बाद सरला आई और जैसे ही अन्दर घुसी मैंने दरवाज़ा बंद कर चिटकनी लगा दी।
अब क्या था, सहनशीलता का बाँध बस टूट गया। मैंने कस कर उसे अपनी बाँहों में भरा और अपने होठ उसके धधकते होठों पर रख ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा।
क्या होंठ थे जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ। ऐसा स्वादिष्ट कि बस नशा छा गया।
एक हाथ से मैंने उसके बाल पकड़ रखे थे चूमते हुए और दूसरे हाथ से मैं उसकी चूचियों को नाइटी के ऊपर से ही मसल रहा था। मेरा लण्ड पजामे के अन्दर एकदम खड़ा हुआ परेशान हो रहा था। उत्तेजना होने के बाद कपड़े बहुत बुरे लगते हैं, नंगा बदन ही अच्छा लगता है। मैंने तुंरत अपने पजामे का नाड़ा खोल उसे हटाया, अंडरवियर निकाल फेंका।
टीशर्ट उतार मैं नंगा हो गया, उसकी नाइटी के बटन को सामने से खोलना शुरू किया। जल्दी से उसके बदन से नाइटी हटाई, ब्रा के हूक को पीछे से खोला और चूमते हुए दबाते हुए, कस कस कर एक दूसरे को मसलते हुए पहले बेसब्री से उसकी नंगी आजाद चूचियों को हाथ में ले लिया। सख्त भी थी, नरम भी थी, गरम भी थी और गोल गोल भी थी।
क्या कहूँ, बस गज़ब की चूचियां थी, दबाओ तो बहुत बहुत मज़ा आए, गहरी गुलाबी रंग की निप्प्ल।
सुगंध जो उसके शरीर से आ रही थी, और भी मदहोश किए जा रही थी। सेक्स का सुगंध बोल कर बताई नहीं जा सकती, बस एन्जॉय किया जा सकता है।
वो अब भी पूरी तरह से नंगी नहीं थी, नायलॉन का कसा अंडरवियर उसकी बुर को छुपाये हुए था। उसे जब हटाया तो सरला काफ़ी शरमा गई और अपना मुँह मेरी छाती में छुपा लिया।
मेरा लंबा और फड़फ़ड़ाता हुआ लण्ड उसके बदन को चूत के आस पास छू रहा था। मैंने उसके ठोड़ी को हाथ से उठाया अपनी आँखों की तरफ़। उसने अपनी आँखें बंद कर ली। मैंने उसे पलकों के ऊपर चूमा, दीवार के सहारे अपने लण्ड को उसकी चूत के ऊपर दबाया, उसके होठों को चूसा और चूसता ही रहा।
उसकी नंगी गोल गोल मुलायम गरम सख्त सेक्सी चूचियों को खूब दबाया और मसला। आख़िर रहा नहीं गया और उसकी चूची को निप्प्ल सहित अपने मुँह में भर लिया। उसकी दाहिनी चूची मसलते हुए उसकी बाईं चूची को मैं स्वाद ले लेकर चूस रहा था।
मुझसे और रहा नहीं गया, मैंने मज़ा लेने के लिए उससे पूछा- सरला रानी, तुम इतने दिन तक कहा छुपी थी? चोद दूँ?
उसने एक हाथ से मेरी पीठ को अपनी तरफ़ दबा रखा था और दूसरे हाथ से मेरे लण्ड को अपने मुलायम हाथों से पकड़कर बोली- जीजाजी, जो भी करना है, जल्दी से कीजिये।
मैंने कहा- क्या करूँ…? बोलो न, जान…? तुम तो एकदम मलाई हो मलाई।
उसने झट से जवाब दिया- तो खा जाईये न… !
“क्या क्या खाऊँ रानी…? तुम बड़ी मस्त चीज़ हो यार !”
उसने शरारती बातों का मज़ा लेते हुए कहा- जीजाजी… !!! जल्दी से घुसा दीजिये नाऽऽ…! मैंने और मज़ा लेते हुए उसके कान के पास फुसफुसाकर कहा- क्या घुसाऊँ… और कहाँऽऽ…?
बोली- धत्त ! आप बहुत बदमाश हैं…। मैं जा रही हूँ…।
मैंने कस कर पकड़ तो रखा ही था, इन्ही बातों में हम एक दूसरे के बदन से लिपट लिपट कर पता नहीं क्या क्या कर रहे थे।
बस कुछ न कुछ पकड़ा-पकड़ी, मसला-मसली, चूसा-चूसी चल रही थी।
आख़िर मैंने कहा- रानी, एक बार कहना पड़ेगा…। सिर्फ़ एक बार ! प्लीज़ !
पूछने लगी- क्या कहूँ जीजू…?
मैंने मज़ा लेते हुए कहा- कह दो कि मेरी बुर में लण्ड डाल कर चोद दीजिये ना !
उसने शरमाने के अंदाज़ से कहा- चोदिये न जीजू ! और मत तड़पाइए…।
मैंने भी देखा कि अब ज्यादा देर करने में रिस्क है, मैंने अपना लण्ड उसकी बुर के दरार पर रगड़ते हुए एक धक्का लगाया, लण्ड अन्दर घुस तो गया लेकिन मज़ा नहीं आया।
चुदाई का मज़ा तभी है जब औरत को लिटा कर चोदा जाए !
बाथरूम के फर्श पर मैंने सरला को लिटाया और उसके ऊपर चढ़ गया, टांगों को फैलाकर अपना लण्ड उसकी बुर पर रखा और घुसाया। उसने भी थोड़ी सी मदद की और अपनी बुर से मेरे लण्ड को समेट लिया।
होंठ चूसते हुए, चूचियों को दबाते हुए मैंने चोदना शुरू किया।
वह भी नीचे से गांड उठा उठा कर चुदवाने लगी।
क्या चीज़ बनाई है ऊपर वाले ने यह चुदाई ! बहुत ! बहुत मज़ा आता है।
जिसने चुदाई की है उसे यह पढ़कर महसूस हो रहा होगा ख़ी हम दोनों कितना स्वाद ले रहे होंगे चुदाई का।
चोदते हुए बीच बीच में मैं सरला की चूची को चूस भी रहा था। चुदाई लम्बी रखने के लिए मैंने स्पीड मध्यम ही रखी।
चूची चूसते हुए और भी कम।
आख़िर में लण्ड ने जब सिगनल दिया कि अब मैं झड़ने वाला हूँ, तब मैंने कस कस कर चुदाई की, चोदता रहा, चोदता रहा, धकाधक ! धकाधक, धक्के पे धक्का ! धक्के पे धक्का ! लगता रहा।
और वो उछल उछल कर चुदवाए जा रही थी। ऐसा आनन्द आ रहा था कि मालूम ही नहीं पड़ा कि हम दोनों कब एक साथ झड़ गए। जल्दी से हमने कपड़े पहने और बाहर निकलने के पहले मैंने सरला को कस कर अपनी बाँहों में जकड़ा और चूमते हुए कहा- सलहज साहिबा, वादा करो जब भी मौका मिलेगा तो चुदवाओगी, चुदवाती रहोगी !
“आप अव्वल दर्जे के पाजी हैं !” कह कर वो दबे पाँव चली गई…
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