आप कुछ ऐसा करो-1
प्रेषक : संजय शर्मा, दिल्ली
प्रिय दोस्तो, मैं संजय एक बार फिर अपनी आपबीती आपके साथ बाँटने आ गया हूँ। आप लोगों ने मेरी कहानियों को जैसे सराहा, उसने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं आपके साथ अपने अनुभव और बाँटू। कहानी शुरु करता हूँ।
दोस्तो, जैसा कि आपको पता है सेक्स मेरी कमजोरी है और मैं हर लड़की को सिर्फ सेक्स की नज़र से ही देखता हूँ। हर लड़की सिर्फ मुझे चुदाई के लिए माल लगती है।
बात तब की है जब मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में भोपाल गया था। मुझे वह थोड़ा समय लगना था तो मैंने एक कमरा किराये पर लेकर रहने का तय किया।
भोपाल में मेरे दूर के रिश्ते के भाई-भाभी रहते थे। जब उन लोगों को पता चला तो उन लोगों ने मुझे अपने साथ रहने को कहा। पर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था तो मैंने कहा कि मैं उनके घर आता रहूँगा पर कमरा अलग ही लूंगा।
पर वो लोग नहीं माने और मुझे उनके घर ही रहना पड़ा। जिस दिन मैं भोपाल पहुँचा तो सीधा अपने भाई के यहाँ गया। उन लोगों से काफी समय हो गया था मिले, मैं सिर्फ भाई की शादी में ही गया था, उसके बाद जाना नहीं हो पाया था, उनकी शादी को 6 साल हो चुके थे और 4 साल का एक बेटा भी था। जब मैं पहुँचा तो वो लोग बहुत खुश हुए। वहीं मेरे चाचा और चाची भी रहते थे। सब लोग बहुत खुश थे और मैं भी खुश था। मेरा सारा समय अपने भतीजे के साथ खेलने में ही निकल जाता था।
पर मेरी आदत के कारण मेरी नज़र अपनी भाभी पर थी। जब मैंने उनको पहले देखा था तो वो उतनी सुंदर नहीं लगी थी पर अब तो वो जबरदस्त माल लग रही थी। शायद भाई की जबरदस्त चुदाई का नतीजा था यह। उनके वक्ष और नितम्ब मस्त हो गए थे और उनके होंठ देख कर तो मन कर रहा था कि अभी पकड़ कर चूस लूँ और फिर अपने लण्ड उनके बीच में डाल दूँ।
पर अभी घर में सब लोग थे ओर मैं भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था पर मेरी नज़रों ने देख लिया था कि भाभी जी भी मुझे अलग निगाहों से देख रही थी, वो नज़रें जो हर चुदाई की प्यासी औरत की होती हैं।
खैर मैं खाना खा कर अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर में भाभी मेरे लिए दूध लेकर आई और थोड़ी देर बैठ कर मुझसे बातें करने लगी। उनको बातें करने का बहुत शौंक था, हम काफी देर तक बात करते रहे और मैं अपनी नज़रों से उनके शरीर का नाप लेता रहा। बहुत ही मस्त शरीर था भाभी का, मैं सारी लड़कियों को भूल सकता था भाभी के लिए।
थोड़ी देर बाते करने के बाद भाभी चली गई और मैं उनके नाम का मुठ मार कर सो गया।
अगले दिन मैंने अपना ऑफिस ज्वाइन कर लिया और अपने काम में लग गया। मुझे यहाँ आये 15 दिन हो गए थे और रोज भाभी का नाम लेकर मुठ मार लेता था। कोई रास्ता नहीं दिख रहा था मुझे उनकी चुदाई करने का।
एक दिन भाई की तबियत थोड़ी सही नहीं थी तो भाभी उनका काम कर रही थी। मैंने कुछ दवाइयाँ लाकर दी और उनको आराम करने को कहा और भाभी को बोला कि भाई को खिला दो और सोने को कहो और खुद भी आराम करो।
यह कह कर मैं अपने कमरे में आ गया। मुझे पता था कि आज भाभी मेरे कमरे में नहीं आएँगी क्योंकि वो भाई का काम कर रही हैं तो आराम से रोज की तरह अपना लण्ड निकाल कर मुठ मारने लगा भाभी का नाम लेकर।
थोड़ी देर में मुझे दरवाजे पर कुछ आवाज़ सुनाई दी। मैंने पलट कर देखा तो भाभी दूध का गिलास हाथ में लिए खड़ी थी। मैंने जल्दी से चादर अपने ऊपर डाली और अंडरवीयर पहनने लगा।
भाभी ने थोड़ा गुस्से में पूछा- यह क्या हो रहा था?
मैं बहुत डर गया था। मुझे लगा कि भाभी अब यह बात सबको बता देगी और मेरी बहुत बेइज्जती होगी।
मैं तुरंत पंलग से उठा और भाभी के पैर पकड़ लिए, मैं उनको बोलने लगा कि यह बात किसी को न बताएँ… यह तो हर लड़का करता है।
उन्होंने दूध का गिलास मेज पर रखा और वहीं सोफे पर बैठ गई।
मैं वहीं उनके घुटनों के पास बैठ गया और उनको मनाने लगा। मैंने उनके पैर चूमने लगा और कह रहा था कि यह बात किसी को न बताएँ।
थोड़ी देर चूमने के बाद मुझे लगा कि भाभी को यह अच्छा लग रहा है और वो मुझे मना भी नहीं कर रही है तो मैंने धीरे धीरे उनकी साड़ी थोड़ी ऊपर की और उनकी घुटनों से नीचे की टाँगे चूमने लगा।
अब मैंने देखा तो भाभी सोफे पर आराम से बैठ गई थी और आँखें बंद करके मज़े ले रही थी।
मैंने भाभी से पूछा- मज़ा आ रहा है?
तो वो बोली- करते रहो नहीं तो सबको बता दूँगी।
मैं थोड़ा डर से और अपनी मस्ती के लिए उनकी टाँगे चूमता रहा। अब धीरे धीरे मैंने अपने हाथ उनकी साड़ी के अंदर उनकी जांघों पर रख दिए और उनको सहलाने लगा।
भाभी पूरी मस्त हो गई थी तो मैंने बिना डरे उनकी साड़ी उनकी जांघों से ऊपर उठा दी और उनकी जांघों को चूमने लगा। मेरी साँसों में उनकी चूत की खुशबू आ रही थी जो मुझे और मस्त कर रही थी।
मैंने थोड़ा सा ऊपर देखा तो मेरी नज़र उनकी चूत पर पड़ी जिस पर काफी बाल थे और चूत की खूबसूरती उनसे छुप रही थी। मैंने उनकी टांगों और जांघों को बहुत प्यार से चाटा। अब मैंने उनकी टाँगें थोड़ी चौड़ी कर दी ताकि मैं उनकी चूत को सही से देख सकूँ। उन्होंने भी मेरा साथ देते हुए अपनी टांगें चौड़ी कर दी। अब मेरा मुँह उनकी चूत पर था और मैं उनकी चूत को मुँह में लेकर आम की तरह चूस रहा था। थोड़ी देर तक चूसने पर उन्होंने पानी छोड़ दिया जो मैंने थोड़ा चाटा और बाकी उन्होंने अपनी साड़ी से साफ़ कर दिया।
अब वो उठ कर जाने लगी तो मैंने कहा- मेरा क्या होगा? मेरा तो अभी कुछ नहीं हुआ ! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
तो वो हंस कर बोली- तुम वही करो जो अभी कर रहे थे।
मैंने कहा- यह सही नहीं !
तो वो मेरे पास आई और मुझे खड़ा करके मेरे होठों पर होंठ रख कर मुझे चूमा किया बोली- अब तो तुमको अगर अपना राज छिपाना है तो जैसा मैं कहूँगी वो करना पड़ेगा।
मैं और क्या कर सकता था।
वो चली गई और मैं रोज की तरह मुठ मार कर सो गया। मेरे खड़े लण्ड पर चोट हो गई थी।
अगले दिन रात को भाभी फिर मेरे लिए दूध लेकर आई और दूध का गिलास मेज पर रख के मेरे सामने साड़ी ऊपर करके खड़ी हो गई और मुझे अपनी चूत चाटने को बोला। मैंने बड़ी उम्मीदों के साथ उनकी चूत को चाटा पर आज फिर वो अपना पानी निकाल कर मेरा लण्ड खड़ा ही छोड़ कर चली गई।
अगले 2-3 दिन तक उन्होंने ऐसा ही किया। अब मुझे गुस्सा आने लगा था। इतनी प्यारी चूत पास होते हुए भी मुझे रोज मुठ मार कर काम चलाना पड़ रहा था।
अगले दिन जब भाभी ने फिर वही किया तो मैंने उनकी चूत चाटने से मना कर दिया और कहा- आप मेरे लण्ड के बारे में तो कुछ सोचती नहीं हो। मुझे आपकी चूत चाटने के बाद रोज मुठ मारनी पड़ती है।
वो हंसने लगी और बोली- मेरे प्यारे देवर, आज चूत चाटो, मैं आपके लण्ड का भी ध्यान रखूँगी।
यह सुन कर मैंने उनकी साड़ी में मुँह डाल कर उनकी चूत पर अपने होंठ लगाये तो मुझे बिल्कुल चिकनी चूत मिली, आज उन्होंने अपनी चूत के बाल साफ़ कर लिए थे। थोड़ी देर चूत चटवाने के बाद उन्होंने मुझे अलग करके खड़ा किया और खुद अपने घुटनों पर बैठ गई और मेरा पजामा नीचे कर दिया।
मेरा लण्ड बहुत तना खड़ा था। उन्होंने बिना समय लगाये मेरा अण्डरवीयर भी नीचे कर दिया और मेरा लण्ड अपने हाथ में लेकर उसका मुठ मारने लगी।
मैंने कहा- भाभी यह तो मैं रोज खुद से ही कर लेता हूँ, आप कुछ ऐसा करो जो मैं नहीं कर सकता हूँ।
यह सुन कर वो मुस्कुराई और अपनी जीभ निकाल कर मेरे लण्ड के टोपे पर लगा दी। मेरे टोपे पर कुछ बूंदें मेरे पानी की आ गई थी जिनको उन्होंने चाट लिया।
अब वो मेरे लण्ड पर अपनी जीभ चला चला के चाटने लगी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। फिर उन्होने मेरे लण्ड के टोपे को लोलीपोप की तरह अपने मुँह में ले लिया। उनके मुँह की गर्मी और गीलापन मुझे अजीब सी ख़ुशी दे रहा था। मैंने उनका सिर अपने दोनों हाथों से पकड़ा और अपना लण्ड उनके मुँह में पेलने लगा। एक बार उन्होंने मेरा लण्ड अपने मुँह से फिर निकाला और दुबारा अपना मुँह खोल कर मेरा लण्ड खाने लगी। अबकी बार मेरा पूरा लण्ड उनके मुँह में ऐसे चला गया जैसे मक्कन में छुरी जाती है। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मेरा लण्ड उनके मुँह को चोद रहा था। उनका लण्ड चूसने का तरीका इतना अच्छा था कि मैं ज्यादा देर तक खुद को रोक नहीं पाया और मेरा सारा पानी उनके मुँह में निकाल गया।
इसके बाद वो उठी और मेरे होठों पर चुम्मा लेकर चली गई। मैं बहुत खुश था, आज मुठ मारने की जरुरत नहीं थी तो मैं सो गया।
कहानी जारी रहेगी।
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