एक थी वसुंधरा-7
बेहिसाब चुम्बनों का आदान-प्रदान जारी था. हम दोनों अपनेआप से बेसुध, तेज़ी से एक-दूसरे में समा जाने का उपक्रम कर रहे थे. दोनों की सांसें भारी और बेतरतीब हो रहीं थी.
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बेहिसाब चुम्बनों का आदान-प्रदान जारी था. हम दोनों अपनेआप से बेसुध, तेज़ी से एक-दूसरे में समा जाने का उपक्रम कर रहे थे. दोनों की सांसें भारी और बेतरतीब हो रहीं थी.
मैं वसुंधरा वस्त्र-विहीन जिस्म पर ऊपर-नीचे अपनी जीभ फेरता या चुम्बन लेता, वसुन्धरा का पूरा शरीर तन जाता और सिहरन की लहरें वसुन्धरा के शरीर में उठनी शुरू जाती.
वसुंधरा ने तत्काल अपने होंठ खोल दिए. मैंने बहुत कोमलता से उसके अधीर अधरों का एक चुम्बन लिया और हौले से अपनी जीभ वसुंधरा के मुंह में डाल दी.
मेरे होंठ, नाक उसकी नाईटी, पैंटी के आवरणों सहित दोनों जांघों में ठीक उसकी योनि पर थे. मैंने लम्बी सांस ली. मेरे नथुनों में योनि से निकली जानी-पहचानी मादक महक भर गयी.
मैंने पैंटी में से हाथ निकाल कर अपने नाक के पास करके लम्बी सी सांस ली. मेरी हथेली से वसुंधरा के जिस्म के पसीने और डियो की मिलीजुली, सौंधी सी महक आ रही थी.
अचानक ही हवा में एक जादू सा घुल गया, यूं लगा कि फ़िज़ां कुछ और रंगीन हो गयी हो जैसे. सच कहता हूँ दोस्तों! कुछ मुस्कुराहटें होती ही इतनी दिलकश हैं कि पूछिए मत.
जिंदगी में याद रखने लायक सिर्फ एक रात ही तो है. जब-जब जी डोलता है, मन विचलित होता है … तब-तब मैं उस रात की याद को कलेज़े से और ज़ोर से लगा लेती हूँ!
मेरी उंगली योनि की दरार के ऊपर चने के दाने के साइज़ के भगनासा पर ठहर गयी लेकिन वसुन्धरा के मुंह से जोर-जोर से कराहें … कराहें क्या एक तरह से चीखें निकलने लगी.
वसुन्धरा के नंगे, गर्म जवान जिस्म को पीछे से रगड़ कर मेरा नंगा जिस्म आग पैदा कर रहा था. मेरा गर्म लिंग उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसके नितम्बों की दरार पर रगड़ खा रहा था.
मैंने आगे झुक कर वसुन्धरा के दाएं निप्पल को मुंह में लिया और उसे होंठों और जीभ से चुमलाने लगा. वो तत्काल मेरा सर अपने हाथों में ले अपने उरोजों पर दबाने लगी.
“ओ राज! मुद्दतों तड़पी … बरसों सुलगी, मैं इस पल के लिए.” कह कर वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मेरा सर नीचे कर के मेरा चेहरा चुंबनों से भर दिया.
मैं कपड़े उतार खूंटी पर टांगने लगा तो खूँटी पर टंगा वसुन्धरा का नाईटगाउन नीचे गिरा और गाउन के नीचे टंगी कल की पहन कर उतारी हुई उसकी ब्रा और जाली वाली काली पेंटी नुमाया हो गयी.
ऊँचा कद, कमान सा तना सुडौल गोरा बदन, माथे पर उड़ती ज़ुल्फ़ें, तीखा सुतवां नाक, गुलाब सी कलियों से होंठ, नाभि से ज़रा नीचे बंधी शिफ़ौन की मरून साड़ी में से पारे की तरह थिरकती लम्बी पुष्ट जाँघें.
मेरी साली की बेटी अपनी विदाई के ज़ज़्बाती लम्हे में मुझसे गले मिली तो चुनरी की ओट में उसने अपने हाथ से मेरा लिंग पैन्ट के ऊपर से सहला दिया … लिंग को मुट्ठी में भर लिया.
मैंने कांपते हाथों को स्थिर किया और वसुन्धरा की के पैरों के बीच जमीन पर पड़ा लहंगा ऊपर उठाना शुरू किया, उसकी जांघों के में पेंटी कुछ-कुछ गीली हो गयी दिख रही थी.
नाड़ा कटते ही लहँगा उसके पैरों में ऐसे गिरा जैसे किसी मूर्ति के अनावरण समारोह में मूर्ति का पर्दा नीचे गिरता है. वसुंधरा की केले के तने सी चिकनी दोनों टाँगें नंगी मेरे सामने थी.
मेरी भानजी की शादी मेरे शहर में, मेरी रहनुमाई में हो रही थी. मेरे घर रुकी में एक खूबसूरत, शिक्षित लेकिन बेढंगी, उखड़ी उखड़ी सी रहने वाली एक लड़की से मैं परेशान सा था.
मेरी साली की बेटी की शादी मेरे शहर में थी, सारा इंतजाम मेरे जिम्मे था. मेरे साढू के रिश्तेदार मेरे घर में रुके थे. उन्हीं में से एक थी इस कहानी की नायिका …
मेरी साली की जवान बेटी की कामुकता से भरपूर इस सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि यौन पूर्व कामक्रीड़ा के चलते उसकी कामवासना पूरे चरम पर थी, उसने मेरे होंठों पर एक चुम्बन जड़ा और अपने दोनों पैरों से मेरी कमर पर कैंची सी मार ली और लगी मेरी कमर अपनी ओर खींचने.
मेरी साली की जवान बेटी के चोदन की कामवासना से परिपूर्ण हॉट सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि वह मेरे घर में मेरे साथ अकेली मेरे बेड पर नग्न वक्ष है. मैं उसके बदन से खेल रहा हूँ और वो कामुकता के आवेग में अपने गर्म जिस्म को तोड़ मरोड़ रही है.
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