तीसरी कसम-1
प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है बाद मुद्दत के होता है चमन में दीदा-ए-वार पैदा ओह… प्रेम !
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प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है बाद मुद्दत के होता है चमन में दीदा-ए-वार पैदा ओह… प्रेम !
वह पेट के बल लेट गई और उसने अपने नितम्ब फिर से ऊपर उठा दिए। मैंने स्टूल पर पड़ी पड़ी क्रीम की डब्बी उठाई और ढेर सारी क्रीम उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दी।
उसने मेरे लण्ड का टोपा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। क्या कमाल का लण्ड चूसती है साली पूरी लण्डखोर लगती है? उसके मुँह की लज्जत तो उसकी चूत से भी ज्यादा मजेदार थी।
मैंने उसकी नाइटी को ऊपर करते हुए अपना हाथ उसकी जाँघों के बीच डाल कर उसकी चूत की दरार में अपनी अंगुली फिराई और फिर उसके रस भरे छेद में डाल दी।
‘ओह… माया, सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं… पता नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।’ ‘जीजू तुम फिर…? मैं जाती हूँ!’
माया ने जीन का निक्कर पहन रखा था जिसमें उसकी गोरी गोरी पुष्ट जांघें तो इतनी चिकनी लग रही थी जैसे संग-ए-मरमर की बनी हों। मेरा अंदाज़ा था कि उसने अन्दर पेंटी नहीं डाली होगी।
सच कहूँ तो मैंने कभी किसी का लिंग अपने मुँह में लेना और चूसना तो दूर की बात है कभी ठीक से देखा भी नहीं था। पर सहेलियों से सुना बहुत था कि लिंग ऐसा होता है वैसा होता है।
भंवरे ने डंक मार दिया था और शिकारी अपना लक्ष्य भेदन कर चुका था। अब कलि खिल चुकी थी और भंवरे को अपनी पंखुड़ियों में कैद किये अपना यौवन मधु पिलाने को आतुर हो रही थी।
उन्होंने अपने मुन्ने को मेरी मुनिया (लाडो) के चीरे पर रख दिया। मैंने अपनी साँसें रोक ली और अपने दांत कस कर भींच लिए। मेरी लाडो तो कब से उनके स्वागत के लिए आतुर होकर प्रेम के आंसू बहाने लगी थी।
प्रेषिका : स्लिमसीमा ‘मधुर, क्या मैं एक बार आपके हाथों को चूम सकता हूँ?’ मेरे अधरों पर गर्वीली मुस्कान थिरक उठी। अपने प्रियतम को प्रणय-निवेदन
वो अक्सर बाथरूम में जब नहाने के लिए अपने सारे कपड़े उतार देती है तब उसे तौलिये और साबुन की याद आती है। अभी वो बाथरूम में है और वो तौलिया ले जाना भूल गई है।
मैं चाह रही थी कि काश वक्त रुक जाए और जगन इसी तरह मुझे चोदता रहे। पर मेरे चाहने से क्या होता आखिर शरीर की भी कुछ सीमा होती है। मैंने अपनी चूत का संकोचन किया
‘अबे साले… मुफ्त की चूत मिल गई तो लालच आ गया क्या?’ मैंने अपनी गांड से उसकी उंगुली निकालने की कोशिश करते हुए कहा।
‘भौजी.. एक बार गांड मार लेने दो ना?’ उसने मेरे गालों को काट लिया।
मैंने अपनी छमिया की फांकों पर पहनी दोनों बालियों को पकड़ कर चौड़ा किया और मूतने लगी। फिच्च सीईईई…. के मधुर संगीत के साथ पतली धार दूर तक चली गई। आपको बता दूं मैं धारा प्रवाह नहीं मूतती। बीच बीच में कई बार उसे रोक कर मूतती हूँ।
मेरा मन बुरी तरह उस मोटे लंड के लिए कुनमुनाने लगा था। काश एक ही झटके में जगन अपना पूरा लंड मेरी चूत में उतार दे तो यह जिंदगी धन्य हो जाए। मेरी छमिया ने तो इस ख्याल से ही एक बार फिर पानी छोड़ दिया।
चोदन चोदन सब करें, चोद सके न कोय,
कबीर जब चोदन चले लण्ड खड़ा न होय ….
ताऊजी ने मेरी चूत को पहले तो अपने हाथों से सहलाया और फिर अपना मुंह नीचे करके उसे सूंघा और फिर उस पर अपने होंठ टिका दिए, मेरी सिसकारी निकल गई.
मैं पूरी 18 की हो चुकी हूँ। मेरी चूत में खुजली तो बहुत पहले से ही शुरू हो गई थी पर अब बर्दाश्त से बाहर हो गया था। हर समय चूत में चींटियाँ से रेंगती रहती थी और लगता था अंदर कोई छोटी सी मछली फड़फड़ा रही है।
अंगूर ने अपने दोनों हाथ पीछे किये और अपने नितम्बों को पकड़ कर उन्हें चौड़ा कर दिया। आह… अब तो उसके नितम्ब फ़ैल से गए और गांड का छेद भी और खुल गया। अब जन्नत के गृह प्रवेश में चंद पल ही तो बाकी रह गए थे।
उसकी गांड के छेद पर लगाने में लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया, वो बोली- बाबू… जरा धीरे करना… मुझे डर लग रहा है… ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना?’
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