गुरूजी का आश्रम-2 02-08-2005 अब गुरूजी ने अपने लंड को मेरी योनि-द्वार पर रख दिया। मैं उनके चेहरे को निहार रही थी, मगर मेरा ध्यान योनि से सटे उनके पूरी कहानी पढ़ें »
गुरूजी का आश्रम-1 01-08-2005 ‘हेलो..! रुचिका!’ मेरे सम्पादक की आवाज सुनते ही मैं सम्भल गई। ‘हाँ बोलिए!’ मैंने अपनी जुबान में मिठास घोलते हुए कहा। मेरे सम्पादक रजनीश से पूरी कहानी पढ़ें »