सेक्स करने में कैसी होगी
एक लड़के की शादी की उम्र निकली जा रही थी और कोई लड़की ऐसी नहीं मिल पा रही थी जो उसे और उसके घर वालों
एक लड़के की शादी की उम्र निकली जा रही थी और कोई लड़की ऐसी नहीं मिल पा रही थी जो उसे और उसके घर वालों
एक आदमी अपने गुनाह कबूलने के लिए चर्च में गया… आदमी- फादर, मैं अपने गुनाह कबूल करना चाहता हूँ… फादर- उस कन्फेशन बॉक्स में जाकर
पूरी दुनिया ऑनलाइन होने की ओर भाग रही है। बची खुची कसर मेरे मोहल्ले के धोबी और नाई ने अभी हाल ही में पूरी कर
लेखक : बदतमीज़ न गोरी न साँवली, इक छैल-छबीली दुल्हन चाहिए। कुछ खुले विचारों की, कुछ शर्मीली दुल्हन चाहिए। – भारतीय मन हो, सरल हो,
फेसबुक पे सखीयन ने जबरन मेरा दिया दिया खुलाय, खाता दिया खुलाय, फोटो नये नये डलवाये! कछू सखियन ने कह दिया कि नित नये फ्रेण्ड
यह कहानी केवल मनोरंजन के लिए है जिनका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। मैं मध्यप्रदेश के एक गाँव की रहने वाली हूँ, मेरा
एक सुंदर लड़की ने आपसे लिफ्ट मांगी और रास्ते में उसको चक्कर आ गया, उसकी तबीयत खराब हो गई। आप उसे लेकर अस्पताल गए। वहाँ
अकबर ने खुलासा किया- अगर इस देश के प्राणी इतने मूर्ख न होते तो मैं इन पर शासन कैसे कर पाता। और जब तक यह मुल्क़ मूर्खों से भरा रहेगा, तब तक हम और हमारी पीढ़ियाँ यहाँ राज करती रहेंगी।
प्रेषक : बदतमीज़ मुझसे है तेरी शत्रुता तो जान मेरी जान ले। बस याचना है एक तूँ इस याचना को मान ले। बन्दूक रख दे
फैली सुहानी चाँदनी हर, वृक्ष के पत्ते हिलें। सूखे पड़े दो होंठ के ये, पुष्प चाहूँ फिर खिलें। क्यों रुष्ट हो इस क्षण प्रिये तुम,
19 साल की ही तो हुई थी मैं, जब मुझे कुछ रुपयों रूपये के बदले में पैंतालीस साल के सेठ नवीन कुमार को बेच दिया
लेखिका : शीनू जैन एक बार मेरे मौसी की शादी में हम सभी गए थे। जिस होटल में शादी हुई थी, उसी होटल में सबके
टीवी पर आ रहे दृश्य से श्रद्धा को एक झटका सा लगा। उसने अपने पास ही बिस्तर पर बैठे जीजा को झिंझोड़ते हुए कहा- नरेन्द्र
सरकारी अस्पताल में दो दिन का नसबंदी कैंप लगा। वहाँ आपरेशन कराने वालों का मेला सा लगा था। आपरेशन कराने वालों के साथ आए हुए
प्रेषक : अरिदमन दोस्तो, यह मेरी पहली कहानी है। आशा करता हूँ कि आप लोग इसे पसंद करेंगे। मेरा नाम अरिदमन है, मैं रामनगर का
फ़ुलवा मेघा दफ़्तर से लम्बी छुट्टी पर गई थी पर अचानक महीने भर में ही छुट्टियाँ रद्द कर वह वापस आ गई, छुट्टियाँ अवैतनिक थी,
हेलो, मैं हूँ गोपी ! जी हाँ, मैं ही हूँ आपकी जानी पहचानी नाजुक सी, सदा खिलखिलाती सी गोलू मोलू सी गोपी भाभी ! आपने
हेलो, मैं हूँ गोपी ! जी हाँ, मैं ही हूँ आपकी जानी पहचानी नाजुक सी, सदा खिलखिलाती सी गोलू मोलू सी गोपी भाभी ! मैं
वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक शीतल मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक
सुबह साढ़े नौ बजे किसी के दरवाजे की घंटी बजाए जाने पर नींद खुली तो मैंने पाया कि मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था।
हर सप्ताह अपने मेल बॉक्स में मुफ्त में कहानी प्राप्त करें! निम्न बॉक्स में अपना इमेल आईडी लिखें, सहमति बॉक्स को टिक करें, फिर ‘सदस्य बनें’ बटन पर क्लिक करें !
* आपके द्वारा दी गयी जानकारी गोपनीय रहेगी, किसी से कभी साझा नहीं की जायेगी।