तेरा साथ है कितना प्यारा-1
उन्होंने मुझे खींचकर अपनी छाती से चिपका लिया और एक मीठा सा चुम्बन दिया। मैं तो शर्म से धरती में गड़ी जा रही थी पर उनकी छाती से चिपकना बहुत अच्छा लग रहा था।
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उन्होंने मुझे खींचकर अपनी छाती से चिपका लिया और एक मीठा सा चुम्बन दिया। मैं तो शर्म से धरती में गड़ी जा रही थी पर उनकी छाती से चिपकना बहुत अच्छा लग रहा था।
इस कहानी को लिखने के लिये मुझे प्रेरित किया अन्तर्वासना के उत्कृष्ट लेखक श्री लीलाधर ने, मैं आभारी हूँ उनका, उन्होंने इस कहानी को न
मुझे लगा कि इस बार मैं पहले शहीद हो गई हूँ। अरूण का दण्ड नीचे से लगातार मेरी बच्चेदानी तक चोट कर रहा था। तभी
तभी अचानक मुझे अपने अन्दर झरना सा चलता महसूस हुआ। अरूण का प्रेम दण्ड मेरे अन्दर प्रेमवर्षा करने लगा। अरूण के हाथ खुद ही ढीले
उन्होंने अपने हाथ से मेरी ठोड़ी को पकड़ कर ऊपर किया और मेरी आँखों में झांकते हुए विनती सी करने लगे जैसे कह रहे हों,
अरूण मेरे बिल्कुल नजदीक आ गये। मेरी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। अरूण ने चेहरा ऊपर करके अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिया।
आखिर इंतजार की घड़ी समाप्त हुई और बुधवार भी आ ही गया। संजय के जाते ही मैंने अरूण के मोबाइल पर फोन किया। तो उन्होंने
मुझे पुरूष देह की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। काश: इस समय कोई पुरूष मेरे पास होता जो आकर मुझे निचोड़ देता… मेरा रोम रोम
दोनों लड़कियाँ आपस में एक दूसरे से अपनी योनि रगड़ रही थी। ऊफ़्फ़…!! मेरी उत्तेजना भी लगातार बढ़ने लगी। परन्तु मेरी समझ में नहीं आ
संजय ने कभी मेरी योनि को प्यार नहीं किया तो मैं भी एक शर्मीली नारी बनी रही, मैंने भी कभी संजय के लिंग को प्यार नहीं किया। मुझे लगता था कि अपनी तरफ से पहल करने पर संजय मुझे चरित्रहीन ना समझ लें।
वैसे तो संजय से मेरा रोज ही सोने से पहले एकाकार होता था। परन्तु वो पति-पत्नी वाला सम्भोग ही होता था। उस दिन मेरी शादी
मैंने अपना एक हाथ बाहर निकाल कर ऊपर किया और तर्जनी उंगली धीरे से कामना की गुदा में सरकाने की कोशिश की। ‘आह…नहीं…’ की आवाज
मेरे पास अब सोचने का समय नहीं था। किसी भी क्षण मेरा शेर वीरगति को प्राप्त हो सकता था, मैंने आगे बढ़कर अपना लिंग उसके
मैंने एक तरफ से कामना का नाइट गाऊन उसके नीचे से निकालने के लिये जैसे ही खींचा कामना से अपने नितम्ब ऊपर करके तुरन्त नाइट गाऊन ऊपर करने में मेरी मदद की। मैंने कामना के ऊपरी हिस्से को बिस्तर से उठाकर नाइट गाऊन को उसके बदन से अलग कर दिया…
और वो काम सुन्दरी मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी वैसे तो उस समय वो गुलाबी रंग की ब्रा उस पर गजब ढा रही थी…
मैं मौके का फायदा उठाते हुए एकदम उसके पीछे आ गया, और पीछे से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके पेट पर उंगलियाँ फिराने लगा।
उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली- जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना !’ उनका इतना बोलना था,
गौर से देखने पर मुझे अहसास हुआ कि कामना ने टॉप के नीचे कोई अधोवस्त्र नहीं पहना था, क्योंकि उन पहाडि़यों की ऊपरी चोटी पर
पिछले तीन दिनों की व्यस्तता के बाद भी आज मेरे चेहरे पर थकान का कोई भाव नहीं था आखिर आज मेरे घर मेरी स्वप्न सुन्दरी
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