तीन पत्ती गुलाब-31
(Teen Patti Gulab- Part 31)
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मैं अपनी कामवाली की चूत चोद चुका था और अब उसकी गांड मारने को उतावला था. लेकिन उसे गांड के लिए मानना थोड़ा मुश्किल लग रहा था.
मैंने गौरी को 1 घंटे तक अंग्रेजी और मैथ पढ़ाया। सोने के लिए जाते समय मैंने गौरी को अपनी बांहों में लेकर गुड नाईट किस किया। गौरी ने कोई विरोध नहीं किया।
अगली सुबह मधुर स्कूल चली गई। मैं जब फ्रेश होकर बाहर आया तो गौरी रसोई में चाय बना रही थी। मैं भी रसोई में आ गया। आज उसने पतली पजामी और गोल गले की टी-शर्ट पहन रखी थी। बालों की दो चोटियाँ बना रखी थी।
“गुड मोर्निंग डार्लिंग क्या हो रहा है?”
“आपके लिए गुडमोल्निंग बना लही हूँ?” कह कर गौरी हंसने लगी।
गौरी चाय बनाने में लगी थी तो मैं चुपके से उसके पीछे जाकर उसे अपनी बांहों में भर लिया और एक हाथ से उसकी सु-सु को पकड़ कर भींच लिया और दूसरे हाथ से उसके बूब्स को अपने हाथों में पकड़ कर दबाने लगा।
“उईईईई … त्या कल लहे हो?”
“गौरी मेरी जान तुम बहुत खूबसूरत हो.”
“ओहो … हटो परे … मेली चाय उफन जायेगी.”
“उफनती है तो उफनने दो … ” कहकर मैंने उसकी गर्दन पर चुम्बन ले लिया। और फिर उसके कानों और गालों पर भी चुम्बन लेने लगा।
“प्लीज … लुको … आह … आप बाहल बैठो, मैं चाय लेकल आती हूँ।”
मेरा एक हाथ अभी भी गौरी की सु-सु को दबाने में व्यस्त था। गौरी ने मेरे हाथ को हटाने की कोशिश की पर मेरी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरा हाथ हटाना उसके लिए संभव नहीं था। हार कर उसने अपना हाथ मेरे हाथ के ऊपर ही रख लिया।
मेरा लंड खडा होकर उसके नितम्बों के खाई से जा टकराया। उसने भी इसे महसूस कर लिया था। उसने अपने नितम्बों को थोड़ा भींच लिया था। काश गौरी आज रसोई की शेल्फ पर अपने हाथ आगे रख कर खड़ी हो जाए और मैं पीछे से अपना लंड उसकी सु-सु में उतार दूं तो कसम से आज की सुबह तो एक हसीन ही यादगार बन जाए। मेरा लंड उसकी पतली पजामी में कैद नितम्बों के बीच हिलजुल करने लगा था।
“गौरी मेरी जान तुम बहुत खूबसूरत हो.”
गौरी ने अपने दोनों हाथ ऊपर करके मेरी गर्दन पर लगा लिए और अपनी आँखें बंद ली। मैंने उसकी सु-सु के पपोटों को मसलना चालू कर दिया।
गौरी की मीठी सीत्कार निकलने लगी- आआआईईई ईईई …
वह अपने पैर पटकने लगी थी। फिर वह पलटकर मेरे सीने से लग गई।
“गौरी पता है मेरा मन आज क्या कर रहा है?”
“हम … त्या?” गौरी ने आँखें बंद किये हुए ही पूछा।
“गौरी आज रसोई में ही कर लें क्या?”
“हट! रसोई में गंदा काम नहीं कलते.”
“इसमें गंदा क्या है यह तो परमात्मा की सेवा का काम है। प्रेम करना कोई गंदा काम थोड़े ही होता है?”
“हट! कुछ भी बोलते हो? अब आप जाओ मैं चाय लेकल आती हूँ। आज कोई शलालत नहीं करनी?” गौरी ने मुझे थोड़ा धकेलते हुए से कहा।
फिर वह चाय छानने में लग गई।
मुझे लगा रसोई में तो आज वह नहीं मानेगी चलो आज सोफे पर ही बैठकर उसकी गांड चुदाई ना सही गोद भराई (मेरा मतलब चुदाई) का आनंद तो ले ही सकते हैं।
मैं बाहर आकर सोफे पर बैठ गया और अखबार पढ़ने लगा।
5-4 मिनट के बाद गौरी चाय लेकर आ गई। उसने दो गिलासों में चाय डाल ली और एक गिलास मुझे पकड़ा दिया। आज चाय में चीनी थोड़ी कम रह गई थी।
गौरी ने चाय की एक सुड़की लगाई। उसके चहरे को देखकर लगा जैसे चाय में चीनी कम है।
मैंने कहा- गौरी अपना गिलास देना एक बार?
गौरी को कुछ समझ तो नहीं आया पर उसने अपना गिलास मुझे पकड़ा दिया। अब जहां गौरी ने अपने होंठ लगाए थे मैने ठीक उसी जगह अपनी जीभ फिराई और फिर एक सुड़का लगाते हुए चाय की चुस्की ली।
गौरी यह सब देख रही थी- अले … ओह … मेली झूठी चाय?
“कोई बात नहीं तुम्हारे होंठों की मिठास इतनी ज्यादा है कि मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूँ। वैसे भी आज चाय में तुमने चीनी कम डाली थी तो हिसाब बरोबर हो जाएगा।” कह कर मैं हंसने लगा।
अब बेचारी गौरी मंद-मंद मुस्कुराने के अलावा और क्या कर सकती थी। दोस्तो! किसी लौंडिया को पटाने के लिए यह सब टोटके बहुत जरूरी होते हैं।
मैंने आज बर्मूडा और लाल रंग का टी-शर्ट पहन रखा था। मेरा लंड पूरा खड़ा होकर कलाबाजियां लगा रहा था। उसका उभार बर्मूडा के ऊपर साफ़ देखा जा सकता था। मैंने गौर किया गौरी कनखियों से बार-बार उसी तरफ देखे जा रही थी। उसने अपने एक टांग दूसरी टांग पर रख ली थी और अपनी जांघें भी भींच रखी थी। पता नहीं वह क्या सोचे जा रही थी।
“गौरी तुम तो रात को भी दूर ही बैठती हो और दिन में भी?”
अब गौरी ने चौंक कर मेरी ओर देखा। मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने पास खींच लिया।
“नहीं … आज मेला मन नहीं है प्लीज …”
दोस्तो, यह सब हसीनाओं के नखरे होते हैं। मधुर भी चूत और गांड देने से पहले इसी तरह के नखरे और ना नुकुर जरूर करती है। अगर मैं शुद्ध देशी भाषा का प्रयोग करूँ तो कहूँगा बकरी दूध देती जरूर है मेंगनी करने के बाद।
अब मैंने गौरी को अपनी गोद में बैठा लिया था। और उसके गालों को चूमने लगा था।
“आप फिल शलालत करने लग गए ना? आह …”
“गौरी एक बात पूछूं?”
“हओ” गौरी की आवाज में थोड़ा कम्पन सा था और उसका शरीर रोमांच के मारे लरजने सा लगा था।
“अच्छा एक बात बताओ तुम्हारा सबसे खूबसूरत अंग कौन सा है?”
“मुझे त्या पता?”
“ऐसा थोड़े ही होता है? सब खूबसूरत लड़कियों को पता होता कि उनका कौन सा अंग सबसे खूबसूरत है जिन पर लड़के मर मिटते हैं?”
“पता नहीं? आप बताओ?” गौरी मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा।
“वैसे तो तुम्हारा हर अंग सांचे में ढला हुआ है पर मैं सच कहता हूँ तुम्हारे नितम्ब बहुत ही ज्यादा खूबसूरत हैं।”
मुझे लगा गौरी शरमाकर ‘हट’ जरूर बोलेगी पर गौरी तो जोर जोर से हंसने लगी थी।
“पता है दीदी ने भी सेम टू सेम यही बात बोली थी.” गौरी अपनी झोंक में बोल तो गई पर फिर उसने शर्म के मारे अपनी मुंडी नीचे कर ली।
“अच्छा कब?”
अब गौरी बेचारी क्या बोलती?
मैंने दुबारा पूछा तब वह बोली- दीदी के बल्थ डे वाले दिन!
“प्लीज … पूरी बात बताओ ना?”
“वो … वो … जब हम पाल्टी ते लिए तैयाल हो लहे थे तब कपड़े बदलते समय उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक कई बार देखा और फिर अपनी बांहों में लेकर चूमा था और फिर यह बात बोली थी।”
“क्या तुमने सारे कपड़े उतार दिए थे?”
“हओ.” गौरी झिझकते हुए हामी भरी।
“अच्छा नितम्बों वाली क्या बात आ गयी थी?”
फिर गौरी ने बहुत शर्माते हुए बताया कि दीदी मेरे नंगे नितम्बों को देखकर बोली- गौरी तुम्हारे नितम्ब इतने खूबसूरत हैं कि तुम्हारा पति तो इन्हें देखकर इनके ऊपर लट्टू ही हो जाएगा और तुम्हें आगे और पीछे दोनों तरफ से खूब प्यार करेगा।
गौरी तो बताकर चुप भी हो गई और शर्मा भी गई पर आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते हैं। मेरा लंड तो बर्मूडा में तूफ़ान ही मचाने लगा था। बार-बार ख़ुदकुशी करने पर आमादा हो चुका था। मेरी कानों में सांय-सांय सी होने लगी थी और साँसें और दिल की धड़कन भी तेज हो गई थी। मन कर रहा था अभी गौरी को सोफे पर पटक कर इसका गेम बजा डालूँ।
लगता है मधुर ने गौरी को हमारी दूसरी सुहागरात (पहली बार मधुर ने गांड मारने दी थी) के बारे में जरूर बताया होगा।
गौरी ने अपनी मुंडी अभी भी झुका रखी थी। उसकी साँसें भी बहुत तेज़ हो रही थी। मैंने गौर किया उसके माथे हल्का सा पसीना सा आ गया है और कनपटियाँ भी लाल सी हो गई हैं।
मैंने गौरी को अपनी बांहों में भर लिया और कई चुम्बन एक साथ ले लिए और उसके नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया था।
“गौरी मेरी जान … क्या तुम भी मुझे उतना ही प्रेम करती हो जितना मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से चाहता हूँ?”
“हाँ मेले साजन!” कह कर गौरी ने मेरे होंठों को चूम लिया।
“गौरी आज मेरी एक बात मान लो प्लीज?”
“मेले साजन! आपके लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूँ?”
“गौरी मेरी एक बहुत बड़ी इच्छा है.”
“त्या?”
“गौरी पहले वादा करो तुम बुरा नहीं मानोगी और शरमाओगी नहीं?”
गौरी ने भय मिश्रित आंशंका से मेरी ओर ताकते हुए कहा “हम … ठीक है”
मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। मुझे तो लगने लगा मेरी जबान लड़खड़ाने सी लगी है और शायद मैं कुछ बोल ही नहीं पाऊंगा। अब मैं गौरी से किन शब्दों में अपनी इस ख्वाहिश का इजहार (इच्छा प्रकट करना) करूँ मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था।
“गौरी मेरा भी म … मन तुम्हारे नितम्बों को प्रेम करने का कर रहा है …” मुझे लगा गौरी शरमाकर ‘हट’ बोलेगी और फिर हो सकता है मान-मनौव्वल के बाद राजी भी हो जाए। हे लिंग देव! तेरी जय हो …
“क … क्या?” अचानक गौरी मेरे आगोश से छिटक कर दूर हो गई जैसे उसे 370 डिग्री का बिजली का झटका सा लगा हो।
“क … क्या हुआ?”
“ना बाबा ना … मैं तो मल जाऊंगी …”
“अरे नहीं मेरी जान ऐसे कोई नहीं मरता।”
“ना … बा … ना इसमें बहुत दल्द होता है.” गौरी ने घबराए अंदाज़ में कहा।
“तुम्हें कैसे पता कि इसमें करने से दर्द होता है?”
“वो … वो त … क … तालू … भ …”
“क्या … मतलब … कौन तालू?”
“तमलेश भैया … ” (कमलेश-गौरी का बड़ा भाई)
“ओह … क्या किया कहीं … ठ … ठोक तो नहीं दिया? उस मादर … ” मेरे मुंह से गाली निकलते-निकलते बची।
मैं इतना जोर से बोला था कि गौरी तो एक बार सकपका सी गई उसके मुंह से तो आवाज ही नहीं निकल पा रही थी।
“बताओ ना … क्या किया उसने?”
“वो … बबली भाभी …” गौरी ने डरते-डरते बताने की कोशिश की।
“अब बीच में ये भाभी कहाँ से आ गई?”
“भैया ने अपनी सुहागलात में … बबली भाभी … ” कहकर गौरी एक बार फिर चुप हो गई। मेरी उलझन और असमंजस बढ़ता ही जा रहा था।
“हाँ … क्या किया कालू ने … तुम्हारे साथ?”
“मेले साथ नहीं …”
“तो?”
“वो भाभी के साथ पीछे से किया था”
“ओह … फिर?”
“तो भाभी को बहुत दल्द हुआ था वो तो जोल-जोल से रोने लगी थी। बहुत देल बाद उनका दल्द ठीक हुआ था।”
“पर सुहागरात तो पति-पत्नी मनाते हैं तुम्हें यह सब कैसे पता? क्या तुम्हारी भाभी ने बताया?”
“नहीं हमने छुपकल उनकी सुहागलात देखी थी।”
“हमने मतलब? तो क्या तुम्हारे साथ किसी और ने भी उनकी सुहागरात देखी थी?”
“हओ … ”
“और कौन था?”
“मेले साथ अ.. अंगूल दीदी भी थी हम दोनों ने देखी थी।”
“हम” मैंने एक लम्बी राहत की सांस ली। मुझे तो लगा था साले उस कालू ने कहीं गौरी को ही तो नहीं ठोक दिया था। शुक्र है ऐसा कुछ नहीं हुआ था। मेरी उत्सुकता बढती ही जा रही थी।
सुहागरात में ही अपनी पत्नी के साथ गुदा मैथुन की नौबत कैसे आ गई? समझ से परे था। सुहागरात में तो चूत ही बड़ी मिन्नतों के बाद मिलती है यहाँ तो उसने पहली ही रात में कैसेट को दोनों तरफ से बजा लिया था, भई … यह तो सरासर कमाल है।
“गौरी प्लीज … पूरी बात विस्तार से बताओ ना? ऐसी क्या बात हो गई थी कि कालू ने पहली ही रात में अपनी पत्नी के साथ गुदा मैथुन करके उसके नितम्बों का मज़ा ले लिया?”
“वो … वो … मुझे शल्म आती है?” गौरी अब थोड़ी संयत तो हो चुकी थी। पर उसकी शर्म वाली आदत मुझे इस समय वाकई अच्छी नहीं लग रही थी।
“यार इसमें शर्म की क्या बात है? प्लीज बताओ ना? तुम्हें मेरी कसम?”
और फिर गौरी ने जो बताया वह मैं उसी की जबानी आप सभी को बता रहा हूँ …
कहानी जारी रहेगी.
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