प्रशंसिका ने दिल खोल कर चूत चुदवाई-10
(Prashansika Ne Dil Khol Kar Chut Chudwayi- Part 10)
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हम दोनों एक दूसरे का माल चाट कर या पीकर पूरी तरह से संतुष्ट हो गये, उसके बाद हम दोनों ही उस गीले बिस्तर पर एक दूसरे से चिपक कर सो गये।
रचना का सिर मेरी छाती पर और हाथ मेरे चूतड़ पर, मेरा एक हाथ उसके लम्बे बालों को नींद आने तक सहला रहा था और दूसरा हाथ उसके चूतड़ को सहला रहे थे।
पता नहीं कब मुझे नींद आ गई!
पर शायद आधी रात ही हुई होगी कि मुझे लगा कि मेरे निप्पल को दाँत से काटा जा रहा है और लंड को मसला जा रहा है।
मेरी नींद खुल गई देखा तो रचना अपना काम कर रही थी।
मैंने उसको पुचकारते हुए पूछा- डार्लिंग, क्या बात है, नींद नहीं आ रही है क्या?
वो बोली- नहीं जान, मैं बहुत मस्त नींद में थी और सपने में थी कि तुम मुझे बहुत तेज-तेज चोद रहे हो… उसी से मेरी नींद उचट गई, देखा तो तुम्हारा लंड एक बार फिर टाईट हो गया और मेरी बुर से चिपका हुआ था। बस फिर क्या एक बार फिर खुमारी मुझे चढ़ गई। लेकिन तुम तो गहरी नींद में सो रहे थे तो तुम्हें मैं परेशान नहीं करना चाहती थी। इसलिये मैं धीरे-धीरे यह हरकत कर रही थी।
‘कोई बात नहीं यार!’ मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा- जब तक मैं और तुम यहाँ साथ-साथ है, मेरा लंड तुम्हारी सेवा के लिये ही है। पर इस समय मैं तुम्हें चोद नहीं पाऊँगा, हाँ तुम चाहो तो मुझे तुम चोद सकती हो।
कहकर मैं सीधा हो गया, मेरा लंड बांस की तरह एकदम सीधा तना हुआ था, मैंने रचना से बोला- अब तुम इसकी सवारी कर सकती हो।
रचना तुरन्त ही उठ कर बैठ गई और मैं बिस्तर के बीच में आ गया, वो मेरे लंड पर अपनी चूत को सेट करके मेरे लंड को अपने अन्दर लेने लगी।
हलाँकि रचना ने मुझे चूमते-चूमते एक बार पानी छोड़ दिया था। क्योंकि उसके चूत के गीलेपन का अहसास मेरे लंड पर हो रहा था।
खैर, रचना अब धीरे-धीरे मेरे लंड पर उछल रही थी, उसके दोनों हाथ मेरी छाती पर थे।
जब वो लंड पर उछलते-उछलते थक जाती तो मेरे ऊपर लेट जाती और मेरे निप्पल को चूसने लगती।
दो-तीन बार ऐसे ही उसने किया।
तभी मैंने रचना से हँसते हुए बोला- चाहो तो अपनी गांड की भी क्षुधा शांत कर लो, नहीं तो फिर तुम्हें सपना आयेगा कि मैं तुम्हारी गांड मार रहा हूँ और फिर तुम नींद से जाग जाओगी।
रचना एक चांटा मेरे गाल को रसीद करते हुए बोली- यह आईडिया पहले क्यों नहीं दिया? वैसे भी मेरे गांड में चूल उठ रही थी।
कहकर उसने एक बार फिर लंड पर अपनी गांड सेट किया, इस बार उसको भी तकलीफ हो रही थी और मुझे भी। क्योंकि उसकी गांड थोड़ी टाईट थी और मेरे लंड के सुपाड़े के चमड़े को खींच रही थी।
फिर भी मैं और रचना दोनों ही हो रहे हल्के दर्द को भूलकर एक दूसरे का सहयोग कर रहे थे।
अब मेरा लंड उसकी गांड में प्रविष्ट हो चुका था। वो बिल्कुल सीधी बैठी हुई थी और फिर धीरे-धीरे अपने जिस्म को इस प्रकार हिला डुला रही थी कि लंड आधा उसकी गांड में रहता था और आधा उसकी खोल से बाहर आ जाता था।
इस तरह थोड़ी देर करते रहने से धीरे-धीरे उसकी गांड में ढीलापन आ चुका था जिससे अब आसानी से लंड अन्दर बाहर आ जा रहा था। और रचना के उछलने की स्पीड बढ़ती जा रही थी।
करीब 10 मिनट तक वो कभी अपनी गांड के अन्दर लंड को लेती तो कभी चूत के अन्दर लेकर उछलती। एक वक्त ऐसा भी आया कि जब मेरे लंड पर एक अजीब सी मीठी-मीठी खुजली होने लगी और मुझे लगने लगा कि रचना खूब तेज-तेज उछले, इसलिये मैं रचना के चूतड़ पर हाथ की थपकी देकर उसे उसकाता रहा और वो खूब तेज-तेज उछलती रही।
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और जैसे ही लंड की खुजली शांत हुई, मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया, मैं बस इतना ही कह पाया- रचना हटो, मैं झड़…….
और रचना मेरे ऊपर से हट भी नहीं पाई थी कि मेरा पानी निकल गया और उसके चूत मेरे पानी से पूरी-पूरी तर हो गई।
रचना मेरे ऊपर से हटी और चादर से अपनी चूत को साफ किया।
अब उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव आ गये थे और वो करवट बदल कर लेट गई, उसकी गांड मेरे लांड की तरफ थी।
मैंने भी उसके पहाड़ जैसे जिस्म पर अपने पैर को लादा और सो गया।
फिर मेरी नींद सुबह के नौ बजे ही खुली, मैं अंगड़ाई लेते हुए उठा, देखा कि रचना अभी भी सो रही है, उसका दूध जैसा जिस्म सूरज की छन कर आती हुई रोशनी में और भी चमकदार लग रहा था।
अनायास ही मेरे हाथ उसके चूतड़ को सहलाने लगे।
ऐसा करते ही वो भी अंगड़ाई लेते हुए उठ बैठी और मुस्कुराकर मेरी तरफ देखते हुए मुझे गुड मार्निंग बोली, मैंने भी उसका जवाब दिया।
मैं उठा और शौच के लिये गुसलखाने गया।
क्योंकि अब हम कोनो के बीच की शर्मोहया पूर्ण रूप से खत्म हो चुकी थी इसलिये रचना भी मेरे पीछे-पीछे आई और जब तक मैं बैठ कर टट्टी करता रहा वो मुझे वही खड़े होकर देखती रही और ब्रश करती रही।
जब मैं टट्टी करके उठा तो उसने कुल्ला किया और वो भी टट्टी करने बैठ गई और मैं ब्रश करने लगा।
उसके मूतने की अवाज में एक छनक थी।
जब वो भी निपट ली तो हम दोनों ने एक-दूसरे को रगड़-रगड़ कर नहलाया।
पहली बार रचना ने मेरे सामने ब्रा और पैन्टी पहनी जो एक सामान्य साइज से ज्यादा बड़ी थी।
फिर हम लोग नहा धोकर बाहर आये और एक होटल में नाश्ता करने गये।
मैं अपने ऑफिस चला गया क्योंकि आज और कल मुझे ऑफिस का काम निपटाना था, क्योंकि दूसरे दिन रात की हम दोनों को ही वापस लौटना था और रचना के साथ चुदम-चुदाई का खेल भी काफी हो गया था।
जब मैं दोपहर को लौटा तो रचना ने पहले से खाना मंगवा लिया था। चूंकि मुझे ऑफिस वापस जाना था तो मैंने खाना खाया और रचना को सॉरी बोलते हुए जाने लगा तो रचना ने मुझे रात में लेट से आने की सूचना दी।
जब मैंने कारण जानना चाहा तो बोली- कल लौटना है तो सोच रही हूँ कि कुछ शॉपिंग कर लूँ।
मैंने हॉमी भर दी और मेरे दिमाग में भी रचना को कुछ गिफ्ट देने का ख्याल आया।
शाम को ऑफिस से लौटते समय मैंने रचना के लिये एक पारदर्शी गाउन खरीदा, शाम को मुझे लौटने में देर हो गई, लगभग 9 बजे मैं ऑफिस से लौटा तो मुझे कमरा बाहर से लॉक मिला।
कहानी जारी रहेगी।
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