मेरी चालू बीवी-115
(Meri Chalu Biwi-115)
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सम्पादक – इमरान
मैं बहुत तेजी से धक्के लगा रहा था, मेरा लण्ड तेजी के साथ रानी की चूत में आ जा रहा था।
तभी मैंने सलोनी को देखा, वो भी जमकर मजा ले रही थी, मामाजी भी लम्बी चुदाई करने के लिए अपना पूरा अनुभव का प्रयोग कर रहे थे।
वो बार बार अपने लण्ड को सलोनी की चूत से बाहर निकाल ले रहे थे, उसके बाद या तो खुद नीचे बैठ सलोनी की चूत अपनी जीभ से चाटने लगते या फिर सलोनी से अपना लण्ड चुसवाते!
और फिर मामाजी ने एक और किलकारी की, उन्होंने सलोनी को गद्दे के ऊपर सीधा लिटाकर उसके दोनों पैर हवा में उठा दिए, सलोनी की चूत सामने खिलकर आ गई, उन्होंने अपना लण्ड एक ही झटके में अंदर डाल दिया!
और फिर से उसको चोदने लगे।
पर मैंने अपना आसन नहीं बदला वरना सलोनी की चुदाई देखने में परेशानी हो जाती।
हाँ, मैंने छेद जरूर बदलने की सोची और मैंने अपना लण्ड रानी की चूत से बाहर निकाल लिया।
फिर मेरे मन में केवल बदला लेने की भावना भी न जाने कहाँ से आ गई थी।
मामाजी को बार बार अपना लण्ड सलोनी की चूत से बाहर निकालकर उसको चुसवाने लगते थे, बस यही देखकर मैंने भी रानी की चूत से निकले लण्ड को फिर से उसके पति के मुँह में दे दिया।
पर अब उसने कोई विरोध नहीं किया, वो मजे से उसको चूस रहा था, इस बार रानी भी नीचे बैठकर मेरे अंडकोषों को चूसने और सहलाने लगी।
अब कभी उसका पति तो कभी रानी खुद मेरे लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूस रही थी, दोनों में जैसे होड़ सी लगी थी कि कौन उसको चूसेगा।
इस सबमे मेरा लण्ड गुर्रा सा रहा था, वो पूरा लाल हो गया था।
मैंने एक बार फिर रानी को घोड़ी बनाया और इस बार लण्ड उसके गांड के छेद पर सेट किया।
उसने एक बार हल्के से अपने चूतड़ों को हिलाया पर मैंने उसके चूतड़ों को कस कर पकड़ा और एक तेज झटके के साथ लण्ड को अन्दर पेल दिया।
मुझे एहसास हो गया कि रानी की गाण्ड का छेद बहुत ही कसा था, उसने गांड चुदवाई तो है पर ज्यादा नहीं, शायद 2-3 बार ही!
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे गांड के छेद में कसकर डाट लगा दी हो, बहुत ही फंसा फ़ंसा सा अन्दर जा रहा था मेरा लौड़ा!
रानी बार बार सर हिलाकर मना कर रही थी मगर जब उधर मेरी सलोनी की गाण्ड मारी जा रही हो तो भला मैं कैसे मान जाता?
मैं कसकर रानी के चूतड़ों को पकड़े हुए ही अपने लण्ड को अन्दर किये जा रहा था और तभी रुका जब पूरा लण्ड अन्दर प्रवेश कर गया।
अब मुझे ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने मेरे लण्ड को किसी शिकंजे में कस लिया हो।
और फिर शुरू हुई उस सिकंजे से बाहर निकलने और उसको कसकर रखने की कशमकश।
लण्ड बहुत ही धीरे धीरे अन्दर बाहर हो पा रहा था मगर मजा बहुत ज्यादा आ रहा था।
कुछ देर तक तो रानी ने विरोध किया मगर अब शायद उसको भी मजा आने लगा था, वो भी अपने कूल्हों को आगे पीछे करके मज़ा लेने लगी।
फिर हम तीनों ने इस ओर से ध्यान हटा, उधर लगा दिया।
मैं धीरे धीरे गाण्ड मारते हुए सलोनी की चुदाई देखने लगा।
अरे उधर शायद मामाजी का काम तमाम हो गया था, मामाजी अपना लण्ड हाथ में पकड़े हंम्फ हंम्फ! हांफ रहे थे और सलोनी के पेट और जांघें दोनों ही उनके वीर्य से भीगी थीं, वहाँ से पानी भी टपक रहा था।
सलोनी की हमेशा की आदत है कि वो कभी भी सेक्स को बीच में नहीं छोड़ती!
उसने यहाँ भी ऐसा ही किया, उसने उठकर मामाजी के लण्ड को अपने हाथ से सहला कर सही किया, फिर उसको अपनी जीभ से साफ़ कर उसको अपने मुँह में लेकर चूस कर सही कर दिया।
चुदाई के बाद मुँह में लेकर चूसने से लण्ड को बहुत आराम मिलता है, यह बात सलोनी को अच्छी तरह से पता है।
यह सब मामाजी को भी भाया, वो प्यार से सलोनी के सर पर हाथ फेरने लगे, फिर मामाजी ने वहाँ पड़ी एक चादर से सलोनी के पूरे बदन को साफ़ किया।
सलोनी अपने कपड़े पहनने लगी, मामाजी ने भी अपना पजामा और बनियान पहना और वहीं लेट गए।
मामाजी- अरे, यह अंकुर कहाँ चला गया? मुझे तो डर था कि कहीं बीच में ना आ जाए!
सलोनी अपना ब्लाउज और पेटिकोट ही पहन वहीं लेट गई।
सलोनी- हाँ, शायद कहीं चले गए होंगे… चलो अच्छा ही हुआ… वरना आपका क्या होता?? अहा हा हा…
मामाजी- हा हा… वैसे बेटी, बुरा मत मानो तो एक बात पूछूँ?
सलोनी- जी हाँ, क्या?
मामाजी- क्या अंकुर के अलावा तुमने आज मुझसे ही चुदवाया है या फिर किसी और से भी? देखो सच-सच बताना?
कहानी जारी रहेगी।
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