कभी कभी जीतने के लिए चुदना भी पड़ता है-4
हॉट सेक्स स्टोरी इन हिंदी का पिछला भाग: कभी कभी जीतने के लिए चुदना भी पड़ता है-3
हम लोग कॉलेज बिल्डिंग के आपातकालीन सीढ़ियों से ऊपर की तरफ बिल्डिंग में चढ़ने लगे दबे पाँव. और चुपचाप छत पे पहुँच गए।
सुनील ने कहा- एक दिक्कत है. यहाँ कोई गद्दा नहीं है।
मैंने कहा- तो क्या हुआ? खड़े खड़े कर लेना।
उसने कहा- नहीं, रुको. मैं 5 मिनट में आया.
और भाग के नीचे चला गया।
मैंने लगभग उसका 15 मिनट इंतज़ार किया. और मैं वापस जाने ही वाली थी.
तभी वो आता दिखाई दिया और उसके हाथ में एक कंबल था।
मैंने मुस्कुराते हुए पूछा- ये कहाँ से ले आए इस मौसम में? इतनी ठंड नहीं है।
उसने बोला- इवैंट मैनेजर से बोल के लेके आया हूँ. बोला कि हल्की सी ठंड लग रही है, बुखार सा है।
मैंने कहा- शाबाश ,ये हुई ना बात, लाओ मैं मदद कर देती हूँ.
और हमने छत की तरफ से चारों दरवाजों की कुंडी लगा दी सुरक्षा के लिए।
फिर मैंने और उसने कंबल को छत के बीचोंबीच बिछा दिया और चुदाई की तैयारी करने लगे।
मैंने उससे पूछा- तुमने कभी खुले आसमान के नीचे सेक्स किया है क्या?
सुनील ने कहा- नहीं तो! पर लगता है तुमने जरूर किया है।
मैंने कहा- हाँ, भाई की शादी में किया था अपने बॉयफ्रेंड के साथ।
सुनील मुस्कुराने लगा, बोला- अच्छा है यार!
उसने अपनी जीन्स की पैंट में से एक तेल की बॉटल निकाल के साइड में रख दी।
उसे देखते ही मैंने उसे हल्के से गुस्से से आंखें भींच के घूरा। मैं उसकी इच्छा समझ गयी थी।
उसने कहा- देखो, मैं जानता हूँ कि पीछे से करने में तेल की जरूरत पड़ती है. पर अगर तुम्हारा मन नहीं होगा तो नहीं करूंगा।
मैंने कहा- ठीक है. कोशिश करना कि ना करना पड़े! पीछे से दर्द होता है।
सुनील मुस्कुराने लगा और बोला- लगता है सब किया हुआ है?
मैंने कहा- हाँ, आज कल की दुनिया में सब ट्राइ करना चाहिए।
सुनील ने कहा- ठीक है तो शुरू करें?
मैंने कहा- ठीक है. सुबह 11-12 बजे तक सबको निकलना है।
सुनील ने कहा- ठीक है. फिर अपने कपड़े उतारो फटाफट … करते हैं।
उसने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू किया और मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए.
अब मैं सिर्फ ब्रा पैंटी में बची थी और सुनील अपने कच्छे में।
छत पे बड़ी बड़ी लाइट लगी हुई थी जो नीचे रोशनी फेंक रही थी. पर उनकी रोशनी छत पे भी काफी पड़ रही थी. पूरी छत उज्ज्वलित थी।
मैं हाथ पीछे करके अपनी ब्रा उतारने लगी. इतने सुनील ने अपना कच्छा उतार दिया।
मैंने देखा कि उसका लंड खड़ा होना शुरू हो गया है. पर अभी अपने पूरे जोश में नहीं आया है।
अब लड़का खेला खाया था शायद इसलिए इतनी जल्दी खड़ा नहीं हुआ होगा. वरना सुहानी चौधरी नंगी हो जाए तो मुरदों के भी लंड खड़े हो जायें।
फिर मैंने कहा- क्या हुआ? आज खड़ा नहीं हो रहा क्या?
उसने कहा- तुम्हारे नर्म गुलाबी होंठ की छुअन से ही खड़ा होगा अब तो!
मैंने कहा- सीधे सीधे बोलो ना मेरा लंड चूसो. बहाने क्या कर रहे हो।
सुनील हंस के कहने लगा- सुहानी चौधरी, मेरा लंड चूसो ना प्लीज।
वो मेरे सामने खड़ा था. मैं हल्का सा मुस्कुराई और उसकी टाँगों के बीच मुंह लेजाकर उसके लंड को हाथ से ऊपर से नीचे तक सहलाया और धीरे धीरे किस करने लगे।
सुनील ने हल्की सी आह … भरी और बोला- पूरा चूसो ना।
मैंने अब बिना देर किये ऊपर से उसका लंड अपने मुंह में लिया और हलक तक अंदर लेती चली गयी। मैंने अब ज़ोर ज़ोर से लंड को ऊपर नीचे चूसना शुरू कर दिया.
2 मिनट मैंने बड़े अच्छे ढंग से चूसा।
सुनील बस ‘आहह … अहह …’ करके आहें भरता रहा. उसका लंड पूरा तन गया और चुदाई करने को बिल्कुल तैयार हो गया।
मैंने कहा- अब ठीक है, अब शुरू करो।
सुनील ने कहा- रुको, मैं भी तो तुमको गीला कर दूँ.
और वो कमर के बल लेट गया और मुझे 69 पोजीशन में आने को बोला।
मैं तुरंत वैसे ही आ गयी और हाथ से पकड़ के उसका लंड मुंह में ले लिया. दूसरी तरफ सुनील मेरी चूत की जीभ से चाट चाट के चुदाई करने लगा।
अब तो मुझे भी बहुत मजा आने लगा था. मैं उम्म … उम्म … उम्म … उसका लंड चूसते हुए मजे ले रही थी. मेरी चूत चिकनाहट से गीली हो गयी. पूरी तरह से और फूल के चुदवाने को तयार थी।
मैंने कहा- अब बहुत हुआ, चुदाई शुरू करते हैं.
और मैं लेटे लेटे ही घूम के उसके मुंह की तरफ आ गयी।
मेरे खुले बाल सुनील के चेहरे के साइड में झूल रहे थे और हम दोनों एक दूसरे की आंखों में देख के मुस्कुरा रहे थे।
मैंने हल्की सी आवाज में कहा- डालो ना यार प्लीज!
उसने बोला- ठीक है.
और उचक उचक के डालने की कोशिश करने लगा.
पर उसे चूत का रास्ता नहीं मिल रहा था.
मैंने कहा- रुको!
और मैंने खुद ही नीचे हाथ ले जा के उसका लंड ढूंढा और पकड़ के अपनी चूत पे लगा लिया।
फिर क्या था. हल्की हल्की सीईईई … करते हुए चूत में ले गयी और उस पे झुक के बैठ गयी।
सुनील ने हल्की सी आहह … भरी।
अब मैं खुद ही धीरे धीरे उसके लंड पे ऊपर नीचे सरक सरक के चुदवाने लगी।
धीरे धीरे मैं अपनी स्पीड बढ़ाने लगी और उसकी छाती पे हाथ रख के चुदवाने लगी। मेरे मुंह से आहह … आहह … अहह … सी … स्सी … स्सीईईए … की आवाज निकल रही थी. मेरे बाल, बूब्स सब कुछ ऊपर नीचे हिल रहा था।
हमने लगभग 5 मिनट तक ऐसे ही चुदाई की. फिर थक के थोड़ा आराम करने लगे. चूत में लंड पड़े पड़े ही।
अब सुनील ने कहा- तुम नीचे लेटो कंबल पे. मैं ऊपर से चुदाई करता हूँ।
मैं उसके सामने जांघें खोल के लेट गयी। सुनील मेरे सामने आया और मेरे ऊपर पूरा झुक के लंड चूत पे सटाया. और हाथ मेरे बगल में रख के लंड अंदर डालने लगा धीरे धीरे।
मुझे बहुत मजा आ रहा था और उसे भी।
फिर उसने बिना देरी किए लंड को चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. वो मुझे घपाघप चोदने लगा। उसके पट्ट पट्ट के जोर के धक्के और उसका लंड मेरी चूत में गहराई में जा जा के मुझे पूरे मजे दे रहा था।
हम दोनों के ही मुंह से जोर ज़ोर से अहह … आ … आहह … निकल रही थी. खुले आसमान के नीचे कॉलेज की लाइट के बीच मेरी जबर्दस्त चुदाई चल रही थी।
फिर थोड़ी देर बाद जब वो थक गया तो लंड निकाल के बैठ गया और सुस्ताने लगा।
जब वो सुस्ता लिया तो फिर से लंड डालने के लिए मेरे ऊपर झुक गया और हाथ पकड़ के लंड को फिरने लगा पर मेरी गांड पे।
मैंने उसके हाथ में मारते हुए कहा- वहाँ नहीं, चूत में ही डालो।
उसने कहा- प्लीज यार, गांड में डलवा लो प्लीज प्लीज।
मैंने कहा- नहीं यार, समझा करो … नहीं नहीं नहीं।
उसने बोला- ठीक है. मैं नहीं चोदता फिर!
और कंबल पे घुटने मोड के बैठ गया जैसे हड़ताल पे बैठा हो कि नहीं चोदूँगा।
मैंने उसे बोला- प्लीज यार, चोदो ना। ऐसे बीच में मत छोड़ो।
पर वो माना नहीं रहा था।
मैंने ही आखिर हार मानते हुए उसे तेल की बोतल दे दी और घोड़ी बन गयी.
उसके सामने घूम के मैंने कहा- ले मार ले मेरी गांड, खुश?
वो एकदम से खुश हो गया और बोतल ले ली।
उसने ऊपर को उठा के मेरी गांड पे तेल उड़ेला और उंगली अंदर करके चिकनी करने लगा।
शुरू में तो जब उसकी उंगली गयी तो मैं भी हल्के हल्के स्सी … स्सी … कर रही थी।
फिर उसने अपने लंड को भी चिकना कर लिया और चोदने की पोजीशन में आ गया।
मैंने कहा- आराम से!
और उसने अपना लंड मेरी गांड के छेद पे रख दिया।
उसने पूछा- घुसाऊँ?
तो मैंने कहा- हम्म।
उसने हल्का सा धक्का लगाया पर चिकनाहट के बावजूद लंड नहीं घुसा।
फिर उसने मेरी कमर को पकड़ा और फिर धीरे धीरे ज़ोर लगाने लगा. तो चिकनाहट की वजह से उसके लंड का मुंह मेरी गांड में घुस के अटक गया.
और मेरी हल्के से दर्द से स्सीईई … आऊ … निकल गयी।
उसने कहा- अब चला जाएगा.
और धीरे धीरे अपना चिकना लंड मेरी गांड में उतारता चला गया. और अपने आँड तक घुसा के अटका दिया. तो मेरे मुंह से फिर आहह … स्सी … निकली. उसके झटके से मैं आगे को हिल गयी।
मैंने पीछे देखा और हाँ में सिर हिलाया कि चोद ले अब।
उसने शुरू में धीरे धीरे बाहर निकाला और अंदर डालना चालू करा. और धीरे धीरे धक्के मारने लगा।
फिर धीरे धीरे स्पीड बढा दी और पिच्छह … पिच्छह … की आवाज के साथ चोदने लगा।
वो खुद बोल रहा था- आहह … आहह … आहह … सुहानी. आहह … थैंक्स सुहानी … आहह।
मैं भी अब उसके जोरदार धक्कों से हिलते हुए आगे पीछे होने लगी और ज़ोर ज़ोर से आहह … आहह … स्सी … आई … आहह … करने लगी।
ऐसे ही वो लगातार 6-7 मिनट तक धक्के मारता रहा. और फिर एकदम से निकाल के चूत में लंड घुसा दिया और चोदने लगा।
मैं अब पूरे मजे ले रही थी- आहह … सुनील. आह … और तेज़ और तेज़ … और तेज़ सुनील. बहुत मज्जा … आ रहा है. चोदते रहो … आह … सुनील. थैंक्स मुझे जिताने के लिए … सारी मेहनत वसूल कर लो मुझे चोद चोद के।
सुनील भी बोल रहा था- आहह … आहह … सुहानी … आहह. तुम्हें चोदने के लिए तो … आहह … ये प्रतियोगिता क्या जिंदगी हार जाऊँ. आहह … सुहानी … आहह।
अब हम दोनों ऐसे ही 5-6 मिनट तक फुल स्पीड वाली चुदाई करते रहे. और फिर झड़ने के करीब भी पहुँच गये।
मेरे पूरे जिस्म में आनंद ही आनंद भर गया. मैं पागलों की तरह चिल्लाने लगी- और तेज़ … आहह … सुनील और तेज़ और तेज़.
सुनील भी झड़ने को हो रहा था.
और थोड़ी देर में ही मेरे पूरे शरीर में करेंट दौड़ गया. मैं ज़ोर से आहह … करते हुए फच्च्ह फच्छ करके झड़ने लगी.
सुनील झड़ते हुए ही चोदता रहा. और फिर वो भी दम से चोदते हुए मेरी चूत में गर्म गर्म वीर्य गिराता हुआ झड़ गया।
हम दोनों एक साथ झड़ चुके थे और कंबल के ऊपर निढाल हो के गिर गए. हम ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगे।
सुस्ताते हुए कब हमारी आँख लग गयी, हमें पता ही नहीं चला।
जब हमारी आँख खुली सुबह हो चुकी थी और हल्की धूप खिल चुकी थी।
पहले तो मुझे लगा लो मैं शायद हॉस्टल में हूँ.
फिर एकदम से मैं होश में आयी तो देखा कि मैं और सुनील खुली छत पे खुले असामान के नीचे बिल्कुल नग्न अवस्था में पड़े हैं.
मैंने उसे उठाया- सुनील उठो, देखो सुबह हो गयी. मुझे जल्दी से हॉस्टल पहुंचा दो प्लीज।
सुनील भी उठा और चौंक गया।
मैंने पानी की टंकी के पास जाकर टोंटी चला के खुद को साफ किया.
तो सुनील ने कहा- क्यूँ डर रही हो? देखो दूर दूर तक सिर्फ खुला असामान ही तो है. आसपास कोई बिल्डिंग नहीं है इतनी ऊंची कि कोई हमें देख सके। हम उस वाले गेट से निकल जाएंगे. वहाँ कोई नहीं होता।
फिर उसने बोला- सुहानी, एक आखरी बार और चुदवा लो प्लीज।
मैंने कहा- दिमाग खराब है? टाइम देख रहे हो?
उसने कहा- आज संडे है, कोई जल्दी नहीं उठेगा. आओ ना फटाफट कर लेते हैं।
मैंने सोचा कि बात तो सही है.
हम दोनों एक फिर एक दूसरे की बांहों में समा गये. और बहुत तेज़ तेज़, बहुत जल्दी जल्दी एक बार फिर सेक्स किया लगातार झड़ने तक।
फिर बस खुद को साफ किया और कपड़े पहने।
सुनील ने सुनिश्चित किया कि रास्ता साफ है.
और हम छत के दरवाजों की कुंडी खोल के चुपके से नीचे आ गए और तुरंत अलग हो गए.
सुबह घूमने का बहाना करते हुए हम अपने हॉस्टल में चले गए।
फिर बाद में सब अपने अपने कॉलेज के लिए निकल गए।
मैं और मेरी क्लास वाले सब मेरी जीत से बहुत खुश थे. और मैं भी अपनी जीत और चुदाई से बहुत खुश थी।
तन्वी ने भी कहा- देखा जीत के आगे चुदाई कुछ नहीं।
और फिर मैं अगले कुछ दिनों में अपनी कॉलेज की दिनाचर्या में लग गयी।
तो दोस्तो, कैसे लगी आपको मेरी यह ट्रू हॉट सेक्स स्टोरी इन हिंदी?
उम्मीद करती हूँ कि आपको पसंद आई होगी।
हो सकता है कि आप में से कुछ जरूरत से ज्यादा समझदार लोगों को पसंद ना आया हो मेरा जीतने के लिए ऐसा करना।
पर कभी कभी जीतना ही सब कुछ होता है।
और वैसे भी सेक्स करना कोई अपराध नहीं है।
तो मजे करते रहें, सेक्स करते रहें. जिंदगी एक बार मिलती है. उसे एंजॉय करते रहें।
मिलते हैं अगली हॉट सेक्स स्टोरी इन हिंदी में।
बाय बाय
आपकी सुहानी चौधरी।
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