मेरी गांड मारने की मामा की ख़्वाहिश पूरी की-1

(Meri Gand Marne Ki Mama Ki Khwahish Poori Ki- Part 1)

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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को रिशू का प्यार भरा नमस्कार!
प्रिय पाठको, मेरी आपबीती सच्ची चुदाई को व्यक्त करने की शैली और निखर जाती है जब आप मेरी कहानी को ई-मेल के द्वारा सराहते हैं. मैं बताना चाहूँगी कुछ पाठकों ने मेरी कहानी को बहुत गहराई से अध्ययन किया और बहुत ही अच्छी तरह से अपनी विचार व्यक्त किया, बहुत बहुत धन्यवाद,

मैं नये पाठकों से निवेदन करूँगी कि जो मेरी कहानी पहली बार पढ़ रहे हैं, वे कृपया मेरी पहले की कहानियाँ भी ज़रूर पढ़ें, तो ही आप इस कहानी की संपूर्ण आनन्द ले पाएंगे.

आपने पिछले भाग में पढ़ा कि मेरे मामा ने कैसे मेरी चुदाई किचन में की, खड़े खड़े चुदाई के बाद हम दोनों इतने थक चुके थे कि चुदाई पूरी होते ही एक दूसरे के बाहों में गिर गये, 5 मिनट यों ही हम दोनों एक दूसरे से लिपटे रहे, फिर हम दोनों ने एक दूसरे के कानों में अपनी अपनी ख्वाहिश बताई.
अब आगे:

कुछ पल के बाद हम दोनों एक दूसरे से अलग हो गये, जब अलग हुए तो मेरी नज़र मामा के लंड पर गयी जो एकदम सुकड़ गया था काले खजूर के जैसे.
मामा जल्दी से फ्रेश होने बाथरूम चले गये, मैं भी बर्तन धोने लगी.

बर्तन धोने के बाद मैं फ्रेश होने बाथरूम चली गयी, मैंने अच्छे से अपनी चूत की सफाई की, उसके बाद किचन में मामा जी के लिए चाय नाश्ता बनाने लगी.
हमने एक साथ नाश्ता किया.

अब मामा मामा जी को कोचिंग जाना था, जाते वक़्त मामा जी मुझे अपनी बाहों में भर कर किस करने लगे, जाते जाते मामा बोल गये- याद है ना कल रात का वादा?
मैं बोली- हाँ याद है अच्छी तरह से! और आप को भी मेरी ख्वाहिश पूरी करनी है याद रखिएगा. और हाँ, आज के लिए तो कोई नयी वीडियो नहीं दी आपने?
मामा जी बोले- नहीं, आज के लिए कोई वीडियो नहीं है.
फिर मैंने मामाजी के गाल पे किस की और वो चले गये.

अब मैं रूम में अकेली थी, मेरी मन में एक ही बात आ रही थी कि आज तो मामा मेरी गांड को नहीं छोड़ेंगे. मैं मामा को वादा कर बैठी थी कि आज रात गांड मारने दूँगी.
मुझे थकावट से महसूस हो रही थी शायद कुछ देर पहले ही चुदी थी इसलिए, मैंने सोचा कि कुछ देर टी वी देख लूँ ताकि मेरी बदन को थोड़ा आराम मिल जाए.
टी वी देखते देखते मेरी आँख लग गयी, नींद खुली तो दिन के दस बज चुके थे.

मेरी चूत के अंदर फिर से पानी भरने लगा था, मुझ में थोड़ी थोड़ी हिम्मत आने लगी थी, मेरी मन में एक ही ख़याल आ रहा था कि आज गांड मरवानी है और उसकी तैयारी भी करनी है.
मैं सोचने लगी कि कैसे मैं अपनी गांड का छेद बड़ा करूँ, बार बार मेरी आँखों के सामने मामा जी के लंड की मोटाई ओर लंबाई आ जाती थी, ये सब सोच कर मेरी चूत में गुदगुदी से होने लगी, मैं सोचने लगी कि क्यू ना बैंगन वाला ही तरीका अपना लूँ.

मैं झट से बाड़ी में गयी और मामा के लंड से थोड़ी पतली वाली बैंगन खोजने लगी, मैं भी नहीं चाहती कि मेरी गांड का छेद इतना खुल जाए कि मामा को मज़ा ना दे पाऊँ.
बहुत खोजने के बाद तीन बैंगन मिली जो मामा के लंड से थोड़ी पतली और लंबाई और थोड़ी कड़क मिली, मैं झट से घर में लाई और दरवाजा बंद कर दिया.

जल्दी से मैंने अपनी शॉर्ट्स और पेंटी निकाल दी और मोबाइल पे वीडियो देखने लगी. धीरे धीरे मुझमें रोमांच भरने लगा, चूत के अंदर चींटियाँ काटने लगी, मुझे लगने लगा कि यही मौका है बैंगन को गांड मैं घुसाने की कोशीश करने का, जल्दी से मैं मामा वाली वेसलिन ले आई और ढेर सारी वेसलिन बैंगन पे लगाई, थोड़ी सी अपनी गांड का छेद पे भी लगा ली.

अब मैं सोचने लगी कि बैंगन को गांड में डालूँ तो डालूँ कैसे… मेरे हाथ मेरी गांड का छेद तक ठीक से नहीं पहुँच पा रहे थे.
फिर मैं बिस्तर पे लेट गयी और गांड के नीचे तकिया डाल लिया और पैर को ऊपर की ओर मोड़ कर दोनों जाँघों को वी आकार में फैला दिया जिससे मेरी गांड थोड़ी ढीली हो गयी. फिर मैं बैंगन को गांड के छेद पे रख कर अंदर की ओर ठेलने लगी लेकिन बैंगन में वेसलिन लगी होने के कारण बार बार फिसल जाती थी बहुत कोशिश करने के बावजूद बैंगन थोड़ी से भी अंदर ना घुस पाई और आख़िरकार बैंगन टूट गयी.

फिर मुझे लगा कि मुझे पहले अपनी उंगली ही गांड के अंदर डालने की कोशिश करनी चाहिए, मैं अपनी उंगली में वेसलिन लगा कर गांड के अंदर घुसने की कोशिश करने लगी और वीडियो देखने लगी.
धीरे धीरे मेरी पूरी उंगली मेरी गांड में समा गयी, मैं उंगली को थोड़ी थोड़ी हिलाने लगी, मुझे मजा आ रहा था, मैं सोचने लगी कि क्यों ना कुछ मोटी सख्त सी चीज़ घुसने की कोशिश करूँ, मैं रूम मैं इधर उधर नज़र दौड़ाने लगी, मेरी नज़र पिचकारी पे पड़ी जो आगे से नुकीली थी और धीरे धीरे मोटी हो रही थी, वो पिचकारी मेरे छोटा भाई की थी जो होली पर खरीद लाया था.
मैंने सोचा कि पिचकारी ही गांड मैं घुसाने की कोशिश करूं क्योंकि यह आगे से पतली है, आसानी मेरी गांड में घुस सकती है. और धीरे धीरे उसकी मोटाई बढ़ती है तो मेरी गांड का छेद भी खुल जाएगा.

पिचकारी की नोक पर वेसलिन लगी दी पर पिचकारी इतनी लंबी थी कि गांड की सिधाई में अड्जस्ट नहीं हो पा रही थी. मैं बाथरूम चली गयी पिचकारी को लेकर… कमोड पर बैठ कर भी कोशिश करने लगी पर पिचकारी सीधी नहीं हो पा रही थी.
मैं बाहर आ गयी और सोचने लगी कि कैसे जाएगी पिचकारी मेरी गांड में!
मेरी नज़र टेबल पर पड़ी, मुझे एक तरकीब सूझी, मैंने टेबल को दीवार से सटाया और टेबल से एक कुर्सी सटा दी, कुर्सी पे पिचकारी को रख दी, पिचकारी का नुकीला हिस्सा टेबल से केवल 3 से 4 इंच ऊपर निकला हुआ था.

मैं टेबल पर चढ़ गयी, एक हाथ से दीवार और दूसरी हाथ से पिचकारी पकड़ ली और पिचकारी की नोक पर गांड के छेद को रख कर बैठने की कोशिश करने लगी.
पिचकरी की नोक गांड मैं चुभाने लगी, शायद गांड का छेद सही से नोक पे नहीं टिका था. इसलिए मैं फिर से गांड में उंगली घुसाने लगी ताकि छेद थोड़ी ढीला हो जाए.

उसके बाद मैं पिचकारी की नोक को गांड के छेद पर सही तरह से टिकाने के बाद बैठने लगी, अब धीरे धीरे पिचकारी मेरी गांड को चीरती हुई समाने लगी, मुझे दर्द और गुदगुदी दोनों का अहसास होने लगा. मैं इस मीठे मीठे से दर्द की मजा लेने लगी.
पिचकारी टेबल से जितनी ऊपर थी, वो पूरी तरह से मेरी गांड में समा चुकी थी, पर मुझे अहसास हो रहा था कि मामा जी का लंड जितना मोटा है, उसकी तुलना में मेरी गांड आधी भी नहीं खुली है.
मैं सोचनी लगी कि कैसे पिचकारी की नुकीली हिस्से को टेबल से ओर ऊपर करूं, मैं टेबल से उतर कर पिचकारी लेकर बाथरूम चली गयी और पिचकारी में थोड़ी पानी भर लाई जिससे पिस्टन बाहर निकलने से पिचकारी की लंबाई 4-5 इंच और बढ़ गयी.

मैं पहले के तरह फिर से टेबल पर चढ़ गयी और पिचकारी को कुर्सी पर रखा, पिचकारी की ऊपरी हिस्सा टेबल से लगभग 8 इंच ऊपर थी, अब मेरी गांड का छेद थोड़ी खुल चुकी थी, पिचकारी का ऊपरी हिस्सा आसानी से मेरी गांड में समा गया, मैं पिचकारी पर गांड रख कर बैठने लगी, पर मैंने यह नहीं सोचा था कि पिचकारी को आगे से ठेलो या पीछे से पानी केवल एक ही तरफ से निकलता है, मेरे बैठते ही पिचकारी नीचे से दबने लगी, मुझे गांड के अंदर ठंडक का अहसास होने लगा.

फिर मुझे समझ आया कि पिचकारी के अंदर का पानी मेरी गांड में समा गया है, मैं तृप्त सी होने लगी, मेरी गांड में पिचकारी घुसे होने के बावजूद पानी गांड से लीक होने लगा, मुझे जोर से गांड के अंदर गुदगुदी होने लगी साथ ही साथ मेरी चूत भी खुजलने लगी थी, मैं बर्दाश्त से बाहर हो रही थी, अचानक से मैंने अपनी गांड को नीचे की ओर झटका दी, पिचकारी का पूरा नुकीला हिस्सा मेरी गांड में घुस गया. पिचकारी ने पूरी पानी मेरी गांड के अंदर उड़ेल दिया, मैं ऐसा महसूस कर रही थी कि जैसे गांड के अंदर सैलाब आ गया हो. मेरी गांड खुल चुकी थी पर पता नहीं कितनी!

मैं जानती थी कि अगर मैं पिचकारी गांड से निकाल दूँगी तो गांड के अंदर की सारा पानी रूम में ही बिखर जाएगा इसलिये पिचकारी गांड में डाले ही किसी तरह से टेबल से उतरी और बाथरूम चली गयी और सारा पानी बाथरूम मैं निकाल दिया.

मुझे अब अपनी गांड खुली खुली सी लग रही थी, जब मैंने उंगली गांड में डाली तो उंगली बिना कहीं रुके गांड के अंदर तक जा रही थी, गांड के अंदर बहुत ही नर्म और गर्म प्रतीत हो रहा था.

फिर मैंने सोचा कि एक बार बैंगन डाल कर जाँच कर लूँ कि मेरी गांड मामा जी के लंड के आकार में खुली है या नहीं.
जब मैं बैंगन डालने लगी तो थोड़ी कसी कसी सी महसूस हो रही थी, मैंने किसी तरह से बैंगन को ज़बरदस्ती धक्के देकर आधा से ज़्यादा घुसा लिया, मुझे लगी कि शायद रात तक मेरी गांड के अंदर के नर्म हिस्से फिर से फैल जाएंगे और गांड दुबारा कस से जाएगी इसलिए बैंगन को गांड के अंदर ही 2-3 घण्टे के लिए छोड़ देना चाहिए. मैंने बैंगन को गांड में ही घुसा छोड़ दिया और कपड़े पहन लिए.
अब मैं बैठ नहीं सकती थी, मुझे अब सब काम खड़े खड़े करने पड़ रहे थे. मैं खाना बनाने लगी, खाना बनाने के बाद मैंने किचन में ही खड़ी खड़ी स्लॅब पे प्लेट रख कर खाना खा लिया, खाना खाने के बाद मुझे आलस आने लगा, मैं बहुत थक भी गयी थी, सोचा कि किसी तरह बेड पर लेट लूँ?
मैं बहुत कोशिश करके किसी तरह से करवट ले कर लेट गई.
थोड़ी ही देर मैं मुझे नींद आ गयी, नींद खुली तो शाम हो चुकी थी.

मैं जल्दी से उठकर बाथरूम चली गयी क्योंकि मुझे ज़ोर से सू सू आ चुकी थी, सू सू करने के लिए मैं नीचे बैठ गयी और ज़ोर लगाने लगी, सू सू के साथ मेरी गांड से बैंगन भी निकल गयी, जब मैंने गांड में उंगली डाली तो महसूस हुआ कि गांड का छेद पूरी तरह से गोलाई में खुल चुका था, अब मामा जी का लंड आसानी से जा सकता था.

अचानक से मुझे याद आया कि मामा जी बोले थे सू सू रोक कर रखने के लिए… पर मैं सू सू कर चुकी थी.
थकावट की वजह से मैं नहाना भूल गयी थी, सोचा कि जल्दी से नहा लूँ. मैं बाथरूम में कपड़े लेकर नहीं गयी थी इसलिए मुझे नहाने के बाद नंगी ही बाहर आना पडा. जल्दी से मैंने कपड़े पहन लिए और किचन जाकर 3 ग्लास पानी पीया.

अब मैं फ्रेश महसूस कर रही थी, शाम के 6 बाज चुके थे, मैंने सोचा कि जल्दी से मैं खाना बना कर 8 बजे तक फ्री हो जाती हूँ क्योंकि 8 बजे तक मामा आ जाएँगे और मैं ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त मामा के साथ बिता सकूँगी. अब मेरे पास केवल आज की रात और कल दोपहर तक का ही वक़्त था, कल शाम तक मम्मी पापा और भाई आ जाने वाले थे.

मैं खाना बना कर आठ बजे तक फ्री हो गयी और मामा जी की आने का इंतजार करने लगी.

मामा ने मेरी गांड मारी या नहीं… जानने के लिए अगले भाग पर जाएँ!
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कहानी का अगला भाग: मेरी गांड मारने की मामा की ख़्वाहिश पूरी की-2

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